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नहीं मिली नौकरी तो जैविक तरीके से शुरू की हल्दी की खेती, कई देशों तक पहुंच रहा है उत्पाद

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नहीं मिली नौकरी तो जैविक तरीके से शुरू की हल्दी की खेती, कई देशों तक पहुंच रहा है उत्पाद

यदविंदर सिंह, अमृतसर से करीब 20 किलोमीटर दूर बसे चोगावान साधपुर गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता करमजीत सिंह, पंजाब शिक्षा विभाग में नौकरी करते थे। लेकिन उन्हें खेती से काफी लगाव था और उनका अक्सर स्थानीय पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी आना-जाना लगा रहता था। 

विश्वविद्यालय में हर साल किसान मेला लगता था और यदविंदर अपने पिता के साथ हमेशा मेले में जाते थे। इससे यदविंदर को भी बचपन से ही खेती से एक खास तरह का लगाव हो गया। 

हालांकि, बड़े होने के बाद यदविंदर ने कई डिग्रियां हासिल की और सरकारी नौकरी के लिए काफी प्रयास किया। लेकिन कोई उम्मीद न देख, उन्होंने खेती की राह चुनी और बीते 14 वर्षों में इलाके में अपनी एक खास पहचान बनाई है।

अपने इस सफर के बारे में यदविंदर ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे पास कम्प्यूटर मेंटेनेंस, बीएड, मास्टर्स ऑफ मैथमेटिक्स जैसी कई डिग्रियां हैं। मैंने कई साल तक सरकारी नौकरी की तैयारी की। लेकिन कोई उम्मीद न देखकर, मैंने 2008 में खेती शुरू कर दी।”

यदविंदर सिंह

वैसे यदविंदर पढ़ाई के दौरान ही इस बात को लेकर मन बना चुके थे कि यदि सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी तो वह खेती-बाड़ी को ही अपना करियर बनाएंगे। वह खेती में नया प्रयोग करना चाहते थे। उनका मानना है कि यदि किसान अपने खेतों में ईमानदारी से मेहनत करता है और नई तकनीकों को अपनाता है तो इस पेशे में फायदे ही फायदे हैं।

यदविंदर के पास फिलहाल आठ एकड़ जमीन है और वह परंपरागत फसलों के बजाय, अपनी पूरी जमीन पर न सिर्फ जैविक तरीके से हल्दी की खेती करते हैं, बल्कि उसका पाउडर और अचार भी बनाते हैं।

अपने उत्पादों को बेचने के लिए उन्होंने अपने खेत में ही ‘माझा फूड्स’ नाम से एक आउटलेट को शुरू किया है। वैसे तो उनका आउटलेट काफी छोटा है, लेकिन दायरा पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों के अलावा अमेरिका, इटली, कनाडा, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी है।

Turmeric Farming Business Plan की ओर क्यों किया रुख

यदविंदर के पिता नौकरी करने के साथ ही खेती भी कर रहे थे। फिर, 2008 में जब यदविंदर ने उनसे खेती करने की इच्छा जताई तो वह काफी खुश हुए और उन्होंने अपने बेटे को सुझाव दिया कि यदि खेती से फायदा कमाना है, तो धान-गेहूं जैसी फसलों से हटकर कुछ करना होगा।

इसके बाद, यदविंदर ने इंटरनेट पर जानकारियों को इकठ्ठा करना शुरू कर दिया। फिर, पंजाब कृषि विश्वाविद्यालय में ही एक किसान मेले में उन्हें हल्दी के बारे में पता चला।

अपने आउटलेट पर परिवार के साथ यदविंदर

वह कहते हैं, “उस समय पंजाब में हल्दी की पेशेवर तौर पर खेती नहीं होती थी। इसके बारे में हमें ज्यादा पता भी नहीं था। फिर भी, हमने अपनी तीन एकड़ जमीन पर इसकी खेती शुरू कर दी। पहली बार में फसल काफी अच्छी हुई और हमें इसे बेचने में भी कोई दिक्कत नहीं आई। क्योंकि, उपज को देखकर सभी प्रभावित थे और हमारे सभी उत्पाद बीज के तौर पर ही बिक गए।”

यदविंदर ने पहले साल करीब 1.5 लाख रुपए खर्च किए थे और उन्हें आमदनी 3 लाख की हुई। इससे वह काफी उत्साहित हुए और अगले साल उन्होंने अपनी सभी आठ एकड़ जमीन पर  हल्दी की खेती शुरू कर दी। लेकिन यदविंदर को यह काफी महंगा पड़ गया।

वह कहते हैं, “दूसरी बार में हमारी उपज और भी अच्छी हुई। लेकिन हमें उसे बेचने में काफी दिक्कत आ रही थी। हमें लगा कि शायद हमारा उत्पाद यूं ही बर्बाद हो जाएगा। लेकिन तभी हमें आइडिया आया कि क्यों न उसे प्रीजर्व और प्रोसेस किया जाए, ताकि रिस्क कम हो और फायदा अधिक।”

इसी सोच के तहत, यदविंदर ने एक हल्दी प्रोसेसिंग यूनिट लगाई और उसका अचार और पाउडर बनाना शुरू कर दिया।

Turmeric Farming से Profit

फिलहाल उनके पास प्रति एकड़ 15-16 क्विंटल उपज होती है और वह अपने 95 फीसदी उत्पाद का वैल्यू एडिशन करते हैं। जिससे उनकी कमाई ढाई से तीन गुनी अधिक होती है।

यदविंदर हल्दी की खेती में प्रति एकड़ करीब एक लाख रुपए खर्च करते हैं। उनका कहना है कि यदि हल्दी को वह सीधे मंडी में बेचेंगे, तो करीब 1.5 लाख की कमाई होगी। लेकिन वहीं यदि वैल्यू एडिशन किया जाए, तो किसान को 2.5 से 3 लाख की कमाई आसानी से हो जाती है।

यदविंदर के खेत

वहीं, धान और गेहूं जैसे फसलों से हल्दी की तुलना को लेकर वह कहते हैं कि धान और गेहूं जैसी परंपरागत फसलों से एक साल में प्रति एकड़ करीब 50 हजार का फायदा होता है। लेकिन इसमें 1.5 से 2 लाख का शुद्ध फायदा होता है। 

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हालांकि, हल्दी की खेती में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसे तैयार होने में अमूमन आठ-नौ महीने लगते हैं। इस वजह से किसानों को बीच के महीने में पैसों की थोड़ी परेशानी होती है।

यदविंदर, खेती में इसी फासले को मिटाने के लिए बीच-बीच में मक्का और कई दलहनों की भी खेती करते हैं। क्रॉप रोटेशन से मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है।

कैसे उगाते हैं ऑर्गनिक हल्दी

शुरुआती तीन-चार वर्षों तक यदविंदर हल्दी की खेती के लिए केमिकल का ही इस्तेमाल करते थे। लेकिन फिर उन्हें अहसास हुआ कि लोग हल्दी को बीमारियों से दूर रहने के लिए एक औषधी की तरह उपयोग करते हैं, तो यह शुद्ध होनी चाहिए। इस वजह से उन्होंने केमिकल को छोड़ जैविक तरीकों को अपनाना शुरू किया।

वह हल्दी की खेती के लिए गोबर की खाद और पराली का इस्तेमाल करते हैं। उनका हल्दी उपजाने का तरीका भी कुछ खास है। वह खेत में हल्दी लगाने के बाद, उस पर पराली की करीब छह इंच मोटी तह बिछा देते हैं। इससे ऊपज केमिकल से भी अच्छी होती है और उखाड़ना काफी आसान होता है। जिससे मजदूरी की बचत होती है।

वह कहते हैं कि यदि किसान को जैविक खाद पर 20 हजार रुपए खर्च हो रहे हैं, तो इससे 40 हजार की उपज आसानी से हो सकती है।

वहीं, यदविंदर ने सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपनाया है, जिससे लगभग आधी पानी की बचत होती है। इतना ही नहीं, सरकारी बिजली पर निर्भरता कम करने के लिए उन्होंने अपने खेत में 5 किलोवाट का एक सोलर पैनल भी लगाया है।

यदविंदर की हल्दी प्रोसेसिंग यूनिट

क्या है सबसे बड़ी मजबूती

यदविंदर कहते हैं, “बाजार में मिलने वाले हल्दी से कंपनियां तेल निकाल लेती हैं। जिससे उसमें न कोई गुण होता है और न ही कोई स्वाद। लेकिन हम ऐसा कुछ नहीं करते हैं, जिससे हल्दी की स्वाद, गुण और महक बनी रहती है। यह हमारी सबसे बड़ी मजबूती है और ग्राहक इसलिए हमें पसंद करते हैं।”

वहीं, यदविंदर हल्दी का अचार बनाने के लिए, उसे सबसे पहले स्टीम बॉयल करते हैं और उसमें नमक, सरसों तेल, काली मिर्च, जीरा, जैसे मसाले डालते हैं। वह कहते हैं कि उनके आचार बनाने की प्रक्रिया काफी आसान है और एक हफ्ते में यह खाने लायक हो जाता है।

वह अपने अचार को 500 ग्राम और एक किलो के पैक में बेचते हैं, जिसकी कीमत 200 से 400 रुपए के बीच होती है। वह हर महीने करीब 5 क्विंटल हल्दी का कारोबार करते हैं, जिससे उन्हें एक लाख की कमाई होती है।

यदविंदर दावे के साथ कहते हैं कि उनके खेत की हल्दी अपने जौविक गुणों के कारण सबसे अलग है। यही वजह है कि उन्हें अपने उत्पादों को बेचने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होती है और सभी उत्पाद आउटलेट से ही बिक जाते हैं।

उन्होंने अपने काम को संभालने के लिए गांव के करीब 10 जरूरतमंदों को रोजगार भी दिया है। इसके अलावा, वह जरूरत पड़ने पर 25 से 30 लोगों को काम पर रखते हैं। 

माझा फूड्स के उत्पाद

यदविंदर की सफलता ने गांव के दूसरे युवाओं को भी प्रेरित किया है और वे खेती से जुड़ रहे हैं। 

जशन दीप सिंह एक ऐसे ही किसान हैं। 30 वर्षीय जशन कहते हैं, “स्थानीय खालसा कॉलेज से 2014 में एमए बीएड करने के बाद, मैं नौकरी की तैयारी कर रहा था। लेकिन यदविंदर से प्रभावित होकर मैंने नौकरी की चाह छोड़, खेती की राह चुनी। हमारे पास 10 एकड़ जमीन है। जिस पर धान और गेहूं जैसी परंपरागत फसलों की खेती होती थी। लेकिन यदविंदर की सलाह के बाद, मैंने गन्ने की खेती शुरू की और कुछ समय पहले अपनी तीन एकड़ जमीन पर नर्सरी भी खोली। यदविंदर की तरह ही, मुझे अपने उत्पादों को बेचने के लिए कहीं जाने के जरूरत नहीं है और मैं अपने खेत में बने आउटलेट से हर दिन ढाई क्विंटल से अधिक गुड़ बेचता हूं।”

वहीं, यदविंदर अंत में कहते हैं कि वह अपने ‘माझा फूड्स’ को एक ब्रांड का रूप देना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उनका पांच साल का बेटा भी आगे चलकर किसान ही बने और खेती को एक नई ऊंचाई दे।

आप यदविंदर से यहां संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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