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अमेरिका से लौटकर शुरू की प्राकृतिक खेती, परिवार से लड़कर भी बने किसान

अमेरिका से लौटकर शुरू की Natural Farming, परिवार से लड़कर भी बने किसान

पंजाब के अधिकांश लोगों का सपना किसी न किसी तरह से अमेरिका, आस्ट्रेलिया या कनाडा जैसे देशों में बसना होता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अमेरिका छोड़ भारत में रहने (Punjab Man Left USA) का फैसला किया और महज कुछ ही एकड़ में खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

यह कहानी मूल रूप से पंजाब के मोगा जिला स्थित लोहारा गांव के रहने वाले रजविंदर सिंह धालीवाल की है। रजविंदर फिलहाल अपने 8 एकड़ जमीन पर न सिर्फ गन्ना, आलू, हल्दी, सरसों जैसे फसलों को प्राकृतिक तरीके से उगाते हैं, बल्कि इन फसलों को प्रोसेस कर गुड़, शक्कर और हल्दी पाउडर भी बनाते हैं। 

रजविंदर सिंह

उन्हें इस वैल्यू एडिशन से पारंपरिक खेती करने वाले किसानों के मुकाबले प्रति एकड़ कम से कम, एक लाख रुपए का अधिक फायदा होता है। उनके फार्म में आम, अमरूद, चीकू, अनार जैसे फलों के पेड़ भी हैं।

कैसे मिली प्रेरणा

44 वर्षीय रजविंदर ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं अमेरिका में पांच वर्षों तक रहा। मैंने वहां ट्रक चलाने से लेकर होटल लाइन तक में काम किया। लेकिन धीरे-धीरे मुझे लगने लगा जीवन में अपने गांव-देश से बढ़कर कुछ नहीं है। इसलिए 2012 में, अमेरिका छोड़ भारत आ गया।”

वह कहते हैं, “मैंने भारत लौटने के बाद अपना होटल बिजनेस शुरू किया। लेकिन मेरी ख्वाहिश खेती करने की थी और इसे लेकर  मैंने पास के ही ‘किसान विरासत मिशन’ नाम के एक एनजीओ से खेती से जुड़ी जानकारियों को हासिल करना शुरू कर दिया। इसके अलावा, सोशल मीडिया के जरिए खेती करने वाले कई किसान दोस्तों से मिला और 2017 में अपनी 6 एकड़ जमीन पर पूरी तरह से प्राकृतिक खेती शुरू कर दी।”

गन्ने सी हुई शुरुआत

रजविंदर ने बताया, “मेरे पास आठ एकड़ जमीन है। जो लोग पहले यहां खेती करते थे, वे रसायन का इस्तेमाल करते थे। मार्च में खेत खाली होने के बाद, अगस्त तक हमने इसमें सिर्फ हरी खाद दी और कोई फसल नहीं लगाया। ताकि हमारी खेत नैचुरल फार्मिंग के लिए तैयार हो सके। फिर, सितंबर 2017 में हमने इसमें गन्ना लगाया।”

रजविंदर सिंह का खेत

आज वह करीब पांच एकड़ में गन्ना की खेती करते हैं और खेतों की सीमाओं पर उन्होंने 3000 से अधिक फलदार पेड़ भी लगाए हैं। 

इतना ही नहीं, रजविंदर का मानना है कि यदि कोई किसान नैचुरल फार्मिंग कर रहा है, तो बिना वैल्यू एडिशन के अधिक फायदा नहीं कमाया जा सकता है। इसलिए उन्होंने खुद ही गुड़ और हल्दी पाउडर जैसे उत्पादों के बनाने के लिए एक एकड़ में मशीनें लगाई हैं। उन्होंने अपने उत्पादों को रखने और काम के बाद आराम करने के लिए खेत में ही मिट्टी के घर भी बनाए हैं।

बनाते हैं कई तरह के गुड़

रजविंदर बताते हैं, “हम गन्ने को बेचते नहीं हैं, बल्कि खुद ही शक्कर और गुड़ बनाते हैं। इससे हमें अधिक फायदा होता है। हम चाय में इस्तेमाल होने वाले साधारण गुड़ बनाने के अलावा हल्दी, सौंफ, अजवाइन, तुलसी, ड्राइफ्रूट, आदि मिलाकर कई तरह के मसाला गुड़ भी बनाते हैं।”

रजविंदर बताते हैं कि वह अपना साधारण गुड़ प्रति किलो 110 रुपए में बेचते हैं, तो मसाला गुड़ 170 से 350 रुपए प्रति किलो तक बिकता है। 

वह बताते हैं, “आज गन्ने की सरकारी दर 360 रुपए प्रति क्विंटल है। लेकिन एक क्विंटल गन्ने से 10 किलो गुड़ आसानी से बन जाता है। यदि हम अपने गुड़ को कम से कम 110 रुपए किलो की दर पर बेचें, तो भी कमाई में तीन गुना फर्क है।”

रजविंदर सिंह के खेत में बना गुड़

रजविंदर गुड़ और शक्कर बनाने के लिए COJ 64, COJ 85, COJ 88 जैसी किस्म की गन्नों का इस्तेमाल करते हैं। वह बताते हैं कि उनके पास हर साल कम से कम 10 टन गुड़ का उत्पादन होता है। जिससे करीब 8 लाख की कमाई होती है।

कैसे करते हैं खेती

गन्ने के अलावा रजविंदर आलू, हल्दी, सरसों, प्याज और अन्य सब्जियों की भी खेती करते हैं।

वह बताते हैं, “मैं अपनी खेती बेड और मल्चिंग सिस्टम से करता हूं। क्योंकि इसमें पानी की काफी कम जरूरत होती है। खाद के तौर पर मैं एग्रीकल्चर वेस्ट के अलावा गाय के गोबर का इस्तेमाल करता हूं।”

वह आगे बताते हैं, “गाय के गोबर को हमें पहले दूसरों से खरीदना पड़ता था। लेकिन, मैंने बीते साल से मवेशी पालन की शुरुआत कर दी है, जिससे मुझे हर साल सिर्फ गोबर के लिए कम से कम 20 हजार रुपए बचेंगे और साथ ही दूध से भी कमाई होगी।”

कई गायों को भी पालते हैं रजविंदर

खेत में फलदार पेड़ लगाने के बारे में रजविंदर कहते हैं, “हम अपने उत्पादों को बेचने के लिए मंडी नहीं जाते हैं। हमने बड़े स्तर पर फलदार पेड़ नहीं लगाए हैं। हमने उतने ही पौधे लगाएं हैं, जिसके फल को हम आसानी से बेच सकें और इसके लिए किसी पर निर्भर भी न होना पड़े।”

खास तरीके से उगाते हैं आलू भी

रजविंदर बताते हैं, “मैं आलू को मिट्टी में लगाने के बजाय जमीन के ऊपर ही उगाता हूं। इसके लिए हम पहले बेड बनाते हैं और उसपर आलू बिछाने के बाद पराली से ढंक देते हैं। इससे पानी भी काफी कम लगता है और इसे उखाड़ना भी आसान होता है।”

वह कहते हैं कि इस तरीके से उगे आलू में न्यूट्रिशन वैल्यू अधिक होती है और उखाड़ने में आसान होने के कारण काफी मजदूरी भी बचती है।

रजविंदर के अनुसार, उनके पूरे खेती कार्यों में दूसरे किसानों के मुकाबले सिर्फ 20-25 फीसदी पानी की खपत होती है।

क्या होती है समस्या

रजविंदर कहते हैं, “हमें अभी तक खेती में किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है। लेकिन खेती के कारण मुझे कई पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। मेरे परिवार के कई लोग कनाडा और अमेरिका में रहते हैं और उन्हें मेरा सबकुछ छोड़कर यूं खेती करना पसंद नहीं है। इतने वर्षों के बाद भी मुझे खेती को लेकर उनसे कभी सपोर्ट नहीं मिला है।”

बिना प्लास्टिक पैकिंग के अपने उत्पादों को बेचते हैं रजविंदर

वह आगे कहते हैं, “लेकिन मेरी अपनी सोच है। मैं लोगों को वैसी चीजें उपलब्ध कराना चाहता हूं, जो आज से 30-25 साल पहले दादी-नानी के जमाने में मिलती थीं। इसलिए हम प्राकृतिक तरीके से खेती करते हैं।”

कैसे करते हैं मार्केटिंग

रजविंदर बताते हैं, “मैं अपने उत्पादों के मार्केटिंग के लिए सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करता हूं। हमारे पास पंजाब के अलावा उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के भी ग्राहक हैं।”

वह आगे कहते हैं, “मैं अपने उत्पादों को कभी थोक में नहीं बेचता हूं। इससे खेती में बिचौलियों की संभावना कम होती है और हमें अधिक फायदा होता है। हमारी कोशिश सीधे ग्राहकों को बेचने की है।”

रजविंदर कहते हैं कि वह अपने खेती कार्यों में प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करना चाहते हैं। इसलिए वह अपने स्थानीय ग्राहकों को अपना थैला खुद ही लाने के लिए कहते हैं। वह बताते हैं कि पैकिंग पर खर्च नहीं करने का फायदा अंत में ग्राहकों को ही होता है।

रजविंदर के खेत पर काम करते किसान

रजविंदर का सलाना टर्नओवर 12 लाख रुपये का है। वह कहते हैं कि पारंपरिक खेती के जरिए किसान प्रति एकड़ करीब एक लाख रुपए कमा पाते हैं, लेकिन उनका आंकड़ा करीब 2 लाख रुपए है। जैसे-जैसे उनका खेत अच्छा होगा, कमाई और बेहतर होती जाएगी।

क्या देते हैं संदेश

रजविंदर कहते हैं, “मैंने पहले खेती नहीं की थी। लेकिन मैं एक किसान परिवार से हूं। इसलिए खेती मेरे खून में थी। आज दुनिया तेजी से बदल रही है और किसानों के पास ज्यादा समय नहीं है। इसलिए खेती बचाने के लिए सबको साथ आना होगा।”

वह अंत में कहते हैं, “यदि आप किसान परिवार से हैं तो अपने खेतों पर घूमने के लिए जरूर जाइये, आप खेती करते हैं या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता। लेकिन यदि आप खेतों पर जाएंगे, तो आपको एक जुड़ाव महसूस होगा।”

रजविंदर अपने सभी खेती कार्यों को ‘लोहारा फार्म’ के तहत करते हैं। आप उनसे  9464176076 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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