गुजरात के पालीताना स्थित गुढ़ाना गांव में 30 बीघे के एक कैंपस में ‘हरिबा डेयरी फार्म’ बना है। जो भी डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) में आगे बढ़ना चाहते हैं, उनके लिए यह फार्म एक अध्ययन का विषय है।
‘हरिबा डेयरी फार्म’ की शुरुआत, मेहुलभाई सुतारिया ने साल 2018 में की थी। इस साल, उन्हें गुजरात सरकार द्वारा तालुका स्तर पर सर्वश्रेष्ठ पशुपालक का पुरस्कार मिला है। उनके फार्म में 72 गायें हैं, जिससे हर महीने करीब 600-700 किलो दूध होता है।
इस कड़ी में 32 वर्षीय मेहुलभाई ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमने इसकी शुरुआत किसी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए नहीं की, बल्कि यह हमारे पिता जी की रिटायरमेंट के बाद की इच्छा थी। साथ ही, हमारे शास्त्र भी बताते हैं कि यदि आप गायों को पाल सकते हैं, तो शुरुआत जरूर करनी चाहिए। यदि आप दस गाय पालना चाहते हैं, तो शुरुआत एक से भी कर सकते हैं। हमने इसी विचार के साथ अपने गांव में डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) की शुरुआत की।”
वह आगे बताते हैं, “डेयरी फार्म शुरु करने से पहले, मैं नेसडा-गीर के आसपास के इलाकों में गया और कुछ गीर गायों को चुना। मैंने गायों को प्राकृतिक तरीके से पालने के लिए कई जानकारों से बात की और रिसर्च किया। यह प्रक्रिया करीब एक साल चली। फिर मैंने 2018 में औपचारिक रूप से अपना डेयरी फार्म शुरू किया।”
कैसे करते हैं गायों की देखभाल
मेहुलभाई गायों को जहां रखते हैं, वहां सीमेंट के फर्श के बजाय मिट्टी का इस्तेमाल किया गया है, जिसकी संरचना पत्थर जैसी होती है। दूध निकालने के लिए किसी मशीन का इस्तेमाल करने के बजाय, कुछ स्थानीय लोगों को काम पर रखा गया है।
उन्होंने बताया कि गौशाला में साल में तीन बार मिट्टी भरी जाती है और गायों के हरे-पौष्टिक चारे के लिए, 30 बीघा जमीन पर जैविक चारे की खेती की जाती है। वह कहते हैं कि दूध निकालने से पहले, गायों के बछड़ों का पेट भरा जाता है।
क्या-क्या उत्पाद बनता है ‘हरिबा डेयरी फार्म’ में
मेहुलभाई से जब पूछा गया कि उनके फार्म में क्या-क्या उत्पाद बनते हैं, तो उन्होंने बताया, “शुरू में हमारा कोई ऐसा इरादा नहीं था कि हम बिक्री के उद्देश्य से किसी अन्य उत्पाद को भी बनाएंगे। लेकिन हम धीरे-धीरे घी बनाने लगे। तभी एक करीबी ने अपनी कंपनी के साथियों को दीवाली गिफ्ट देने के मकसद से घी के साथ-साथ मिठाई भी मांगी। मिठाई को हमने खजूर और पिस्ते से बनाया। फिर, धीरे-धीरे अड़दिया पाक, मोहनथाल जैसी कुछ मिठाइयां बनाने और बेचने लगे।”
उत्पादों को लेकर उनके ग्राहक रमेश सवानी कहते हैं, “पहले हम दूसरी कंपनियों के उत्पादों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन जब हमने पहली बार हरिबा के उत्पादों को चखा, तो हमें यह काफी पसंद आया। स्वाद और क्वालिटी, दोनों में इसका कोई जवाब नहीं। मैं खुद भी उनके फार्म पर गया हूं और देखा कि वहां गायों की देखभाल कैसे होती है। उनकी गायें काफी स्वस्थ होती है। यही कारण है कि उनके दूध से बने उत्पाद भी बेहतरीन होते हैं।”
उनकी एक अन्य ग्राहक ख्याति त्रिवेदी कहती हैं, “मुझे हरिबा का घी काफी पसंद है। वे न सिर्फ ग्राहकों को बेहतरीन क्वालिटी की उत्पाद देते हैं, बल्कि हमेशा समय पर डिलीवरी भी करते हैं।”
लोगों के सामने एक उदाहरण
मेहुलभाई बताते हैं कि सूरत में उनकी एक टेक्सटाइल कंपनी है। उनका बिजनेस सिंगापुर और कनाडा में भी चल रहा है। टेक्सटाइल उनका मुख्य बिजनेस है, इसलिए वह डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) में ज्यादा आर्थिक फायदे के बारे में नहीं सोचते हैं।
मेहुलभाई आस-पास के किसानों के सामने डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) का एक ऐसा उदाहरण पेश करना चाहते हैं, जिससे उनकी आजीविका का स्तर ऊंचा हो। अपनी पहुंच को आसान बनाने के लिए उन्होंने एक वेबसाइट भी लॉन्च की है।
होती है बिजली की समस्या
मेहुलभाई का डेयरी फार्म गांव से सिर्फ 300 मीटर की दूरी पर है, लेकिन उन्हें अभी तक ग्राम ज्योति योजना के तहत बिजली का लाभ नहीं मिला है। वह फिलहाल खेती के लिए अलग से मिलने वाली बिजली पर निर्भर हैं, जो दिन में कुछ समय के लिए ही मिलती है। एक बार आंधी-तूफान आने के बाद, गांवों में बिजली तो तुरंत मिल गई, लेकिन खेतों के लिए 45 दिनों बिजली नहीं आई। जिससे उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
गांव के 80 फीसदी परिवारों को डेयरी फार्म से पानी मिलता है
मेहुलभाई बताते हैं कि उनके गांव में पानी की काफी समस्या है। डेयरी फार्म को शुरू करने के दौरान मैंने एक बोरवेल बनाया, जिसमें खेती योग्य पानी आता था। जब किसानों को इसके बारे में पता चला, तो वे पानी के लिए आने लगे।
किसानों की जरूरतों को देख मेहुलभाई ने अपनी खर्च पर 25000 लीटर की क्षमता का एक टंकी बनवा दिया और उसे फार्म के बाहर नल से जोड़ दिया। अब लोग आसान से पानी भर कर ले जा सकते थे।
पारंपरिक तरीके से बनाया जाता है घी
हरिबा डेयरी फार्म में घी को बिल्कुल पारंपरिक तरीके से बनाया जाता है। इसके लिए पहले दूध को बिना गर्म किए ही, मक्खन निकाल लिया जाता है। फिर, स्टील के बर्तन में रखा जाता है। बर्तन का निचला हिस्सा तांबे का बना होता है। फिर से, गोबर या लकड़ी के जलावन पर धीमी आंच पर गर्म कर, घी बनाया जाता है।
पशुपालकों के लिए एक को-ऑपरेटिव मॉडल बनाने की चाहत
मेहुलभाई अंत में कहते हैं, “मैं किसानों और पशुपालकों के लिए कुछ ठोस करना चाहता हूं। मैं उनकी आमदनी को बढ़ाने के लिए, अपने दोस्तों की मदद से अमूल कंपनी की तर्ज पर एक को-ऑपरेटिव मॉडल बनाना चाहता हूं। इसकी शुरुआत जल्द ही होगी।”
फिलहाल उनके फार्म में बनी घी 500 से 1800 रुपए किलो, अड़दिया पाक 700 रुपए किलो और ड्राई फ्रूट पंच 1000 रुपए किलो हैं। यदि आप उनके उत्पादों के बारे में अधिक जानना या खरीदना चाहते हैं, तो आप उनकी वेबसाइट पर जा सकते हैं।
मूल लेख – किशन दवे
संपादन- जी एन झा
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