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2015 में हुए दस ऐसे उदाहरण जो आपको यकीन दिलाएंगे कि भारत अब भी है ‘सारे जहाँ से अच्छा’ !

भारत – एक ऐसा देश जो अपनी विविधताओं के लिए जाना जाता है, जिसकी अनेकता में एकता की मिसाल दुनिया भर में दी जाती है, जिसके हर शहर में मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरद्वारे है ! पर जैसा कि आजकल बताया जाता है, क्या सच में भारत की एकता में फूट पड़ गयी है? क्या हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जो बरसो से भाई भाई की तरह यहाँ रहते थे अब लड़ने लगे है? या फिर जिस तरह अंग्रेजो ने ‘तोड़ो और राज करो’ की नीती अपना कर हमें गुलाम बनाया था, ये वैसी ही कोई साजिश है?

भारत वो नहीं जो हमें दिखाया जा रहा है, भारत वो है, जो हम अपने आस पास रोज़ देखते है। ऐसे ही जब हमने अपनी आँखे खोलकर देखने की कोशिश की तो हमें ऐसे उदाहरण दिखाई दिए जो इस बात का सबूत थे कि हमारा देश अब भी ‘सारे जहाँ से अच्छा’ है! आईये आप भी देखे ऐसे २०१५ में हुए १० ऐसे उदाहरण जो आपको भी इस बात का यकीन दिलाएंगे

१. जब मौत ने किया हिन्दू-मुसलमान को एक !

Source: Wikimedia 

हमें सिर्फ वही खबरे दिखाई और सुनाई जाती है जिनमे हिन्दू और मुसलमानों ने एक दुसरे को धर्म के नाम पर मार दिया। पर क्या आपने सीताराम के बारे में सुना है, जिनकी मौत ने हिन्दू और मुसलमानों को एक कर दिया? ये कहानी है, मध्य प्रदेश के बरवानी जिल्हे सेंधवा शहर के रहनेवाले ७५ वर्षीय सीताराम की, जिनका इस दुनिया में कोई नहीं था। जब सीताराम की मौत हुई तो प्रश्न उठा कि उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा? पर इस गाँव के हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्म के लोगो ने मिलकर सीताराम का अंतिम संस्कार पुरे रीती रिवाज के साथ किया।

२. जब एक हिन्दू शहीद के लिए मस्जिद में पढ़ी गयी नमाज़ !

Picture for representation only. Source: Wikimedia

कहते है वीरो का कोई धर्म नहीं होता! केरला के मलप्पुरम शहर के एक मस्जिद में आज तक आठार्वी सदी के एक शहीद के लिए ख़ास नमाज़ पढी जाती है। आप कहेंगे, इसमें अनोखा क्या है? पर यदि हम आपसे कहे कि ये शहीद एक हिन्दू था, तो क्या ये आपको अनोखा नहीं लगेगा? जी हाँ! करीब २९० साल पहले कोज्हिकोड़े के शासक ने मालाबार पर हमला कर दिया। कर वसूली पर छिडे इस जंग में सोनारो के समुदाय से ताल्लूक रखनेवाले कुन्हेलु ने अपने मुस्लिम दोस्तों का साथ दिया और शहीद हो गए। इस महान योद्धा को हमेशा याद रखने के लिए, उन्हें उनके मुस्लिम भाईयो ने बाइज्ज़त वलियांगाडी जुम्मा मस्जिद में दफनाया। हर साल इस हिन्दू वीर को श्रधांजलि देने के लिए मुस्लिम लोगो का एक समूह इस मस्जिद में नमाज़ पढने आता है। वीर कुन्हेलु के परिवार वालो को भी इस नमाज़ में शामिल किया जाता है।

३. जब हिन्दुओ और सिक्खों ने मिलकर संवारा मस्जिद को !

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हरिवंश राय बच्चन ने अपनी मधुशाला में लिखा था, ‘मंदिर-मस्जिद बैर कराते, मेल कराती मधुशाला’ ! पर इस कहानी को सुन, बच्चन जी भी मान जाते कि मंदिर-मस्जिद मेल भी कराते है। लुधियाना के पास बसे नाथोवाल गाँव के मस्जिद को जब मरम्मत करवाने की ज़रूरत पड़ी तब यहाँ के स्थानीय हिन्दुओ तथा सिख समुदाय के लोगो ने भी बढ़ चढ़ कर इस काम में हिस्सा लिया। मरम्मत के लिए २५ लाख रुपयों की ज़रूरत थी जिनमे से १५ लाख की रकम हिन्दुओ और सिक्खों ने मिलकर जमा की। इस गाँव में तीनो समुदाय के लोग मिल जुलकर हर त्यौहार मनाते है तथा यहाँ के गुरूद्वारे के काम में भी हिन्दू तथा मुसलमान सामान रूप से भाग लेते है।

४. जब एक मुसलमान बच्चे का जन्म हिन्दू मंदिर में हुआ !

Picture for representation only. Source: Wikimedia

मुंबई के २७ वर्षीय इल्याज़ शेख अपनी गर्भवती पत्नी, नूरजहाँ को प्रसव के लिए अस्पताल ले ही जा रहे थे कि रास्ते में ही नूरजहाँ को दर्द शुरू हो गया। टैक्सी वाले ने भी उन्हें ये कह कर उतार दिया कि वह नहीं चाहता कि उसकी टैक्सी में बच्चे का जन्म हो। ऐसे में जब इस दंपत्ति के पास कोई रास्ता नहीं बचा तो उन्होंने पास ही में स्थित गणेश जी के मंदिर में शरण ली। मंदिर में पहुँचते ही यहाँ की महिलाओं ने तुरंत प्रसव का सारा सामान इकठ्ठा किया और उनकी सहायता से नूरजहाँ ने एक स्वस्थ और सुन्दर बच्चे को जन्म दिया। गणेश जी के मंदिर में जन्मे इस मुसलमान दंपत्ति के बेटे का नाम रखा गया – गणेश!

५. जब एक मुसलमान दोस्त ने हिन्दू मित्र का अंतिम संस्कार कर निभायी अपनी दोस्ती !

कहते है दोस्त वही है जो मौत के उस पार तक साथ दे। जब एक जानलेवा बिमारी से ग्रस्त संतोष सिंह की मृत्यु हो गयी तो उनके दोस्त रज्जाक खान टिकारी ने इस कहावत को सच कर अपनी सच्ची दोस्ती का परिचय दिया। संतोष के इस मुसलमान दोस्त ने धर्म को अपनी दोस्ती के आड़े न लाते हुए, उसका अंतिम संस्कार स्वयं किया। छत्तीसगढ़ के निवासी रज्जाक और संतोष दोनों की बरसो से मित्रता थी। रज्जाक ने न केवल संतोष की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार किया बल्कि उनके बेसहारा परिवार को आर्थिक मदद भी दी।

६. जब गणेश चथुर्ती और बकरी ईद एक ही पंडाल में मनाई गयी !

Source: Facebook 

यदि कोई आपसे कहे कि ईद की नमाज़ भगवान् गणेश के सामने पढ़ी गयी तो क्या आप मानेंगे।  नहीं न? पर भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ यह असंभव भी संभव हो जाता है। इस साल बकरी ईद के दौरान कुछ ऐसा ही हुआ। जब, कोलाबा, मुंबई के ‘सेवा संघ गणेशोत्सव मंडल’ ने देखा कि ‘मदरसा रहमतिया तालीमुल कुरान’ मस्जिद में नमाज़ पढने आये लोगो को वहां जगह नहीं मिल रही रही है, तो उन्होंने अपने इन मुसलमान भाईयो को गणेश चथुर्ती के लिए बने पंडाल में आकर नमाज़ पढने का न्योता दिया। ये अद्भुत दृश्य सिर्फ भारत वर्ष में ही दिख सकता है।

७. जब जेल की बंदिशों में भी धर्म की दिवार तोड़कर सबने रखा रमजान में रोजा !

Photo: Flickr

लुधियाना जेल में बंद सभी मुजरिमों ने भी इस बार इंसानियत की एक नयी मिसाल खड़ी की है। यहाँ अपने मुस्लिम दोस्तों का साथ देने के लिए सभी ने रमजान के दौरान रोजा रखा। इसी तरह दिवाली और गुरुपुराब का त्यौहार भी सभी जेल निवासियों ने साथ मिलकर मनाया।

८. जब एक मुसलमान ने हनुमान चालीसा उर्दू में लिखी !

Source: Flickr

एक दुसरे को समझने का सबसे अच्छा तरीका है- एक दुसरे की भाषा समझना! हिन्दुओ और मुसलमानों को एक दुसरे को समझने में आसानी हो – इस भाव को लिए एक मुसलमान युवक, अबीद अल्वी ने हिन्दुओ के प्रसिद्ध पाठ- हनुमान चालीसा का उर्दू में अनुवाद किया। इस काम को पूरा करने के लिए उन्हें तीन महीने का समय लगा। जौनपुर, उत्तर प्रदेश के रहनेवाले अबीद उर्दू किताबो को हिंदी में तथा हिंदी किताबो को उर्दू में अनुवादित करने की इच्छा रखते है।

९. और एक हिन्दू जिसने पैगम्बर मोहम्मद की जीवनी मारवाड़ी में लिखी !

मारवाड़ी परिवार के राजीव शर्मा ने जब पैगम्बर मोहम्मद के बारे में पढ़ा तो वे उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने, उनपर मारवाडी में किताब लिख डाली। ११२ पन्नो की इस किताब का नाम है- ‘पैगम्बर रो पैगाम’. यह किताब पैगम्बर मोहम्मद के जीवन पर आधारित है। राजीव की इ-लाइब्रेरी से आप ये किताब मुफ्त में डाउनलोड कर सकते है।

१०. और आखिर में ये मुसलमान भक्त जो मीरा भजन गाता है !

Source: YouTube

यदि आपको कभी महाराष्ट्र के बीड शहर में जाने का मौका मिले तो आपको ७३ साल का एक शक्स पानी से भरा मटका सर पे उठाये मीरा के भजन गाता हुआ मिलेगा। ये शक्स है शेख रियाजुद्दीन अब्दुल गणी जिन्हें यहाँ लोग ‘राजुबाबा कीर्तनकर’ के नाम से जानते है। रियाजुद्दीन को बचपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति लगाव था। जब वे छोटे थे तो मंदिर के बाहर कीर्तन सुनने के लिए बैठ जाया करते। उनकी श्रध्दा देख हिन्दू भक्त उन्हें मंदिर के अन्दर भी गाने के लिए बुलाने लगे। जब उन्होंने देखा की कीर्तन के वक़्त लोगो को नींद आ जाती है तो उन्होंने नाच नाच कर कीर्तन गाना शुरू किया। अक्सर वे नदी से पानी भरकर लाते वक़्त कीर्तन गाया करते थे, इसीसे उन्हें पानी से भरा मटका सर पर उठाके गाने की सूझी। कुछ ही महीनो पहले उन्होंने आई आई टी मुंबई के स्पिक मैय्के फेस्टिवल में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया।

यदि आपने भी आपसी भाईचारे का कोई उदाहरण अपने आस पास देखा है तो हमें ज़रूर बताये। आप हमें contact@thebetterindia.com पर ईमेल कर सकते है।

मूल लेख – तान्या सिंह

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