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पिता की घाटे की खेती को बदला फायदे के बिज़नेस में, खेत से ही बेचते हैं 22 तरह के प्रोडक्ट्स

Mahesh Patel, Farmer From Gujarat running Turmeric Powder Making Business

क्या आपको पता है, विदेशों में बिकने वाले ज्यादातर ऑर्गेनिक अनाज और मसाले ‘मेड इन इंडिया’ होते हैं? लोगों के घरों तक पहुंचने से पहले, ये सारे प्रोडक्ट्स कई अलग-अलग चरणों से होकर गुजरते हैं। लेकिन ज़रा सोचिए, कितना अच्छा हो अगर ये ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स सीधा खेत से हमारे घर तक पहुंचे? यह न सिर्फ ग्राहकों के लिए अच्छा होगा, बल्कि किसान भी इससे अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।  

इसी सोच के साथ, सूरत (गुजरात) के ओलपाड तालुका के किसान महेश पटेल, पिछले 26 से सालों से अपनी फसल में वैल्यू एडिशन करके इलाके के कई किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं। इतना ही नहीं, वह आज सीधा अपने खेत से ही 22 तरह के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स बेच रहे हैं। वह गुजरात के कई कृषि केंद्रों में किसानों को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। महेश चना, तुवर, मौसमी सब्जियां और फलों की खेती करते हैं, लेकिन मुख्य रूप से वह हल्दी का उत्पादन कर रहे हैं।  द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहते हैं, “सब्जियों को छोड़कर, हम तकरीबन अपनी सभी फसलों में वैल्यू एडिशन का काम कर रहे हैं और ये सारे काम हम परिवारवाले ही मिलकर कर रहे हैं।” 

पारम्परिक तरीकों से हटकर शुरू किए नए प्रयोग  

किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले महेश ने जब पिता का साथ देने का फैसला किया, तब वह केमिकल का उपयोग करके ही खेती किया करते थे। उस दौरान उनकी मात्र सात बीघा जमीन हुआ करती थी। वहीं, अपनी फसल बेचने के लिए उन्हें मार्केट तक जाना पड़ता था और मुनाफा ना के बराबर होता था। लेकिन कभी-कभी एक छोटी सी घटना से भी बड़े बदलाव आ जाते हैं। ऐसा ही कुछ महेश के साथ भी हुआ। 

महेश कहते हैं, “एक दिन जब मेरे खेत में भिंडी की फसलों पर कीटनाशक के छिड़काव का काम चल रहा था। उस दौरान खेत में जाने से मुझे अजीब सी तकलीफ होने लगी। बस तभी मुझे लगा कि इस तरह की खेती न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य के लिए, बल्कि जमीन के लिए भी नुकसानदायक है।” 

बस फिर क्या था, उन्होंने अलग-अलग जगह जाकर ऑर्गेनिक खेती के तरीके सीखे। उन्होंने साल 1995 से ऑर्गेनिक खेती करना शुरू किया और अपने गांव के पहले ऑर्गेनिक किसान बन गए। हालांकि, उस समय गांव के किसानों को उनकी बात समझ नहीं आती थी और कई लोग तो उन्हें बेवकूफ भी समझते थे।  

पूरी तरह से गाय आधारित ऑर्गेनिक खेती करने के लिए, उन्होंने अपने फार्म पर चार गायें भी रखी हैं। गौमूत्र और गोबर आदि का उपयोग कीटनाशक और खाद आदि बनाने में किया जाता है।  

वैल्यू एडिशन से बदली खेती की तस्वीर  

इसी तरह उन्होंने वैल्यू एडीशन की भी शुरुआत की। जब वह पहली बार कच्ची हल्दी लेकर मंडी में बेचने गए, तो मुनाफा तो दूर, बीज आदि के खर्च के पैसे भी नहीं मिले। इसके बाद, उन्होंने आनंद (गुजरात) में अपने दोस्त से हल्दी पाउडर बनाना सीखा और आज वह हल्दी के पाउडर से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।  

वह फ़िलहाल एक बीघा से 50 हजार रूपये का मुनाफा कमा रहे हैं। फिलहाल, वह अपने 7 बीघा खेत में हल्दी की खेती कर रहे हैं। 
वह कहते हैं, “हम 20 किलो कच्ची हल्दी से तीन किलो पाउडर बनाते हैं, जिसे हम तकरीबन 300 रुपये प्रति किलो बेच रहे हैं। वहीं कच्ची हल्दी के लिए हमें एक किलो के 20 रुपये भी नहीं मिल पाते थे।”  

उन्होंने बताया, “पिछले साल 30 टन हल्दी का उत्पादन हुआ था, जबकि इस साल उन्हें तक़रीबन 40 टन हल्दी के उत्पादन की उम्मीद है।  

आज उनके पास छोटे-छोटे कई खेत मिलाकर तक़रीबन 40 बीघा खेत हैं, जिसमें वह अलग-अलग फसल उगाते हैं। हल्दी के अलावा, वह गन्ने और अमरूद की खेती भी करते हैं। उनके पर गन्ने से ऑर्गेनिक गुड़ बनाने का काम भी होता है। वहीं अमरुद को रॉ और जूस दोनों तरीकों से बेचा जाता है।  

महेश बताते हैं कि लोग हमारे बारे में जानने के बाद, खेत पर आकर हमारे प्रोडक्ट्स ले जाते हैं। लेकिन हम जल्द ही इसकी मार्केटिंग का काम भी करना चाहते हैं। आने वाले समय में उनका बड़ा बेटा इन ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स के लिए वेबसाइट बनाने और प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन उपलब्ध कराने के लिए काम करने वाला है।  

महेश कहते हैं, “पिछले साल हमने 500 किलो हल्दी पाउडर विदेशों तक भेजा था। सूरत और इसके आस-पास रहने वाले कई NRI हमारे पास से ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स ले जाते हैं।”  

खेती में किए गए उनके प्रयोगों के कारण, उन्हें कई अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं।   

सबसे पहली बार उन्हें साल 2011 में  जिले के सबसे प्रगतिशील किसान का अवॉर्ड मिला था। जबकि इसी साल उन्हें गुजरात चेम्बर ऑफ़ कॉमर्स की ओर से धरती पुत्र का अवॉर्ड भी मिला है।  

यानी यह कहना गलत नहीं होगा कि महेश पटेल सही मायनों में ऑर्गेनिक फूड, खेत से घर तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। आप उनसे बात करने के लिए उन्हें 94274 25310 पर सम्पर्क कर सकते हैं।   

संपादनः अर्चना दुबे

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