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9 घंटे की नौकरी के साथ शुरू की मशरूम की खेती, हर महीने हुआ एक लाख रूपए का लाभ

बड़े-बुज़ुर्ग अक्सर कहा करते हैं कि इंसान को कभी हार नहीं माननी चाहिए। कभी-कभी अनेक असफलताओं के बाद सफलता और संपन्नता हमारे दरवाज़े पर दस्तक देती हैं। बीच में ही हार मान लेने से सफलता अक्सर दबे पाँव लौट जाया करती है और लोग क़िस्मत को कोसते रह जाते हैं।

हमारे किसान भाई संदीप कुमार की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। मुज़फ़्फरनगर के खतौली के रहने वाले संदीप आज भले ही लाखों में कमा रहे हों लेकिन आज से तकरीबन पाँच साल पहले उन्होंने शुरुआत शून्य लाभ से की थी। उचित प्रशिक्षण, महीनों की कड़ी मेहनत और सालों के संयम के बाद आज उनके उगाये मशरूम पूरे देश में ख़रीदे जाते हैं। मज़े की बात तो यह है कि उन्होंने इसे बस एक साइड बिज़नेस के रूप में शुरू किया था लेकिन आज यह कई किसानों और विक्रेताओं की रोज़ी-रोटी का एकमात्र साधन बन चुका है।

संदीप ने द बेटर इंडिया को बताया, “मुझे साइड बिज़नेस का ख़्याल दरअसल दिल्ली में आया था। किसान परिवार से आता हूँ तो मैंने मशरूम खेती के बारे में सोचा। मुझे कुछ अच्छा, कम लागत में आर्गेनिक, हेल्थी और टिकाऊ उत्पाद उगाने की इच्छा थी और मशरूम इसके लिए सर्वोत्तम विकल्प था।”

मशरूम की खेती वाकई कम लागत में शुरू की जा सकती है। मात्र 35,000 की लागत के साथ शुरू करने वाले संदीप कहते हैं कि लोग इसे हज़ार रूपये के साथ भी शुरू कर सकते हैं।

इस तरह होती है मशरूम की खेती

खेती शुरू करने से पहले संदीप ने हरियाणा के ‘हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज़ कॉरपोरेशन’ (HAIC) से एक हफ्ते ट्रेनिंग ली। संदीप आगे बताते हैं, “ट्रेनिंग फीस 4,000 रूपये थे जिसमें हमारा रहना, खाना आदि शामिल था। वहाँ से मैंने मशरूम खेती की ट्रेनिंग ली और नाममात्र के भाव पर कम्पोस्ट और बीज भी ख़रीदे। सात रूपये प्रति किलो के भाव पर मैंने कम्पोस्ट और केसिंग मिट्टी और अस्सी रूपये प्रति किलो के भाव में बीज ख़रीदे।”

संदीप कहते हैं कि मशरूम की खेती शुरू करने से पहले मशरूम के बारे में जानना सबसे ज़रूरी है। वह बताते हैं, “मशरूम दो प्रकार से उगाये जा सकते हैं। प्रक्रिया शुरू करने पर बीज को कम्पोस्ट में मिलाकर एक महीने तक अंधेरे कमरे में रखना पड़ता हैं। नमी कुछ करीब 80°C और कमरे का तापमान तकरीबन 20-24°C तक रखना पड़ता है। इस पूरे प्रक्रिया को मिसलियम (mycelium) कहते हैं। मिट्टी डालने के बाद कमरे का तापमान 16°C से कम होनी चाहिए।”

मिसलियम फैलता हुआ

2016 में उन्हें अपना पहला उत्पादन मिला। उन्होंने जितना निवेश किया था, उतने रूपये कमा लिए। यही वजह है कि उन्हें घाटा नहीं हुआ।

फिर 2017 के उत्पादन में उन्हें 5,000 रूपये प्रति माह का मुनाफ़ा हुआ। 2018 में यह मुनाफ़ा बढ़ कर 12,000-13,000 रुपयों का हो गया था।

अब तक उनके उत्पाद केवल मंडी तक ही जाते थे लेकिन इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया के ज़रिये मार्केटिंग और प्रोमोशन शुरू कर दिया और दूसरे किसानों के साथ मिलकर अपने व्यापार को भी बढ़ाना  शुरू कर दिया। पहली बार बीज और कम्पोस्ट HAIC से खरीद कर लाने के बाद संदीप कम्पोस्ट भी ख़ुद से बनाने लगे। हालाँकि, बीज अब भी वह हरियाणा के HAIC से खरीदते हैं।

सफल मार्केटिंग और किसान भाइयों और अपने परिवार वालों की मदद से संदीप ने उत्पादन को लगभग दस गुना बढ़ा लिया। जो मशरूम हर दिन 50-60 किलो उगाये जाते थे, वह अब 500 किलो से एक टन के करीब उगाये जाने लगे। इनकी डिलीवरी फ्लाइट और ट्रेनों द्वारा पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार आदि राज्यों के कई इलाकों तक होने लगी।

मशरूम की कटाई

नतीजतन, 2019 का मुनाफा एक लाख प्रति महीना हुआ! चौंकाने वाली बात यह है कि संदीप आज भी अपनी फुल-टाइम नौकरी कर रहे हैं। उनका साइड बिज़नेस भले ही आज कुछ लोगों का एकमात्र कमाई का ज़रिया है लेकिन वह अब भी अपनी कंपनी को ही अपनी कमाई का मूल ज़रिया बताते हैं।

संदीप कहते हैं, “मैं हर दिन 40 किलोमीटर आना-जाना करता हूँ, 9 घंटे की नौकरी के बाद भी हर दिन कुछ घंटे अपनी मशरूम खेती को देता हूँ। मेरे अलावा मेरे घरवाले भी मेरी मदद करते हैं। हाँ, शुरू में काफ़ी तकलीफें आयी लेकिन मैं इस काम के प्रति दृढ़ था।”

लॉकडाउन के दौरान संदीप के लिए डिलीवरी करना आसान नहीं था लेकिन फिर उन्होंने देहरादून के रास्ते दिल्ली और वहाँ से पश्चिम बंगाल भेजना शुरू कर दिया।

संदीप समय-समय पर अपने मशरूम की जांच भी करवाते रहते हैं

उनके मुताबिक काफ़ी लोग मशरूम की खेती शुरू करते हैं लेकिन पहले ही साल में काम बंद कर देते हैं। वजह? खराब उत्पादन या निवेश में नुकसान! लेकिन अगले साल में वह उन ग़लतियों से सीखने की या उन्हें सुधारने की कोशिश नहीं करते जिसके कारण उन्हें सकारात्मक नतीजे नहीं मिलते हैं।

संदीप बाकि लोगों को प्रोत्साहित करते हुए कहते हैं, “रुकना नहीं चाहिए और न ही हार माननी चाहिए। जहाँ मशरूम का उत्पादन किया जाता है, वहाँ तापमान बनाए रखना मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं और न ही सफ़ाई रखना मुश्किल है। यदि मैं 18x57x15 फ़ीट की जगह में सफलता हासिल कर सकता हूँ तो आप क्यों नहीं!”

डिलीवरी के लिए तैयार मशरूम

हम अक्सर किसी किसान के सफलता की कहानी पढ़कर सोचते हैं कि वह कितना कमा रहा है या पैसे बना रहा है लेकिन उसके पीछे की सालों की मेहनत, ग़लतियाँ और रिवर्क नज़रअंदाज़ कर देते हैं। हमें इसी सोच को बदलने की ज़रूरत है।

अगर आप भी किसी ऐसे किसान भाई/ बहन को जानते हैं तो उनकी कहानी हमसे साझा कीजिये और हम बताएँगे पूरे देश को उनकी सक्सेस स्टोरी!

संदीप से आप उनके फ़ेसबुक अकाउंट के ज़रिये जुड़ सकते हैं। इसके अलावा उनके ‘खतौली मशरूम फार्म हाउस’ के बारे में आप उनकी वेबसाइट से जानकारी ले सकते हैं।

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