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केला, अनानास और बिच्छु बूटी जैसी फसलों के कचरे से बनाया इको फ्रेंडली कपड़ा

Shikha Shah making eco friendly fabric

देश- दुनिया में सबसे तेजी से बदलने वाली इंडस्ट्रीज में एक है फैशन इंडस्ट्री। हम हर रोज बदलते फैशन के बारे में चर्चा करते हैं। लेकिन फैशन इंडस्ट्री के कारण पर्यावरण पर क्या नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, इस विषय पर चर्चा कम ही होती है। खासकर कि आम लोगों के बीच। लेकिन क्या आपको पता है कि दुनिया में 20% वेस्ट वाटर, 10% कार्बन एमिशन और कचरे के बहुत से ढेरों के लिए फैशन इंडस्ट्री ही जिम्मेदार है? लगभग 60% मटीरयल, जिससे कपड़े बनाए जाते हैं, वह प्लास्टिक है। इसमें पॉलिएस्टर, ऐक्रेलिक और नायलॉन टेक्सटाइल्स शामिल हैं। 

अब सवाल आता है कि क्या इस समस्या का कोई हल नहीं है? बिल्कुल है और हमारे देश में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। बस जरूरत है इस समस्या को हल करने की कोशिश कर रहे लोगों को सपोर्ट करके उन्हें आगे बढ़ाने की। आज हम आपको ऐसी ही एक युवती के बारे में बता रहे है, जो अपने काम के जरिए न सिर्फ फैशन इंडस्ट्री में बदलाव लाने की कोशिश कर रही हैं। बल्कि कृषि क्षेत्र में भी बदलाव का कारण बन रही हैं। यह कहानी है गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाली 25 वर्षीया शिखा शाह की। 

शिखा अपने स्टार्टअप, AltMat के जरिए फसलों के बचने वाले वेस्ट (अपशिष्ट) को प्रोसेस करके, इससे फाइबर, धागे (यार्न) और कपड़ा (फैब्रिक) बना रही हैं। ये सभी उत्पाद पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ बायोडिग्रेडेबल और रीसायकलेबल हैं। उनके स्टार्टअप को Fashion for Good के South Asia Innovation Programme के लिए भी चुना गया है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए शिखा ने अपने सफर के बारे में बताया। 

पिता से मिली प्रेरणा

बिज़नेस और उद्यमिता में अपनी डिग्री पूरी करने वाली शिखा कहती हैं, “वेस्ट पर काम करने की प्रेरणा मुझे मेरे अपने परिवार से ही मिली। हमारा पारिवारिक व्यवसाय इसी से जुड़ा हुआ है। मेरे पापा की फैक्ट्री में ऑटोमोबाइल वेस्ट जैसे बैटरी आदि को रीसायकल या अपसायकल किया जाता है। इसके अलावा, सब जानते हैं कि अहमदाबाद टेक्सटाइल हब है। इसलिए बहुत कम उम्र से ही मेरी दिलचस्पी इस क्षेत्र में बढ़ने लगी थी। लेकिन जैसे-जैसे जानकारी बढ़ी तो इससे होने वाले प्रदूषण के बारे में भी जाना।”

Agro Waste to Natural Fiber, Yarn, and Fabric

पढ़ाई के दौरान ही शिखा ने तय कर लिया था कि वह इसी क्षेत्र में काम करेंगी। अमेरिका के बेबसन कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी करके जब वह अहमदाबाद लौटीं तो नौकरी करने की बजाय अपना खुद का बिज़नेस शुरू करने का फैसला किया। शिखा कहती हैं कि उन्होंने सबसे पहले इस बात पर विचार किया कि ऐसे क्या प्राकृतिक साधन हैं, जिन्हें टेक्सटाइल इंडस्ट्री में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें सबसे पहले कपास का नाम आता है। जिससे सूती कपड़ा बनाया जाता है। लेकिन समस्या यह है कि इस प्रक्रिया में बहुत ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता है। 

“इसलिए मेरा ध्यान कृषि अपशिष्ट पर गया, जिसे ज्यादातर किसान जला देते हैं। इससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है। इसी तरह, टेक्सटाइल इंडस्ट्री भी बड़े स्तर पर प्रदूषण का कारण है। ऐसे में, मैंने सोचा कि क्यों न इन दोनों इंडस्ट्री को जोड़ते हुए कोई हल निकाला जाए। आखिरकार काफी समय तक रिसर्च करने के बाद मैंने अलग-अलग फसलों के अपशिष्ट को प्रोसेस करके इनसे फाइबर तैयार किया। इस फाइबर को धागे में तब्दील किया गया और फिर इस धागे से कपड़ा बुना गया,” उन्होंने कहा। 

अलग-अलग खेती के कचरे से बना रही हैं कपड़ा

काफी मेहनत के बाद शिखा ने सामान्य कपड़े का एक ‘विकल्प’ यानि ‘अल्टरनेटिव’ निकाला और इसलिए इस कंपनी का नाम ‘AltMat’ (Alternative Material) रखा गया। उनकी कंपनी के बनाए फाइबर, यार्न और फैब्रिक पूरी तरह से इको फ्रेंडली हैं। इन्हें बनाने की प्रक्रिया में किसी भी तरह के हानिकारक रसायन का प्रयोग नहीं किया गया है और न ही इनमें कोई माइक्रोप्लास्टिक है। ये प्रकृति के साथ-साथ हमारी त्वचा के लिए भी सुरक्षित हैं। 

शिखा आगे बताती हैं कि उन्होंने अब तक लगभग 16 फसलों के कचरे पर ट्रायल किए हैं। लेकिन इनमें से अभी कुछ पर ही काम हो रहा है, जिनमें केला, अनानास, इंडस्ट्रियल भांग और बिच्छु बूटी (Nettle) शामिल हैं। उन्होंने बताया, “फिलहाल, हम अलग-अलग 15 किसान समूहों से फसलों का वेस्ट खरीद रहे हैं। पहले किसानों को अपने खेतों से इस कचरे को उठवाने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते थे। लेकिन अब वह इससे अतिरिक्त कमाई कर पा रहे हैं।” 

Agricultural Waste to Sustainable Natural Materials

रॉ मटीरियल के लिए शिखा सिर्फ भारत नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर अलग-अलग फसलों के कचरे पर काम कर रही हैं। उनका उद्देश्य अच्छी से अच्छी गुणवत्ता का रॉ मटीरियल लेकर अच्छे टेक्सटाइल बनाना है। वह कहती हैं कि इन फसलों के वेस्ट को प्रोसेस करके, इनसे फाइबर या धागा तैयार करने में पानी भी कम से कम मात्रा में खर्च होता है। साथ ही, अपनी कंपनी के लिए वह पहले से अलग-अलग फसलों की खेती कर रहे किसानों से जुड़ रही हैं। “कई जगहों पर इंडस्ट्रीज अपने रॉ मटीरियल के लिए खासतौर पर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करवाती हैं। लेकिन हम ऐसा नहीं कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य स्पष्ट है कि हम खेती के कचरे को इस्तेमाल करके टेक्सटाइल बनाएंगे। इसलिए हम सिर्फ एक ही तरह की फसल को बढ़ावा न देकर अलग-अलग फसलों पर काम कर रहे हैं। अलग-अलग कृषि के कचरे के आधार पर हम किसानों को 90 से 200 रुपए/किलो पैसे देते हैं,” उन्होंने कहा।

किसानों की हो रही है मदद

अलग-अलग किसान समूहों से खेती के कचरे को खरीदने के बाद उनकी फैक्ट्री पर लाया जाता है। जहां इसकी अलग-अलग स्टेज पर प्रोसेसिंग होती है। जैसे पहले वेस्ट को फाइबर में बदला जाता है। इस फाइबर को न सिर्फ कपड़ा बल्कि कागज बनाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। शिखा की कंपनी प्राकृतिक फाइबर, यार्न और फैब्रिक बना रही है और उनका यह रॉ मटीरियल अलग-अलग मैन्युफैक्चरिंग कंपनी, फैशन ब्रांड्स को सप्लाई किया जा रहा है। इस साल अप्रैल में उन्होंने अपनी फैक्ट्री की शुरुआत की है, जिसमें सालाना 10 लाख किलो कृषि के कचरे को प्रोसेस किया जा सकता है। 

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में पिछले 12 सालों से केले की खेती कर रहे किसान प्रमोद बताते हैं, “पहले खेत को खाली करने के लिए फसल लेने के बाद, केले के पेड़ के तनों को कटवाकर, खेत में एक तरफ डाल देते थे। इन्हें गलने-सड़ने में कई महीनों का समय लगता था, जिस कारण खेत का कुछ हिस्सा हमेशा घिरा हुआ रहता था। साथ ही, इन्हें कटवाने और इकट्ठा करवाने में लगभग 5000 रुपए तक खर्च हो जाते थे। लेकिन अब हमारे ये पैसे बच रहे हैं। क्योंकि इस कचरे को प्रोसेस करके हम फाइबर बना रहे हैं, जिसे शिखा जी की कंपनी हमसे खरीदती है। इससे हमारा खर्च कम हुआ है और आमदनी काफी ज्यादा बढ़ी है।” 

शिखा बताती हैं कि इस राह में उन्होंने बहुत सी मुश्किलों का सामना किया है। सबसे पहले तो रिसर्च और डेवलपमेंट में काफी समय और साधन लगे। इसके बाद, उन्होंने अपने कंपनी सेटअप की। पर कंपनी के लॉन्च होने के कुछ दिनों बाद ही देश में कोरोना महामारी फैलने लगी थी। इस दौरान उनका काम रुक गया था। लेकिन शिखा ने हार नहीं मानी और अपना हौसला बनाए रखा।

शिखा कहती हैं, “मैं जिस सेक्टर में काम कर रही हूं, इसमें समय, मेहनत और रिसर्च बहुत ज्यादा चाहिए। मैं 2016 से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी और 2019 में हमने औपचारिक तौर पर कंपनी को शुरू किया। कंपनी शुरू होने के बाद हमने पायलट प्रोजेक्ट किए और बीच में कोरोना के कारण भी चीजें रुक गयी थीं। इसलिए टर्नओवर के बारे में अभी से बात करना मुश्किल है। लेकिन मैं इतना कह सकती हूं कि हम अच्छा कर रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं।”

उनके स्टार्टअप को Gujarat University Startup and Entrepreneurship Council (GUSEC) से सपोर्ट मिला है। इसके अलावा, अपने काम के लिए शिखा को ‘वीमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ अवॉर्ड और ‘अटल इनोवेशन मेडल’ से भी नवाज़ा जा चुका है। शिखा को पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में उनकी कंपनी एक बेहतर भारत बनाने में हितकर साबित होगी। अगर आप शिखा शाह की कंपनी के बारे में जानना चाहते हैं तो उनकी वेबसाइट देख सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

तस्वीर साभार: शिखा शाह

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