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रु. 300 की कबाड़ साइकिल को बदला सोलर साइकिल में, चलाने में नहीं आता एक पैसे का भी खर्च

solar cycle

होनहार बिरवान के होत चिकने पात-  यह वाक्य शायद वड़ोदरा के नील शाह जैसे बच्चों के लिए ही कहा गया होगा। फिशरीज डिपार्टमेंट से रिटायर्ड नील के पिता प्रद्युम्न शाह भले ही मात्र सातवीं तक पढ़ें हों, लेकिन आज अपने बेटे को पढ़ाने के लिए हर मुमकिन प्रयास कर रहे हैं। ज्यादातर बच्चे गणित और विज्ञान विषय समझ न आने की शिकायत करते हैं, जबकि नील ने इसे अपना दोस्त बना लिया है। न सिर्फ किताबी ज्ञान, बल्कि वह उसके प्रायौगिक उपयोग की भी जानकारी रखते हैं। 

किताबें पढ़ने के शौक़ीन बारहवीं के छात्र नील ने हाल ही में अपने टीचर की मदद से एक सोलर साइकिल डिज़ाइन किया है। एक ई-स्कूटर की तरह काम करने वाली इस साइकिल को चलाने में कोई खर्च नहीं आता। साइकिल में लगे सोलर पैनल से ऊर्जा लेकर इसकी बैटरी चार्ज होती है, जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान भी नहीं पहुँचता।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए 18 वर्षीय नील बताते हैं, “किसी भी सामान्य ई-स्कूटर को चार्ज करने में इलेक्ट्रिसिटी का उपयोग होता है,  जिसे कार्बन उत्सर्जन करके ही बनाया जाता है। लेकिन मेरी यह साइकिल सूरज की रोशनी और पैडल के जरिए चार्ज होती है। इसमें न पैसे खर्च होते हैं और न किसी तरह का कार्बन उत्सर्जन होता है।”

बचपन से ही है विज्ञान में रुचि 

नील शाह

नील जब चौथी-पांचवी कक्षा में थे, तभी से उन्हें विज्ञान में काफी दिलचस्पी थी। हालांकि उस समय उनकी क्लास में यह विषय पढ़ाया भी नहीं जाता था। इस बारे में बात करते हुए नील बताते हैं, “मैंने बचपन में स्कूल लाइब्रेरी में क्रिएटर नाम की एक किताब पढ़ी थी। उस किताब में अलग-अलग विज्ञान के मॉडल्स बने हुए थे। तभी से मुझे यह जानने की जिज्ञासा हुई कि ये सारी चीजें बनती कैसे हैं? बाद में जब स्कूल में विज्ञान का विषय पढ़ाया गया, तब मुझे लगा कि अच्छा इन सारे अविष्कारों के पीछे विज्ञान है।”

स्कूल के ‘बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट’ प्रतियोगिता में जहां दूसरे बच्चे घर या पेन स्टैंड बनाकर लाए थे। वहीं, कक्षा सातवीं में पढ़नेवाले नील ने बेकार पड़ी प्लास्टिक बोतल, कार्डबोर्ड और छोटी मोटर लगाकर एक हेलीकॉप्टर बनाया था। वह हेलीकॉप्टर एक फुट तक उड़ भी सकता था। इसके बाद उन्होने किताबें पढ़कर ही  टेलिस्कोप, एटीएम, प्रोसेसिंग प्रिंटर और रोबोट सहित कई इनोवेटिव प्रोजेक्ट्स तैयार किए। 

महीने भर में बना डाली सोलर साइकिल 

सोलर साइकिल

नील, दसवीं कक्षा के फिजिक्स के टीचर संतोष कौशिक को अपना मार्गदर्शक मानते हैं। पिछले तीन सालों से संतोष सर ने नील की कई प्रोजेक्ट्स बनाने में मदद की है। संतोष कौशिक बताते हैं, “नील हमेशा लाइब्रेरी से फिजिक्स की किताबें लेकर आता था और उसके कांसेप्ट के बारे में पूछता था। हालांकि वे सारी किताबें उनके सिलेबस से बाहर की होती थीं। इसी साल मैंने सोलर पैनल से चलनेवाली एक साइकिल बनाने का कांसेप्ट उसे दिया। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ की मात्र एक महीने में उसने इसे तैयार भी कर दिया।”

साइकिल बनाने से पहले नील ने तीन पहलुओं पर काम करना शुरू किया। पहला तो स्कूटर का मॉडल दूसरा- बैटरी का काम और तीसरा- सोलर पैनल की जानकारी। नील के पिता ने मात्र 300 रुपये में कबाड़वाले से एक साइकिल खरीदी थी। नील ने इसे महज 12 हजार रुपये खर्च करके एक सोलर साइकिल में बदल डाला। 

साइकिल पर लगे सोलर पैनल की मदद से इसकी बैटरी चार्ज होती है और यह एक स्कूटर की तरह काम करने लगता है। जबकि टायर से जुड़ा डायनेमो, सोलर लाइट के बिना भी इसे चार्ज करने में मदद करता है। यानी रात के समय में अगर साइकिल को चार्ज करना हो, तो यह डायनेमो इसे चार्ज कर सकता है। 

उन्होंने बताया, “मैंने इस सोलर साइकिल में 10 वॉट की सोलर प्लेट लगाई है, जिससे साइकिल 10 से 15 किमी का सफर आराम से तय कर सकती है।”

Neel With His Family And Teachers

फिजिक्स का साइंटिस्ट बनना है लक्ष्य 

नील को इस तरह की और कई साइकिल्स बनाने के ऑर्डर भी मिलने लगे हैं। जिसपर वह बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं के बाद काम करेंगे। फ़िलहाल, वह अपनी बारहवीं की पढ़ाई पर ध्यान दे रहे हैं। वह दसवीं से ही बिना ट्यूशन के पढ़ाई करते हैं। इतना ही नहीं वह अपने दोस्तों को भी विज्ञान पढ़ाते हैं। 

जगदीश चंद्र बोस और सतेंद्रनाथ बोस को अपना रोल मॉडल माननेवाले नील आगे चलकर फिजिक्स साइंटिस्ट बनना चाहते हैं।  

उम्र के इस पड़ाव पर, जब ज्यादातर बच्चे अपने भविष्य और करियर को लेकर दुविधा में होते हैं, नील ने अपना लक्ष्य तय कर लिया है, वह इसके बाद बीएससी फिजिक्स, एमएससी फिजिक्स और फिर पीएचडी फिजिक्स की पढ़ाई करके कई बड़े-बड़े अविष्कार करना चाहते हैं। 

अपने सोलर साइकिल प्रोजेक्ट के बारे में वह कहते हैं, “मेरे सभी दोस्त बाइक और स्कूटर चलना सीखते थे। लेकिन मैंने फैसला किया था कि मैं किसी और ब्रांड की बनाई हुई नहीं, बल्कि खुद की बनाई बाइक ही चलाऊंगा।” 

संपादन – अर्चना दुबे

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