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एक वन अधिकारी की कोशिशों ने बांस को बनाया ब्रांड और फिर गाँव में खुल गया मॉल

भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना में एक है बांस मिशन। देश के अलग-अलग हिस्सों में इस मिशन के तहत बांस की खेती और बांस से बने उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस मिशन के तहत गुजरात के सूरत जिला स्थित मांडवी तालुका के विसदालिया गाँव को कृषि मंत्रालय ने विशेष तौर पर चिन्हित किया है। दरअसल बांस को लेकर इस इलाके में ढेर सारे नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। आपको जानकर यह ताज्जुब होगा आदिवासी बहुल इस गाँव में बांस को लेकर नवाचार करवाने के पीछे भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी हैं।

विसदालिया गाँव को यह पहचान दिलाने में भारतीय वन सेवा के अधिकारी पुनित नैयर की अहम भूमिका रही है। पुनित नैयर गुजरात कैडर के 2010 बैच के अधिकारी हैं, जिनकी आजीविका, सामुदायिक आधारित वन संरक्षण एवं जल संरक्षण में गहरी रुचि है।

पुनित पहले कॉर्पोरेट सेक्टर में थे लेकिन इन्होंने जॉब छोड़ दिया और प्रकृति की रक्षा और वंचित समुदाय के साथ काम करने की भावना के साथ भारतीय वन सेवा में शामिल हो गए।

जिला वन अधिकारी पुनित नैयर 

जॉब बनाम जूनून

एक परफेक्ट और आलिशान जीवन की तमन्ना हर युवा को होती है, लेकिन पुनित की मंजिल कहीं और ही थी। पुनित एक अच्छी जॉब और सैलेरी की बावजूद कार्पोरेट वर्क कल्चर में खुद को कभी फिट नहीं महसूस कर पा रहे थे।

उन्होंने बताया, “मैं जब भी अपने समाज और आस-पास हो रही घटनाओं एवं लोगों को देखता तो मुझे अंदर से एक बैचेनी महसूस होती थी। मुझे लगता था कि मुझे कुछ अलग करना है पर क्या करना है ये समझ नहीं आता। अपनी सफलता और रूतबा हर चीज मुझे बेइमानी लगती और इसी उधेड़बुन में मैंने सिविल सेवा की तैयारी शुरु की। पहले तो घर वालों को भी लगा कि इतनी अच्छी जॉब के बावजूद में सिविल सेवा में क्यों अपना समय गवां रहा हूँ? लेकिन जब यूपीएससी के लिए उन्होंने मेरा जूनुन देखा तो फिर सहयोग करने लगे। यूपीएससी की तैयारी मैंने नौकरी करते हुए ही की। मैं ऑफिस जाने के पहले सुबह 3-4 घंटा पढ़ाई करता और ऑफिस से आने के बाद जितना समय मिल पाता 2-3 घंटे वापस पढ़ाई करता। मैं शुरू से ही खुद को प्रकृति के काफी महसूस करता इसलिए मैंने वन विभाग का चयन किया और 2017 में सूरत में वन विभाग में DFO (जिला वन अधिकारी) के रूप में ज्वाइन किया।”

बांस से ब्रांड तक

बांस से फर्नीचर बनाते आदिवासी समुदायों के लोग

कोटवालिया का ताल्लुक गुजरात के आदिवासी समूदाय से है जो मूल रूप से डांग और सूरत जिला में रहते हैं। कोटवालिया समुदाय के लोग बांस से रचनात्मक चीजें बनाने में माहिर होते हैं। पुनित की पोस्टिंग जब इस इलाके में हुई तो उन्होंने देखा कि यहाँ लोग काफी मेहनती भी हैं और इनमें क्षमताएँ भी है परंतु जानकारी के अभाव में ये अपनी प्रतिभा को निखार नहीं पाते और न ही अपने जीवन स्तर में सुधार कर पाते हैं।

पुनित ने सबसे पहले उन्हें फर्निचर मेकिंग एवं बांस से रचनात्मक वस्तुएँ बनाने का प्रशिक्षण दिलवाया, जिससे वे बांस से अलग-अलग तरह की चीजें बना सकें। पहले ये लोग बांस से केवल टोकरी, चटाई ही बनाया करते थे। इससे कोटवालिया लोगों को भी लगा कि इससे और भी कई तरह की चीजें बनाई जा सकती हैं।

पुनित ने उनकी कला को और निखारने के लिए एक मंच उपलब्ध करवाया। कोटवालिया बांस के काम को अपनी भाषा में ‘विणान’ कहते हैं, जिसका अर्थ बुनना होता है। इसी को आधार बनाकर कोटवालिया द्वारा बनाए गए फर्नीचर को “विणान” ब्रांड नाम दिया गया। इस ब्रांड का 2019-20 में टर्न ओवर एक करोड़ रहा।

जीवनस्तर में सुधार

पुनित की पहल से वन विभाग द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन समिति का गठन किया गया। इस समीति के माध्यम से कोटवालिया समुदाय के लोगों को एक मंच उपलब्ध करवाया गया, जिसमें वे अपने सामान सीधे ग्राहक को उचित मूल्य में बेच सकें। इस तरह बिचौलियों द्वारा आर्थिक रूप से किया जाने वाला शोषण भी खत्म हुआ और अब वे अपने उत्पाद का उचित मूल्य सीधे प्राप्त कर सकते है।

विसदालिया के फर्नीचर अब केवल सूरत तक सीमित नहीं बल्कि अहमदाबाद, मुंबई, दिल्ली भी पहुँच रहे हैं। इन सारे प्रयासों का एक बड़ा परिणाम यह हुआ कि जब अन्य समुदाय के लोगों ने देखा कि बांस के कार्य से कोटवालिया समुदाय के लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है तो फिर अन्य लोग भी इस कार्य में जुड़ने लगे। जब यह देखा गया कि अन्य लोग भी इस कार्य को करने में इच्छुक है तो विसदालिया में एक वर्कशॉप तैयार किया गया जहाँ अब आस-आस के 32 गाँव के सभी समुदाय के लोग साथ में मिलकर फर्नीचर बनाने के कार्य से जुड़ गए।

गाँव में बना मॉल

गाँव में खुला रूरल मॉल

गाँव वालों के आर्थिक सुदृढ़िकरण के उद्देश्य से विसदालिया में ‘रूरल मॉल’ संचालित किया जा रहा है। इसे विसदालिया क्लस्टर ग्रामीण विकास समिति के माध्यम से संचालित किया जा रहा है। इस मॉल में आपको हर चीज स्थानीय लोगों द्वारा तैयार की गई ही मिलेगी। मॉल परिसर में एक रेस्टोरेंट भी चलाया जाता है, जिसमें कोटवालिया महिलाएँ स्थानीय व्यंजन बना कर परोसतीं हैं।

रूरल मॉल में अचार, मसालें, बांस से बनाई गई चीजों से लेकर कुकिज तक सब स्थानीय लोगों द्वारा तैयार किया जाता है। इस मॉल को शुरू करने के पीछे भी पुनित ही हैं।

रूरल मॉलः मदर स्पाइस यूनिट

इसके बारे में उन्होंने कहा, “इस बदलती दुनिया से आदिवासी समुदाय को जोड़ने के उद्देश्य से इस मॉल की शुरूआत की गई है। रूरल मॉल में काम करने वाले स्थानीय लोग इससे बेहद उत्साहित हैं।”

मॉल में काम करने वाली जयश्री बतातीं हैं, “पहले हमें गाँव के बाहर जाकर काम करना पड़ता था लेकिन जब से रूरल मॉल शुरू हुआ है, मुझे और मेरे पति को यहीं काम मिलने लगा है।”

उद्यमशीलता का विकास

रूरल मॉल में कलात्मक वस्तुएँ

पुनित आदिवासी बहुल इस इलाके में ‘समुदाय सुविधा केन्द्र’ भी बनवाया है, जहाँ लोगों को रोजगार की तरफ मोड़ा जा रहा है। इस मॉडल को देखने के लिए जापान के लोग भी आए और उन्होंने भी इस प्रयास को काफी सराहा।

इस सुविधा केंद्र के बारे में पुनित कहते हैं, “यहाँ के लोगों में असीम संभावनाएँ है बस उन्हें सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है। इस केन्द्र में हर व्यक्ति जाकर अपनी जरूरत के हिसाब से जानकारी और मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है।”

अंधकार से प्रकाश की ओर…

फॉरेस्ट पेट्रोलिंग करते हुए

पुनित के आने के पहले विसदालिया क्लस्टर की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। पहले विसदालिया क्लस्टर के लोग बांस की तस्करी में लिप्त थे, वहीं कुछ लोग पलायन को मज़बूर थे क्योंकि उनके पास रोजगार के विकल्प नहीं थे लेकिन पुनित के प्रयासों के कारण जो व्यक्ति पहले बांस की तस्करी और पलायन को मज़बूर था आज वही आत्मसम्मान के साथ जीवन जी रहा है।

द बेटर इंडिया भारतीय वन सेवा के अधिकारी पुनित नैयर के प्रयासों की सराहना करता है।

संपादन – जी. एन झा 

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