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पर्यावरण को बचाने के साथ-साथ, कचरा उठाने वाले अब करेंगे सम्मानपूर्ण नौकरी !

आर्थिक विकास और शहरीकरण की देन है, हर तरफ लगा कचरे का अम्बार। पर एक एनजीओ प्रयासरत है कचरे को बेहतर तरीके से ठिकाने लगाने में हमारी मदद करने में , कचरा उठाने वालों को बेहतर जीवन प्रदान करने में और कचरे को रीसायकल (दुबारा इस्तेमाल करने लायक) कर के वातावरण को साफ रखने में।

दिल्ली में स्थित एनजीओ, चिंतन एनवायरमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप को २०१५ में ‘यूनाइटेड नेशंस मोमेंटम फॉर चेंज’ अवार्ड से सम्मानित किया गया है।

यह अवार्ड उन्हें उनकी उस पहल के लिए दिया गया है, जिसमे उन्होंने कचरा उठाने वालो को ट्रेनिंग देने और कचरे को सुरक्षित तरीके से ठिकाने लगाने के प्रयास शुरू किये हैं।


खोकुन हामिद जिसका गुज़ारा एल्क्ट्रोनिक कचरा उठाने से चलता है ने चिंतन की तरफ से पुरस्कार लिया।

“चिंतन का मुख्य उद्देश्य सही और पर्यावरण के लिए अनुकूल उत्पादन और उपयोग और कचरे का सही विस्थापन करना है। हम कचरा चुनने को अपनी जीविका बनाने वालों को एक सुरक्षित और सम्मानपूर्ण नौकरी देना चाहते हैं।”

-चिन्तन की प्रोग्राम हेड चित्रा मुखर्जी कहती हैं।

चूँकि चितन का मुख्य केंद्र बिंदु कचरा उठाने वाले हैं, इसलिए चिंतन शहर में रहने वाली निचले तबके की आबादी जैसे कचरा चुनने वाले और कबाड़ियों के साथ काम करती है। लेकिन सफल होने के लिए इस संस्था को कई लोगों को अपनी इस मुहिम में शामिल करना होगा जैसे की छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों, नगरपालिका के कर्मचारी, नीति निर्माताओं और साथ ही साथ पुलिस। चिंतन ने अपनी शुरुआत शोधों, अभियानों, नीति सुधार, रीसायकलर्स के क्षमता निर्माण और मध्य और उच्च वर्ग में कचरे का बेहतर तरीके से निबटारा करने से की है।

चिंतन उन गिनी चुनी संस्थाओं में से है जो अधिकारिक रूप से इलेक्ट्रॉनिक-कचरे के लिए काम करती है। पिछले चार सालों में चिंतन ने २५ टन कचरे को रीसायकल करने में मदद की है।

नए लोगों के लिए ई-कचरे की रीसाइक्लिंग में ज्यादा खर्चा आता, इसलिए उन्हें कचरे को छांटने के  लिए ज्यादा पैसे दिए जाते हैं।

“भारत में ई-कचरे को भी घरेलु कचरे के साथ फैंक दिया जाता है। अगर कचरा ३ टन से कम हो तो औपचारिक रीसायकलर्स इलेक्ट्रॉनिक कचरे को स्वीकार नही करते। हम लोग कचरा चुनने वालों को इस कचरे को अलग करना सिखाते हैं और इस कचरे को अपने पास जमा करते हैं जब तक इसकी मात्रा रीसायकलर्स को बेचने लायक नही हो जाती।”

-चित्रा ने बताया।

आपको शायद यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत इलेक्ट्रॉनिक कचरे का पांचवा सबसे बड़ा उत्पादक है। ई कचरे से निकलने वाला मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से २५ गुना ज्यादा  गर्मी सोखता है। इसलिए रीसाइक्लिंग बहुत आवश्यक है।

अगर अनौपचारिक कचरा क्षेत्र भी मरम्मत और पुनरावृति की प्रक्रिया में शामिल हो जाये, तब शायद लोग इलेक्ट्रॉनिक सामानों को खरीदना कम करेंगे जिस से ई-कचरे की मात्रा काफी कम हो जाएगी।

चिंतन जैसी संस्थाएं दुनिया को ये याद दिलाते है कि कचरा सिर्फ कचरा नही बल्कि उन लोगों से भी जुडी चीज़ है, जो कचरे को सँभालते हैं और उसे सही जगह पहुचाते हैं। भारत में लाखों गरीब लोग कचरा प्रबंधन से जुड़े हैं, जो लोगों के पैसे भी बचाते हैं और ग्रीनहाउस गैस की मात्रा कम करने में मदद करते हैं।

अपने कार्यक्रमों को और प्रभावशाली बनाने के लिए चिंतन ने ‘सफाई सेना’ को अपने साथ शामिल किया है।

सफाई सेना कर्मचारी

सफाई सेना कचरा उठाने वालों का एक रजिस्टर्ड समूह है, जिसमे दरवाजे से कचरा उठानेवाले, कचरा खरीदनेवाले  और हर तरह के रीसायकलर्स शामिल हैं। इस समूह का उद्देश्य कचरा प्रबंधन को एक सम्मानित पेशा बनाना है, जो न सिर्फ वातावरण के लिए अच्छा है बल्कि उन लोगो के लिए भी लाभदायक है, जो इसमें शामिल हैं। कचरा उठाने वालों को भी सम्मान का और सुरक्षित वातावरण में काम करने का हक है और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का भी पूरा अधिकार है।

सफाई सेना के सदस्य बूट, मास्क और ग्लव्स पहन कर  काम करते हैं। उनकी आर्थिक जरूरतों का पूरा ध्यान रखा जाता है और उनके बच्चों को स्कूल भेजा जाता है। 

सफाई सेना की महिलाएं मास्क और ग्लव्स पहन कर कचरा उठाते हुए

“१९९९ से जब चिंतन की स्थापना हुई थी तब से लेके अब तब  हम लोग युद्ध स्तर पर काम कर रहे है ताकि कचरा प्रबंधन को एक औपचारिक रूप दे सके। आंकड़ो के अनुसार पिछले २ दशकों में शहरी भारतीय खासकर मध्यमवर्गीय और उच्चवर्गीय आबादी के उपभोक्ता ने उत्पादों की मांग बढा दी है। और इसी के साथ बढ़ गया है वातावरण को दूषित करने वाला कचरा।”

– चित्रा  कहती है।

लगभग हर भारतीय शहर की एक प्रतिशत आबादी कचरा उठाने और उसे रीसायकल करने में सक्रिय रहती है। आर्थिक विकास और इस्तेमाल करने के बदलते तरीके ने अप्रत्याशित रूप से खतरनाक कचरे को बढा दिया है जिस से कचरा उठाने वालों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शहरीकरण के साथ साथ कचरा भी बढेगा और कचरा प्रबंधन से जुड़े लोगों की संख्या भी बढ़ेगी जिस से उन लोगो के स्वास्थ पर खतरा भी बढ़ता जाएगा इसलिए इस क्षेत्र को एक औपचारिक रूप देना अति आवश्यक हो गया है, ताकि इस क्षेत्र में काम करने वालों को अमानवीय परिस्थितियों में काम न करना पड़े।

तो आईये चिंतन की इस मुहीम में शामिल होकर पर्यावरण को ई-कचरे से बचाए और सफाई कर्मचारियों को भी एक नयी ज़िन्दगी दे !

अधिक जानकारी के लिए आप चिंतन की वेबसाइट पर जा सकते है।

मूल लेख अपर्णा मेनन द्वारा लिखित 

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