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कविता करकरे : शहीदों के परिवारों को हक़ दिलवाने के लिए लड़ती रही आख़िरी दम तक!

एक समर्पित अध्यापिका, एक बहादुर शक्स जिसने बेखौफ़ होकर सरकार की खामियो की आलोचना की. मानव अधिकार के लिए लड़ने वाली एक सशक्त कार्यकर्ता : आइए देखे कैसे कविता करकरे केवल एक शाहिद की विधवा से बढ़कर भी बहोत कुछ थी. वे सच्चाई के लिए लड़ी तथा कॉन्स्टेबल्स और निचले स्तर के पुलिस वालो के परिवारवालो को सरकार से उनका हक़ दिलवाने मे मदत की. एक सशक्त प्रवक्ता, एक अनुकंपित श्रोता , कविता जैसी अद्भुत व्यक्तित्व के धनी कभी कभी ही पृथ्वी पर जन्म लेते है. 

कविता करकरे, आतंकवादी विरोधी दल के भूतपूर्व प्रमुख, श्री हेमंत करकरे, जो २६/११ मुंबई आतंकवाद हमले मे शहिद हुए थे, की विधवा थी.  २९ सितंबर २०१४ को मस्तिष्क रक्तस्राव से जूझती कविता ने अपना देह त्याग दिया. शनिवार की शाम को उन्हे गंभीर हालत मे हिंदुजा अस्पताल ले जाया गया, जहाँ वे पहले कोमा मे चली गयी और फिर मृत्यु को प्राप्त हो गयी. दक्षिण मुंबई मे स्थित वरली मे मंगलवार को उनका अंतिम संस्कार किया गया.

कविता करकरे

एक जीवन दायिनि:

एक सशक्त महिला, कविता, जो हमेशा अपने सच्चे आदर्शो के लिए खड़ी रही, ने मृत्योप्रांत भी  दूसरो को जीवन दिया. उनके बच्चो ने उनकी मृत्यु के बाद उनके शरीर के अंगो को ऐसे रोगियो को दान कर दिया जिनके लिए ये जीवन का सबसे बड़ा उपहार साबित हुआ.

उनका एक गुर्दा एक ऐसे व्यक्ति को दान किया गया जो पिछले दस वर्षो से डाइलिसिस के सहारे जी रहा था. दूसरे गुर्दे से एक ५९ वर्षीय आदमी की जान बचाई गयी जो की गत सात वर्षो से इसकी राह देख रहा था. अपना जिगर तक एक रोगी को दान करने वाली कविता ने ये सिद्ध कर दिया कि उनका हृदय वाकई में विशाल था. उन्होने अपनी आँखे भी परेल्स हाजी बचूआली आइ बॅंक को दान कर दी.

एक योद्धा

शालीनता से अपना जीवन जीने वाली कविता ने कभी भी अपने आपको एक कमज़ोर विधवा के रूप मे नही दर्शाया. वे एक शाहिद की विधवा से कई ज़्यादा थी . मरते दम तक वे कॉन्स्टेबल्स और निचले स्तर के पुलिसवालो के परिवार वालो को सरकार से उनका हक़ दिलवाने के लिए लड़ती रही. जब एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना मे उनके पति समेत १६६ लोगो की मृत्यु हुई और ३०० से भी ज़्यादा लोग घायल हुए, तब कविता और उनके परिवार को शहीदो को दिए जाने वाले पेंशन देने का वादा किया गया. परंतु कई बार याद दिलाने तथा जाकर गुहार लगाने के बावजूद, उन्हे केवल ‘फॅमिली पेंशन’ से ही गुज़ारा करना पड़ा. इस बात से आहत, कविता ने उन पैसो को लेने से इन्कार करते हुए, अधिकारियो को उसे पुलिस कल्याण हेतु इस्तेमाल करने की सलाह दी.

अपने पति की मृत्यु के पीछे छुपे कई कारणो को ढूंडती और उनसे उत्तेजित होती कविता, भारत सरकार की लापरवाहीयो के खिलाफ बोलने से कभी नही कतराई. जिन सुरक्षा व्यवस्था की कमियो की वजह से उनके पति की अकाल मृत्यु हुई, उन्हे भी उन्होने निडरता से उजागर किया.

इसी तरह उत्तेजित होते हुए उन्होने एक बार कहा था “हां! मुझे गुस्सा आता है, हमे पूरी व्यवस्था को भीतर से बदलना होगा. देश को और ज़्यादा पारदर्शिता की ज़रूरत है. राजनेताओ को ज़िम्मेदार होना पड़ेगा. यदि वे ज़िम्मेदारी नही ले सकते तो उन्हे हटाना ही उचित है.”

एक बहादुर प्रवक्ता

धर्म, सम्प्रदाय, और यहाँ तक कि शहीदो की मौत को भी राजनीति का खेल बना देने वाले राजनेताओ की उन्होने खुलेआम आलोचना की. पिछले कुछ वर्षो मे उन्होने पेंशन तथा मुआवज़े की बकाया रकम सरकार से कॉन्स्टेबल्स के परिवारजनो को दिलवाने की लड़ाई लड़ने मे सक्रिय भूमिका निभाई थी.

ज़मीन से जुड़ी हुई तथा बेहद संवेदनशील, कविता अपना समय बड़े सकुशलता से अपने परिवार, अपने काम तथा समाजसेवा मे बराबर मात्रा मे बाँटती रही. उन्होने पुलिसवालो के लिए बेहतर अस्त्र एवम् शास्त्रो की भी माँग की.

मुंबई पुलिस के पूर्व अडीशनल कमिश्नर, श्री. अशोक कामटे, जिनकी मृत्यु भी २६/११ मुंबई हादसे मे हुई थी, की जीवनी के विमोचन के अवसर पर कविता ने एक बेहद संवेदनशील मराठी कविता पढ़ी. जिसका हिन्दी मे अनुवाद कुछ इस प्रकार है.

शहीदो की फाँसी

इस देश मे शहिद बनने का गुनाह तुम कभी ना करना.

तुम ‘हेडलेस चिकन’ या ‘डंब एस’ बनकर आगे चले गये, ऐसा ठप्पा लगाएँगे ये लोग तुमपर.

इसलिए ऐसे देश मे शहिद बनने की ग़लती तुम कभी ना करना.

शहीदो को अशोकचक्र क्यू मिले?

ऐसी आलोचनाएँ तुम्हारे मरने पे की जाएँगी.

‘राम प्रधान कमिटी’ शहीदो को भी फाँसी देने से नही चूकेगी,

इसलिए ऐसे देश मे शहिद बनने की भूल तुम कभी ना करना.

२६/११ के दिन क्यू उन बहादुरो को मदत नही मिली?

या क्यू शहीदो का मृत शरीर ४० मिनिट तक यू रास्ते पर पड़ा रहा?

शहिद की विधवा बनकर ऐसे देश मे तुम इस तरह के प्रश्न कभी ना पूछना.

ऐसे देश मे तुम शाहिद बनने का क्राइम कभी ना करना.

किसी भी देश मे शहीदो का ‘अल्कोहल टेस्ट’ नही होता,

परंतु हमारे देश के शहीदो का ये टेस्ट भी होता है.

पर इसके पीछे की राजनीति कभी ना जानना,

ऐसे देश मे तुम शहीद बनने की भूल कभी ना करना.

किसी अफ़सर ने अपना मोबाइल फोन क्यू बंद किया,

या कोई अधिकारी छत पर बैठा क्या कर रहा था.

हिम्मत से खड़े होकर इन पर उंगली तुम कभी ना उठाना.

ऐसे देश मे तुम शहीद बनने की भूल कभी ना करना.

कविता सिर्फ़ एक शहिद की विधवा नही थी. वे इससे कई ज़्यादा थी. देश के लिए उन्होने जो कुछ किया उससे वे स्वयं एक शहिद कहलाई जाने की हक़दार है. हम आशा करते है की कविता की जलाई क्रान्ति की मशाल से शहीदों के परिवारों की दुनिया रौशन रहे !

मूल लेख श्रेय – श्रेया पारीक

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