हमारे देश में आज भी न जाने कितनी महिलाएं माहवारी के दिनों में कपड़ा, पत्ते, राख जैसी असुरक्षित चीजें इस्तेमाल करती हैं। देश के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में जागरूकता की कमी के साथ-साथ सैनिटरी नैपकिन जैसे विकल्प कम लागत में उपलब्ध न हो पाना भी इस स्थिति के मुख्य कारणों में से एक है।
इसके साथ ही हम यह भी नहीं कह सकते कि जो महिलाएं सैनिटरी नैपकिन या फिर टेम्पोन इस्तेमाल करती हैं, वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं। क्योंकि इन महिलाओं को भले ही पैड्स आदि इस्तेमाल करने की सुविधा हो लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि सेनेटरी नैपकिन के कौन-कौन से विकल्प उचित हैं।
दरअसल हम जब भी कोई सामान खरीदते हैं तो सिर्फ अपनी ज़रूरत और सामान की कीमत देखते हैं। यह कभी नहीं सोचते कि क्या वह उत्पाद हमारे पर्यावरण और जीव-जन्तुओं के लिए सुरक्षित है। यहां तक कि महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी पैड्स भी पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। बहुत ही कम मात्रा में सैनिटरी पैड्स का उपयोग के बाद सही प्रबंधन होता है। ज़्यादातर कचरे के ढ़ेरों में आपको पैड्स दिख जाएंगे, जो बहुत बार मिट्टी, पानी के स्त्रोत और पहाड़ों आदि को दूषित करते हैं।
100% कंपोस्टेबल पैड्स
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ‘आकार इनोवेशन्स’ ने कम लागत वाले 100% कंपोस्टेबल ‘आनंदी इको+’ पैड्स बनाए हैं जो पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल हैं। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया लैब द्वारा सर्टिफाइड आनंदी देश का पहला कंपोस्टेबल और सस्टेनेबल सैनिटरी नैपकिन है। इसका एक पैकेट आपको 40 रुपये में मिलता है, जिसमें 8 पैड्स होते हैं।
आनंदी इको+ की खासियत यह है कि इन्हें अलग-अलग एग्रोवेस्ट जैसे जूट, केले का फाइबर आदि से बनाया जा रहा है। यह एग्रोवेस्ट जैविक है और बहुत ही आसानी से अपघटित हो जाता है। जी हाँ, यदि इन पैड्स को उपयोग के बाद मिट्टी में दबा दिया जाए तो यह 90 से 180 दिनों में कंपोस्ट में बदल जाता है। यह डीकंपोज होते वक़्त मिट्टी में किसी भी तरह का कोई हानिकारक तत्व नहीं छोड़ता। इसलिए ये पैड्स इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल हैं।
आकार इनोवेशन्स के फाउंडर जयदीप मंडल बताते हैं, ” एक दफे मैं अफगानिस्तान गया। इस दौरे में मुझे अहसास हुआ कि सैनिटरी नैपकिन को इस्तेमाल के बाद सही तरीके से डिस्पोज किया जाना हमारे पर्यावरण के लिए बहुत ज़रूरी है। हम साल 2010 से ही अपने स्टार्टअप के ज़रिए पैड्स बना रहे थे लेकिन इस एक दौरे के बाद, मैंने ठान लिया कि मुझे इको-फ्रेंडली विकल्पों पर काम करना होगा। वह भी ऐसा विकल्प जो कम लागत वाला हो ताकि यह हर तबके की महिलाओं के लिए खरीद पाना मुमकिन हो।”
एमबीए करने वाले जयदीप ने ‘आकार’ को एक कॉलेज प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया था और फिर साल 2011 में इसे रजिस्टर कराया। उन्होंने बहुत से एक्सपेरिमेंट्स करके एक ऐसी मशीन बनाई जिससे कि आसानी से सैनिटरी नैपकिन बनाए जा सकें।
उन्होंने उत्तराखंड के एक गाँव में अपना पायलट प्रोजेक्ट किया। जयदीप के मुताबिक, वह ग्रामीण इलाकों में महिला स्वयं सहायता समूहों को अपने मशीन बेचते हैं और उन्हें एक सैनिटरी नैपकिन मैन्युफैक्चरिंग यूनिट सेट-अप करने में मदद करते हैं। पैड्स बनाने के लिए सभी रॉ मटेरियल भी आकार इनोवेशन्स ही इन महिला उद्यमियों को उपलब्ध कराता है।
विदेश में भी हैं यूनिट्स
फ़िलहाल, भारत में 30 से भी ज्यादा आनंदी पैड्स मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हैं जो 12 अलग-अलग राज्यों में फैली हैं। इन सभी यूनिट्स को महिलाओं द्वारा ही चलाया जा रहा है। इस तरह से वह न सिर्फ ग्रामीण इलाकों तक सुरक्षित पैड्स पहुंचा रहे हैं बल्कि यहाँ की महिलाओं को उद्यमी भी बना रहे हैं। साथ ही उनकी इन यूनिट्स के ज़रिए 1000 से भी ज्यादा गाँव की महिलाओं को रोज़गार मिला हुआ है। भारत के अलावा केन्या, तंज़ानिया, नेपाल, जिम्बावे, यूगांडा और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी उनकी यूनिट्स हैं।
अब तक आकार इनोवेशन्स ने ग्राहक के तौर पर 10 लाख से भी ज्यादा महिलाओं और लड़कियों की ज़िंदगी को प्रभावित किया है। इसके अलावा, उनकी एक टीम इन इलाकों में लोगों को माहवारी के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाने के लिए भी काम करती है। जयदीप कहते हैं कि आज भी भारत में इस विषय पर खुलकर बात नहीं होती। इसे शर्म की बात समझा जाता है। लेकिन हम उन्हें समझाते हैं कि माहवारी न सिर्फ औरतों के जीवन का बल्कि समाज के जीवन का भी बेहद ज़रूरी विषय है। क्योंकि इस सीधा संबंध नई ज़िंदगी से है।
साथ ही, स्कूल-कॉलेज में लड़कियों और महिलाओं को माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले अलग-अलग विकल्पों के बारे में बताया जाता है। बिना अपने ब्रांड की मार्केटिंग किए, उनका उद्देश्य इन लड़कियों को एक ज़िम्मेदार ग्राहक बनाने की तरफ होता है।
जयदीप ने कहा, “हम उन्हें मेंस्ट्रुअल कप से लेकर बायो-डिग्रेडेबल पैड्स और कंपोस्टेबल पैड्स के बारे में बताते हैं। इनके बीच का फर्क समझाते हैं ताकि वे किसी भी ब्रांड का प्रोडक्ट खरीदें लेकिन इसे खरीदते समय अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण के बारे में पहले सोचें। बहुत सी ब्रांड्स बायो-डिग्रेडेबल पैड्स बेचतीं हैं लेकिन वे यह नहीं बतातीं कि कितने समय में यह पैड डीग्रेड होगा क्योंकि इसमें सालों का समय भी लग सकता है और यह पर्यावरण के लिए सही नहीं।”
‘आनंदी पैड्स’ लॉन्च करके जयदीप और उनकी टीम समाज और पर्यावरण के प्रति अपना कर्तव्य निभा रही है। लेकिन इसके साथ ज़रूरी यह भी है कि हम महिलाएं सैनिटरी पैड्स के सही विकल्प चुनें जो हमारे स्वास्थ्य के लिए उचित हों और पर्यावरण के अनुकूल भी।
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आनंदी पैड्स के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप यहाँ क्लिक करें और यदि आप जयदीप से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें jaydeep@aakarinnovations.com पर ईमेल कर सकते हैं!