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शहर छोड़, आर्किटेक्ट ने गाँव में बनाया पत्थर का घर और ऑफिस, गाँववालों को दिया रोज़गार

Architect Himanshu Patel's Eco friendly House

शहरों में जिस तरह टेक्नोलॉजी का विकास हो रहा है, उससे आज लोग रिमोट का एक बटन दबाकर 45 डिग्री की गर्मी में भी ठंडक का मज़ा तो ले पा रहे हैं। लेकिन शायद यह ठंडक हमारे पर्यावरण के लिए सही नहीं है। कहीं न कहीं इस आराम का परिणाम, इन एसी कमरों के अंदर और बाहर रहने वाले लोग, पशु-पक्षी, यहां तक कि पेड़-पौधों को भी भुगतना पड़ रहा है। वहीं आज कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो शहर की भीड़ और प्रदूषण से बचने के लिए गाँव में घर (Eco friendly House) बनाने लगे हैं। लेकिन बहुत जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल घर बनाए जाएं। ऐसे घरों का निर्माण हो, जो इसमें रहने वाले लोगों के साथ-साथ, वातावरण के लिए भी सही हों। 

अहमदाबाद के 39 वर्षीय आर्किटेक्ट हिमांशु पटेल ने भी शहरी जीवन को छोड़कर गांव में बसना पसंद किया। पिछले साल उन्होंने अपना घर और ऑफिस अहमदाबाद के पास एक छोटे से गांव में बनवाया है। शहर से तक़रीबन 35 किलोमीटर दूर खण्डेरावपुरा गांव में 6 बीघा जमीन पर उनका घर, आधुनिक होने के साथ-साथ ईको-फ्रेंडली भी है। दक्षिण भारतीय घरों की तर्ज पर बने इस घर में, गर्मी के दिनों में तापमान बाहर की तुलना में 5 डिग्री कम रहता है। उनका यह ईको-फ्रेंडली घर (Eco friendly House) आस-पास के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। 

दक्षिण भारत के घरों से ली प्रेरणा 

वडोदरा से आर्किटेक्चर की पढ़ाई पूरी करने के बाद, हिमांशु ने ढाई साल तक दुबई में काम किया। इसके बाद, वापस भारत आकर, उन्होंने कुछ सालों तक बेंगलुरु के अलग-अलग फर्म्स में भी काम किया। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताते हैं, “मैं दक्षिण भारत के घरों और वहां के लोगों का संस्कृति के प्रति जुड़ाव देखकर बेहद प्रभावित हुआ था। जिसके बाद मैंने अहमदाबाद आकर कुछ ईको-फ्रेंडली प्रोजेक्ट्स (Eco friendly House Construction) पर काम भी किया।”

उन्होंने सासन गिर में पत्थरों और लोकल मटेरियल का उपयोग करके, छह ईको-फ्रेंडली रिसॉर्ट के प्रोजेक्ट्स पर काम किया है। इसके अलावा, उन्होंने नवसारी जिले के अमलसाद गांव में श्मशान घाट बनाया है, जो बाकि श्मशानों  से बिल्कुल अलग है। यह, आधा जमीन के नीचे बना है और आधा ऊपर।  यहां एक बगीचा भी बनाया गया है, जिसमें लोग घूमने-फिरने आते हैं। हिमांशु ने सूरत में भी एक ईको-फ्रेंडली घर बनाया है। 

वह, साल 2013 से अहमदाबाद में अपना खुद का काम कर रहे हैं। जिसके लिए उन्होंने किराए का ऑफिस भी लिया था, जहां से वह काम किया करते थे। जबकि उनका पूरा परिवार गांव में ही रहता था। कुछ साल काम करने के बाद, जब उन्होंने खुद का घर और ऑफिस बनाने का सोचा, तो उन्होंने गांव में बसने का प्लान बनाया। वह कहते हैं, “शहर के वातावरण में काम करके, मैं बिल्कुल भी खुश नहीं था। मैं चाहता था कि जिस तरह का मकान मैं दूसरों के लिए बना रहा हूँ, क्यों न अपने लिए भी ऐसा ही कुछ बनाया जाए।”

गांव में पत्थरों से बनाया घर और ऑफिस 

तक़रीबन तीन साल पहले, हिमांशु ने अपना घर और ऑफिस बनाने का काम शुरू किया और पिछले साल ही यह काम पूरा हुआ। उन्होंने इसे बनाने में ध्रांगधरा (गुजरात) के पास मिलने वाले लाल पत्थर का इस्तेमाल किया है, जिसे बेला कहा जाता है। वहीं फर्श के लिए कोटा स्टोन का उपयोग किया गया है। आरसीसी का इस्तेमाल किए बिना बने इस मकान में, तापमान बाहर से 5 डिग्री कम रहता है। 

उन्होंने गांव के सिद्धांतों और वहां की वास्तुकला को ध्यान में रखकर इसे बनवाया है। उनके ऑफिस के पास एक छोटा तालाब और 15 फ़ीट की ऊंचाई वाले कमरे, तामपान को कम रखने में मदद करते हैं। इसके अलावा पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे, इसलिए ऑफिस या घर में प्लास्टर भी नहीं किया है। ऑफिस के बीचों-बीच एक आंगन बना है, जिसमें लगे पेड़ों पर कई पक्षी आते हैं। 

घर पर ढलान वाली छत बनाई गई है। 

उनका कहना है, “पहले के जमाने में बनने वाले परम्परागत घरों की छत ढलान वाली ही होती थी, जिससे बारिश का पानी आराम से नीचे आ जाता था। लेकिन मॉडर्न कंस्ट्रक्शन में समतल छतें बनने लगीं, जिसमें पानी निकलने के लिए विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है।” 

हालांकि, यह जमीन उनकी खुद की ही थी, लेकिन इस तरह के ईको-फ्रेंडली डिज़ाइन को तैयार करने में, उन्हें तकरीबन 60 लाख का खर्च आया। इस घर में लम्बे समय तक किसी तरह के रख-रखाव की जरूरत नहीं पड़ेगी। 

एक ही जगह पर है घर, ऑफिस और बगीचा 

यह हिमांशु की पुश्तैनी ज़मीन है, जहां वह अपने परिवार के साथ रहते हैं और काम भी करते हैं। वह चाहते थे कि घर और ऑफिस बनाने में उतनी ही जगह का इस्तेमाल हो, जितनी की उन्हें जरूरत है। तकरीबन छह बीघे जमीन में, उनका ऑफिस और घर बनने के बाद, बची पांच बीघा ज़मीन पर उन्होंने किचन गार्डन बनवाया है। 

जहां परिवार के उपयोग के लिए सब्जियां उगाई जाती हैं। हिमांशु बताते हैं, “लोग घर बनाते समय जरूरत से ज्यादा कमरे बना लेते हैं, इससे घर के अंदर रोशनी और हवा दोनों की कमी हो जाती है। हमें कोई छह कमरे का मकान बनाने के लिए कहता है, तो हम उनसे पूछते हैं कि क्या सही में आपको इतने कमरों की जरूरत है। अगर नहीं, तो आप उस जगह का इस्तेमाल आंगन या गार्डन बनाने के लिए करें।”

गांव के लोगों से मिली, अच्छा आर्किटेक्ट बनने की प्रेरणा 

गांव से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु ने हमेशा देखा कि गांव के लोग बड़ी से बड़ी समस्या के समाधान के लिए कॉमनसेंस का प्रयोग करते हैं। साथ ही वह समस्या को जड़ से ख़त्म करने की कोशिश करते हैं। जबकि शहर के लोग दूर की नहीं सोचते। वह एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, “गांव में गर्मी के लिए लोगों ने अपने मकान बनाने की संरचना पर काम किया, लेकिन शहरों में हमने एसी लगा लिया। अपना घर बनाते समय भी मैंने गांव में आराम से मिलने वाले मटेरियल का ही ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया है।”

कई लोग आज दूर-दूर से उनके घर को देखने आते हैं। लोग उनसे कहते हैं कि इस तरह के घर (Eco friendly House) उन्होंने बस दक्षिण भारत में देखे हैं। हिमांशु ने बताया, “अहमदाबाद के पास होने के कारण, कई लोग यहां बसने की सोच रहे हैं। हाल ही में, यहां कई मकान बनने शुरू हो गए हैं। लोग मेरे घर जैसा घर ही चाहते हैं।” 

हालांकि इस तरह के घर दिखने में जितने खूबसूरत होते हैं, इन्हें बनाने में मेहनत भी उतनी ही लगती है। साथ ही, ज्यादातर लोगों के लिए इस बात को मानना मुश्किल होता है कि बिना कंक्रीट और प्लास्टर के भी घर बन सकता है, इसके लिए उनको अपनी मानसिकता को बदलना होगा।

संपादन-अर्चना दुबे

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