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64 वर्षीया शुभांगी की प्लास्टिक फ्री मुहिम, मुफ़्त में बाँट चुकी हैं 35,000 कपड़े के थैले!

chattisgarh woman

कहते हैं कि अगर किसी काम को करने के लिए दृढ़ संकल्प कर लिया जाए तो फिर दुनिया की तमाम बाधाएँ भी अवसर बन जाती हैं। इसका जीवंत उदाहरण हैं छत्तीसगढ़ की राजधानी, रायपुर में रहने वाली शुभांगी आप्टे, जिन्होंने सिंगल यूज़ प्लास्टिक के खिलाफ अकेले ही जंग छेड़ दी। 64 वर्षीय शुभांगी 2012 से ही लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक कर रही हैं। वह पिछले काफी समय से फ्री में कपड़े से बने थैले बाँट रही हैं और उसके उपयोग के लिए भी आम जनता को प्रेरित कर रही हैं।

शुभांगी आप्टे

देखा नहीं गया दर्द

शुभांगी कहती हैं, “रोजमर्रा की ज़िन्दगी में हम न जाने कितनी प्लास्टिक उपयोग करते हैं लेकिन क्या कभी एक सेकंड भी इसके दुष्परिणाम के बारे में सोचा है। आए दिन अख़बारो में नकारत्मक खबरें पढ़ने को मिलती हैं जैसे प्लास्टिक खाने से गाय की मृत्यु हो जाना, तालाबों में गंदगी होना और नालियों का जाम होना। इन सभी खबरों को पढ़कर मैं बेहद दुखी हो जाती थी। इसलिए सोचा कि क्यों न खुद ही शुरुआत की जाये। मैंने संकल्प लिया कि अब खुद ही अपने जीवन में सिंगल यूज़ प्लास्टिक का उपयोग बंद करुँगी और दूसरों को भी प्लास्टिक के उपयोग को छोड़ने के लिए प्रेरित करुँगी।

जो कभी उड़ाते थे मजाक, आज साथ जुड़कर कर रहे हैं काम

बस्तियों में थैला वितरण करते हुए

शुभांगी बताती हैं, “जब मैंने इस मुहिम की शुरुआत की तो बहुत लोग कहने लगे कि यह उम्र आराम करने की है न कि सामाजिक बीड़ा उठाने की। बहुत लोगों ने मजाक उड़ाया, तो कुछ लोग तंज कसते हुए कहते थे कि यह सब करने से कुछ नहीं होगा। बहुत बार यह भी सुनने को मिलता कि आपके अकेले के करने से क्या होगा।”

लेकिन शुभांगी का मानना थोड़ा अलग ही है। वह कहती हैं,  “मेरा मानना है कि समाज में बदलाव लाना है तो दूसरों को सुनने से पहले अपने दिल की सुनो और मैंने वही किया। मैं अपने काम पर लगी रही और थैले बनाने का काम निरंतर जारी रखा। मैं लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करती रही। जो लोग कल तक मेरा मजाक उड़ाते थे, आज वो न केवल इस पहल की सराहना करते हैं बल्कि मुहिम में हिस्सा बनकर सहयोग करने की बात भी कर रहे हैं। जो पर्यावरण के प्रति जागरूकता को मजाक समझते थे, आज वो जागरूक हो रहे हैं और मैं इसी को सफलता मानती हूँ।”

जनजागरूकता कार्यक्रम में शुभांगी आप्टे


2020
तक 51000 थैलो का लक्ष्य

शुभांगी अभी तक 35,000 थैलियाँ बाँट चुकी हैं। उन्होनें थैले बनाने के लिए कभी किसी से आर्थिक सहयोग नहीं लिया। जो भी खर्च आया उसे खुद ही वहन किया। उन्हें प्रति थैली के हिसाब से करीब 4 रूपए का खर्च आता है, जिसे शुभांगी खुद ही अपनी जमा पूंजी से देती हैं।

शुभांगी ने द बेटर इंडिया को बताया, “इस मुहिम से 3 महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है और 2020 के अंत तक हमारा लक्ष्य है कि हम 51000 कपड़े के थैलों का निःशुल्क वितरण करें और लोगों को इसका उपयोग करने के लिए प्रेरित करें। इसके अलावा मैं कोरोनाकाल की इस घड़ी में नियमति रूप से मास्क भी बाँट रही हूँ। कपड़ों  के थैले के साथ मास्क वितरण इस समय बेहद जरुरी है।”

महँगे कपड़े और गहने नहीं चाहिए

शुभांगी ने 2012 से अब तक किसी भी प्रकार के महंगे कपड़े और गहने नहीं ख़रीदे हैं। इस विषय पर वह कहती हैं, “मेरी सहेलियाँ जब भी बाज़ार जाती हैं मुझे साथ चलने को कहती हैं लेकिन अब कपड़ो और गहनों का तो मन ही नहीं करता। जो बचत होती है उन्हें सामाजिक कार्यो में लगा देती हूँ और अब समाज के लिए कुछ बेहतर करना ही मेरा एक मात्र लक्ष्य हैं। जब तक स्वस्थ हूँ और साँसे चल रही हैं तब तक कपड़ों के थैले का वितरण और सिंगल यूज़ प्लास्टिक के खिलाफ यह मुहिम अनवरत जारी रहेगी।”

कई रिकॉर्ड भी करा चुकी हैं दर्ज

छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके को थैला देते हुए

शुभांगी के नाम 53 रिकॉर्ड दर्ज हैं जिसमें से 20 लिम्का बुक में दर्ज हैं। 2008 में शुभांगी 3500 कीरिंग कलेक्शन के लिए तो 2010 में विजिटिंग कार्ड कलेक्शन के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं। वहीं 2011 में छोटे साइज की भगवतगीता के कलेक्शन के लिए चैंपियन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं।

वहीं 2019 में पर्यावरण संरक्षण के लिए कपड़े के 35 हजार थैले खुद सिलकर निःशुल्क बांटने के लिए भी वह चैंपियन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकाॅर्ड में अपना नाम दर्ज जरा चुकी हैं। इतना ही नहीं 2016 में ब्लाइंड बच्चों को ब्रेल लिपि की गेम बुक बनाकर निशुल्क बांटने के लिए और 2018 में 900 लड़कियों को रंगोली किट बांटने के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं।

शुभांगी आप्टे के जूनून और निरंतर प्रयास के सामने उम्र की सीमाएं भी बौनी साबित हो गईं। उन्होंने साबित कर दिया कि उम्र कितनी भी क्यों न हो जाए, सपने और अभिलाषाएं हरदम जवान होते हैं।

वह इस उम्र में भी पर्यावरण के प्रति समर्पित हैं और लोगों को जागरूक करने लिए सदैव तत्पर रहती हैं। इस नेक कार्य के लिए द बेटर इंडिया शुभांगी को सलाम करता है।

संपादन- पार्थ निगम

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