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दिल्ली पुलिस: गरीब बच्चों की पढ़ाई पर पूरी कमाई खर्च कर देते हैं कांस्टेबल अमित लाठिया

हरियाणा के सोनीपत में रहने वाले अमित लाठिया दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल हैं और पिछले लगभग 7 सालों से 100 से ज़्यादा गरीब बच्चों की कोचिंग और रहने-खाने का खर्च उठा चुके हैं!

सुपर 30 के आनंद कुमार के बारे में हम सब जानते हैं जो गरीब लेकिन होनहार बच्चों को फ्री में कोचिंग देते हैं और इंजीनियरिंग व मेडिकल की तैयारी कराते हैं। आनंद की ही तरह देश में और भी कई ऐसे लोग हैं जो अपने-अपने स्तर पर समाज में बच्चों के लिए कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहे हैं।

उनका उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि गरीब घरों से आने वाले बच्चों को भी जीवन में कुछ अच्छा करने का मौका मिले। आज हम आपको ऐसे ही एक और व्यक्ति से मिलवा रहे हैं जो गरीब और बेसहारा बच्चों को सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कराते हैं।

हम बात कर रहे हैं हरियाणा के सोनीपत में लाठ गाँव के रहने वाले अमित लाठिया की। साल 2010 में दिल्ली पुलिस में बतौर कांस्टेबल नियुक्त होने वाले अमित पिछले 7 सालों से गरीब और बेसहारा बच्चों के लिए मसीहा बने हुए हैं।

अमित ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने बचपन में बहुत सारी समस्याओं को झेला है। आर्थिक अभाव के बीच पढ़ाई पूरी की है। कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे तो पार्ट टाइम नौकरी की। मुझे हमेशा से ही देश सेवा में जाने की इच्छा थी और इसलिए पुलिस भर्ती की तैयारी की। दिल्ली पुलिस में नौकरी मिलने से पहले चंडीगढ़ पुलिस भर्ती में भी मेरा चयन हो चुका था।”

कुछ समय चंडीगढ़ पुलिस में तैनात रहे और फिर इस्तीफ़ा देकर दिल्ली पुलिस में ड्यूटी ज्वाइन की। इस सबके दौरान उनका हमेशा यही लक्ष्य रहा कि वह दूसरों के लिए कुछ करें। “मुझे समाज सेवा की भावना अपने पिताजी से मिली। वह एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते थे और उनकी तनख्वाह में गुजारा मुश्किल से हो पाता था। इसलिए एक वक़्त के बाद हम भाइयों ने खुद अपने पढ़ाई की ज़िम्मेदारी ले ली और जो काम मिला वह कर लेते ताकि फीस भर सकें। पढ़ाई के साथ-साथ मैं स्पोर्ट्स में भी अच्छा था इसलिए हमेशा पुलिस-फ़ौज की नौकरी करने की इच्छा रही,” उन्होंने आगे बताया।

Haryana Police
With his students

दिल्ली पुलिस में नियुक्त होने के बाद अमित ने अपनी सोच पर काम करना शुरू किया। उन्होंने तय किया कि वह गरीब घरों के बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च भी उठाएंगे। इस बारे में जब उन्होंने घर पर बात की तो उनकी माँ उनसे नाराज़ हो गयी। हालांकि, उनके पिता ने उनके फैसले का समर्थन किया और उनका हौसला बढ़ाया।

इस फैसले के पीछे की वजह बताते हुए वह कहते हैं, “एक दिन मैं सोनीपत में एक रिक्शे पर बैठा जिसे कोई 17-18 साल का लड़का चला रहा था। उस लड़के को मैं कई बार दौड़ लगाते हुए देखता था। जब मैंने उससे बातचीत की तो पता चला कि लड़के ने 12वीं की हुई है और घर के हालातों की वजह से रिक्शा चलाने को मजबूर है। उसकी पढ़ाई की चाहत देखकर मुझे लगा कि क्या मैं इसके लिए कुछ नहीं कर सकता।”

उस रिक्शा चलने वाले लड़के का नाम विनय है और आज विनय, अमित के प्रयासों से हरियाणा पुलिस में कार्यरत है। विनय के अलावा, उन्हें दो और बच्चे मिले, अरुण और संजीत, जिनके सिर से उनके माता-पिता का साया उठ चूका था और रिश्तेदार उनकी पढ़ाई की ज़िम्मेदारी नहीं उठाना चाहते थे। इस तरह से अमित के अभियान की शुरू इन तीन बच्चों से हुई। उन्होंने शुरुआत में एक-एक करके लगभग 30 बच्चों के लिए रहने-खाने और पढ़ने का इंतज़ाम किया। अमित बताते हैं कि अब तक उन्होंने 100 से ज़्यादा बच्चों की ज़िम्मेदारी ली है।

इनमें से लगभग 30 बच्चे आज सरकारी नौकरियों में अलग-अलग पदों पर कार्यरत हैं। और फ़िलहाल वह 25 बच्चों को पढ़ा रहे हैं। उन्होंने सोनीपत में ही इन बच्चों के रहने के लिए घर किराए पर ले रखा है।

 

Delhi Police Constable
Preparing Track for physical

अमित कहते हैं, “मैं अपनी पूरी सैलरी इन बच्चों पर खर्च करता हूँ। अगर दिन में मेरी ड्यूटी होती है तो बच्चों को रात में पढ़ाता हूँ और अगर रात की ड्यूटी होती है तो दिन में पढ़ाता हूँ। टेस्ट के लिए पढ़ाई के साथ-साथ फिजिकल की भी तैयारी कराता हूँ। हर दिन कम से कम एक घंटा बच्चे एक्सरसाइज करते हैं। मेरा एक ही उद्देश्य है कि ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे आगे बढ़ें और नौकरी हासिल करें। किसी बच्चे को अगर कमाई का स्थायी साधन मिल जाता है तो वह अपने पूरे परिवार की ज़िंदगी बदल सकता है।”

बेशक, अमित लाठिया बहुत ही नेक काम कर रहे हैं लेकिन उनकी राह में भी चुनौतियों की कमी नहीं रही। कई बार उन्हें प्राइवेट कोचिंग वाले लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा है। इतने बच्चों को एक साथ रखने पर तरह-तरह के आरोप भी लोग लगाते हैं। इस सबके चलते उन्हें कई बार घर भी बदलने पड़े हैं। पर उन्होंने कभी भी अपनी यह फ्री कोचिंग बंद करने की नहीं सोची। अमित के इस काम में उनकी पत्नी ने भी पूरा साथ दिया है।

शादी के बाद अमित ने देखा कि उनकी पत्नी मंजू आगे पढ़ना चाहतीं हैं। उन्होंने मंजू को आगे मास्टर्स और बीएड करके शिक्षा विभाग में नौकरी के लिए ट्राई करने को प्रेरित किया। आज वह हरियाणा के शिक्षा विभाग में अधिकारी हैं और अपने पति का इस नेक काम में पूरा सहयोग कर रहीं हैं।

 

Delhi Police Constable
Vinay Kumar, Haryana Police Constable

अमित की मदद से पढ़कर आज हरियाणा पुलिस में बतौर कांस्टेबल नियुक्त विनय बताते हैं, “मेरी मुलाकात जब अमित भाई साहेब से हुई तो मैंने उन्हें अपने घर की आर्थिक स्थिति के बारे में बताया। इसके बाद उन्होंने मेरी पूरी ज़िम्मेदारी उठा ली। किताब-कॉपी से लेकर जूते-कपड़ों तक, सभी कुछ उन्होंने दिया। अगर भाई साहेब (अमित) नहीं होते तो शायद आज मैं रिक्शा ही चला रहा होता। उन्होंने बहुत सपोर्ट किया, पढ़ाई में, फिजिकल की तैयारी में और खाने-पीने का भी पूरा ध्यान रखा। हम बच्चों के लिए उन्होंने अपने घरवालों की नाराज़गी भी झेली। कई महीनों के लिए तो उन्हें घर से बाहर रहना पड़ा क्योंकि उनके घर में उनके काम का थोड़ा विरोध था। पर भाई साहेब ने कभी हम लोगों को बीच मझधार में नहीं छोड़ा। आज उनकी ही बदौलत मैं इस मुक़ाम पर हूँ।”

अमित को अपने लिए मसीहा मानने वाले विनय ने और भी कई बच्चों के बारे में बताया जो आज अच्छी जगह पर नियुक्त हैं। “हमारे साथ अरुण थे। आज वह दिल्ली पुलिस में हैं। संजीत को भारतीय फ़ौज में शामिल होने का मौका मिला। एक और लड़की, पारुल हरियाणा पुलिस में कांस्टेबल है तो एक लड़की ममता सब-इंस्पेक्टर लगी है। अभी भी भाई साहब नए बच्चों पर मेहनत कर रहे हैं। उनके जैसा जज़्बा और जूनून आपको शायद कहीं और देखने को ना मिले,” विनय ने बताया।

 

वीडियो देखें:

 

कितने ज़रूरतमंद छात्र-छात्राओं की अमित ने अब तक मदद की है, वह खुद नहीं जानते। उनका बस एक ही उद्देश्य है कि कोई भी बच्चा साधनों के आभाव में शिक्षा और अच्छी नौकरियों से महरूम न रहे। अन्य बच्चों की तरह उन्हें भी पढ़-लिखा कर अच्छी जगह काम करने का हक़ मिले। इस काम के लिए अमित ने अब तक किसी से भी कोई मदद नहीं ली है। वह दूसरों से बस यही कहते हैं कि अगर आपको अपने आसपास पढ़ाई के लिए जूनून रखने वाला बच्चा दिखे तो उसकी मदद अवश्य करें!

यदि आप अमित लाठिया की किसी तरह से कोई मदद करना चाहते हैं तो उन्हें 9467666655 पर मैसेज कर सकते हैं!

संपादन – जी. एन झा 

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