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गौमूत्र, दूध, हल्दी जैसी चीज़ों से बनाया खेती को सफल, विदेशों से भी सीखने आते हैं किसान

आमतौर पर खेती करने के लिए जमीन तैयार करने से लेकर, बीज लगाने और फसल पकने तक किसान कई तरह के केमिकल्स का इस्तेमाल करते हैं। ताकि उत्पादकता ज्यादा और मुनाफ़ा अच्छा हो। हालांकि हाल के दिनों में जैविक खेती के प्रति कई किसानों का रुझान बढ़ने लगा है। जिससे वे ऑर्गेनिक कीटनाशक और खाद आदि का इस्तेमाल करते हैं। वहीं गुजरात के कई किसान अब गाय आधारित ऑर्गेनिक खेती से जुड़कर अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। गाय आधारित ऑर्गेनिक खेती का अर्थ है, गाय से मिलने वाले गौमूत्र, गोबर और दूध का इस्तेमाल खेती में करना। 

आज हम आपको सूरत के एक ऐसे ही किसान, अश्विन नारिया से मिलाने वाले हैं,  जिन्होंने गाय आधारित खेती को अपनाकर, खेती के खर्च को 80% तक कम कर दिया है। साथ ही, वह एक कंसल्टेंट भी हैं और दूसरे किसानों को भी इस तरह की खेती करने में मदद करते हैं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहते हैं, “मैं पिछले 20 सालों से इस तरह की खेती में रिसर्च का काम कर रहा हूं। गाय आधरित और पंच संस्कार से मिलने वाले परिणाम, वैज्ञानिक रूप से भी साबित हो चुके हैं। साथ ही इससे होने वाले फ़ायदे काफी चौंकाने वाले हैं।” 

अश्विन नारिया

क्या है पंच संस्कार 

अश्विन बताते हैं, “संस्कार का मतलब हम अपने प्राकृतिक तरीकों से बीज, भूमि, वायु, वनस्पति और जल को शुद्ध करके उसमें सकारात्मक ऊर्जा डालते हैं। जिससे खेती की पैदावार पर काफी अच्छा असर होता है।”

भूमि संस्कार यानी जैसे कोई किसान खेती से पहले जमीन तैयार करता है। ठीक वैसे ही, अश्विन जमीन तैयार करने से पहले, खेत के चारो ओर नारियल, नीम, जामुन, आम जैसे बड़े-बड़े पेड़ लगवाते हैं। इससे खेत के अंदर एक बेहतरीन ईको सिस्टम तैयार होता है। जिसके बाद, जमीन तैयार करने के लिए, वह प्रति एकड़ 50 लीटर गौमूत्र और 10 लीटर कैस्टर ऑयल के मिश्रण को खेतों में डालते हैं। इसके अलावा वह जमीन पर गाय के गोबर से बने उपले की राख का छिड़काव भी करते हैं। 

वह बताते हैं कि गाय के गोबर में 26 प्रतिशत तक ऑक्सीजन पाया जाता है। वहीं इसके उपलों को जलाकर बनाई गई राख में ऑक्सीजन की मात्रा 54 प्रतिशत  होती है। जो जमीन में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने का काम करती है। 

बीज को जमीन में रोपने से पहले बीज संस्कार किया जाता है। जिसके लिए वह खास बीजामृत तैयार करते हैं। 10 लीटर पानी में एक किलो गाय का गोबर, एक लीटर गौमूत्र, 50 ग्राम चूना, 100 ग्राम गाय का दूध, 100 ग्राम हल्दी के मिश्रण में बीज को 24 घण्टे भिगोने के बाद,  बीजारोपण का काम किया जाता है।  

इसके बाद, जल संस्कार किया जाता है। खेती में उपयोग होने वाले पानी के PH लेवल को अच्छा बनाने के लिए कुश की घास का उपयोग किया जाता है। 

अश्विन का खेत

चौथा संस्कार है वनस्पति संस्कार, जिसे फसलों की कीट और दूसरे रोगों से रक्षा के लिए किया जाता है। इसके लिए आमतौर पर किसान कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करते हैं। लेकिन अश्विन इसके लिए भी जैविक चीजों का ही इस्तेमाल करते हैं। वह 250 ग्राम गाय का दूध और 100 ग्राम गुड़ को 15 लीटर पानी में मिलाकर खेतों में छिड़काव करते हैं। इसके अलावा वह छिड़काव के लिए अलग-अलग तरह के कई जैविक कीटनाशक तैयार करते हैं। 

आखिरी संस्कार है वायु का। आज वातावरण में फैली अशुद्ध हवा से कई नई-नई बीमारियां हो रही हैं। इसका असर खेती पर भी होता है। इसके लिए वह खेत में हवन करते हैं। हवन में गाय के गोबर के उपले और शुद्ध घी का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने बताया कि हवन के धुंए से तक़रीबन 108 किस्मों की गैस निकलती हैं, जो वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया को ख़त्म करती है। 

उन्होंने इन सभी तरीकों का इस्तेमाल करने से पहले कई रिसर्च भी किए हैं। साथ ही इनकी वैज्ञानिक दृष्टि से जाँच भी की गई। ताकि वह लोगों को भी इसका महत्व ठीक से समझा सकें। 

मात्र चार एकड़ में उगाते हैं 39 किस्मों की सब्जियां 

हालांकि अश्विन मूल रूप से सूरत से नहीं, बल्कि जामनगर से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन वह पिछले एक साल से सूरत में ही रह रहे हैं। उन्होंने एग्रीकल्चर में BSC की डिग्री हासिल की है। कृषि क्षेत्र में उनके नए प्रयोगों के लिए, इसी साल उन्हें सूरत के गुजरात चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स की और से अवॉर्ड भी मिल चुका है। 

जामनगर में उनके खुद के खेतों में भी वह इसी तरह की खेती किया करते थे। वहीं सूरत आकर उन्होंने अपने दोस्त के फार्म पर खेती करना शुरू किया है। साथ ही, दूसरे किसानों को भी वह इस तरह की जैविक खेती का मॉडल तैयार करने में मदद करते हैं।

पंचस्तरीय खेती

पंच संस्कार के अलावा वह पंचस्तरीय खेती भी करते हैं, और पूरे साल खेत में कुछ न कुछ उगाते ही रहते हैं। उनके खेतों में जमीन के अंदर उगनेवाली सब्जियां, छोटे पौधे, लताएं, और थोड़े बड़े पौधों से लेकर फलों के भी कई पेड़ हैं। उनका कहना हैं कि मल्टीलेयर फार्मिंग से किसान कम जमीन में भी साल भर खेती करके, अच्छा मुनाफ़ा कमा सकता है। वहीं ऑर्गेनिक तकनीक अपनाने से खर्च बिल्कुल कम हो जाता है। 

हाल ही में, उन्हें अफ्रीका और पुर्तगाल में भी इस तरह के खेत तैयार करने का काम मिला है। वह कहते हैं, “चूँकि वहां देसी गाय नहीं हैं, इसलिए हम गौमूत्र और बाकि की चीज़े भारत से ही ले जाएंगे।” 

आश्विन सही अर्थ में एक प्रगतिशील किसान हैं, जो खेती से बेहतरीन मुनाफ़ा कमाकर दूसरों के लिए भी प्रेरणारूप बन रहे हैं। 

आप अश्विन नारिया से प्राकृतिक खेती की जानकारी लेने के लिए 9824297255 पर सम्पर्क कर सकते हैं। 

संपादन- अर्चना दुबे

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