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एक चम्मच इतिहास ‘आलू’ का!

History of Potato

आलू को भारत में सब्जियों का राजा कहा जाता है। पूरे साल बाज़ार में मिलने वाला यह आलू भारतीय खाने में अपनी पूरी पैठ बना चुका है, फिर चाहे वह फेसम स्नैक समोसा हो, पराठा या बिहार और पूर्वांचल में बनने वाला आलू-जीरा। उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक इसकी ज़बरदस्त मांग है। शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जहां इस सब्जी का इस्तेमाल न होता हो, लेकिन क्या आपको पता है कि यह भारतीय नहीं है?

आज से 500 साल पहले इस आलू का कोई अस्तित्व ही नहीं था। लगभग 15वीं शताब्दी के दौरान भारत में यह पहली बार आया था। भारतीयों को इसका स्वाद चखाने का श्रेय यूरोपियन और डच व्यापारियों को जाता है, जो भारत में इसे लेकर आए और यहां जमकर प्रचार किया।

कैसे हुआ आलू का जन्म?

इसका जन्म भारत में नहीं, बल्कि दक्षिण अमेरिका की एंडीज पर्वत श्रृंखला के टिटिकाका झील के पास हुआ था। देश में इस सब्जी को बढ़ावा देने का श्रेय वारेन हेस्टिंग्स को जाता है, जो 1772 से 1785 तक भारत के गवर्नर जनरल रहे। 18वीं शताब्दी तक आलू का पूरी तरह से भारत में प्रचार-प्रसार हो चुका था। उस वक्त इसकी तीन किस्में थीं। पहली किस्म के आलू का नाम फुलवा था, जो मैदानी इलाकों में उगता था। दूसरे का नाम गोला था, क्योंकि वह आकार में गोल होता था और तीसरे का नाम साठा था, क्योंकि वह 60 दिन बाद उगता था।

कैसे बना आलू परदेसी से देसी?

अमेरिकन वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक, इसका इस्तेमाल करीब 7000 साल पहले मध्य पेरु में हुआ था। हालांकि, दावा किया जाता है कि इसकी खेती कैरिबियन द्वीप पर शुरू हुई थी। तब इसे ‘कमाटा’ और ‘बटाटा’ कहा जाता था। 16वीं सदी में यह बटाटा स्पेन पहुंचा, स्पेन के ज़रिए इसने यूरोप में एंट्री ली और यूरोप पहुंचने के बाद बटाटा का नाम बदलकर ‘पटोटो’ हो गया।महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा जैसे भारत के पुर्गाल प्रभावी इलाकों में इसे आज भी बटाटा ही कहते हैं। 

भारत में आलू का असर 

बताया जाता है कि जब यूरोपियन व्यापारियों ने इसे कोलकाता में बेचना शुरू किया, तो इसके नाम में बदलाव हो गया और इसे आलू कहा जाने लगा। इस सब्जी की खेती की शुरुआत भारत में नैनीताल में हुई और धीरे-धीरे यह यहाँ लोकप्रिय होता गया। 19वीं शताब्दी तक, आलू पूरे बंगाल और उत्तर भारत की पहाड़ियों में उगाया जाने लगा।

कोलीन टेलर सेन ने ‘फूड ऑन द मूव : प्रोसीडिंग्स ऑफ द ऑक्सफोर्ड सिम्पोजियम ऑन फूड एंड कुकरी’ में इस बात का ज़िक्र किया कि कैसे आलू ने बंगाली व्यंजनों का स्वरूप ही बदल दिया।

अंग्रेज़ों का मानना था कि भारत में आलू की सफलता को चावल से ज़बरदस्त टक्कर मिलेगी। लेकिन असल में इसका उल्टा हुआ और भारतवासियों ने इसे आसानी से स्वीकार कर धीरे-धीरे अपनी रेसिपीज़ में आलू को शामिल कर लिया। आख़िर भारत का दिल है ही इतना बड़ा कि सबको शामिल कर लेता है। आज हम न सिर्फ़ आलू के अनगिनत व्यंजन बनाते हैं, बल्कि चीन के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े आलू उत्पादक देश भी हैं। 

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