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उत्तराखंड: अलग-अलग काम किए पर नहीं मिली सफलता, अब जैविक खेती से कमाते हैं लाखों

हर साल देश के ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों से बहुत से लोग अपनी जड़ों को छोड़कर बड़े शहरों में पलायन करते हैं। पलायन करने की वजह चाहे पढ़ाई हो या नौकरी लेकिन उद्देश्य सिर्फ यही रहता है कि वे अपने परिवार को एक बेहतर ज़िंदगी दे सकें। लेकिन वहीं ऐसे भी बहुत से लोग हैं, जो महानगरों की नौकरी छोड़कर अपनी जड़ों से जुड़ रहे हैं। अपनी पारंपरिक खेती-बाड़ी को संभालते हुए अच्छी जिंदगी जी रहे हैं। कुछ ऐसी ही कहानी उत्तराखंड के किसान की भी है, जिन्होंने कई अलग-अलग काम किए लेकिन आखिरकार उन्हें सफलता खेती में ही मिली। 

टिहरी गढ़वाल के मैड तल्ला गांव में रहनेवाले सुंदर लाल चमोली और उनकी पत्नी बिगुला चमोली पिछले 20 सालों से भी ज्यादा समय से पहाड़ों में जैविक तरीकों से खेती कर रहे हैं। यह दंपति आज अपने इलाके में बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। क्योंकि सुंदर लाल और बिगूला ने गांव में रहकर अपनी खेती करते हुए ही अपने परिवार को एक बेहतर जीवन दिया है। उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी है।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए 55 वर्षीय सुंदर लाल ने बताया, “हम कृषि विभाग के सहयोग से अपनी खेती जैविक तरीकों से करते हैं। पुराने ढर्रे से हटकर हमने नए तरीके सीखे हैं और अलग-अलग फसल उगाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। सबसे ज्यादा तसल्ली इस बात की है कि हम न सिर्फ अपने परिवार को बल्कि अपने सभी ग्राहकों को भी शुद्ध और जैविक उत्पाद खिला रहे हैं। फल-सब्जियों से लेकर धान, राजमा और दलहन तक, सभी कुछ बिना किसी रसायन के प्रयोग के उगाया जाता है।”

प्रगतिशील किसान दंपति

दिल्ली की नौकरी छोड़ लौटे गांव 

सुंदर लाल ने 12वीं तक की पढ़ाई की है। घर-परिवार में खेती होती थी। लेकिन उन्होंने 12वीं के बाद व्यवसाय शुरू करने की योजना बनाई। उन्होंने लगभग सात साल तक अपना छोटा-सा होटल चलाया। लेकिन इसमें ज्यादा बचत नहीं हो पा रही थी और तब तक उनके ऊपर बच्चों की जिम्मेदारी आ चुकी थी। ऐसे में, उन्हें तय करना था कि वह क्या करें? उन्होंने बताया, “हमारे गांव से बहुत से लोग खेती छोड़कर दिल्ली जाकर नौकरी करने लगे थे। मैंने सोचा कि होटल में कोई बचत नहीं हो रही है तो बेहतर यही है कि मैं भी दिल्ली में कोई नौकरी कर लूं।” 

वह अपने एक जानकार के साथ दिल्ली पहुंच गए और वहां भी होटल लाइन में ही नौकरी शुरू कर दी। कुछ साल उन्होंने दिल्ली में काम किया, लेकिन फिर भी उन्हें संतुष्टि नहीं थी। वह कहते हैं, “मुझे लगता था कि जितने पैसे दिल्ली में कमा रहा हूं, उतना तो गांव में खेती से भी कमा सकता हूं। बस खेती में थोड़ी मेहनत ज्यादा होगी, लेकिन यह संतुष्टि रहेगी कि मैं अपने परिवार के पास हूं। इसलिए 1998 में मैंने नौकरी छोड़कर गांव में ही खेती करने का मन बना लिया।”

अपनाए खेती के आधुनिक तरीके 

गांव में खेती करना इतना आसान नहीं था। इसका मुख्य कारण था कि उनके परिवार की जमीन अलग-अलग जगह थी। उनका कोई खेत उनके घर के पास था तो कोई कई किलोमीटर दूर था। ऐसे में, सभी जगह के खेतों को एक साथ संभालना बहुत ही मुश्किल था। लेकिन सुंदर लाल ने हार नहीं मानी। उन्होंने गांववालों से बात की और लोगों के सहयोग से खेतों को इकट्ठा किया। इससे न सिर्फ उन्हें, बल्कि दूसरे किसानों को भी फायदा हुआ। उन्होंने बताया कि अभी उनके परिवार के पास लगभग 50 नाली जमीन है, जिसमें से कुछ जमीन उनके घर के आसपास है। अन्य सभी जमीन अभी गांव में अलग-अलग जगहों पर है। 

जैविक तरीकों से करते हैं खेती

सुंदर लाल ने पारंपरिक तरीकों से खेती की शुरुआत की। लेकिन समय के हिसाब से आगे बढ़ते रहे। सिर्फ एक ही तरह की फसलें उगाने की बजाय, उन्होंने अलग-अलग तरह की फसलों को उगाना शुरू किया। साथ ही, अपने खेतों के लिए जैविक खाद और जैविक कीट प्रतिरोधक भी वह खुद ही तैयार करते हैं। उन्होंने जैविक खेती में ऐसी फसलों को उगाना शुरू किया, जिनसे कम समय में अच्छी कमाई की जा सकती है, जैसे मौसमी सब्जियां। 

करते हैं ऑर्गेनाइज़्ड खेती

बिगुला और सुंदर लाल बताते हैं कि पूरे साल उनके खेतों में अलग-अलग तरह की साग-सब्जियां, जैसे- शिमला मिर्च, बीन्स, प्याज, लहसुन, मटर, अदरक, सरसों, आलू, टमाटर, ब्रोकली, मूली, गोभी, चकुंदर, करेला और तोरई जैसी मौसमी सब्जियां लगी होती हैं। सब्जियों के अलावा, वह मड़ुआ, धान, गेहूं, और राजमा आदि भी उगाते हैं। 

बिगुला कहतीं हैं, “हम अपने घर के पास की जमीनों पर ज्यादातर सब्जियां ही उगाते हैं। क्योंकि इन्हें जानवरों से भी बचाना होता है और इन्हें हर दिन देखभाल की जरूरत होती है। वहीं, गांव में दूसरी जगहों पर जो हमारे खेत हैं, उनमें हम गेहूं-धान लगाते हैं। क्योंकि ये ऐसी फसलें हैं, जिन्हें न तो जानवर नुकसान पहुंचाते हैं और न ही कोई गांववाला हमारे काटने से पहले काटता है। लेकिन सब्जियों में चोरी होने की आशंका रहती है।” 

उगाते हैं कई तरह की फसलें

सब्जियों की खेती करने के अलावा, उन्होंने सेब, अंगूर, अमरुद, अनार, आड़ू, खुबानी, नींबू, कागजी, चकोतरा और कीनू जैसे फलों के भी लगभग 200 पेड़ अपने खेतों में लगाए हुए हैं। इन फलों के पेड़ों से भी उन्हें अच्छा उत्पादन मिल रहा है। 

खेती के साथ-साथ करते हैं कई अन्य काम

आज 20 से भी ज्यादा तरह की फसलों की खेती करने वाले सुंदर लाल और बिगुला पशुपालन भी कर रहे हैं। उन्होंने अपने घर में दो गाय, दो भैंसें और एक बैल पाला हुआ है। खेत की जुताई-बुवाई में आज भी वे बैल और हल से काम लेते हैं। क्योंकि पहाड़ों में खेती की बड़ी मशीनों से काम करना सम्भव नहीं है। इसलिए वे पारंपरिक तरीकों से ही काम करते हैं। अपने मवेशियों को वे अच्छा चारा खिलाते हैं। इससे उन्हें अच्छा दूध मिलता है। साथ ही, गाय और भैंसों के गोबर से वे घर में ही खेतों के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली खाद भी तैयार कर लेते हैं। 

सुंदर लाल बताते हैं कि वह खेती में कृषि विभाग से भी सहायता लेते रहते हैं। जैसे अपनी फसलों को बिमारियों से बचाने के लिए वह कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए नीम के तेल या अन्य जैविक कीट प्रतिरोधकों का ही इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा,”जैविक कीट प्रतिरोधक से रसायनों की तरह एक बार में कीट खत्म नहीं होते हैं। लेकिन रसायनों की तुलना में जैविक उत्पाद हमारे लिए और प्रकृति के लिए बहुत ही बेहतर हैं। इसलिए अगर कभी थोड़ा-बहुत नुकसान हो भी जाए तो हम ज्यादा चिंता नहीं करते हैं। क्योंकि यह पर्यावरण का हिस्सा है।”

“किसान को आसपास अलग-अलग बाजार का पता करते रहना चाहिए”

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में उनके खेतों से उत्पादन बढ़ा है। अब वह पॉलीहाउस का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। जिससे उन्हें अच्छा फायदा मिल रहा है। बात अगर मार्केटिंग की करें तो उन्होंने बताया, “हम स्थानीय बाजार में अपने उत्पादों को बेचते हैं। हम सिर्फ बाजार पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि हमने कुछ ग्राहकों से सीधा संपर्क रखा हुआ है। जैसे बहुत से लोग हमें फसल की शुरुआत में ही ऑर्डर दे देते हैं कि उन्हें 10 से 20 किलो अदरक चाहिए या कोई और फसल चाहिए।”

फल-सब्जियों से कर रहे हैं अच्छी कमाई

सुंदर लाल कहते हैं कि किसान को हमेशा अपने आसपास अलग-अलग बाजार का पता करते रहना चाहिए। जितना हो सके, खुद सीधा ग्राहकों या रिटेलर से जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही, वह ज्यादातर काम खुद ही करते हैं उनका कहना है, “गांव में सब मिल-जुलकर काम करते हैं। जैसे आज हमने अपने पड़ोसी के खेत से सब्जियों की तुड़ाई में मदद कर दी तो कल वे हमारी मदद कर देंगे। इस तरह से हम लोग दिहाड़ी-मजदूरी पर काफी पैसे की बचत कर लेते हैं।”

चाहे जो भी काम करें, खेती से ना तोड़ें नाता

फिलहाल, खेती से उनकी सालाना कमाई लगभग सात लाख रुपए तक हो जाती है। वह कहते हैं कि कभी-कभी पांच से सात लाख रुपये तक ही कमाई हो जाती है। लेकिन खेती-किसानी में कम-ज्यादा चलता रहता है। इसलिए वह ज्यादा चिंता नहीं करते हैं। उन्हें इस बात की खुशी है कि वह अपने परिवार को शुद्ध भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। 

सुंदर लाल आज अपने इलाके में उन सभी नौजवानों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं, जो अक्सर उनके पास खेती में मार्गदर्शन के लिए आते हैं। सभी युवाओं और किसानों के लिए वह सिर्फ यही संदेश देते हैं, “आप कोई भी काम करें लेकिन खेती से नाता न तोड़ें। अगर आपके पास दो-चार बीघा जमीन भी है, तो भी इसमें कुछ न कुछ उगाते रहें। खेती से भले ही आप पैसे के मामले में करोड़पति न बन पाएं, लेकिन आज के समय में अपने परिवार को शुद्ध और पौष्टिक खाना जरूर खिला सकते हैं। हमारे अपने घर में लगभग 90% चीजें हमारे अपने खेतों में उग जाती हैं। हमें किसी बाजार पर निर्भर होने की जरूरत नहीं है। इसलिए कोशिश करें कि आप अपने परिवार को अच्छी चीज़ें खिलाएं और स्वस्थ रखें।”

आप सुंदर लाल के फेसबुक पेज के ज़रिए उनसे संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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