बड़े शहरों के छोटे-छोटे घरो में लोग अपने बागवानी के शौक़ को छत पर पूरा करते हैं। ताज़ी सब्जियां हों या ताजे फल, सब कुछ टेरेस गार्डन पर आपको मिल जाएगा। लेकिन कुछ लोगों की नजर में यह थोड़ा महंगा सौदा है। उन्हें गलत भी नहीं कह सकते, क्योंकि नए पौधे, ऑर्गेनिक पॉटिंग मिक्स, फैंसी प्लांटर्स और बहुत कुछ हैं, जिसके लिए जेब ढीली करनी ही पड़ती है।
गार्डनिंग के खर्च को किया कम
तेलंगाना के मोहम्मद मोईन को भी शुरू में कुछ ऐसा ही लगा। लेकिन उन्होंने इस खर्च को थोड़ा कम करने का एक आसान रास्ता निकाल लिया। उनके अनुसार, मिट्टी और पौधों पर किए गए खर्च को तो आप कम नहीं कर सकते, लेकिन गमलों पर होने वाले खर्च में कटौती की जा सकती है। बस इसी सोच के साथ उन्होंने घर के बेकार पड़े सामान, किचन के बर्तन, खाली पड़े केन, वाटर ड्रम, पुराने जूते और पुरानी जीन्स सबको प्लांटर्स के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
द बेटर इंडिया को दिए गए अपने इंटरव्यु में मोहम्मद कहते हैं, “अपने घर की छत पर बागवानी के इस सफर की शुरुआत, मैंने साल 2017 में, गमलों में कुछ सब्जियां उगाने से की थी। उस समय मैं टेराकोटा पॉट में पौधे लगाता था। लेकिन धीरे-धीरे मैंने गमलों को खरीदना कम कर दिया। मुझे लगा कि मेरे घर के आसपास कितनी चीजे हैं, जिन्हें मैं गमलों की जगह इस्तेमाल कर सकता हूं, तो फिर गमलों पर खर्च क्यों करूं। आज मेरे टेरेस गार्डन और घर के आसपास की खाली जगह पर तरह-तरह के फलों, सब्जियों और अन्य तरह के लगभग 400 पौधे हैं और ये सब रीसाइकल्ड गमलों में लगे हैं।”
रीसाइकल्ड गमलों को कैसे बनाएं खूबसूरत?
कोई भी पौधा किसी भी गमले में नहीं लगाया जा सकता। इसके लिए थोड़ा सा रिसर्च वर्क चाहिए होता है। मोहम्मद के टेरेस गार्डन में टमाटर, ड्रमस्टिक, पालक, मिर्च, पेटुनिया फ्लावर, चीकू, अनार और ड्रेगन फ्रूट जैसे पौधे कई छोटे-बड़े गमलों में लगे हैं। जिन पौधों की जड़ों को फैलने के लिए जगह चाहिए, जैसे- चीकू, सहजन आदि को उन्होंने 500 लीटर के पानी के ड्रम या 20 लीटर की कैन में लगाया है। वहीं, छोटी जड़ों वाले पौधों को टायर या फिर तेल के कनस्तरों में उगाया है।
मोहम्मद ने बताया, “जब शुरू में मैंने पुराने सामान को रिसाइकिल कर इस्तेमाल करना शुरू किया, तो मुझे काफी अच्छा लगा। एक प्रेरणा मिल रही थी कि मैं पर्यावरण को लेकर जागरूक हो रहा हूं। लेकिन इससे मेरा गार्डन बोरिंग दिखना शुरू हो गया। फिर मैंने सोचा क्यों न इन्हें पेंट कर इनमें कुछ नए रंग भर दिए जाएं। बस इसके बाद से मैंने गमलों को रंगना शुरू कर दिया और उन्हें खूबसूरत बनाने में लग गया।”
यू-टयूब से सीखा तरीका
लॉकडाउन के दौरान मोहम्मद ने यूट्यूब पर वीडियो देखी, जिसमें गार्डनर पुरानी जीन्स और सूती कपड़े की पैंट को प्लांटर्स में बदलने के तरीके सिखा रहा था, यह आइडिया उन्हें जंच गया। आज उन्होंने भी तीन पुरानी जींस को प्लांटर्स में रीसाइकिल किया हुआ है।
मोहम्मद बताते हैं, “जींस को रीसाइकल करने से, कचरे को कम किया जा सकता है। साथ ही घर में गंदगी भी नहीं रहती क्योंकि जींस नीचे फैलनेवाले पोटिंग मिक्स को पकड़ कर रखता है। और अगर आप इसे इंनडोर प्लांट के लिए यूज़ कर रहे हैं, तो जमीन पर पानी फैलने की आपकी परेशानी काफी हद तक हल हो जाती है। जींस अतिरिक्त पानी को सोख लेती है।”
देहरादून की रहने वाली 35 साल की दीपिका अग्रवाल भी पुरानी जींस को रीसाइकल कर प्लांटर्स के लिए कवर बनाती हैं।
वह कहती हैं “पिछले साल लॉकडाउन में मैने शौकिया तौर पर बागवानी शुरू की थी। अपने इनडोर पौधों के लिए यूट्यूब पर कुछ वीडियोज़ देखीं। उसमें पुरानी जीन्स और सूती पजामे से प्लांटर्स बनाना सिखाया गया था। मुझे यह आइडिया अच्छा लगा। इससे घर भी गंदा नहीं होता और मेरे पौधे में भी जान है, इसका एहसास भी होता रहता है।”
पुरानी जींस से प्लांटर कवर बनाने का तरीका
मोहम्मद और दीपिका ने पुरानी जींस से प्लांटर्स के लिए कवर बनाने का तरीका हमारे साथ साझा किया। आप भी इसे सीखकर अपने रीसाइकल्ड गमलों को एक नया रूप दे सकते हैं।
जिन चीजों की होगी जरूरत:
- पुरानी जींस या सूती पजामा
- पुराने कपड़े, न्यूज़ पेपर या कॉटन (रुई)
- दो रबड़ बैंड
कैसे बनाएं प्लांटर कवर?
- पैंट के दोनों पैरों के निचले हिस्से को अलग-अलग रबड़ बैंड से बांध लें। इनमें किसी भी तरह का गैप नहीं होना चाहिए।
2. अब ऊपर की तरफ से इसमें पुराने कपड़े, रुई या अखबार भरना शुरू करें।
नोटः घुटनों से तीन इंच ऊपर तक इसे भरना है। आप अपने हिसाब से कोई भी फ्लैक्सिबल मटेरियल इसके अंदर भर सकते हैं।
3. अब इस पैंट को स्टूल, दीवार या शेल्फ पर कुछ इस तरह रखें मानों कोई इंसान बैठा हो।
4. अब एक रीसाइकल्ड कंटेनर में और्गेनिक पॉटिंग मिक्स भरें और उसमें पौधे को लगा दें।
5. रीसाइकल्ड गमले को पैंट के हिप वाले एरिया में फिट कर दें। जींस को दोनों किनारों से उठाएं और इसे कंटेनर रिम में अंदर की तरफ मोड़ दें।
मूल लेखः रौशनी मुथुकुमार
संपादनः अर्चना दुबे
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