Site icon The Better India – Hindi

उत्तराखंड किसान: खुबानी, मशरूम की खेती और प्रोसेसिंग से सालाना टर्नओवर हुआ रु. 25 लाख

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में हिमरोल गाँव के रहने वाले 51 वर्षीय किसान, भरत सिंह राणा, लगभग 30 वर्षों से खेती कर रहे हैं। मात्र 8वीं कक्षा तक पढ़े इस किसान को आज न सिर्फ उत्तराखंड में, बल्कि दूसरे राज्यों में भी अपनी सफलता के लिए जाना जा रहा है। इसकी वजह हैं, खेती में उनके नये-नये  प्रयोग। इन प्रयोगों के चलते, भरत सिंह राणा अब सिर्फ एक किसान नहीं बल्कि, एक सफल उद्यमी भी हैं। 

वह अपने खेतों में होने वाली उपज को प्रोसेस कर उत्पाद बना रहे हैं। उनके ये उत्पाद, भारत के लगभग सभी राज्यों में ग्राहकों तक पहुँच रहे हैं। प्रोसेसिंग के ज़रिए उन्होंने न सिर्फ अपनी, बल्कि अपने गाँव के और भी बहुत से किसानों की आय बढ़ाने में मदद की है। द बेटर इंडिया से उन्होंने अपने इस सफर के बारे में बातचीत की। 

उन्होंने बताया, “हम पहाड़ों में रहते हैं, और हमारे लिए बाज़ारों तक पहुँचना आसान नहीं है। इस वजह से, पहले हमारी काफी उपज बर्बाद हो जाती थी। खासतौर पर, फल तथा सब्ज़ियां। अगर इन्हें समय पर बाज़ार तक न पहुँचाया जाए, तो ये खराब होने लगते हैं, और फिर किसी काम के नहीं रहते।” उपज की बर्बादी की समस्या, भरत सिंह और दूसरे किसान भी लगातार झेल रहे थे। लेकिन साल 1994 में उत्तरकाशी जिले में ‘हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर‘ के सचिव, डॉ. महेंद्र सिंह कुंवर ने काम शुरू किया। 

उन्होंने आगे बताया, “डॉ. कुंवर जब हमारे यहाँ आए और उन्होंने देखा कि कैसे हम किसान, उपज की बर्बादी से परेशान हैं, तो उन्होंने हमें प्रोसेसिंग का रास्ता सुझाया। उन्होंने अलग-अलग जगह, प्रोसेसिंग पर ट्रेनिंग प्रोग्राम कराए। प्रोसेसिंग की प्रेरणा हमें उनसे ही मिली और मैंने ठान लिया कि हम अपनी उपज को अपना  ब्रांड बनाएंगे।” 

Bharat Singh Rana, Farmer

हालांकि, भरत सिंह को अपनी प्रोसेसिंग, और पैकेजिंग यूनिट सेट-अप करने में कई साल लगे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, और छोटे स्तर पर अपना काम शुरू कर आगे बढ़ते रहे। साल 2007 में उन्होंने अपना ब्रांड, ‘यमुना घाटी उत्पाद’ (यमुना वैली प्रोडक्ट्स) लॉन्च किया। इसके ज़रिए, वह आज खुबानी, आलूबुखारा, और मशरूम आदि के उत्पाद जैसे जैम, चटनी, अचार, तेल और स्क्वैश बनाकर बेच रहे हैं। इन उत्पादों के अलावा, वह तिलहन, दलहन और लाल चावल जैसे पौष्टिक अनाज भी पैक करके सीधा ग्राहकों तक पहुँचा रहे हैं। 

भरत सिंह बताते हैं, “मेरे परिवार के पास कुल 180 नाली (ज़मीन की माप/इकाई) ज़मीन है, जो लगभग साढ़े तीन हेक्टेयर होगी। इसमें हम फलों के साथ-साथ मशरूम, दालें, तिल और अनाज उगाते हैं। साथ ही, थोड़ी-बहुत मौसमी सब्ज़ियों की खेती भी हम कर रहे हैं। लगभग 2 नाली ज़मीन पर हमने अपनी प्रोसेसिंग, और पैकेजिंग यूनिट लगाई है। यह ज़मीन सड़क के किनारे है, इसलिए हमने इसे प्रोसेसिंग यूनिट के लिए तैयार किया है। प्रोसेसिंग यूनिट के साथ ही, हमारा एक स्टोर भी है, जहां से हमारे गाँव और आसपास के इलाकों के लोग हमसे उत्पाद खरीद सकते हैं।”

कैसे करते हैं प्रोसेसिंग:

भरत सिंह बताते हैं कि तिलहन, दलहन और अनाजों की अच्छे से सफाई करके, उनकी ग्रेडिंग की जाती है। ग्रेडिंग के बाद, इन्हें अलग-अलग मात्रा के हिसाब से पैकेट्स में पैक किया जाता है। कुछ अनाज जैसे रागी, बाजरा आदि से पौष्टिक आटा भी बनाया जाता है।  

Pulses

बात अगर फलों की करें तो, फलों से उनके यहां कई तरह के उत्पाद बनते हैं। उन्होंने खुबानी की प्रोसेसिंग के बारे में बात करते हुए बताया कि उनके यहां खुबानी को ‘चुल्लू’ कहा जाता है। उत्तरकाशी के पूरे इलाके में खुबानी काफी ज़्यादा मात्रा में उपजते हैं। उन्होंने कहा, “पहले हमारे यहां चुल्लू (खुबानी) बहुत ज़्यादा मात्रा में बर्बाद होता था। लेकिन अब प्रोसेसिंग से हम इस फल का हर तरह से इस्तेमाल कर  रहे हैं।” 

खुबानी से भरत सिंह के यहां तेल, अचार, पल्प,और स्क्वैश जैसे उत्पाद बनाए जाते हैं। खुबानी का तेल बनाने के लिए, इसके बीजों की ज़रूरत होती है। सबसे पहले फलों से इनकी गिरी, यानी की बीज निकाले जाते हैं। इन बीजों को साफ़ करके, इन्हें धूप में सुखाया जाता है। वह कहते हैं कि तेल बनाने के लिए बीजों में नमी बिलकुल नहीं होनी चाहिए। इसलिए, इन्हें अच्छी तरह से सुखा कर ही कोल्हू में भेजा जाता है। कोल्हू में डालकर, इनका तेल निकाला जाता है। पहली बार में जो तेल मिलता है, उसमें बहुत-सी अशुद्धियाँ होतीं हैं। 

इन अशुद्धियों को दूर करने के लिए, तेल को अन्य कई फ़िल्टर मशीन से होकर गुजरना पड़ता है। एक बार जब तेल फ़िल्टर हो जाता है, तो इसे बोतलों में पैक किया जाता है। इन बोतलों पर वह अपने ब्रांड का लेबल लगाते हैं, और तेल बाज़ारों में जाने के लिए तैयार हो जाता  है। 

Drying out Apricots

भरत सिंह कहते हैं कि, वह हर साल 5 से 6 टन खुबानी का तेल बनाते हैं। तेल बनाने के बाद, बीज का जो अपशिष्ट बच जाता है, उससे खेतों के लिए खाद या फिर मवेशियों के लिए खली बना दी जाती है। इस तरह, प्रोसेसिंग के बाद कुछ भी अपशिष्ट नहीं बचता है। बीज निकालने के बाद बचे, खुबानी के फल से वह अचार, स्क्वैश और अन्य उत्पाद बनाते हैं। 

इसी प्रकार से, वह अन्य फलों की भी प्रोसेसिंग करके, उत्पादों को बाज़ारों तक पहुंचा रहे हैं। 

फलों के उत्पादों के अलावा, उन्होंने अपनी एक खास ‘हर्बल चाय’ भी बनाई है। इस चाय को बनाने के लिए, वह अपने खेतों में प्राकृतिक तरीकों से उगाए गए औषधीय फसलों, फूलों और मसालों का इस्तेमाल करते हैं। हर साल वह, लगभग एक टन हर्बल चाय की बिक्री कर रहे हैं। इस हर्बल चाय को बनाने के लिए, वह लेमन ग्रास, तेज पत्ता, तुलसी, स्टीविया, रोजमेरी, और गुलाब की पत्तियों जैसी सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं। उनकी यह चाय सिर्फ पत्तियों के मिश्रण से बनती है, और काफी ज़्यादा पोषण से भरपूर होती है। 

Herbal Tea

दूसरों को मिला रोज़गार का ज़रिया:

भरत सिंह राणा का उद्देश्य, सिर्फ खुद आगे बढ़ना नहीं है, बल्कि वह अपने गाँव और पहाड़ों को आगे बढ़ाना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने अपने साथ, अपने इलाके के और भी किसानों और महिला समूहों को जोड़ा हुआ है। वह कहते हैं, “फसल की बर्बादी या बाज़ारों तक उपज को न पहुंचा पाना, सिर्फ मेरी परेशानी नहीं थी। इसलिए, जब मुझे एक राह मिली, तो मैंने दूसरे किसानों को भी जोड़ा। मैं हमेशा किसानों को प्रोसेसिंग से जुड़ने की प्रेरणा देता हूँ। लेकिन बहुत-से किसान ऐसे भी हैं, जिनके पास प्रोसेसिंग करने के साधन नहीं हैं। ऐसे में, हम उनकी उपज खरीद लेते हैं, और अपने यहां प्रोसेसिंग करते हैं।”

इससे छोटे किसानों को, ‘बाज़ार’ के लिए भटकना नहीं पड़ता है। उनकी फसल खराब हो, उससे पहले ही, भरत सिंह के यहां पहुंचा दी जाती है। किसानों को उनकी उपज का अच्छा दाम मिल जाता है, और भरत सिंह, अपने ग्राहकों के लिए उत्पादों की आपूर्ति कर पाते हैं। 

Women working at their center

किसानों के अलावा, उन्होंने अपने गाँव और आस-पास के इलाकों की महिलाओं को भी आजीविका का साधन दिया है। वह कहते हैं, “हम खेती भी कर रहे हैं, और फिर अपने उत्पाद बनाकर बेच रहे हैं। यह प्रक्रिया काफी लम्बी है, और हमारा सभी काम सुचारु रूप से हो, इसके लिए हमें लोगों की ज़रूरत होती है। ये सभी लोग हमारे अपने इलाकों से हैं। इन लोगों को अपने घरों के पास रोज़गार मिल रहा है, और हमें अच्छे कर्मचारी। हम किसानों, महिलाओं और युवाओं को मिलाकर, लगभग डेढ़ हज़ार लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर आजीविका दे रहे हैं।”

भरत सिंह राणा का अपना बेटा भी उनके काम को आगे बढ़ा रहा है। उनके बेटे, जगमोहन राणा एमए-बीएड हैं। अक्सर पढ़ने-लिखने के बाद, बच्चे बाहर बड़े शहरों में नौकरी करने चले जाते हैं। लेकिन जगमोहन राणा ने ऐसा नहीं किया। 

जगमोहन कहते हैं, “मैंने बचपन से अपने पापा को दिन-रात मेहनत करते हुए देखा था। उन्होंने हर दिन नए-नए प्रयोग किए, और खेती में एक मुक़ाम हासिल किया। उन्होंने मुझे पढ़ाया- लिखाया, और नौकरी करने का भी रास्ता मेरे पास था। लेकिन मैंने सोचा कि, अगर मैं नौकरी करूँगा, तो वह सिर्फ मेरे लिए होगी। लेकिन पापा की राह पर आगे बढ़ने से हम अपने साथ-साथ, और भी लोगों का घर आबाद कर सकते हैं। इसलिए मैंने उनके काम को ही आगे बढ़ाने की ठानी।”

Jagmohan Rana

लॉकडाउन में अपनाया ऑनलाइन का रास्ता:

मार्केटिंग के बारे में बात करते हुए, जगमोहन बताते हैं कि, पहले उनके उत्पाद ज़्यादातर स्टोर, हाट बाजार और कृषि मेलों के ज़रिए बिकते थे। कुछ ऐसे ग्राहक हैं, जो उनसे सीधा जुड़े हुए हैं। लेकिन कोरोना माहमारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान, लगभग 3 महीने के लिए उनका काम बिल्कुल बंद पड़ गया था। लॉकडाउन के बाद, उनकी प्रोसेसिंग यूनिट में काम तो शुरू हो गया, लेकिन बाज़ार की समस्या आने लगी। क्योंकि, साल भर लगते रहने वाले हाट बाजार और कृषि मेलों के आयोजनों पर रोक लग गई थी। 

उन्होंने आगे कहा, “ऐसे में, हमने सोशल मीडिया का सहारा लिया। ‘लोकल फॉर वोकल’अभियान के तहत, अपने उत्पादों का ऑनलाइन प्रचार किया। यह तरकीब काम भी आई और अब हम अपने राज्य के बाहर भी, बहुत से ग्राहकों से सीधा जुड़ रहे हैं। हमारे उत्पाद, अब भारत के लगभग सभी राज्यों तक जा रहे हैं। कुल कितने ग्राहक हैं, यह तो हम नहीं बता सकते क्योंकि अलग-अलग स्टोर पर भी उत्पाद जाते हैं। अब वहां कितने लोग हमारे उत्पाद खरीदते हैं, यह कहना मुश्किल है। अच्छी बात यह है कि, हमारे उत्पादों की मांग लगातार बनी हुई है।” 

He has won Awards as well

भरत सिंह कहते हैं कि, अपनी खेती और प्रोसेसिंग से उनका सालाना टर्नओवर 25 लाख रुपए के आस-पास होता है। किसी साल थोड़ा ज़्यादा हो जाता है, तो किसी साल थोड़ा कम। अपनी सभी लागत का हिसाब करके, साल भर में वह 10 लाख रुपए से ज़्यादा की बचत कर पाते हैं। 

जगमोहन ने अंत में कहा, “अपने काम के साथ-साथ, हम किसानों, और सीखने के इच्छुक युवाओं को निःशुल्क प्रशिक्षण भी देते हैं। जो कुछ भी हमने कृषि विश्वविद्यालयों या कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिकों से सीखा है, वह सभी ज्ञान हम दूसरे लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं। इसलिए अगर हमें कोई फ़ोन करके भी कुछ पूछता है, तो हम हमेशा उनकी मदद करते हैं।” 

यक़ीनन, भरत सिंह राणा और उनके बेटे का काम व सोच सराहनीय है। अगर आप कृषि या प्रोसेसिंग के बारे में किसी भी तरह की जानकारी उनसे लेना चाहते हैं, तो उन्हें 8126113938 पर कॉल कर सकते हैं।

संपादन – प्रीति महावर

यह भी पढ़ें: 93 की उम्र में भी जैविक खेती कर खुद उगाते हैं अपना खाना, बाजार से खरीदते हैं सिर्फ नमक

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Uttarakhand Farmer, Uttarakhand Farmer, Uttarakhand Farmer, Uttarakhand Farmer, Uttarakhand Farmer, Uttarakhand Farmer, Uttarakhand Farmer

Exit mobile version