पांता भात, उड़ीसा का एक लोकल फूड है, जो वहां के लगभग हर घर के किचन में राज करता है। इसे गील भात, पजहया साधम या पखाला भात जैसे कई दूसरे नामों से भी जाना जाता है। यह उड़ीसा के घर-घर में बनता है और बड़े ही स्वाद व चाव से खाया जाता है। सदियों से वहां, इस खमीर वाले चावल (Fermented Rice) को बड़े ही प्यार से बनाया जा रहा है। यह हमेशा से ही सेहत और पेट से जुड़ी समस्याओं से लड़ने के लिए काफी अच्छा माना जाता रहा है।
कई मौकों पर मेरी दादी अक्सर यह दावा करती थीं कि पांता भात वजन कम करने, पाचन शक्ति को सुधारने और हड्डियों को मजबूती देने में बेहद फायदेमंद है। लेकिन उनके उस दावे का उस समय कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। अब, भुवनेश्वर के रिसर्च प्रोफेसर बालमुरुगन रामदास ने हाल ही में इस पर शोध करके, इसे एक वैज्ञानिक आधार दे दिया है।
पखाला, क्यों है इतना हेल्दी?
प्रोफेसर बालमुरुगन रामदास, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर क्लीनिकल माइक्रोबायोम रिसर्च संस्थान के प्रमुख हैं। उन्होंने अपने शोध के माध्यम से पता लगाया है कि ओडिशा में बनने वाले ‘पखला’ (फर्मेंटेड चावल के माड़) में शॉर्ट-चेन फैटी एसिड होता है। यह एसिड, ना केवल पेट और आंतों को हेल्दी रखता है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी को बढ़ाने के साथ-साथ कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी फायदे भी पहुंचाता है।
प्रोफेसर रामदास बताते हैं, “मैं साल 2002 से गट माइक्रोबायोम पर रिसर्च कर रहा था। साथ ही, हम एम्स में कुपोषित बच्चों के इलाज की दिशा में भी काम कर रहे थे। इन कुपोषित बच्चों को कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट के साथ शॉर्ट चैन फैटी एसिड (SCFA) दिया जा रहा था। यह फैटी एसिड खमीरी चावल (Fermented Rice) के पानी में, जिसे आम भाषा में तोरानी कहते हैं, भरपूर मात्रा में पाया जाता है। हम ऐसे खाने की तलाश में थे, जो हर वर्ग और क्षेत्र के लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध हो और सस्ता भी हो। तभी हमारा ध्यान पखाला या खमीरी चावल (Fermented Rice) पर गया और फिर साल 2019 से, हमने इस पर रिसर्च शुरू कर दी।”
वह कहते हैं कि तोरानी (पखाला के पानी) में पाए जाने वाले SCFA से शरीर को काफी एनर्जी मिलती है। यह एंटीवायरल पेप्टाइड्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होता है। एक तरफ जहां तोरानी में पाए जाने वाले पोषक तत्व कुपोषण से लड़ने में मदद करते हैं। वहीं दूसरी तरफ यह शरीर को काफी एनर्जी भी देता है, जिससे पेट लंबे समय तक भरा हुआ महसूस होता है और जल्दी भूख ना लगने के कारण, वजन भी नियंत्रित रहता है।
कुपोषण, HIV जैसी बिमारियों से बचाव
प्रोफेसर रामदास ने आठ लोगों की अपनी टीम के साथ तोरानी के कम से कम 20 सैंपल्स का विश्लेषण किया। उन्होंने निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए, अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक बैकग्राउंड वाले घरों से नमूने लिए। इन सभी नमूनों में माइक्रोबियल कल्चर पाया गया, जिससे इसमें लैक्टोबैसिलस की उपस्थिति और तोरानी के एक प्रोबायोटिक होने का पता चला।
प्रोफेसर बताते हैं, “तोरानी में मिलने वाला लैक्टोबैसिलस, सिक्रेटरी इम्यूनोग्लोबुलिन को बढ़ाता है। जो शरीर में, खासकर आंतों और फेफड़ों में होने वाले संक्रमण से लड़ने में मदद करता है और इम्युनिटी को भी बढ़ाता है।” उनका यह शोध कुपोषण, एचआईवी आदि बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए कितना मददगार हो सकता है, इस दिशा में भी वह काम कर रहे हैं।
40 वर्षीय प्रोफेसर को उम्मीद है कि यह शोध आने वाले समय में लाखों लोगों के जीवन को बदल सकता है।
मूल लेखः- अनन्या बरुआ
यह भी पढ़ेंः नहीं लगाया सोलर सिस्टम, फिर भी 30% कम आता है बिजली बिल, जानना चाहेंगे कैसे?
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।