मोती की खेती से बने लखपति, शिक्षित युवाओं से करते हैं किसानी करने की अपील

उत्तर प्रदेश के किसान विजेंद्र सिंह चौहान मोती की खेती के साथ-साथ मछली पालन भी करते हैं, जिससे उनकी अतिरिक्त कमाई होती है।

आजकल मोती की खेती का चलन तेजी से बढ़ रहा है। मोती की खेती कम मेहनत और लागत में अधिक मुनाफे का सौदा साबित हो रहा है। मोती की खेती उसी प्रकार से की जाती है जैसे मोती प्राकृतिक रूप से तैयार होता है। मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल समय अक्टूबर से दिसंबर के बीच माना जाता है। आज हम आपको उत्तर प्रदेश के एक ऐसे ही किसान की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो मोती की खेती से लाखों रुपये कमा रहे हैं।

बिजनौर जिला के धामपुर तहसील का एक छोटा सा गाँव है चक। इसी गाँव के किसान हैं विजेंद्र सिंह चौहान, जो मोती की पैदावार कर लाखों की कमाई कर रहे हैं। विजेंद्र पहले इक्वेरियम का काम करते थे लेकिन जब उन्होंने मोती की खेती के बारे में इंटरनेट पर पढ़ा तो इस बारे में और जानने की दिलचस्पी हुई। वह मोती की खेती करने वाले किसानों से मिले तो उन्होंने पाया कि यह कमाई का एक बेहतरीन साधन है। इसके बाद उन्होंने नागपुर में पर्ल कल्चर की ट्रेनिंग ली और मोती की खेती शुरू कर दी। 

Uttar Pradesh Farmer's Moti Ki Kheti
विजेंद्र सिंह चौहान

विजेंद्र ने द बेटर इंडिया को बताया, गाँव में मेरे चार तालाब हैं। इनमें तीन 60×40, जबकि एक 60×50 मीटर का है। एक तालाब में 5000 से लेकर 7000 तक सीप डाले जाते हैं। इनका मॉर्टेलिटी रेट 30 फीसदी के आस पास है। 70 प्रतिशत के करीब सीप मिल जाता है। एक सीप में दो मोती होते हैं। इस तरह 5000 सीप से 10 हजार के करीब मोती प्राप्त हो जाते हैं। एक मोती न्यूनतम सौ से डेढ़ सौ रूपये का बिकता है। एक तालाब से 5.50 लाख रुपये से अधिक की कमाई हो जाती है।

विजेंद्र का तालाब

विजेंद्र के ज्यादातर मोती की सप्लाई हैदराबाद में होती है। इसके अलावा हरिद्वार, ऋषिकेश जैसी जगहों पर भी इनकी अच्छी मांग है। तीर्थ स्थान होने की वजह से मोती की बनी माला, अंगूठी आदि में धारण करने के लिए इन मोतियों की मांग वहाँ से आती है। 

Moti Ki Kheti
सीप में यूं डाली जाती हैं आकृतियां

विजेंद्र के अनुसार वह ज्यादातर सीप तालाबों और नदियों से मंगवाते हैं। वह कहते हैं, “मैं लखनऊ से बड़ी मात्रा में सीप मंगवाता हूँ। थोक में एक सीप पाँच रूपये से लेकर सात रूपये तक का पड़ता है। ढाई से तीन साल की उम्र के बाद सीप मोती बनाने के लिए तैयार हो जाती है। सीप से मोती तैयार होने में न्यूनतम 10 महीने का समय लगता है। स्ट्र्क्चर सेटअप में करीब 10-12 हजार रूपये खर्च होते हैं। मामूली सी शल्य क्रिया के जरिये इसके भीतर चार से छह मिलीमीटर व्यास वाले साधारण या डिजाइनर बीड जैसे शंकर, गणेश, बुद्ध या किसी पुष्प की आकृति डाली जाती है। इसके बाद सीप को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है। इन सीपों को नायलॉन के बैग में 10 दिन तक एंटी बायोटिक और प्राकृतिक चारे मसलन काई पर रखा जाता है। हर रोज इनकी जांच की जाती है। मृत सीपों को हटा लिया जाता है। इसके बाद जीवित बचे सीपों को नायलॉन बैगों में रखकर बांस या बोतल के सहारे लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। कुछ दिन में सीप से निकलने वाला पदार्थ कैल्शियम कार्बोनेट आकृति के चारों ओर जमने लगता है और अंत में मोती बन जाता है। करीब 10 माह बाद सीप को को चीरकर मोती को निकाल लिया जाता है। जिस आकार की आकृति सीप में डाली जाती है, उसी आकार के मोती तैयार हो जाते हैं।

विजेंद्र बताते हैं कि वह मोती की खेती के साथ मछली पालन भी करते हैं। इससे उनकी अतिरिक्त आय होती है। इसके अलावा वह अन्य किसानों को मोती की खेती के लिए प्रशिक्षित भी करते हैं। 

विजेंद्र ने ग्रेजुएशन करने के बाद मेरठ से आईटीआई का कोर्स भी किया था। 38 वर्षीय विजेंद्र कहते हैं, मोती की खेती में लागत कम है और मुनाफा ज्यादा। इसलिए मैंने इसे अपना पेशा बना लिया है। यह किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में मददगार हो सकती है। सरकार को अधिक संख्या में किसानों को मोती की खेती की ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि वह प्रोफेशनल तरीके से खेती कर सकें। 

मोती की खेती को पर्यावरण के अनुकूल भी माना जाता है, क्योंकि यह जल शुद्धिकरण में सहायक है। विजेंद्र के अनुसार सरकार भी अब इंटिग्रेटेड फार्मिंग के तहत इस प्रकार की खेती को प्रोत्साहित कर रही है। टेक्निकल जानकारी उपलब्ध कराने के लिए भी कार्यशालाएं आदि आयोजित कराई जा रही हैं।

विजेंद्र कहते हैं, कई ऐसे किसान हैं जो संकोच की वजह से किसी नई पहल की तरफ कदम नहीं बढ़ाते हैं। जबकि किसानी एक ऐसा पेशा है, जिसमें हम हर वक्त नया प्रयोग कर सकते हैं। जरूरी नहीं है कि यदि आप किसी एक कार्य में बेहतर न कर पा रहे हो तो किसी दूसरे कार्य में अच्छा न कर सकें। जरूरत इस बात की है कि किसान नई खेती की बारीकियों को समझें और आवश्यक प्रशिक्षण लें।  पूरा फोकस लगाकर काम करें। मेहनत तो हर एक काम का बेसिक एलीमेंट है ही। इसके बिना सफलता के बारे में सोचना ही गलत है।

विजेंद्र शिक्षित युवाओं को खेती से जुड़ने की अपील करते हैं। उनका मानना है कि यदि खेती को प्रोफेशनल तरीके से किया जाए तो इससे बेहतर कुछ नहीं।

Moti Ki Kheti

यदि आप विजेंद्र से मोती की खेती के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो उनसे 9719994499 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन – जी.एन झा

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