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इस किसान ने अपने इनोवेशन से की सैंकड़ों किसानों की मदद, मिले हैं राष्ट्रीय अवार्ड और पेटेंट

Grassroots Innovations

कहते हैं कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है। लेकिन यदि आपको लगता है कि आविष्कार, सिर्फ बड़ी कंपनियां या पेशेवर इंजीनियर ही कर सकते हैं, तो यह अधूरा सच है। क्योंकि, हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई तक पूरी नहीं की और आज समाज में उनकी पहचान, एक आविष्कारक के तौर पर है। इन लोगों के हुनर और समाज की समस्याओं को खुद हल करने की सोच के कारण ही, ऐसा संभव हो पाता है। आज हम आपको गुजरात के एक ऐसे ही आविष्कारक से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने जमीनी स्तर पर कई आविष्कार कर (Grassroots Innovations), किसानों की बहुत सी परेशानियों का हल निकाला है। 

गुजरात के जूनागढ़ में पिखोर गाँव के रहने वाले, अमृत भाई अग्रावत (75) ने पांचवी कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी थी। जब उनके पिता का देहांत हुआ, वह सात वर्ष के थे। घर चलाने के लिए, उनकी माँ दूसरों के खेतों में मजदूरी करने लगी। अपनी माँ को दिन-रात मेहनत करते देख, अमृत भाई ने पढ़ाई छोड़कर खेतों में खुद काम करना शुरू कर दिया। वह कहते हैं कि इन अनुभवों से ही, उन्होंने परेशानियों का हल निकालने का हुनर सीखा। खेतों में काम करते हुए, उन्होंने किसानों की समस्याओं को करीब से देखा और जाना। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “खेतों में काम करते-करते, मुझे खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले यंत्रों और उपकरणों की जानकारी भी हुई। मैंने मैकेनिक का काम भी सीखा और अपनी एक छोटी सी वर्कशॉप शुरू कर दी। इस वर्कशॉप में मैंने छोटे-बड़े बहुत से आविष्कार किए। पहले ज्यादातर खेती का काम, बैलों की मदद से होता था। इसलिए मैंने ऐसे उपकरण बनाएं, जिन्हें किसान बैलों की मदद से खेतों में इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, उस जमाने में मुझे यह भी नहीं पता था कि मैं जो कर रहा हूँ, वह कोई आविष्कार है।” 

अमृत भाई अग्रावत

अमृत भाई ने ‘टिल्टिंग बुलक कार्ट’, ‘ग्राउंड नट डिगर’, ‘जनक सांति’, ‘सेल्फ लॉकिंग पुली’, और ‘वीट शोइंग बॉक्स’ जैसे कई आविष्कार किए हैं।

किए कई तरह के आविष्कार:

अमृत भाई कहते हैं कि वर्कशॉप में, वह किसानी से सम्बंधित उपकरणों की मरम्मत करते थे। साथ ही, किसानों की जरूरत को समझने की कोशिश करते थे। उन्होंने देखा कि किसानों को खेतों में काम करने के लिए, अलग-अलग यंत्रों की जरूरत पड़ती है। इन यंत्रों को अलग-अलग बनवाना पड़ता है और इन्हें लेकर आने-जाने में भी काफी समस्या आती थी। इसलिए, 1972 में उन्होंने ‘जनक सांति’ नामक एक उपकरण बनाया। लोहे से बने इस उपकरण की खासियत, यह थी कि इसे किसी भी तरह की फसल और मिट्टी में इस्तेमाल किया सकता है। साथ ही, इस एक ही उपकरण में आप लगभग 10 तरह के कृषि यंत्रों को लगाकर काम कर सकते हैं। 

वह आगे कहते हैं, “जनक सांति से किसानों को काफी मदद मिली। इसके बाद, कई किसान मेरे पास आकर अपनी परेशानियां बताते थे। उस समय, सौराष्ट्र में बारिश कम होने से मिट्टी बहुत सख्त हो गयी थी। इससे मूंगफली उगाने वाले किसानों को, इसकी कटाई करने में समस्या आ रही थी। एक-दो किसानों ने आकर मुझसे कहा कि मूंगफली की कटाई के लिए, मुझे कोई मशीन बनानी चाहिए। इसलिए मैंने एक ‘ग्राउंड नट डिगर’ मशीन बनाई, जिसे बैलों की मदद से चलाकर किसान आसानी से मूंगफली की कटाई कर सकते हैं।” 

उन्होंने लोहे से बनी इस मशीन में, दो पहिए और एक ब्लेड लगाया। किसान अपनी जरूरत के आधार पर, इसमें अलग-अलग लंबाई वाले ब्लेड लगाकर इस्तेमाल कर सकते हैं। वह कहते हैं कि एक या दो लोग मिलकर, इससे आसानी से मूंगफली की कटाई कर सकते हैं। इससे किसानों की मेहनत और समय दोनों की बचत होगी। उनकी इस मशीन के बारे में, जब आसपास के किसानों को पता चला तो उन्हें लगातार ऑर्डर मिलने लगे। उन्होंने 250 से ज्यादा ‘ग्राउंड नट डिगर’ किसानों को बना कर दिए हैं।

गेहूं की बुवाई मशीन

इसके बाद, उन्होंने गेहूं की बुवाई के लिए भी एक मशीन बनाई। जिसकी मदद से खेतों में गेहूं के बीज, समान दूरी और गहराई में बोये जा सकते हैं। वह कहते हैं कि पहले किसान जिस तरीके से गेहूं के बीज बोते थे, उससे गेहूं एक समान दूरी पर नहीं उगते थे। इससे खेत के कुछ हिस्सों में कहीं, बहुत ज्यादा गेहूं की बालियां होती तो कोई हिस्सा खाली रह जाता था। इसका असर खेतों से मिलने वाले उत्पादन पर पड़ता था। लेकिन, अमृत भाई के एक आविष्कार ने यह समस्या भी हल कर दी।

वह कहते हैं, “ये सभी आविष्कार, दो-चार दिनों में नहीं होते थे। किसी मशीन को बनाने में महीनों का समय गया तो किसी में कई साल लग गए। लेकिन मैं अपना काम करता रहा। कई असफलताओं के बाद, सफलता मिलती थी। लेकिन जब तक सफलता नहीं मिल जाती थी, मैं कोशिश करता रहता था। कई बार आर्थिक समस्याएं भी आती थीं लेकिन, अगर मैं कुछ नया नहीं करता तो यहां तक कभी नहीं पहुँचता।” 

आगे वह बताते हैं कि उनका एक बड़ा आविष्कार ‘टिल्टिंग बुलक कार्ट,’ रहा। यह एक ऐसी बैलगाड़ी है, जिसमें किसान बैठे-बैठे ही इसे एक तरफ से उठाकर, सामान को नीचे उतार सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसा किसी हाइड्रोलिक ट्रॉली में होता है। किसान बैलगाड़ी का उपयोग खेतों में खाद आदि पहुंचाने के लिए करते हैं। लेकिन बैलगाड़ी से सामान उतारने के लिए, दूसरे लोगों की मदद की जरूरत पड़ती है। उन्होंने किसानों से इस बारे में विचार-विमर्श किया और उनकी जरूरत समझी। इसके बाद, लगभग सात-आठ साल के अथक प्रयासों के बाद उन्होंने ‘हाइड्रोलिक सिस्टम’ वाली बैलगाड़ी बनाई, जिसे उन्होंने ‘आरुणी’ नाम दिया। 

आरुणी बैलगाड़ी

इस बैलगाड़ी में एक ‘हाइड्रोलिक जैक’ लगा हुआ है और इसके साथ, एक घुमावदार यंत्र और एक तेल का टैंक है। इसे एक मेटल फ्रेम का इस्तेमाल करके बनाया गया है तथा इसमें चार पहिए और आठ वर्टीकल गियर हैं। साल 1995 में उनका यह डिजाइन सफलता से पूरा हो गया। ‘आरुणी’ की सफलता के बाद उन्होंने 1997 में, कुएं से पानी खींचने के लिए एक ‘सेल्फ लॉकिंग पुली’ बनाई। वह बताते हैं, “एक बार, मैंने गाँव में एक बुजुर्ग महिला को किसी कुएं से पानी निकालते हुए देखा। पानी निकालते-निकालते वह महिला हांफने लगी क्योंकि, पानी खींचते समय गलती से भी अगर उनके हाथ से रस्सी छूट जाती थी तो उन्हें फिर से मेहनत करनी पड़ती थी।” 

इस घटना के बाद, उन्हें लगा कि ऐसा कोई यंत्र बनाना चाहिए, जिससे अगर पानी निकालते समय रस्सी छूट भी जाए तो बाल्टी वापस कुएं में न गिरे बल्कि वहीं रुक जाए। इसलिए, उन्होंने यह ‘पुली स्टॉपर’ या ‘सेल्फ लॉकिंग पुली’ बनाई, जिससे कुएं से पानी खींचने की मेहनत कम हो गयी। उनकी बनाई पुली को गुजरात के कई गांवों में लगाया गया और सभी जगहों से उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। अमृत भाई को अपने इस आविष्कार के लिए, गुजरात सरकार से ‘सरदार कृषि पुरस्कार’ भी मिला। 

कुएं पर लगी है उनकी सेल्फ लॉकिंग पूली

मिले राष्ट्रीय स्तर के सम्मान: 

अमृत भाई के इन आविष्कारों को देश-दुनिया तक पहुँचाने का श्रेय जाता है, ‘हनी बी नेटवर्क‘ के संस्थापक प्रोफेसर अनिल गुप्ता को। प्रोफेसर गुप्ता ने 90 के दशक में, जमीनी स्तर के इन आविष्कारकों को तलाशने का अभियान शुरू किया था। अपनी इस यात्रा के दौरान, उन्हें अमृत भाई के बारे में पता चला और वह उनसे मिलने उनके गाँव पहुँच गए। तब से ही अमृत भाई ‘हनी बी नेटवर्क’ से जुड़े हुए हैं और उनके ही प्रयासों के कारण उन्हें अपनी ‘आरुणी बैलगाड़ी’ के लिए पेटेंट भी मिला है।अमृत भाई को ‘फेस्टिवल ऑफ़ इनोवेशन’ के दौरान राष्ट्रपति भवन में रहने का भी मौका मिला है और उन्होंने अफ्रीका और पेरिस की यात्राएं भी की हैं। 

‘नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन‘ के डायरेक्टर विपिन कुमार बताते हैं, “अमृत भाई ने कई सारे आविष्कार किये हैं और उन्हें उनके आविष्कारों के लिए NIF द्वारा ‘नैशनल ग्रासरूट्स इनोवेशन अवॉर्ड’ और ‘लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। उनके आविष्कारों ने सैकड़ों किसानों की मदद की है।” खुद आविष्कार करने के साथ-साथ अमृत भाई ने दूसरे जमीनी स्तर के आविष्कारकों को तलाशने और तराशने में भी अहम भूमिका निभाई है। ‘सृष्टि संस्थान‘ द्वारा इन आविष्कारकों की खोज के लिए, आयोजित होने वाली लगभग 44 शोधयात्राओं में उन्होंने भाग लिया है। 

पूर्व राष्ट्रपति स्व. प्रणव मुखर्जी के साथ अमृत भाई

इन यात्राओं के दौरान, उन्होंने देश के लगभग सभी राज्यों का भ्रमण किया और जमीनी स्तर पर काम कर रहे अपने जैसे आविष्कारकों को ढूंढ निकाला। इन आविष्कारकों को ढूंढने के साथ-साथ, वह इन्हें अपनी वर्कशॉप पर तकनीकी मदद भी उपलब्ध कराते हैं। हालांकि, बढ़ती उम्र के चलते अब उनकी वर्कशॉप को उनके बेटे भरत भाई अग्रावत संभाल रहे हैं। भरत भाई भी अपने पिता की ही तरह, एक आविष्कारक हैं। उनका कहना है, “पिताजी द्वारा किए गए आविष्कारों की तर्ज पर, हम किसानों की जरूरत के हिसाब से और भी नए-नए यंत्र बनाते रहते हैं। जूनागढ़ और गिर सोमनाथ जैसे जिलों के सैकड़ों किसान हमसे जुड़े हुए हैं। अब सोशल मीडिया की मदद से, अन्य राज्यों के किसान भी हमें जानते हैं और हमारे यहाँ आते हैं। ‘ज्ञान‘ और ‘सृष्टि’ की मदद से, हमारे बनाए यंत्र रोम देश तक भी पहुंचे हैं।”  

यदि आपको इस कहानी ने प्रभावित किया है और आप अमृत भाई अग्रावत के बारे में अधिक जानना चाहते हैं या फिर कोई मशीन उनसे खरीदना चाहते हैं तो उन्हें 09925932307 या 09624971215 पर कॉल कर सकते हैं!

संपादन- जी एन झा

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