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नौकरी और शहर छोड़कर सीखा मिट्टी का घर बनाना, अब दूसरों को भी देते हैं ट्रेनिंग

Tushar mud house pune, Aatmtrupti
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मुंबई-पुणे के बीच रायगढ़ जिले के उद्धर गांव में आर्किटेक्ट तुषार केलकर, खेत में बने अपने मिट्टी के घर (Mud House Pune) में रह रहे हैं। वन्य जीवों और खेती के प्रति अपने लगाव के कारण ही, उन्होंने आर्किटेक्चर की पढ़ाई करने के बाद भी, सादा जीवन जीने का फैसला किया।  

तुषार यहां अपनी पत्नी और पांच साल के बेटे के साथ रह रहे हैं। उनका पुश्तैनी घर भी इसी गांव में है। वह कहते हैं, “सालों पहले हमारा मिट्टी का ही घर था, लेकिन साल 2000 में मेरे परिवार ने घर को पक्के मकान में बदल दिया। इसके बाद, मैंने गांव से दूर खेत में अपने लिए फिर से मिट्टी का घर बनाया, जहां हम एक सुकून भरा जीवन जी रहे हैं।”

उन्होंने यहां एक चार कमरों का घर (Mud House Pune) बनाया है, जिसमें सारे कमरों को बांस, गोबर, मिट्टी, भूसी जैसी चीजों से बनाया गया है। छत बनाने के लिए, उन्होंने बांस और मिट्टी की टाइल्स का इस्तेमाल किया है। उन्होंने भारी बारिश से बचाव के लिए घर की छत से एक्सटेंशन्स दिए हैं, जिससे पानी बाहरी दीवारों को ज्यादा छू नहीं पाता। दीवारों पर, साल में दो बार गोबर की लिपाई की जाती है, जिससे बाहर के तापनाम के अनुसार अंदर का तापमान भी बदलता रहता है। 

पहले उनके घर का फर्श भी मिट्टी का था, लेकिन उन्होंने बताया, “हमारे घर के पास दो झील भी हैं, इसलिए बारिश के समय जमीन से बहुत पानी आता था, जिससे परेशान होकर मैंने पिछले साल ही फर्श को पक्का कर दिया है। हमारे पास ट्रेनिंग के लिए कई लोग आते रहते हैं और हमें सबकी सहूलियत का भी ध्यान रखना पड़ता है।”

इस घर में बिजली के लिए सोलर पावर का इस्तेमाल किया गया है, जिससे एक पंखा और कई लाइट्स जलती हैं। उनके घर (Mud House Pune) में टीवी, फ्रिज, AC जैसे कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नहीं हैं।  

Architect Tushar

सात साल पहले सीखा मिट्टी का घर बनाना 

तुषार को गांव से विशेष लगाव है। उन्होंने ITI का कोर्स करने के बाद, क़रीब एक साल तक पिम्परी (महाराष्ट्र) में टाटा मोटर्स में काम किया। इस दौरान, प्रकृति के पास रहने की कमी उन्हें हमेशा ही खलती रहती थी। उन्होंने बताया कि छुट्टी वाले दिन और जब भी समय मिलता, तो वह लोनावला के पास किलों में घूमने जाया करते थे। उन्होंने कुछ समय तक टूरिस्ट गाइड के तौर पर भी काम किया, लेकिन वह कुछ और करना चाहता था।

काम की तलाश में वह अपने एक दोस्त से मुंबई में मिले थे और उस दोस्त के जरिये ही, उन्हें मुंबई के पास एक रिसॉर्ट में काम करने का मौका मिला। वहां रहते हुए, उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें सस्टेनेबल (प्राकृतिक चीज़ों से बना पर टिकाऊ) घर बनाना सीखना चाहिए। साल 2011 में तुषार ने लगभग 27 साल की उम्र में उदयपुर जाकर सस्टेनेबल आर्किटेक्चर की पढ़ाई की, जिसके बाद उन्होंने हमेशा के लिए शहरी जीवन को अलविदा करके, गांव में ही रहकर काम करने का फैसला किया। 

While Making A Mud House

उन्होंने एक प्रोजेक्ट के तौर पर ‘आत्मतृप्ति’ की शुरुआत की। यह एक ईको-फ्रेंडली मॉडल है, जहां लोग गांव के परिवेश में रहकर इको-फ्रेंडली आर्किटेक्चर (प्राकृतिक चीज़ों से बना घर) सीखते हैं। तुषार, कोरोना के पहले साल में सात से आठ वर्कशॉप आयोजित करते थे, जिसमें वह मिट्टी के घर (Mud House Pune) बनाना, ऑर्गनिक फार्मिंग आदि सिखाते थे। 

फिलहाल, वह खेती के साथ मुर्गी पालन का काम भी कर रहे हैं। उनके शहर छोड़कर गांव में बसने के फैसले से उनके माता-पिता भी काफी खुश हैं। तुषार ने बताया, “आज मेरे कई दोस्त बड़े घर में या बड़ी गाड़ी में घूम रहे हैं, लेकिन मेरे माता-पिता ने कभी भी मेरी तुलना उनसे नहीं की, क्योंकि वह जानते हैं कि मैं जो कर रहा हूँ उसमें खुश हूँ।”

वहीं, उन्होंने खुद कर्णाटक, मध्यप्रदेश और राजस्थान में तकरीबन आठ ईको-फ्रेंडली घर तैयार किए हैं। आप तुषार से सम्पर्क करने के लिए आत्मतृप्ति की वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं।  

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