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भट्टी में नहीं, धूप में सुखाई ईंटो से बनी हैं इस घर की दीवारें, जानिए क्या है इसके फायदे

Bengaluru sustainable home made of eco friendly building material

शहरों में बने कॉन्क्रीट के बड़े-बड़े घरों और मॉडर्न फर्नीचर के चलन के साथ, हरियाली और प्रकृति से जुड़ाव कम होता जा रहा है। ऐसे घरों की दीवारों पर लगे पेंट से लेकर, एसी की हवा तक, सभी हमारे पर्यावरण के लिए ख़तरनाक हैं। शहर तो शहर, आजकल गावों में भी मिट्टी के बजाय पक्के मकान बनने लगे हैं। ऐसे में बेंगलुरु शहर के घोष परिवार के घर में, मिट्टी से बने घर जैसी ठंडक रहती है। इतना ही नहीं यह घर एक सस्टेनेबल घर भी है, जो अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए सिर्फ प्रकृति पर निर्भर करता है। 

साल 2014 से देबाशीष, उनकी पत्नी मौशमी, उनकी माँ और बेटा इस ईको-फ्रेंडली घर में रह रहे हैं, जिसका नाम है- ‘प्रकृति!’ 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए मौशमी बताती हैं, “जब हमने नया घर बनाने के बारे में सोचा, तब मेरे पूरे परिवार को कॉन्क्रीट और ग्रेनाइट से बना घर नहीं चाहिए था। इसी दौरान, हमने आर्किटेक्ट चित्रा विश्वनाथ के बारे में सुना, जो इस तरह के ईको-फ्रेंडली घर बनाने के लिए जानी जाती हैं। उनकी मदद से हम अपने सपनों का घर बना पाए।”

Ghosh Family

4000 स्क्वायर फ़ीट के एरिया में बने इस घर के आधे से ज्यादा हिस्से में गार्डन है। यानी पेड़-पौधों के बीच बसा यह घर, प्राकृतिक रूप से एक बेहतरीन ईको-सिस्टम बनाता है। 

ईको-फ्रेंडली संरचना 

चूँकि वे कॉन्क्रीट से बना सामान्य घर नहीं चाहते थे, इसलिए घर की दीवारों को हैंडमैड ईंटों से बनाया गया है। ये सभी ईंटें, भट्टी में जलाकर नहीं, बल्कि 21 दिनों तक धूप में सुखाकर बनाई गई हैं। सभी दीवारों को रस्टिक लुक देने के लिए उन्होंने पेंट, कलर आदि का इस्तेमाल भी नहीं किया है। 

वहीं घर के फ्लोर के लिए ज्यादा से ज्यादा टेराकोटा टाइल्स और रेड ऑक्साइड का उपयोग किया गया है, जो घर को ठंडा करने का काम करती हैं। इसके अलावा मौशमी बताती हैं कि इस तरह की फ्लोरिंग के कारण, उनके और उनकी माँ के घुटने के दर्द में भी काफी राहत मिली है। 

यह एक डुप्लेक्स घर है, जिसके ग्राउंड फ्लोर पर लिविंग रूम, किचन और एक कमरा है। वहीं, पहली मंजिल पर दो कमरे बने हैं। किचन और ऊपरी मंजिल के कमरे में स्काई विंडो बनाई गई है। ताकि दिन के समय प्राकृतिक रौशनी मिलती रहे। कमरों में बड़ी-बड़ी खिड़कियां बनी हैं और हर खिड़की से गार्डन का सुन्दर नज़ारा देखने को मिलता है। 

Prakriti A Sustainable

सस्टेनेबल व्यवस्थाएं 

न सिर्फ घर की संरचना को प्राकृतिक रखा गया है, बल्कि घर की जरूरी सुविधाओं के लिए भी,  प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जा रहा है। चूँकि घर में पंखे और एसी नहीं लगे हैं और ज्यादा से ज्यादा सूरज की रोशनी का इस्तेमाल होता है। इसलिए, घर की बिजली की आवश्यकता काफी कम है। रसोई के इंडक्शन को छोड़कर, घर की सभी लाइट्स, कम्यूटर आदि सोलर ऊर्जा से चलते हैं। सोलर पैनल से मिलनेवाली, महीने की मात्र एक किलो वाट ऊर्जा, घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी है। 

इसके अलावा, जो बात इस घर को और घोष परिवार को दूसरों से अलग बनाती है, वह है घर में की गई रेनवॉटर और ग्रेवॉटर व्यवस्थाएं। किचन, बाथरूम  के उपयोग से लेकर पीने के लिए वे बारिश के पानी का इस्तेमाल करते हैं। बारिश के पानी को इकट्ठा करने और फ़िल्टर करने के लिए टंकियां बनाई गई हैं। बारिश के दिनों में 10 हजार लीटर की टंकी भरने के बाद, एक्स्ट्रा पानी बोरवेल में जाता है। इस तरह बारिश का पानी न सिर्फ उनके घर की जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि जमीन के जल स्तर को भी बढ़ाने का काम कर रहा है। 

मौशमी ने बताया, “कुछ साल पहले हमारे पास वाले घर के बोरवेल का पानी बिल्कुल सूख गया था। लेकिन जब से हम यहां रहने आए हैं, तब से उनके बोरवेल का जल स्तर काफी अच्छा हो गया है।”

Inside View

उपयोग किए हुए वेस्ट पानी से गार्डन में छाई हरयाली

मौशमी ने बताया कि उनके घर में सजावटी पौधों के साथ-साथ कई फलों के पेड़ भी लगे हुए हैं। हालांकि, पहले वह सब्जियां भी उगाया करती थीं। लेकिन अपने काम में व्यस्त रहने के कारण वह सब्जियों के पौधों की सही देख-भाल नहीं कर पा रही थीं। इसलिए फ़िलहाल उन्होंने सब्जियों के पौधे नहीं लगाए हैं। वह कहती हैं, “जब हम यहां रहने आए थे, इस जमीन पर एक भी पौधा नहीं लगा था और सिर्फ पांच सालों में यहां हरियाली छा गई है। अभी हमारे पास अनार, केला, नारियल, सीताफल, नींबू सहित कई और बड़े पेड़ हैं।”

गार्डन के पेड़-पौधों को पानी देने के लिए, वे उपयोग किए हुए ग्रेवॉटर का इस्तेमाल करते हैं। कपड़े, बर्तन धोने और नहाने के बाद निकला पानी फ़िल्टर करके उपयोग में लिया जाता है। जिसके लिए अलग से व्यवस्था की गई है। एक, सात फ़ीट की नाली से होता हुआ, गन्दा पानी ग्रेवॉटर टैंक में जाता है। उस नाली में मौजूद पत्थर और कंकड़ पानी से साबुन और बाकी केमिकल को अलग करते हैं। हालांकि, मौशमी ने बताया कि वे घर में कम से कम केमिकल का उपयोग करते हैं।  

Garden

अंत में वह कहती हैं, “इस तरह के घर को बनाने में शुरुआती खर्च थोड़ा ज्यादा तो आता है, लेकिन अगर दूर की सोचें, तो लगभग दो से तीन सालों में ही, आपकी निर्माण लागत वसूल भी हो जाती है। क्योंकि बाद में, घर का बिजली और पानी का खर्च ना के बराबर होता है।” 

यानी यह कहना गलत नहीं होगा कि जैसा इस घर का नाम है, यह घर बिल्कुल वैसी ही है, प्रकृति से जुड़ा हुआ।  

संपादन- अर्चना दुबे

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