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रिटायर्ड क्लर्क की अपील का असर, पंचायत में अब इस्तेमाल होते हैं सिर्फ स्टील के बर्तन

Shankaran Moosad Plastic Free Steel Container

केरल के कोझिकोड में सप्ताह के सातों दिन बाजार लगता है। यह बाजार कोझिकोड के सबसे व्यस्त बाजारों में से एक है। वैसे तो अमूमन सप्ताह के किसी एक दिन बाजारों में भीड़ होती है, मगर यहां रोजाना भीड़ देखने को मिलती है। इसी बाजार से कोझिकोड के रहनेवाले शंकरन मूसाद खरीदारी करने के लिए सामान की एक लिस्ट तैयार करते हैं। खरीदारी करने के बाद शंकरन प्लास्टिक (Plastic Free India) में रखी चीजों, जैसे मसाले, चीनी, फल आदि को खाली कर देते हैं। एक बार जब वह बाजार में ऐसा कर रहे थे, तभी दुकान की देखभाल करने वाले ने उन्हें देख लिया और ऐसा करने के लिए उन्हें मना किया।

इतना ही नहीं बल्कि कई लोग तो शंकरन मूसाद को ऐसा करते देख मोबाइल फोन से फोटो खींचने लगे। 56 वर्षीय शंकरन मूसाद एक रिटायर्ड क्लर्क हैं। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं सिर्फ प्लास्टिक के पैकेट में रखी चीजों को खाली करके उन्हें कागज से बने पैकेट में रखता हूं।वैसे तो यह काम लोग अपने घर पर भी करते हैं। प्लास्टिक को घर से बाहर रखने का मेरा मिशन जानने के बाद, दुकान के मैनेजर ने मुझसे कुछ नहीं कहा। उसके बाद मैं कई बार बाजार गया। अब यहां के लोग मुझे देखकर चौंकते नहीं हैं।”

एकल उपयोग में आने वाली प्लास्टिक की वस्तुओं (Plastic Free India) को खत्म करने को लेकर, भारत सरकार द्वारा जो अभियान चलाया जा रहा है, शंकरन मूसाद उसमें अपना योगदान दे रहें हैं। वह कहते हैं, “मैं प्रसिद्धि हासिल करने के लिए ऐसा नहीं कर रहा हूं। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते प्लास्टिक का उपयोग बंद कर रहा हूं। मेरे लिए अब यह स्वाभाविक सी बात है।”

कैसे हुई प्लास्टिक मुक्त मिशन की शुरुआत

Shankaran Moosad & his Wife

शंकरन मूसाद जब क्लर्क के पद पर कार्यरत थे, तब से ही उन्होंने प्लास्टिक मुक्त मिशन की शुरुआत कर दी थी। साल 2017 की शुरुआत में जब वज़क्कड़ पंचायत ने प्लास्टिक के खिलाफ एक अभियान शुरू किया, जिसमें नागरिकों से पर्यावरण के अनुकूल विकल्प को अपनाने की अपील की गई तब शंकरन मूसाद इस अभियान में शामिल होने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने इसके बारे में ना केवल दूसरों को बताया बल्कि
वह खुद अपने घर पर प्लास्टिक के कैरी बैग को कपड़े में बदलकर इस्तेमाल करने लगे।

उन्होंने अपने ऑफिस में काम करने वालों से गैर-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक कप और बोतल छोड़ने की अपील की। शंकरन मूसाद की इस कोशिश को पंचायत ने भी सराहा। कुछ दिनों बाद पंचायत के सामूहिक प्रयास से बाजार में चाय और कॉफी परोसने के लिए प्लास्टिक ग्लास की जगह स्टील के गिलास का उपयोग किया जाने लगा। उनसे प्रेरित होकर मूसाद के साथी अपना दोपहर का खाना स्टील के टिफिन बॉक्स में लाने लगे।

घर से हुई शुरुआत

शंकरन मूसाद को यह आभास हो गया था कि महज प्लास्टिक के कैरी बैग का उपयोग ना करने से ही यह मिशन पूरा नहीं होगा। घर में कई चीजें हैं जो प्लास्टिक से बनी हुई हैं। मूसाद कहते हैं, “जब मैंने और मेरी पत्नी ने घर में प्लास्टिक की वस्तुओं को गिनना शुरू किया तो हमने पाया कि हमारे घर में ज्यादातर चीजें प्लास्टिक की थीं। प्लास्टिक एक जहरीला पदार्थ भी है। ऐसे में हमने इसके उपयोग को कम करने की एक योजना बनाई।”

वह, महीने में एक या दो बार शहर जाते हैं और मार्किट से थोक में कपड़े के बैग खरीदते हैं। उनका मानना है कि लोगों को प्लास्टिक बैग की तुलना में कपड़े के बैग खरीदना थोड़ा महंगा पड़ता है। उन्होंने बताया, “हमारे घरों में पॉलिथीन की थैलियों का बहुत अधिक उपयोग किया जाता है।

हम उन्हें यह सोचकर स्टोर करते हैं कि हमारी अगली किराने की खरीदारी के लिए इसका पुन: उपयोग किया जाएगा। लेकिन हम अक्सर बाहर निकलते समय बैग लेना भूल जाते हैं और अंत में एक नया बैग ले लेते हैं।” लेकिन मूसाद परिवार का हर सदस्य, अब कम से कम एक कपड़े का थैला लेकर ही खरीदारी करने बाजार जाता है।

प्लास्टिक के बजाय, स्टील कंटेनर का करें इस्तेमाल

Shankaran Moosad House

प्लास्टिक के डिब्बों की जगह खाने की चीज़ों को स्टोर करने के लिए अब मूसाद परिवार स्टेनलेस स्टील के डिब्बों का उपयोग करता है। इन स्टील के डिब्बों पर नंबर लिखे हुए हैं, जिससे आसानी से इसकी पहचान की जा सके। खाने की चीज़ों को भी एक स्पेशल नंबर दिया गया है और इसके बगल में एक लिस्ट लगाई गई है ताकि आसानी से पता चल सके कि किसमें क्या है। शंकरन मूसाद कहते हैं, “मेरे दादा-दादी जब भी डेयरी में जाते थे, तो दूध हमेशा एक कंटेनर में ही लिया करते थे।”

शंकरन मूसाद की पत्नी प्रीतादेवी ने उनके मिशन में काफी सहयोग किया। प्लास्टिक का विकल्प चुनने में उनकी मदद करने के बाद, उन्होंने अब इसे अपना काम समझ लिया है। प्रीतादेवी एक शिक्षिका हैं। हाल ही में, वहां के निजी स्कूल में कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था।

इस आयोजन में प्रीतादेवी ने प्लास्टिक मुक्त पेन बनाने का अपना विचार रखा। प्रीतादेवी ने बताया कि स्कूल के प्रतियोगिता में “छात्रों ने क्राफ्ट पेपर से एक कलम बनाई और उसे सब्जी के बीज से भर दिया। वह एक बायोडिग्रेडेबल पेन था, जो वेस्ट हो जाने के बाद एक पौधे में अंकुरित हो जाएगा।

95 प्रतिशत प्लास्टिक मुक्त है, शंकरन मूसाद का घर

शंकरन मूसाद कहते हैं कि अभी उनका घर पूरी तरह से प्लास्टिक मुक्त नहीं हुआ है। क्योंकि शैम्पू की बोतलें और फोटो फ्रेम जैसी चीजें अभी
भी मौजूद हैं। उन्होंने बताया, “मैं कह सकता हूं कि मेरा घर 95 प्रतिशत प्लास्टिक मुक्त है।” सस्टेनेबल पर्यावरण के लिए सरकार के नेतृत्व वाली पहल हरिता केरल मिशन द्वारा, उनके प्रयासों को हाल ही में मान्यता दी गई थी और उनके आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर भी साझा किया गया था। “यह परिवार इस बात का एक अच्छा उदाहरण है कि परिवार प्लास्टिक मुक्त मिशन का पालन कैसे कर सकते हैं।

शंकरन मूसाद वास्तव में बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। उनका कहना बिल्कुल ठीक है कि आप जो उपदेश देते हैं, उसका अभ्यास करें। मुसाद इस बात का बड़ा उदाहरण हैं कि कुछ भी नामुमकिन नहीं है। जब पर्यावरण की बात हो तब विकल्प की तलाश करना कोई मुश्किल
काम नहीं है।

मूल लेखः गोपी करेलिया

संपादन- जी एन झा

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