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40% सस्ती व फास्ट चार्जिंग EV, क्या सोडियम-आयन बैटरी कर सकती है यह कमाल?

Sodium Ion Batteries For EVs Are 40 Percent Cheaper And Charge Faster

इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को लेकर भारत का रुख साफ है। चाहे पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दामों से परेशान लोग हों या फिर प्रदूषण को कंट्रोल करने की ज़द्दो-जहद में लगी सरकार, सब यही चाहते हैं कि सड़कों पर ज्यादा से ज्यादा ईवी नज़र आएं। तो फिर परेशानी क्या है?

सबसे बड़ी परेशानी है इनकी कीमतें। इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करना कठिन नहीं है, इसे खरीद पाना कठिन है। हालांकि सरकार इन गाड़ियों पर सब्सिडी दे रही है, ताकि ग्राहक और कंपनियों को कुछ राहत मिल सके। लेकिन ये तो सरकार के अपने प्रयास हैं। इसके अलावा, भारतीय कंपनियां भी इन गाड़ियों को सस्ता बनाने के अपने रास्ते तलाश रहीं हैं। इसके लिए सोडियम-आयन बैटरी (Sodium Ion Batteries) पर लगातार शोध और प्रयोग किए जा रहे हैं। ये काफी सस्ती और फॉस्ट चार्जेबल हैं।

लेकिन सवाल यह है कि क्या सोडियम-आयन बैटरियां, लिथियम-आयन की जगह ले सकती हैं?

इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) के क्षेत्र में होने वाले नए डेवलपमेंट्स, तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि हॉं यह संभव है। रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसे समूह और पुणे स्थित सेंटिएंट लैब्स, रुड़की में इंडी एनर्जी और कोयंबटूर में सोडियन एनर्जी जैसे स्टार्टअप इस दिशा में काफी बड़े स्तर पर काम कर रहे हैं। यह देखते हुए कि सोडियम-आयन तकनीक, मौजूदा लिथियम-आयन ईवी बैटरी तकनीक से कम खर्चीली है, इन कंपनियों का रुझान इस तरफ बढ़ा है। 

ली-आयन बैटरी ईवी का सबसे महंगा कंपोनेन्ट 

कुछ निर्माताओं का मानना है कि ली-आयन बैटरी ईवी का सबसे महंगा कंपोनेंनट है। ईवी की लागत का 40-50 प्रतिशत हिस्सा इसकी बैटरी पर खर्च होता है। इस उद्योग से जुड़े लोगों की मानें, तो अगर सोडियम-आयन सेल का बड़े पैमाने पर निर्माण किया जाता है, तो इससे इलेक्ट्रिक वाहन अधिक किफायती हो जाएंगे।

बैटरी स्टार्टअप, सोडियन एनर्जी के सीईओ और एम्पीयर इलेक्ट्रिक के पूर्व मुख्य तकनीकी अधिकारी, बाला पचयप्पा का तर्क है कि यह बदलाव, इलेक्ट्रिक वाहनों को “बिना सब्सिडी के भी आईसी-इंजन वाहनों की तुलना में सस्ता” बना देगा।

उनका कहना है, “लागत के तौर पर देखा जाए तो सोडियम-आयन सेल (Sodium Ion Batteries), लेड-एसिड की तुलना में थोड़ी अधिक महंगी होगी। लेकिन हमारे अनुमान के अनुसार, लिथियम-आयन सेल की तुलना में यह लगभग 30 से 40 प्रतिशत सस्ती होगी।” 

अगर लिथियम-आयन की तुलना में सोडियम-आयन तकनीक को देखा जाए, तो लागत के अलावा इससे और भी काफी फायदे नजर आएंगे। उपलब्धता और बैटरी क्षमता से लेकर पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव तक, यह हर मायने में लिथियम-आयन से बेहतर है। 

Sodium Ion Batteries हैं बदलाव की ओर एक कदम 

बाला पचयप्पा ने साल 2018 से ही लिथियम-आयन के लिए अल्टरनेटिव बैटरी केमिस्ट्री पर विचार करना शुरू कर दिया था। वह याद करते हुए बताते हैं, “हम जानते थे कि सॉलिड-स्टेट बैटरी को सस्ता होने में अभी एक और दशक लगेगा।” सिंगापुर में कुछ रिसर्च में ठोकर खाने के बाद, उन्होंने पाया कि किसी भी सेल के लाइफ पर प्रभाव डाले बिना, पूरी सोडियम-आयन बैटरी को जीरो वोल्ट तक डिस्चार्ज कर सकत हैं।

बाला कहते हैं, “यह सोडियम आयन सेल्स की सबसे अच्छी चीजों में से एक है। इससे लीथियम टाइटनेट ऑक्साइड (LTO) के 80 से 90 फीसदी फायदे मिलते हैं। एलटीओ सबसे अच्छी लीथियम सेल कैमिस्ट्रीज में से एक है। यह लंबे समय तक चलती है और इसमें तेजी से चार्ज होने की क्वालिटी भी होती है। लैब में सोडियम-आयन बैटरी (Sodium Ion Batteries) 10 मिनट में फुल चार्ज हो रही थी। हालांकि यह प्रयोगशाला के रिजल्ट थे। जब आप इन लैब तकनीक का व्यावसायीकरण करते हैं, तो आप प्रयोगशाला में देखे गए परिणामों या प्रदर्शन का 40-45 प्रतिशत हिस्सा खो सकते हैं। फिर भी, प्रदर्शन के मामले में सोडियम आयन एलएफपी (लिथियम फेरो फॉस्फेट) बैटरी से बेहतर है।” 

नहीं होता खतरनाक रसायन उत्सर्जन

प्रयोगशाला में सोडियम-आयन बैटरियों के प्रदर्शन को देखकर बाला और उनके सहयोगी काफी उत्साहित थे। प्रदर्शन को देखते हुए उन्होंने नवंबर 2019 में सोडियन एनर्जी की स्थापना कर डाली। कंपनी का उद्देश्य लिथियम की तुलना में सस्ता, सुरक्षित और बेहतर विकल्प खोजना है।

बाला बताते हैं, “सोडियम एक बेहतर विकल्प है। हम पृथ्वी से कोबाल्ट और निकल जैसी दुर्लभ मटेरियल का खनन किए बिना सुरक्षित, सस्ती और हाई डेन्सिटी वाली बैटरी विकसित कर रहे हैं। यह एक ऐसी गतिविधि है, जिससे न तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है और न ही अन्य खतरनाक रसायनों का उत्सर्जन होता है। सोडियम के डेन्सिटी की बात करें, तो सेल कैमिस्ट्री भले कुछ भी हो, लेकिन आप 95 वॉट घंटा प्रति किलोग्राम से 130 वॉट घंटा प्रति किलोग्राम के बीच रहना चाहते हैं, जो कि बाजार में अभी मौजूद बैटरियों के करीब है।”

इनकी रेंज लगभग 140 से 180 वॉट घंटा प्रति किलोग्राम होती है। भले ही सोडियम-आयन बैटरियों में अभी कम एनर्जी डेन्सिटी हो, लेकिन वे ठंडे तापमान पर बेहतर तरीके से चलती हैं और उनका जीवनकाल अधिक होता है। हमारे पास वर्किंग सेल हैं, जो परीक्षण के समय कुछ लाख सेल्स के एक या दो बैचों का उत्पादन करती हैं। सेल कैमिस्ट्री की बात करें तो, सोडियम-आयन एक प्रमाणित इकाई है, जो सेल कैमिस्ट्री, बैटरी को 20 मिनट में लगभग 100 प्रतिशत तक तेजी से चार्ज करने देती है और यह ज्वलनशील नहीं है।

Sodium Ion Batteries हो सकती हैं ग्लोबल गेम चेंजर्स

Sodium Ion Battery Cells (Image courtesy Faradion)

चीन की कंटेम्परेरी एम्पीयरेक्स टेक्नोलॉजी (CATL), दुनिया की सबसे बड़ी लिथियम सेल बैटरी निर्माता कंपनी है। इसने अभी हाल में अपनी नई सोडियम-आयन बैटरी का अनावरण करने का निर्णय किया है। उनके इस निर्णय से सोडियम आयन सेल को लेकर विश्वसनीयता बढ़ी है। रिपोर्ट्स से संकेत मिलते हैं कि बैटरी की एनर्जी डेन्सिटी 160 Wh/kg होने की उम्मीद है और इसे 80 प्रतिशत तक चार्ज होने में 15 मिनट का समय लगेगा।

सोडियम-आयन बैटरी के विकास की दिशा में एक और दिलचस्प प्रयास सामने आया है। इस महीने की शुरुआत में रिलायंस ने यूके की सोडियम-आयन बैटरी स्टार्टअप, फैराडियन को 135 मिलियन अमरीकी डॉलर में खरीदने का निर्णय लिया है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि फैराडियन के तकनीकी उत्पादों के व्यावसायीकरण में तेजी लाने के लिए रिलायंस 35 मिलियन अमरीकी डॉलर का और निवेश करेगी। इनमें इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लिए बैटरीज़ भी शामिल हैं।

ट्रैकिंग फर्म एसएंडपी ग्लोबल प्लैट्स के अनुसार, बैटरी-ग्रेड लिथियम कार्बोनेट की लागत पिछले 12 महीनों में तीन गुना से ज्यादा बढ़ी है। इसकी कीमत 30 डॉलर प्रति किलोग्राम से अधिक हो गई है। इस बीच, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि साल 2020 से लेकर 2040 के बीच लिथियम की मांग 43 गुना बढ़ जाएगी।

चीन पर निर्भरता होगी खत्म

सोडियम से हर देश, अपने दम पर बैटरी सेल बना सकता है। उसके लिए उसे चीन जैसे देशों पर कच्चे माल के लिए निर्भर नहीं होना पड़ेगा।बेशक, ऐसा होने के लिए, जरुरी है कि एक ईको सिस्टम और क्लस्टर निर्माण के विकास में निवेश किया जाए। सोडियम वैसे भी लिथियम या पोटेशियम की तुलना में काफी ज्यादा पाया जाता है। इसकी यह खासियत सोडियम को भविष्य के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण तकनीक बनाती है।

जेफरीज ग्रुप एलएलसी के विश्लेषकों के अनुसार, पृथ्वी के भंडार में सोडियम की मात्रा लगभग 2.5 से 3 प्रतिशत है। यह लिथियम से 300 गुना अधिक है और सभी जगह समान रूप से मिल जाती है। इसका मतलब है कि इसके लिए ज्यादा खर्च नहीं करना होगा। वर्तमान में उपलब्ध सबसे सस्ती इलेक्ट्रिक कार बैटरी विकल्पों की तुलना में इनकी कीमत, लगभग 30 से 50 प्रतिशत कम हो सकती है। इसके अलावा, सोडियम की कीमत लिथियम की तुलना में बाजार के उतार-चढ़ाव के प्रति कम संवेदनशील होती है।

बाला ने बताया, “बेशक, हमें एक निवेशक के नजरिए से भी देखना होगा। वे सोडियम-आयन सेल जैसी किसी चीज़ में निवेश करने से पहले इंतजार करना चाहेंगे। क्योंकि वे पहले से ही ली-आयन में निवेश कर चुके हैं। लिथियम में पहले किए गए निवेश और सोडियम समाधानों के रिसर्च, निवेश और विकास की कमी के कारण इस बदलाव में कुछ समय लगना तय है।”

भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के लिए फायदेमंद 

सोडियम-आयन बैटरियों (Sodium Ion Batteries) को एक नई सप्लाई चेन की जरूरत होगी। हालांकि कच्चे माल की लागत कम होने से मेन्यूफैक्चरिंग खर्च में कमी आएगी। CATL का दावा है कि 2023 तक इसकी सप्लाई चैन शुरु हो जाएगी। एक बार जब सोडियम आयन सेल की आपूर्ति बढ़ जाएगी और भारत में यह क्षेत्र संगठित हो जाएगा, तो सभी OEM लिथियम-आयन से दूर जाने लगेंगे।

यह बैटरी तकनीक सस्ती, गैर-ज्वलनशील होने के साथ-साथ लिथियम-आयन की तुलना में कहीं से भी कम नहीं है। बाजार में सस्ता और सुरक्षित विकल्प होने की वजह से कीमतों को लेकर सचेत रहने वाले उपभोक्ताओं या संसाधनों की कमी से जूझ रहे देशों के बीच ये बैटरीज़ व्यापक पहुंच बना लेंगी।

भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश वैश्विक हरित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी बड़ी महत्वाकांक्षी योजनाओं के साथ इलेक्ट्रिक कार उतारने की होड़ में हैं। हालांकि, उनके पास न तो संसाधन हैं और न ही उन तक पहुंच। वे आर्थिक रुप से ना तो इतने मजबूत हैं और न ही उनके पास कच्चा माल है।

Sodium Ion Batteries से लीड-एसिड बैटरी की ज़रूरत भी होगी खत्म

अगर आप इलेक्ट्रिक मोबिलिटी से परे जाकर विद्युतीकरण और अगले दशक में अधिक भंडारण क्षमता की जरूरतों को देखते हैं, तो सोडियम आयन, लिथियम के एक बेहतर विकल्प के रूप में नजर आता है। यह लीड-एसिड बैटरी की जगह ले लेगा। आज भी, लीड एसिड स्थिर बैटरी का प्रयोग काफी ज्यादा होता है। उदाहरण के लिए, एक स्थिर लीड-एसिड (SLA) बैटरी बैकअप पावर,  इमरजेंसी लाइटिंग, उपयोगिताओं, सुरक्षा प्रणालियों, तेल और गैस एक्सप्लोरेशन, नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों और भी कई जगहों पर इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।

बाला ने बताया, “सोडियम-आयन बैटरी, लीड-एसिड की जगह ले लेगी। सोडियम-आयन तुरंत लिथियम-आयन की जगह नहीं लेगा, लेकिन निश्चित रूप से लीड-एसिड बैटरियों को बदल देगा। यह देखते हुए कि 90 प्रतिशत स्टेशनरी एप्लीकेशन अभी भी लीड एसिड बैटरी से संचालित हैं। इसलिए सोडियम आयन बहुत ही बड़ा बदलाव ला सकता है।”

मूल लेखः रिनचेन नोर्बु वांगचुक

संपादनः अर्चना दुबे

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