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मंदिर, चर्च और अन्य स्मारको में रखी हुयी किमती कलाकृतिया जैसे मूर्ति और शिल्प हमेशा से चुराये जाते आये है और उन्हें तस्करी करके देश के बाहर भेजा जाता है। पर कुछ लोग है जो चुरायी गयी इन सभी चिज़ो को वापस लाकर अपने सही जगह पहुचाने का काम निस्वार्थ भाव से कर रहे है।
हजारों सालों पहले तमिलनाडु राज्य के श्रीपुरंथन गाँव के लोग बृहदेश्व मंदिर में पूजा करते थे। इस मंदिर का निर्माण राजा 'राजरजा चोला-१' ने किया था। वहा पर रखे हुये भित्ति-चित्र, मुर्तिया और शिलालेख की वजह से मंदिर प्रसिद्ध था। मंदिर मे रखी हुयी ब्रास से बनी भगवान नटराज की मूर्ति बहुत ही किमती थी। दुर्भाग्यवश साल २००६ में वह मूर्ति चोरी हो गयी और उसे देश के बाहर बेच दिया गया।अलग अलग देशों में घूमकर अंत में मूर्ति लंदन के सोथेबि नीलाम-घर में पायी गयी।
लंदन से ऑस्ट्रेलिया सरकार ने इस मूर्ति को ख़रीदा पर कुछ ही दिनों बाद इसे वापस भारत लाया गया। मूर्ति को श्रीपुरंथन मंदिर में स्थापित किया गया। हजारों सालों पहले की प्रतिष्ठा आखिर वापस लौट आयी।
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हम सबको पता है कि २०१४ में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एब्बोट ने हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मूर्ति सुपुर्द की पर नटराज की मूर्ति को वापस लाने के पीछे कई लोगो की मेहनत थी। वो सब लोग इंडिया प्राईड प्रोजेक्ट से जुड़े है और इनका मुख्य उद्देश हमारे देश की धरोहर और संस्कृति को बनाये रखना है।
ऐतिहासिक धरोहर को जतन करने के उद्देश से कुछ लोगो ने एक संगठन बनाया है। संगठन के सब लोग जेम्स बांड की तरह काम करके भारत की सभी चुरायी हुयी कलाकृतिया वापस अपने देश में लाते है।
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प्रोजेक्ट के संस्थापक अनुराग सक्सेना कहते है, “ब्लॉगर और कलाप्रेमी विजय कुमार ने सबसे पहले चोरी हुयी नटराज की मूर्ति को देखा। हमने सबूत ढूँढना शुरू किया ताकि हम बता सके कि चोरी से पहले मूर्ति उसी मंदिर में थी। हमने कुछ लोगो से कैनबेरा जाकर मूर्ति के फोटो लेने को कहा जिन्हें हम ओरिजिनल से मैच कर सके। उसके बाद हमने डीलर द्वारा प्रस्तुत किये गये झूठे दस्तावेज और रसीद ढूँढना शुरू किया जिससे हम साबित कर सके कि मूर्ति चोरी की गयी थी।”
हमारे टिम ने ऑस्ट्रेलिया के म्यूजियम को मूर्ति की असली कहानी बता दी। हमने उनसे कहा कि अगर आपने अच्छी भावना से मूर्ति खरीदी है तो उसी अच्छी भावना से आप भारत को वापस करे। पर बहुत दिनों तक ऑस्ट्रेलिया सरकार और म्यूजियम समिति ने हमें जवाब नहीं दिया इसलिये पत्रकार सम्मेलन में सच लोगो के सामने लाया गया। एक प्रख्यात रिपोर्टर ने इस मुद्दे को काफी लोगो तक पहूँचाया और सही मायने में हमारी मदद की।
कुछ ही दिनों बाद मूर्ति को भारत वापस लाया गया। श्रीपुरंथन के गाँव वालो ने खुश होकर मूर्ति की फिर से स्थापना की।
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४० वर्षीय अनुराग पिछले ९ सालो से सिंगापुर में रहता है और वर्ल्ड एजुकेशन फाउंडेशन के लिये काम करता है।
अनुराग बताते है, “भारत के गाँवो में तीन स्थान बेहद महत्वपूर्ण हो है - कुआ, मंदिर और बरगद का पेड़। इन्ही जगहों पे लोग अपने त्यौहार मनाते है और यादे संजोते है। पर ऐसी ही जगहों को बहुत सालो पहले लूटते थे, इतना ही नहीं आज भी ऐसा होता आ रहा है। अभी भी मंदिर या चर्च से मुर्तिया चोरी होती है, स्मारकों से शिल्प भी चोरी होते है।एक समय ऐसा था जब राष्ट्रीय खजाना पैसो के लिये पूरी दुनिया में बेचा जाता था। हम हमेशा सोचते थे कि इसे रोकने के लिये किसी को कुछ करना चाहिये। फिर सोचा क्यों ना शुरुआत खुद से ही करे।”
इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट की टीम को लगता था कि सभी लुटी हुयी चीजे जैसे शिल्प, नक़्शे, शिलालेख, चित्र हमें वापस लाना चाहिये। टीम में सभी ११ लोग दूसरी जगह नौकरी करते थे। इनमे से कुछ लोग विद्यार्थी थे, कुछ बैंक में काम करते थे, कुछ व्यापारी थे और कुछ इतिहासकार या विजुअल मैचिंग में एक्सपर्ट थे।
प्राइड इंडिया टिम सोशल नेटवर्क के माध्यम से बहुत सारे लोगो से जुडी हुयी है और वो सब लोग समय पर मूल टीम की मदद भी किया करते है।
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हाल ही में घटी एक घटना को याद करते हुये अनुराग कहते है, “मेरा एक दोस्त दुसरे देश में (उस देश का नाम मैं नहीं बताना चाहता हूँ) law enforcement department में काम करता है। उसे एक दिन भारत से चोरी की गयी मूर्ति दिखाई दी। उसने हमें एक मूर्ति की फोटो भेजी और कहा कि मूर्ति भारत, इंडोनेशिया या कम्बोडिया देश की हो सकती है।मूर्ति के नीचे एक शिलालेख लिखा था। हमने उसे ट्वीटर पे पोस्ट किया। २४ घंटो में हमें कई सारे ट्वीट्स आये जिससे ये पता चला कि मूर्ति भारत के किस जगह से चोरी की गयी है।”
जब कभी भी हमारे लोगो को ऐसी कलाकृति या मूर्ति के बारे में पता चलता है, हमारी टीम के लोग सोशल मीडिया में पोस्ट कर देते है ताकि कोई म्यूजियम में जाकर उस कलाकृति के फोटो खिचे।
चुराये हुये शिल्प ढूँढने के लिये टीम ३ तरीको का इस्तेमाल करती है:
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१. जब कही चोरी होती है और पुलिस केस दर्ज किया जाता है तब टीम को पता चलता है।
अनुराग कहते है, “हमें सपोर्ट करने वाले कुछ लोग सरकार में और law enforcement departments में काम करते है। वो सब लोग हमें ऐसी घटनाओ के बारे में बताते है। कभी कभी हमें गाँव वाले बताते है या न्यूज़पेपर से पता चलता है।”
२. मूर्ति के चोरी होने के कई सालो बाद उसे अन्य देश में पाया जाता है तब कोई नागरिक या सरकारी मुलाजिम हमे उसकी फोटो भेजते है और चुरायी गयी चीज का मूल स्त्रोत ढूँढने को कहते है।
३.टीम के लोग हमेशा सोशल मीडिया और न्यूज़पेपर पर नजर बनाये रखते है। हमारे लोग सुबह कम से कम आधा घंटा न्यूज़ पर ध्यान देते है जिससे ऐसी घटनाओ के बारे में पता चलता है।
इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के लोगो ने धीरे धीरे दुनिया के सभी म्यूजियम के ध्यान में ये बात लायी है कि उनके यहाँ रखी हुयी मुर्तिया चोरी की हो सकती है।
पिछले एक साल में भारत से १५००० से १७००० मुर्तिया चोरी की गयी है। प्राइड इंडिया टिम ने उनमे से २००० मुर्तिया ढूँढ निकाली है और ५ मुर्तियों को देश में वापस भी लाये है।
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अनुराग को लगता है कि सभी वापस लायी हुयी चिजे जिस जगह से चुरायी है उन्हें उसी जगह वापस देना चाहिये। पर उन्हें सरकारी गोदामों में रखा जाता है। अब टीम इसी पर काम करना चाहती है।
अनुराग बताते है, “चुरायी हुयी सब मुर्तिया या शिल्प जिस जगह की होती है वहा उनका बहुत ज्यादा महत्व होता है। बहुत सारे लोग हमारे इस मिशन में जुड़े है और हमें मदद करते है। मैं खुश हूँ कि इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट अब सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं है बल्कि आंदोलन बन चूका है।”
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