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सेना से रिटायर होकर शुरू की खेती, कर्नल से बन गए ‘द टर्मरिक मैन ऑफ हिमाचल’

“साल 2007 में भारतीय सेना से रिटायर होने के बाद जब मैं अपने गाँव लौटा, तो देखा कि गाँव के ज्यादातर खेत बंजर पड़े हैं। गाँव के युवा शिक्षा तथा रोजगार के लिए, शहरों में पलायन कर रहे हैं। खेती के प्रति लोगों की घटती दिलचस्पी को देख, मैंने इस ओर कुछ करने का निश्चय किया। जिससे लोग गाँव में रहकर ही, अपनी आजीविका अच्छे से चला सकें।”, यह कहना है रिटायर्ड कर्नल प्रकाश चंद राणा का। 

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में सोहरन गाँव के रहने वाले 73 वर्षीय कर्नल पीसी राणा, साल 2012 से जैविक खेती तथा अपनी उपज की प्रोसेसिंग कर रहे हैं। किसानों के बीच उन्हें ‘द टर्मरिक मैन ऑफ़ हिमाचल‘ के नाम से जाना जाता है। क्योंकि, उन्होंने अपने इलाके में हल्दी की खेती को काफी बढ़ावा दिया है। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए, उन्होंने अपने सफर के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें बताई। वह कहते हैं, “रिटायरमेंट के बाद मैंने देश के कई राज्यों की यात्रा की। इस दौरान, मैं बहुत से किसानों से मिला और उनकी खेती के तरीकों को समझा। इसी क्रम में मेरी मुलाकात, आंध्र प्रदेश में चंद्रशेखर आजाद जी से हुई। वह हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग बड़े पैमाने पर करते हैं। उनसे मैंने हल्दी के विशेष गुणों के बारे में जाना। साथ ही, उन्होंने बताया कि फल-सब्जियों को बंदर और जंगली सूअर जैसे जानवरों से नुकसान का खतरा होता है। लेकिन हल्दी को जानवर नहीं खाते हैं, इसलिए इसे उगाना एक बेहतर विकल्प है।” 

रिटायर्ड कर्नल बने जैविक किसान

शुरू की हल्दी की खेती तथा प्रोसेसिंग:

राणा ने साल 2012 में, चंद्र शेखर आजाद से हल्दी की ‘प्रगति’ किस्म के बीज खरीदकर खेती शुरू की। वह बताते हैं कि उन्होंने शुरू से ही ठान लिया था कि वह जैविक तरीकों से खेती करेंगे। इसलिए, उन्होंने अपने खेतों में कभी भी किसी प्रकार के पेस्टिसाइड या रसायनिक उर्वरक का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने कहा, “मैं जब हल्दी पर रिसर्च कर रहा था, तो मुझे पता चला कि हल्दी में ‘करक्युमिन’ (Curcumin) नामक एक मुख्य तत्व होता है, जो हल्दी की गुणवत्ता का आधार है। अगर हल्दी में यह तत्व 4% से ज्यादा है, तो आपको बाजार में इसका अच्छे से अच्छा दाम मिल सकता है। यहाँ तक कि जिस हल्दी में इससे कम करक्युमिन होता है, उसे आप बाहर के देशों में निर्यात भी नहीं कर सकते हैं।” 

इसलिए, राणा ने हल्दी लगाने से पहले अलग-अलग किस्मों का लैब टेस्ट कराया। फिर उन्होंने एक किस्म को चुनकर, खेती की शुरुआत की। वह बताते हैं कि इस किस्म की बुवाई, वह मार्च से जून तक करते हैं और सात महीनों में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पहली बार में, उन्होंने 24 टन हल्दी का उत्पादन लिया और इन्हें हरियाणा, पंजाब और उत्तर-प्रदेश जैसे राज्यों में बेचा। उनसे प्रेरणा लेकर, आसपास के और भी कई किसान उनसे जुड़ने लगे। लेकिन राणा सिर्फ उन्हें ही हल्दी के बीज देते थे, जो सिर्फ जैविक तरीकों से खेती करते थे। कई किसानों ने उनके मार्गदर्शन में हल्दी लगा तो दी, लेकिन वे हल्दी को बाजार में बेचने में असमर्थ थे। 

ऐसे में, राणा ने इन किसानों से उनकी हल्दी खरीदना शुरू कर दी। लेकिन सबसे हल्दी खरीदने से पहले, वह हमेशा हल्दी का लैब टेस्ट कराते हैं। वह कहते हैं, “पहले मुझे भी हल्दी को सही दाम पर बाजार में बेचने के लिए, काफी संघर्ष करना पड़ता था। इसलिए, मैंने इस समस्या का समाधान निकालने के बारे में विचार किया। मैंने कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों से बात की और हल्दी की प्रोसेसिंग करने का फैसला किया।” 

दूसरों को भी देते हैं ट्रेनिंग

राणा कहते हैं कि उन्होंने कच्ची हल्दी का अचार बनाया और फिर इसका पाउडर भी बनाना शुरू किया। हालांकि, पाउडर बनाने के लिए वह हल्दी को गर्म पानी में न तो उबालते हैं और न ही स्टीम करते हैं। उनका कहना है कि ऐसा करने से हल्दी में करक्युमिन की मात्रा कम हो जाती है। इसलिए वह हल्दी को धोने के बाद, इसे काटकर छोटे-छोटे टुकड़े करते हैं। हल्दी के इन टुकड़ों को सोलर ड्रायर में सुखाया जाता है। सूखने के बाद हल्दी को पीसने के लिए, वह पारंपरिक घराट (पानी से चलने वाली चक्की) का इस्तेमाल करते हैं। गुणवत्ता से भरपूर इस हल्दी पाउडर को पैक करके, सीधा ग्राहकों को उपलब्ध कराया जाता है।  

हल्दी की खेती में सफलता पाने के बाद, राणा ने मिर्च, लहसुन और अदरक जैसी फसलों की भी खेती शुरू कर दी। साथ ही, वह मधुमक्खी पालन भी करते हैं। उनके पास 150 से ज्यादा बी बॉक्स हैं, जिनमें वह दो तरह का शहद बनाते हैं – जड़ी-बूटी फ्लेवर शहद और शहतूत फ्लेवर शहद। वह कहते हैं कि मधुमक्खी पालन के लिए, उन्हें अलग-अलग जगह जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। क्योंकि, उनके अपने इलाके में ही ऐसे खेत और बागान मौजूद हैं, जहाँ वह अपने बॉक्स रख सकते हैं। फ़िलहाल वह हल्दी पाउडर के अलावा, पाँच तरह के अचार और दो तरह के शहद तैयार करके ग्राहकों तक पहुँचा रहे हैं। 

उनके बनाये उत्पाद

तैयार किया ‘इंटीग्रेटेड फार्मिंग मॉडल:’ 

राणा ने उनसे जुड़े किसानों तथा युवाओं के लिए एक खास ‘इंटीग्रेटेड फार्मिंग’ मॉडल तैयार किया है। वह बताते हैं कि उनके पास लोग लगातार कुछ न कुछ सीखने या मार्गदर्शन की चाह में आते रहते हैं। इसलिए, मैंने सोचा कि इन लोगों को कोई ऐसा मॉडल तैयार करके दिया जाए, जिससे इन्हें हर महीने आजीविका का साधन मिले। इसलिए, उन्होंने सामान्य खेती के साथ पशुपालन, मुर्गीपालन और मछलीपालन का एक ‘इंटीग्रेटेड फार्मिंग’ मॉडल बनाया। सबसे पहले, उन्होंने खुद इस मॉडल का प्रयोग किया और जब इसमें उन्हें सफलता मिली, तो उन्होंने दूसरे लोगों को यह सिखाना शुरू किया। 

वह कहते हैं, “लोगों को लगता है कि अगर किसी दूसरे को एक कार्य में सफलता मिली है, तो उन्हें भी मिल जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि हर किसी के काम करने की क्षमता और तरीका अलग होता है। इसलिए किसी भी प्रकार की खेती में तभी शुरुआत करें, जब उनके पास एक अच्छा मॉडल हो। जिससे वह हर महीने कम से कम 40-50 हजार रुपए की आमदनी ले पाएं।” राणा कहते हैं कि अब तक 100 से ज्यादा युवा किसान उनसे जुड़े हैं और उनके मॉडल को अपनाकर खेती कर रहे हैं। 

मंडी जिले के रहने वाले 35 वर्षीय राजीव ममानिया बताते हैं, “मैं एक क्रूज़ कंपनी के साथ काम करता हूँ, लेकिन लॉकडाउन के दौरान मुझे काफी समय घर में रहना पड़ा। इस खाली समय में, मैं कुछ करना चाहता था और तब मुझे राणा जी के बारे में पता चला। उनसे 25 किलो हल्दी के बीज लेकर, मैंने खेती शुरू की। उनके मार्गदर्शन में, मैंने सिर्फ जैविक तरीकों से ही हल्दी उगाई और मुझे इसमें काफी सफलता मिली। और सबसे अच्छी बात तो यह रही कि लैब टेस्ट कराने के बाद, उन्होंने हमारी हल्दी को खरीद भी लिया।” 

हल्दी की खेती में सफलता के बाद, राजीव ने दूसरी फसलों में भी हाथ आजमाया। वह कहते हैं कि उनकी कोशिश अपने परिवार को शुद्ध और स्वस्थ खाना खिलाने की है। उन्हें देखकर उनके और भी कई दोस्त व रिश्तेदार, जैविक खाद्य उत्पादों का महत्व समझने लगे हैं। उनके एक दोस्त अभिषेक भी उनके साथ मिलकर, अब जैविक खेती कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे लोग राणा के ‘इंटीग्रेटेड फार्मिंग मॉडल’ को अपने खेतों में तैयार करना चाहते हैं और इसके लिए कार्यरत हैं। 

राणा आगे बताते हैं कि धीरे-धीरे वह जैविक खेती से प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। वह कहते हैं, “प्राकृतिक खेती में आप अपने खेतों और फसलों को बाहर से लाकर, कोई खाद या पोषण नहीं देते हैं। बल्कि जो खेतों में उपलब्ध है, उसी का इस्तेमाल करते हैं। फसल की कटाई के बाद जो कृषि अपशिष्ट बच जाता है, उससे खेतों में ही हरी खाद बना ली जाती है। इसके अलावा, खेतों की कभी जुताई भी नहीं की जाती। एक साथ दो-तीन तरह की फसलें लगायी जाती हैं, जो एक-दूसरे को पोषण और सहारा देती हैं।” 

अपनी खेती और प्रोसेसिंग से, उन्हें हर महीने 200 से ज्यादा ऑर्डर मिलते हैं। जिससे उन्हें एक लाख रुपए/ महीना से ज्यादा की कमाई हो जाती है। कर्नल राणा अंत में कहते हैं, “कमाई से भी ज्यादा, मैं लोगों को खेती से जुड़ने के लिए प्रेरित करना चाहता हूँ, ताकि गाँव से उनका पलायन रोका जा सके। मैं किसानों और युवाओं को समझाता हूँ कि वे कैसे इनोवेटिव तरीकों से, खेती और प्रोसेसिंग करके अच्छी कमाई कर सकते हैं।” 

अगर आपको कर्नल पीसी राणा की कहानी से प्रेरणा मिली है और आप उन्हें संपर्क करना चाहते हैं तो 9817023888 पर कॉल कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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