अजमेर, रसूलपुरा गांव के 41 वर्षीय रज़ा मोहम्मद कोरोना के पहले तक गांव में अपने खुद के स्कूल में पढ़ाया करते थे। लेकिन कोरोना के समय जब स्कूल बंद हो गए, तो उनकी कमाई का ज़रिया भी ख़त्म हो गया। उनके पास अपना दो बीघा खेत है, जिसमें वह मौसमी फसलें उगाते थे, लेकिन इससे ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं होता था। इसी दौरान उन्हें मोती की खेती के बारे में पता चला।
पहले तो उन्हें लगा कि शायद यह बहुत मुश्किल काम होगा, जिसमें ज़्यादा समय भी देना होगा। लेकिन फिर उन्होंने मोती की खेती सीखने का फ़ैसला किया।
कैसे शुरू की मोती की खेती?
उन्होंने अपने खेत में ही 10/25 की जगह में एक छोटा तालाब बनवाया और इस पर तिरपाल लगाकर मोती उगाना शुरू कर दिया। उन्होंने ज़रूरी सामान जैसे दवाएं, अमोनिया मीटर, पीएच मीटर, थर्मामीटर, एंटीबायोटिक्स, माउथ ओपनर, पर्ल न्यूक्लियस जैसे उपकरण खरीदे। इसके बाद सीप के लिए खाना (गोबर, यूरिया और सुपरफॉस्फेट से शैवाल) भी तैयार किया।
उन्होंने अपने तालाब में डिज़ाइनर मोती के न्यूक्लियस को तक़रीबन 1000 सीपों में लगाए थे। हर एक सीप में न्यूक्लियस डालकर छोड़ देना होता है और उसके भोजन और विकास का ध्यान रखना होता है। सब अच्छा रहा, तो एक सीप से दो मोती मिलते ही हैं।
मोती की फसल आने में 18 महीने का वक्त लगता है। इस दौरान जिस तालाब में मोती की खेती कर रहे हैं, उसका पीएच स्तर 7-8 के बीच होना ज़रूरी है। अमोनिया का लेवल एक जैसा ही होना चाहिए और तालाब में हमेशा पानी का बहाव सही होना चाहिए।
कितना कमा रहे मुनाफ़ा?
रज़ा बताते हैं कि मोती की खेती की शुरुआत में 60 से 70 हज़ार रुपये लगे और उन्हें डेढ़ से दो लाख रुपये का मुनाफ़ा हुआ। एक बार मोती तैयार हो जाने के बाद, इसे लैब भेजना होता है और गुणवत्ता के आधार पर, एक मोती की कीमत 200 रुपये से लेकर 1,000 रुपये के बीच मिलती है।
वहीं, तालाब के रख-रखाव में कोई ख़र्च नहीं आता है, लेकिन जलस्तर, सीप का स्वास्थ्य, शैवाल की उपस्थिति वग़ैरह का ख़ास ध्यान रखना और सतर्क रहना पड़ता है। सबसे महत्वपूर्ण बात, आपको एक साल के लिए धैर्य रखना होगा।
अगर आपके पास भी थोड़ी बहुत जगह है और आप दिन के एक घंटे निकाल सकते हैं, तो मोती की खेती से अच्छा-ख़ासा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
संपादनः अर्चना दुबे
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