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MBA गोल्ड मेडलिस्ट नौकरी छोड़ लौटा गांव, एग्रो टूरिज्म से कर रहे पहले से ज्यादा कमाई

sidharth
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गांव में रहकर ज्यादा पैसे नहीं कमाए जा सकते, न ही खेती और पशुपालन में कोई भविष्य है। ऐसी सोच आजकल गांव में रहनेवाले हर एक माता-पिता की होती है। लेकिन इस सोच से बिल्कुल अलग, गाज़ीपुर (उत्तरप्रदेश) के सिद्धार्थ राय, शहरी जीवन और नौकरी को ना बोलकर गांव में रहकर ही एग्रो टूरिज्म चला रहे हैं। 

इतना ही नहीं गांव से जुड़े व्यवसाय से ही वह नौकरी से कहीं ज्यादा पैसे भी कमा रहे हैं। सिद्धार्थ ने सिर्फ अपने शौक और जानवरों से लगाव के कारण ही मछली पालन से लेकर मुर्गी, बकरी और डेयरी बिज़नेस के की शुरुआत की। इतना ही नहीं उन्होंने गांव में एक बेहतरीन एग्रो-टूरिज्म सेंटर शुरू किया है, जहां लोग आकर  पारम्परिक ग्रामीण परिवेश का आनंद ले सकते हैं।  

द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताते हैं, “बचपन से ही मुझे जानवरों से विशेष लगाव रहा है। लेकिन मुझे घरवालों ने कभी एक  कुत्ता भी पालने नहीं दिया। आज मैंने ढेरों जानवरों को अपने फार्म पर रखा है, जो मेरी कमाई का जरिया भी बन गए हैं।”

सिद्धार्थ राय

MBA गोल्ड मेडलिस्ट के लिए आसान नहीं था नौकरी छोड़, गांव आना 

साल 2012 में MBA की पढ़ाई करने के बाद, सिद्धार्थ एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहे थे। उन्होंने दो साल वहां काम करने के बाद, दिल्ली में एक कैबिनेट मंत्री के साथ काम करना शुरू किया। साल 2019 तक दिल्ली में काम करते हुए उन्होंने महसूस किया कि उन्हें अपनी रुचि का काम करना चाहिए और वह जो काम कर रहे थे, वह तो उनकी पसंद बिल्कुल नहीं थी। इसलिए उन्होंने गांव वापस आने का फैसला किया। 

उन्होंने बताया, “घरवालों को जब मैंने बताया की मुझे गांव में रखकर पशुपालन और खेती से जुड़ना है, तो किसी को मुझपर यकीन नहीं आया और उन्हें लगा कि मैं कुछ कर नहीं पाऊंगा। मुझे प्रयोग के लिए अपनी पुश्तैनी ज़मीन का एक छोटा टुकड़ा दिया गया था।”

जिस ज़मीन के टुकड़े पर उन्होंने काम करना शुरू किया, वह एक बंजर ज़मीन थी, जिसपर उन्होंने सबसे पहले एक तालाब बनवाया। बाद में उसमें उन्होंने कुछ मछलियां खरीदकर डालीं और फिर वह कुछ बतख लेकर आए। तालाब में एक छोटा बोटिंग एरिया बनाने के लिए, उन्होंने नाव भी खरीदी। वह कहते हैं कि टूरिस्ट जब तालाब में बोट चलाते हैं, तो मछलियों के लिए अच्छा ऑक्सीज़न बनता है। 

एग्रो टूरिज्म स्पॉट 

गांव में बनाया एग्रो टूरिज्म स्पॉट 

यहां आने वाले मेहमान, सिद्धार्थ से ही खरीदकर, मछलियों को दाना भी डालते हैं। इससे उनका काम भी आसान हो जाता है और शहर से आये मेहमान खुश भी हो जाते हैं। इस तरह उन्होंने एक छोटा सा टूरिस्ट स्पॉट बनाने से शुरुआत की थी। 

सिद्धार्थ ने समय के साथ यहां एक देशी रेस्टॉरेंट भी शुरू किया, जहां पारम्परिक देशी खाना परोसा जाता है। आज यहां घोड़े और ऊँट भी हैं, जो यहां आए मेहमानों के लिए ही उन्होंने मंगवाए हैं।  यहां गाज़ीपुर और आस पास से आए लोगों को एक ही जगह पर घुड़सवारी, ऊंट की सवारी, बोटिंग सहित देसी खाने का मज़ा मिलता है। इसके साथ ही उन्होंने यहां दो गायों के साथ एक गौशाला की शुरुआत की थी, लेकिन आज यहां कई गायें हैं।  

सिद्धार्थ कहते हैं, “लॉकडाउन के दौरान हमने आस-पास के गांव के किसानों से दूध लेकर, इसे पैक करके बेचना भी शुरू किया। इस तरह से आज हम 600 ग्राहकों तक दूध पंहुचा रहे हैं।”

गांववालों के रोज़गार के लिए ढूंढा अनोखा तरीका

सिद्धार्थ के खेतों के 60 प्रतिशत हिस्से में पारम्परिक गेंहू और चावल की खेती होती है। वहीं, बाकी की जगह में उन्होंने कमाल का एग्रो टूरिज्म शुरू कर दिया है। अपने इस काम से वह बड़े आराम से नौकरी से कहीं ज्यादा पैसे भी कमा लेते हैं। 

इसके अलावा, वह गांववालों को भी रोज़गार मुहैया कराने में मदद कर रहे हैं। सिद्धार्थ ने अपने आस-पास के गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक अनोखा प्रयास भी किया है।
उन्होंने बताया, “मैंने आस-पास के पांच गावों में किसी न किसी फल-सब्ज़ियों के ढेरों पौधे लगाए हैं, जैसे- एक गांव के हर घर में अमरुद का पौधा, तो किसी दूसरे गांव के घरों में कटहल का पौधा लगाया। इस तरह से समय के साथ, वह गांव उस फल के नाम से मशहूर हो जाएगा।”

सिद्धार्थ, गांव में बड़े सुकून के साथ रह रहे हैं और अपने प्रयासों को सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों तक पंहुचा भी रहे हैं। आप भी उनके एग्रो टूरिज्म के बारे में ज्यादा जानने के लिए यहां संपर्क कर सकते हैं।  

संपादनः अर्चना दुबे

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