Site icon The Better India – Hindi

“लीला मेरे बुलेट की दूसरी बैटरी जैसी है”, इस बुजुर्ग दंपति ने बुलेट से किया भारत भ्रमण

Mohanlal-Leelaben

अच्छा चलिए, किसी मोटरसाइकल के साथ लगी ‘साइडकार’ की कोई छवि याद कीजिये। अब बताइए, आपके ज़हन में सबसे पहले कौन सी छवि उभरी? मशहूर फिल्म ‘शोले’ के जय और वीरू की ही न! यक़ीनन आपको इन पर फिल्माया गया गाना, ‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे’ याद आया होगा। लेकिन, यही सवाल जब हमने 77 वर्षीय मोहनलाल पी चौहान से किया, तो उनकी राय बिल्कुल अलग थी।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए वडोदरा, गुजरात के मोहनलाल ने कहा “हमारी कहानी जानने के बाद, आप जय-वीरू को भूल जाएंगे और साइडकार वाली मोटरसाइकल के साथ, आपको सिर्फ हम ही याद आएँगे।” 

मोहनलाल और उनकी पत्नी लीलाबेन ने अपनी 1974 की विंटेज रॉयल एनफील्ड (बुलेट) मोटरसाइकल पर, चार बार शानदार रोड ट्रिप किये हैं। इस दौरान, उन्होंने अब तक 30 हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय की है।

मोहनलाल ने पहले अकेले ही यात्राएँ करनी शुरू की, जिसमें उन्हें मज़ा तो आता था, लेकिन यात्रा के दौरान उन्हें अपनी पत्नी की कमी काफी खलती थी। अपनी पत्नी को भी अपने साथ ले जाने के लिए, उन्होंने कुछ खास इंतजाम किये। उनके साथ बुलेट में लीलाबेन आराम से बैठ सके, इसलिए उन्होंने अपनी बुलेट में एक साइडकार लगा लिया। 

मोहनलाल, ‘ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (ONGC) में काम करते थे। साल 2011 में उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें सीढियाँ चढ़ने से भी मना कर दिया था।

लीनाबेन अपने पति के बारे में बताती हैं, “उन्हें घर पर बैठना बिल्कुल पसंद नहीं है, इसलिए उन्होंने अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने का फैसला किया।”

उन्होंने ‘ONGC’ से स्वेच्छा से रिटायरमेन्ट ले ली। जिसके बाद साल 2015 से, उन्होंने अकेले ही छोटी-छोटी यात्राएँ करनी शुरू की। वह कहते हैं, “मुझे आज भी याद है, मैं बचपन में कैसे अपने पिताजी के साथ उनके स्कूटर में घूमने जाया करता था। रिटायरमेंट के बाद जब मैंने घूमना शुरू किया, तो मुझे लगा यह मेरे जीवन का एक नया अध्याय है।”

मोहनलाल कहते हैं, “मैं हमेशा से चाहता था कि मेरी पत्नी मेरे साथ यात्रा करे। लेकिन, साल 2010 में दुर्भाग्य से लीला के पैर में फ्रैक्चर हो गया। इसके कारण उन्हें हमेशा दर्द की शिकायत रहने लगी। साथ ही, वह ठीक से चल भी नहीं पाती थीं। मैं चाहता था, वह बुलेट में आराम से बैठ सके। इसलिए, मैंने अपनी बुलेट में इस साइडकार को लगाया।” 

दो दीवाने शहर में 

मोहनलाल और लीलाबेन की यात्रा को देखकर, साल 1977 की फिल्म घरौंदा का एक गीत ‘दो दीवाने शहर में’ याद आता है। बुलेट में साइडकार लगाने के बाद, साल 2016 में इस दंपति ने पहली बार साथ में यात्रा की। अपनी इस यात्रा के दौरान, उन्होंने वडोदरा से महाराष्ट्र, केरल, गोवा, कर्नाटक और तमिलनाडु तक की यात्रा की। 

अपने इस खूबसूरत सफ़र में वे दोनों सरहद पार कर श्रीलंका भी जाना चाहते थे, लेकिन कुछ राजनीतिक तनाव के कारण वे केवल रामेश्वरम तक ही जा पाए। लीलाबेन बताती हैं, “रामेश्वरम में सूर्योदय और सूर्यास्त का नज़ारा देखना, काफी अनोखा अनुभव था।” वह आगे कहती हैं कि इस प्राकृतिक दृश्य को देखने का अनुभव, वह कभी नहीं भूल पाएंगी। अपनी पहली भारत यात्रा से लौटने के दौरान ही, यह दंपति अपनी अगली यात्रा की योजना बना रहा था।  

यात्रा से जुड़ी योजनाओं और समस्याओं के बारे में पूछे जाने पर मोहनलाल कहते हैं, “योजना बनाने में कोई समस्या नहीं थी, बल्कि लोगों के सवालों और उनकी शंकाओं का जवाब देना मुश्किल काम था। कई लोग तो यही मानते थे कि हम 100-200 किलोमीटर से आगे नहीं जा पाएंगे।”

फरवरी 2018 में, इस दंपति ने अपनी दूसरी यात्रा की शुरुआत की। इस बार, उनकी योजना थाईलैंड तक जाने की थी। वह कहते हैं, “थाईलैंड जाने के लिए हम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम होते हुए मेघालय तक पहुंचे। लेकिन जब हम मेघालय पहुंचे, तब वहां भूस्खलन शुरू हो गया था, इसलिए हमें आगे न जाने की सलाह दी गई। उन्हें थाईलैंड तक न जाने का काफी अफ़सोस है। लेकिन, इसके साथ ही वह कहते हैं कि वे जहाँ भी गए, सभी उनके जीवन की अनमोल यादें बन गईं। 

यात्रा से जुड़ी समस्याएँ 

2018 में अपनी यात्रा के दौरान, यह दंपति चित्रकूट, मध्य प्रदेश से गुजर रहा था। उस दौरान, चोट लगने से लीलाबेन की एड़ी में फ्रैक्चर हो गया और उन्हें उसकी सर्जरी करानी पड़ी। उन्हें लगभग 15 दिनों तक हॉस्पिटल में ही रहना पड़ा। मोहनलाल अपनी पत्नी की तारीफ़ करते हुए कहते हैं, “मेरी पत्नी एक बहुत ही साहसी महिला हैं, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। पैर में प्लास्टर होने के बावजूद, वह यात्रा के लिए तैयार हो गईं। उन्होंने मुझसे एक बार भी घर वापस चलने के लिए नहीं कहा। लीला मेरे बुलेट की दूसरी बैटरी जैसी हैं।” 

इन यात्राओं की बजट संबंधी सारी योजनाएँ बनाने वाली लीलाबेन बड़े ही गर्व से कहती हैं, “हमने अपने रोज़ के खर्च के लिए, तीन से चार हजार रुपये तक का बजट तय किया था। इसमें हमारा रहना-खाना, पेट्रोल और अन्य खर्च शामिल हैं। हमारी हर यात्रा पर हमने तक़रीबन दो लाख रुपये खर्च किये हैं।”

2019 में, इस दंपति ने राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश होते हुए जम्मू तक की यात्रा की। 

मोहनलाल बताते हैं, “हमने भारत का लगभग हर राज्य देखा है। हर राज्य दूसरे से बेहतर है। अगर आप मुझसे मेरा पसंदीदा राज्य पूछेंगे, तो मैं चुन नहीं पाऊंगा।” हममें से ज्यादातर लोग यात्रा के दौरान घर को याद करते हैं, जबकि लीलाबेन का कहना हैं, “ज्यादा समय तक घर में रहने पर, मुझे बीमारों जैसा महसूस होने लगता है। हम अलग-अलग जगह यात्रा करने और नई जगहों को देखने के लिए बने हैं, किसी एक जगह में रहने के लिए नहीं।” 

इस दंपति ने 2020 की शुरुआत में, बुलेट से आखरी बार यात्रा की थी। तब वे आंध्र प्रदेश में श्रीशैलम गए थे। जीवन के प्रति उनका सरल नजरिया ही, उन्हें आगे बढ़ने में मदद करता है। मोहनलाल बताते हैं, “हम जब भी कहीं ठहरते हैं, तो मैं पहले ही शेफ को हमारे लिए बिल्कुल सादा खाना बनाने के लिए कह देता हूँ। हम शाकाहारी हैं तथा प्याज और आलू के अलावा, हम सबकुछ खाते हैं।” मोहनलाल बताते हैं, “पनीर पराठा, टमाटर सूप, वेज पुलाव, मसाला भात, दही और दिन में एक ग्लास दूध पीना मेरी डाइट में शामिल हैं। हम जहां भी गए, फिर चाहे वह दक्षिण भारत हो या उत्तर भारत, हमें हमेशा हमारे मन मुताबिक भोजन मिला।” 

विश्वभर में फैले कोरोना वायरस के खतरे के कारण, उन्होंने अपनी आगे की यात्राओं को इस साल के लिए रद्द कर दिया है। लेकिन, अपनी पुरानी यात्राओं को याद करते हुए लीलाबेन कहती हैं, “भले ही वह मेरे पति हैं, लेकिन जब हम साथ में यात्रा करते है, तब वह मेरे सबसे अच्छे दोस्त बन जाते हैं। मुझे उनके साथ बुलेट में घूमना बहुत पसंद है।” 

मूल लेख: विद्या राजा 

संपादन – प्रीति महावर

यह भी पढ़ें: पद्म श्री से सम्मानित हुए, सातवीं पास मणिकफन, किये कई आविष्कार, 14 भाषाओं का है ज्ञान

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Exit mobile version