भारत के पंजाब का नाम, पंज और आब, दो शब्दों से मिलकर बना है। पंज का मतलब है पांच और आब का अर्थ है पानी। इस राज्य से बहने वाली पांच नदियों, सतलुज, ब्यास, रावी, चेनाब और झेलम की वजह से इसे ‘पंजाब’ कहा गया। पानी के भरपूर स्त्रोत, उपजाऊ ज़मीन और मेहनतकश लोग – यही वजहें थी कि बहुत बार पंजाब को देश का अन्नदाता भी कहा गया। हाँ, एक और वजह भी रही कि यहाँ पर अनाज, दाल आदि का उत्पादन सबसे ज्यादा होता था।
“लेकिन ‘हरित क्रांति’ का गढ़ रहे पंजाब का अस्तित्व आज खतरे में है। जिस तरह से रसायनों और कीटनाशकों के प्रयोग ने यहाँ की ज़मीन, पानी और हवा में ज़हर घोला है, उससे तो हम यही कह सकते हैं कि पंजाब की सभ्यता खतरे में है,” यह कहना है 58 वर्षीय एक्टिविस्ट उमेंद्र दत्त का।
पंजाब के ही फिरोजपुर जिले से संबंध रखने वाले उमेंद्र दत्त ने हिंदी साहित्य में अपनी पढ़ाई की। उनकी रुचि भी हमेशा कविता और साहित्य लेखन में रही। साल 1994 में जब उन्हें ‘स्वदेशी पत्रिका’ के संपादक पद पर काम करने का मौका मिला तो यहाँ उनके सामने देश में लगातार गिर रही कृषि अर्थव्यवस्था की तस्वीर आई।
उनकी शुरुआत, पत्रिका के चंद आर्टिकल्स पढ़ने से हुई और फिर धीरे-धीरे वह इस क्षेत्र के लोगों से जुड़ते चले गये। उन्होंने पढ़ा कि कैसे भारत में खेती का भी औद्योगिकीकरण हो गया है। किसी को इस बात की चिंता नहीं कि हमारी ज़मीन, जल-स्त्रोत, हवा और प्रकृति मर रही है और जिसके चलते किसान मर रहे हैं। हर कोई बस अपने व्यवसाय के घाटे-मुनाफे या फिर अच्छे पैकेज की नौकरी की होड़ में लगा हुआ है।
उमेंद्र बताते हैं, “इस राह में मैं अनुपम मिश्र, वंदना शिवा जैसे लोगों के सम्पर्क में आया। भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष दत्तोपा थेंगडी से बहुत कुछ सीखा। गाँधीवादी विचारकों से मिला और उनकी विचारधारा को समझा। मैंने जितना कुछ भी खेती से संबंधित जाना और पढ़ा, उससे मुझे यही समझ में आया कि अगर आने वाले समय में अपने पंजाब का अस्तित्व बचाना है तो हमें जैविक और प्राकृतिक खेती की तरफ लौटना होगा।”
सालों की रिसर्च और जानकारी के चलते उमेंद्र ने ठान लिया कि जिस तरह कभी पंजाब में हरित क्रांति आई थी, उसी तरह वह यहाँ पर जैविक खेती की क्रांति लाकर रहेंगे। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने कुछ दोस्तों से चर्चा करने से की। वह कहते हैं कि वह जहां भी जाते, जिससे भी मिलते, इस विषय पर बात ज़रूर करते थे।
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उन्होंने किसानों से मिलना शुरू किया। जहाँ भी उनके जानने वाले थे वहां के किसानों के साथ मीटिंग्स रखी और उन्हें रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करने की कोशिश की। कुछ को उनकी बात समझ में आती तो कुछ हंसी में टाल देते।
पर उमेंद्र ने हार नहीं मानी और वह अपना कारवां बनाते रहे। लेकिन उन्होंने कभी अपना कोई संगठन शुरू करने का नहीं सोचा था।
“शायद 2002 की बात होगी और मैंने कहीं पढ़ा कि ‘गाँव बिकाऊ है।’ यह पंजाब के ही एक गाँव हरकिशनपुरा की कहानी थी। वहां न तो पानी बचा था और न ही ज़मीन, ऐसे में पूरे गाँव ने मिलकर अपनी ज़मीन बेचने का फैसला किया। इस घटना ने मुझे बहुत प्रभावित किया और मुझे लगा कि हमारी सभ्यता कहीं न कहीं मर रही है।” – उमेंद्र
इसके बाद उमेंद्र ने ठान लिया कि अब उन्हें आगे आकर कुछ ठोस कदम उठाना होगा ताकि उनकी बात जन-जन तक पहुंचे। साल 2005 में उन्होंने ‘खेती विरासत मिशन’ की नींव रखी।
“इसके ज़रिए मेरा उद्देश्य बहुत स्पष्ट था कि ये संगठन किसी भी तरह की राजनीति से परे रहेगा। हमारा मुद्दा राजनैतिक नहीं है बल्कि ज़िंदगी का है। हमारी कोशिश अपनी सभ्यता को बचाने की है,” उन्होंने आगे बताया।
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फरीदकोट जिले के जैतु इलाके में खेती विरासत मिशन का ऑफिस बनाया गया और यहीं पर उन्होंने कीटनाशकों के खिलाफ अपना अभियान शुरू किया। कृषि एक्सपर्ट्स से लेकर कैंसर सर्जन्स तक के सेमिनार कराए और फिर किसानों को जैविक खेती से जोड़ना शुरू किया।
आज ‘खेती विरासत मिशन,’ तीन अलग-अलग पहलों पर काम कर रहा है- जैविक खेती, किचन गार्डन और नव-त्रिंजन!
पंजाब को लौटाए कुदरती खेती के गुर:
खेती विरासत मिशन के ज़रिए उमेंद्र दत्त ने पंजाब के किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रेरित किया। सबसे पहले उन्हें रासायनिक खेती के कारण हो रहे पर्यावरण विनाश के बारे में जागरूक किया गया और फिर सुभाष पालेकर जैसे जैविक और प्राकृतिक खेती के एक्सपर्ट्स के साथ मिलकर वर्कशॉप की गयीं।
इतना ही नहीं, उन्होंने भारत के वाटरमैन कहे जाने वाले राजेंद्र सिंह को भी बहुत बार खेती विरासत मिशन की किसान सभाओं में बुलाया। राजेंद्र सिंह ने लोगों को पानी के संरक्षण के बारे में जागरूक किया और उन्हें सिखाया भी कि कैसे वे अपने घरों में, खेतों में पानी बचा सकते हैं।
“हमारा मॉडल बहुत ही आसान है, सबसे पहले जागरूकता से शुरुआत की गयी। फिर जब किसानों ने आगे बढ़कर जैविक खेती अपनाने के लिए कदम बढ़ाया तो हमने उनकी ट्रेनिंग करवाना शुरू किया। उन्हें खुद अपनी जैविक खाद और हर्बल स्प्रे आदि बनाना सिखाया। जो भी किसान जैविक खेती करना चाहता है, हम खुद उसके फार्म पर जाकर उसकी मदद करते हैं। एक तरह से जैविक खेती के लिए उसका फार्म डिज़ाइन करते हैं। आखिरी में हम उन्हें बाज़ारों से जोड़ते हैं,” उमेंद्र ने आगे कहा।
अब तक वह हज़ार से भी ज्यादा सेमिनार, वर्कशॉप और ट्रेनिंग सेशन कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने 30 हज़ार से ज्यादा किसानों को कवर किया है और 2500 से ज्यादा किसान आज उनके साथ मिलकर जैविक खेती कर रहे हैं। उनसे जुड़ा हुआ कोई भी किसान पराली नहीं जलाता बल्कि पराली को वह अपनी खेती के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
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जैविक किसानों को सीधा बाज़ार से जोड़ने के लिए उन्होंने कुदरती किसान हाट, कुदरती हट्स और किसान कॉपरेटिव बनाना शुरू किया है। खेती विरासत मिशन के बैनर तले 16 से ज्यादा किसान हाट पंजाब में एक्टिव हैं। इसके अलावा, जैविक उपज बेचने के लिए कुछ परमानेंट स्टोर्स बनाए जा रहे हैं, जिन्हें कुदरती हट्स का नाम दिया गया है।
किचन गार्डन और देशी बीज बैंक:
खेती विरासत मिशन ने सिर्फ पुरुष किसानों को ही नहीं बल्कि महिला किसानों को भी जोड़ा। उमेंद्र कहते हैं कि पौष्टिक भोजन और स्वस्थ जीवन का महत्व महिलाओं को समझाना ज़्यादा ज़रूरी है। ज़्यादातर भारतीय परिवारों के खान-पान की ज़िम्मेदारी महिलाओं की होती है।
उन्होंने पंजाब की महिलाओं को अपने घरों में ही किचन गार्डन लगाने की ट्रेनिंग देना शुरू किया। “खासतौर पर हमने उन महिलाओं को जोड़ा, जिनके परिवार भूमिहीन हैं। ऐसे परिवारों के लिए घर में ही किचन गार्डन सबसे बेहतर विकल्प हैं,” उन्होंने कहा।
खेती विरासत मिशन के मार्गदर्शन में लगभग 5 हज़ार महिलाओं ने किचन गार्डन की पहल की है। ये सभी महिलाएं पंजाब के 5 जिले, फरीदकोट, मुक्तासर, बरनाला, अमृतसर और फिरोजपुर के 58 गाँवों से हैं।
महिलाओं के किचन गार्डन के लिए और रबी-खरीफ की फसलों के लिए भी खेती विरासत मिशन का उद्देश्य है कि किसान देशी बीज इस्तेमाल करें। इसलिए उन्होंने देश के कोने-कोने से जैविक किसानों से मिलकर देशी बीजों की किस्मों को सहेजने की पहल की है।
“हम पंजाब में देशी बीजों के लिए जगह-जगह बीज बैंक बना रहे हैं और इसका ज़िम्मा हमने महिलाओं को दिया है। इससे देशी बीज तो बढ़ेंगे ही पर साथ में महिलाओं के लिए एक अतिरिक्त आय का साधन भी होगा,” उन्होंने कहा।
नव-त्रिंजन:
पंजाब में त्रिंजन उस जगह को कहा जाता है जहां कभी औरतें इकट्ठी होकर सिलाई-कढ़ाई, बुनाई या फिर सूत कातने आदि का काम करती थीं। पर वक़्त के साथ मानो यह सब कहीं खो गया। इसलिए खेती विरासत मिशन ने इस परंपरा को एक बार फिर से जीवंत करने की ठानी।
इस बारे में बात करते हुए उमेंद्र ने बताया कि उनके मार्गदर्शन में बहुत से किसानों ने बीटी कपास और अन्य सभी तरह की जेनेटिक मॉडिफाइड कपास बोना बंद करके जैविक कपास उगाना शुरू किया। लेकिन उनके जैविक कपास को आसानी से बाज़ार नहीं मिला।
“ऐसे में, हमने सोचा कि क्यों न इस कपास को प्रोसेस करके बेचा जाए और हमने ऐसे लोग ढूँढना शुरू किया जो कि उनके लिए सूत कात सकें। पर अब हाथ के कारीगर मिलना बहुत मुश्किल है क्योंकि रोज़गार न होने की वजह से हस्तशिल्पकार भी बहुत ही कम रह गये हैं,” उन्होंने कहा।
खेती विरासत मिशन की सदस्य, रुपसी गर्ग ने यह ज़िम्मेदारी अपने पर ली। उन्होंने गाँव-गाँव जाकर हाथ का काम करने वाले कारीगरों को ढूंढा और उनके ग्रुप्स बनाए। रुपसी कहती हैं कि किसानों की ज्यादा आय के लिए ज़रूरी है कि उनकी उपज को प्रोसेस करके प्रोडक्ट्स बनाये जाएं। क्योंकि इन प्रोडक्ट्स को बाज़ार में ज्यादा महत्व मिलता है।
“हमने कुछ महिलाओं को जोड़कर उन्हें कपास से धागा और फिर उससे कपड़ा बुनने का काम शुरू करवाया है। इसके अलावा, हम गाँवों में महिलाओं के सेल्फ-हेल्प ग्रुप बना रहे हैं और उन्हें फ़ूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग करा रहे हैं जिससे ये महिलाएँ खुद अपनी जैविक उपज को प्रोसेस करके बेच सकती हैं,” रुपसी ने आगे बताया।
नव-त्रिंजन प्रोजेक्ट के साथ-साथ उन्होंने और भी बहुत सी छोटी-छोटी पहल की हैं, जैसे कि उन्होंने पारम्परिक व्यंजनों को एक बार फिर संजोना शुरू किया है। खेती विरासत मिशन सिर्फ गाँवों में ही नहीं बल्कि शहरों में अपने पैर पसार रहा है। अर्बन गार्डनिंग और फार्मिंग के ज़रिए ये शहरी लोगों तक भी स्वस्थ और स्वच्छ पंजाब की मुहिम को पहुंचा रहा है।
सस्टेनेबल पंजाब का है सपना:
उमेंद्र दत्त कहते हैं कि उनका सपना पंजाब को सस्टेनेबल बनाने का है। यहां लोग खुद अपना स्वस्थ और जैविक खाना उगाएं, मिट्टी को रसायन-मुक्त रखें, जल और जीव संरक्षण हो। अच्छी बात यह है कि अब किसानों और अन्य लोगों को भी यह बात समझ में आने लगी है।
लेकिन इस मुकाम तक पहुँचने के लिए पिछले 15 सालों में खेती विरासत मिशन ने बहुत-सी चुनौतियों का सामना किया। जिनमें एक चुनौती फंडिंग भी रही, लेकिन कहते हैं ना कि अगर आपका इरादा सच्चा हो तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं रह जाती।
“जब मैंने खेती विरासत मिशन रजिस्टर भी कराया, तब भी पैसा एक दिक्कत थी। लेकिन मैं काफी समय से काम कर रहा था तो मेरा नेटवर्क अच्छा बन गया था। ऐसे बहुत से समृद्ध लोग थे जो मदद के लिए आगे आए। उन लोगों की वजह से ही खेती विरासत मिशन यहाँ तक पहुँच पाया है।”- उमेंद्र
निजी दानकर्ताओं के अलावा अब उन्हें सरकार से भी कुछ ग्रांट मिलने लगी है। हालांकि, फंडिंग से भी ज्यादा बड़ी चुनौती लोगों की आदतें, उनका व्यवहार और सोच बदलना है। पर कहते हैं ना कि ‘करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।’ खेती विरासत मिशन भी अपने लक्ष्य से नहीं भटका और आज भी निरंतर कार्यरत है।
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कोई भी युवा, महिला या फिर किसान, बिना किसी हिचक के खेती विरासत मिशन से जुड़ सकता है। युवाओं के लिए संगठन के साथ काम करने के बहुत से मौकें हैं तो किसान किसी भी तरह की मदद के लिए उनसे सम्पर्क कर सकते हैं। उमेंद्र दत्त को कॉल करने के लिए 09872682161 पर फ़ोन कर सकते हैं या फिर umendradutt@khetivirasatmission.org पर ई-मेल भी कर सकते हैं।
संपादन- अर्चना गुप्ता