दिलीप बराल ओडिशा के रेसिंगा गाँव के रहने वाले हैं। देश के अधिकांश किसानों की तरह, वह भी धान की कटाई के बाद, रबी की फसल लगाने के लिए, पराली (Paddy Straw) को खेतों में ही जला देते थे।
यह खेतों को खाली करने के लिए सबसे आसान और सस्ता तरीका था। लेकिन, उन्हें इससे पर्यावरण को हो रहे नुकसान का अंदाजा नहीं था। इस दौरान, अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र ने उनके गाँव के कुछ दिग्गज किसानों को धान की पराली यानि Paddy Straw से आलू की खेती करने की तकनीक के बारे में बताया।
दिलीप इस उन्नत तकनीक के बारे में जानकर आश्चर्यचकित थे। क्योंकि यह कुछ ऐसा था जिससे पानी और पैसे, दोनों की बचत हो सकती थी। इसके बाद दिलीप ने बिना कोई देर किए इस तकनीक को अपनाने का फैसला कर लिया। इसके लिए उन्होंने, सबसे पहले दो साल की ट्रेनिंग ली तथा अपने खेतों में पराली जलाना बंद कर दिया, और 1.4 एकड़ जमीन पर 20 क्विंटल आलू उगाए।
दिलीप कहते हैं, “इस तकनीक के कारण मुझे और गाँव के अन्य किसानों को काफी मदद मिली। मेरी आशंकाओं के विपरीत, आलू की गुणवत्ता पहले की तरह ही है, और मैं इसे उसी दर पर बेच रहा हूँ। साथ ही, इससे मुझे पानी और मजदूरी की भी बचत होती है। इस तरह, यह किसानों के लिए हर तरह से फायदेमंद है।”
क्या है तकनीक
पारंपरिक तरीके से, आलू की खेती के लिए सबसे मुश्किल काम है, जमीन को तैयार करना। इसके लिए किसानों को भूमि को अनुकूल बनाने के लिए, अपने खेतों की कई बार जुताई करनी पड़ती है तथा जल-निकासी वगैरह का भी काफी ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि, थोड़ी सी चूक, पूरी फसल को बर्बाद कर सकती है।
लेकिन, इस विधि में खेतों की जुताई की कोई जरुरत नहीं होती है। इसमें आलू को, एक पंक्ति में 10 इंच की दूरी पर लगाया जाता है। जबकि, दो पंक्तियों के बीच की दूरी 1.5 फीट होती है।
दिलीप बताते हैं, “खेतों में आलू लगाने के बाद, इसे गोबर या किचन वेस्ट से ढक दिया जाता है। इसके चारों ओर खाद छिड़ककर, उसके ऊपर धान की की परत बिछाई जाती है। फिर, 7 दिनों के बाद, खेत की सिंचाई की जाती है।”
वह आगे बताते हैं कि इसके रखरखाव के लिए, हर 20-25 दिन में खेत की सिंचाई की जाती है। आलू का पौधा कम से कम 15 इंच लंबा होता है। जिसे पूरी तरह से तैयार होने में, करीब 75 दिन लगते हैं।
क्या हैं लाभ
दिलीप बताते हैं कि इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि, इससे 80 फीसदी तक पानी की बचत होती है।
वह आगे कहते हैं, “धान की पराली में अधिक समय के लिए नमी बनी रहती है। जिससे पानी की जरुरत कम होती है। ऐसे में, मैं अपनी खेती के लिए काफी पानी बचा सकता हूँ, ताकि अनियमित बारिश से राहत मिले। साथ ही, पराली खेतों में खरपतवार को भी बढ़ने से रोकती हैं, जो आलू की खेती में सबसे बड़ी समस्या है।”
वह बताते हैं, “खरपतवार से आलू के उत्पादन में 30-40 फीसदी तक की कमी हो सकती है। आम तौर पर, किसान इसे खत्म करने के लिए मजदूरों को काम पर लगाते हैं। लेकिन, इस तकनीक से, इस समस्या से भी निपटा जा सकता है।”
दिलीप की इस सफलता को देख कर, उनके गाँव के सैकड़ों किसानों को भी इस तकनीक को अपनाने की प्रेरणा मिली।
ऐसे ही एक किसान हैं, दीपक कुमार बराल। दीपक और उनके पिता ने, आलू की खेती में हो रहे नुकसान के कारण, इसकी खेती करना छोड़ दिया था। लेकन, इस विधि के बारे में जानने के बाद, उन्होंने आलू की खेती फिर से शुरू कर दी।
वह कहते हैं, “इस तकनीक के जरिए, हमने पिछले महीने आलू लगाया था। यह एक आसान प्रक्रिया थी। इससे हमें 2000 रुपए की बचत हुई। धान की पराली हमारे खेतों में लगी थी, और हमें पानी खरीदने की जरूरत नहीं थी। अब तक, फसल की वृद्धि अच्छी है। यदि उत्पादन अच्छा होता है, तो हम इसका दायरा और बढ़ाएंगे।”
आज जब किसानों के लिए ‘पराली प्रबंधन’ और ‘पानी की कमी’, दो बड़ी चुनौतियाँ हैं। ऐसे में, आलू की खेती का यह तरीका, देश के किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकता है।
संपादन – जी. एन. झा
मूल लेख – GOPI KARELIA
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