रायपुर के नुक्कड़ चाय कैफ़े में आपका स्वागत है । यहाँ समय बिताने का मतलब सिर्फ चाय का लुत्फ़ उठाना ही नहीं है बल्कि उस से भी कुछ ज्यादा है । यहाँ पर गुजरने वाला समय आपको सांकेतिक भाषा सिखाएगा, किताबो के पन्नो में ख़ुद डूबाना सिखाएगा, कुछ कवितायें गुनगुनाना सिखाएगा, अपने जैसे दूसरे लोगों से आपको मिलवायेगा और नए लोगों के साथ दोस्ती करवाएगा !
प्रियंक पटेल द्वारा 2013 में शुरू किये गये इस कैफ़े में केवल ऐसे लोगों को नौकरी पर रखा जाता है जो बोलने और सुनने में असक्षम है। इसके पीछे का इनका मकसद समाज के लिए एक नए तरीके से कुछ करना है।
यह कैफ़े, चाय और नाश्ते के साथ ही एक खुबसुरत माहौल देता है जहाँ आप सुकून के दो पल ज़रूर गुज़ारना चाहेंगे। यहाँ की टीम नए-नए विषयों पर वाद विवाद का कार्यक्रम करवाती है साथ ही ऐसे कई आयोजन भी करवाती है, जिससे यहाँ पर आये लोगों का समय यादगार बन जाए।
प्रियंक कहते हैं, “ मैं नहीं चाहता था कि नुक्कड़ एक आम सी जगह हो जहाँ लोग आयें, चाय पिये और चले जाएँ । मैं चाहता था कि लोगों को यहाँ एक अनुभव हो, अपने आस पास के लोगों को वे जानें और नयी-नयी चीजें यहाँ से सीख के जाएँ।”
आइये देखें वे इस मकसद को कैसे पूरा कर रहे हैं :
- डिजिटल डिटोक्स – यह कैफ़े ऐसे लोगों को छूट देते हैं जो यहाँ आने पर अपना फ़ोन जमा कर देते हैं। प्रियंक कहते है, “हम नहीं चाहते कि हमारे ग्राहक यहाँ आ कर अपने फ़ोन से चिपके रहें, या उन लोगों से चैटिंग करते रहे जो असल में यहाँ मौजूद नहीं है। हम चाहते हैं कि वे यहाँ आ कर अच्छा समय गुज़ारे, मस्ती करें, किताबें पढ़ें, नए लोगों से मिलें.. ।”
- ज्ञान दान – लोग यहाँ आ कर अपनी किताब जमा कर सकतें हैं और बदले में यहाँ की कोई किताब तीन दिनों के लिए अपने साथ ले जा सकते हैं ।
- टी एंड टोन्स – यहाँ ऐसे आयोजन किये जाते हैं, जहाँ कोई भी ग्राहक माइक पर अपने पसंद की कविता सुना सकता है।
- बिल बाय दिल – यह कैफ़े अपनी वर्षगाँठ ‘बिल-मुक्त दिवस’ के रूप में मनाता है। ग्राहकों को बिल की जगह एक खाली लिफाफा पकड़ा दिया जाता है, जिसमे वे अपनी ख़ुशी से पैसे डाल देते हैं।
- सुपर माँम सेलिब्रेशन – अपनी माँ को साथ लाने पर यह कैफ़े उनकी पसंद की कोई भी एक डिश बिलकुल मुफ्त देता है।
फिलहाल रायपुर में नुक्कड़ के दो ब्रांच है जिसमे कुल 8 कर्मचारी ऐसे हैं जो सुन और बोल नहीं सकते।
पेशे से इंजिनियर, 31 वर्षीय प्रियंक, 5 साल तक एक कंपनी में काम कर चुके हैं। इसके बाद इन्होने एक फ़ेलोशिप प्रोग्राम में हिस्सा लिया और तभी यह भारत के ग्रामीण क्षेत्र के संपर्क में आये। उड़ीसा, महाराष्ट्र और गुजरात के गाँव में काम करने के बाद उन्हें यह महसूस हुआ कि भारत की युवा पीढ़ी सामाज के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर रही । वह स्वयं सेंवी संस्थाओं से जुड़े रह कर एक ऐसी जगह बनाना चाहते थे जहाँ लोग, खासकर युवा पीढ़ी आये, एक दूसरे से मिले, विचारों का आदान प्रदान हो, और समाज के लिए भी कुछ नया करने की सोचें ।
..और यहीं से जन्म हुआ ‘नुक्कड़’ का।
ये कहते हैं, “ मैं हमेशा से चाहता था कि अभी की युवा पीढ़ी को एक ऐसा मंच दूं जो समाज से जुड़ने का एक अवसर हो। नुक्कड़ के पीछे मेरा एक मकसद ऐसे लोगों को रोज़गार देना है, जो सुनने और बोलने में असक्षम हैं। मेरी यह इच्छा भी थी कि एक ऐसी जगह बनाऊं जहाँ स्वयंसेवी संस्थाएं, कलात्मक और युवा लोग सामने आयें, आपस में मिले और काम करें।”
प्रियंक बताते हैं , “ हमारे ग्राहकों ने यहाँ के स्टाफ से सांकेतिक भाषा में बात करना शुरू कर दिया है। मुझे लगता है कि कोई व्यक्ति अगर यह भाषा सीखता है तो वह आगे चल कर सहायक ही होगी। हमारे स्टाफ का भी आत्मविश्वास बहुत बढ़ा है। अब वे अपने परिवार के ऊपर बोझ नहीं है और उनके परिवार को भी उनपर गर्व है।”
आईये एक नज़र डाले नुक्कड़ के अन्दर की तस्वीरों पर: