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पुरानी जींस को फेंकिए मत, इन्हें दीजिये, यह बस्ते और चप्पल बनाकर गरीब बच्चों को बांटेंगे!

प और हम आए दिन सकारात्मक घटनाओं से जन्म लेने वाली सफलता की कहानियां पढ़ते हैं, जो हम में उत्साह का संचार करती हैं। इस तरह की पॉजिटिव वाइब्स वाली सक्सेस स्टोरीज से समाज के दूसरे युवाओं में भी कुछ कर गुजरने का जज़्बा पैदा होता है। यह कहानी भी ऐसे ही 3 दोस्तों की है, जिनकी सोच से समाज में बदलाव की एक बयार शुरू हुई।

फैशन डिजाइनिंग में अपनी डिग्री पूरी कर अपने प्रोजेक्ट में लगी रहने वाली मृणालिनी राजपुरोहित को एक दिन अचानक यह ख़्याल आया कि वह ऐसा क्या करे कि रात को सुकून की नींद सो सके, वह कह सके कि समाज को हमने कुछ दिया है। यह बात मृणालिनी ने अपने दोस्तों अतुल मेहता और निखिल गहलोत को बताई। अतुल और निखिल ने मृणालिनी की इस सोच में उसका साथ दिया और तीनों ने मिलकर ऐसा स्टार्टअप करने की सोची जो गरीब और जरूरतमंद बच्चों के लिए काम करेगा।

 

इन्होंने पुरानी जीन्स, डेनिम से बच्चों के लिए स्कूल सामग्री बनाने की सोची। सबसे पहले पुरानी डेनिम जींस से कुछ बैग, चप्पल, जूते और पेंसिल बॉक्स बनाए गए।

बाएं से दायें – मृणालिनी राजपुरोहित, निखिल गहलोत और अतुल मेहता

इसके बाद इस बात पर विचार किया गया कि अब आगे क्या किया जा सकता है?

इन दोस्तों ने लोगों की मदद से पैसे जुटाकर सरकारी स्कूलों में यह उत्पाद देना शुरू किया। फिर विचार आया कि यदि इस काम को एक बड़े लेवल पर ले जाना है तो क्यों न एक स्टार्टअप बनाकर कंपनी की शुरुआत की जाए और इस काम को सीएसआर के माध्यम से आगे बढ़ाया जाए। इस विचार के साथ एक स्टार्टअप की शुरुआत हुई जिसे ‘सोलक्राफ्ट’ नाम दिया गया।

 

‘सोलक्राफ्ट’ को शुरू हुए अब तक 9 महीने से ज्यादा हो चुके हैं। डोनशन और अन्य माध्यमों से लगभग 1200 स्कूली बच्चों तक ‘सोलक्राफ्ट’ अपने उत्पाद पहुंचा चुका है।

सोलक्राफ्ट के उत्पाद के साथ बच्चे।

‘सोलक्राफ्ट’ की टीम ने ज़रूरतमंद बच्चों तक अपने उत्पाद पहुंचाने के अलावा लोगों को रोज़गार देने का भी काम किया है। अभी 5 कारीगर सोलक्राफ्ट के साथ जुड़कर अपणी गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे हैं और हर महीने 20 हज़ार रुपए तक कमा रहे हैं।

मृणालिनी बताती हैं, ”गरीब बच्चों के लिए सस्टेनेबल फैशन, यह हमारा टैगलाइन है। हमने पुरानी और काम में नहीं आ रही जीन्स पेंट्स और डेनिम को टारगेट किया है। किसी भी जींस या डेनिम को लोग कुछ साल से ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते। चूंकि इस कपड़े की खासियत यह होती है कि बहुत बार पहने जाने के बाद भी यह फटता, घिसता नहीं और मजबूत बना रहता है। हमने तय किया कि जब डेनिम को पहनना छोड़ दिया जाता है, तब क्यों न हम उसे किसी काम में लेकर अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाएं?”

बात तो सही है। जीन्स/डेनिम को पहनना छोड़ देने के बाद भी उसकी अहमियत कम तो नहीं हो जाती न? इसी सोच को अमलीजामा पहनाते हुए इन दोस्तों ने अपसाइकिल के जरिए एक एजुकेशन किट बनाया और निकल पड़े उदास चेहरों पर मुस्कान लाने।

गांवों की सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे आज भी कुछ बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं, यह किट उन बच्चों के लिए विशेष तौर पर डिज़ाइन किया गया है। इन बैग्स को यह लोग खुद भी प्रयोग कर रहे हैं। मृणालिनी तो इन चप्पलों को पहन भी रही हैं। उन्होंने अपने द्वारा निर्मित इन चप्पलों को पहन कई तरह के रास्तों से गुजरकर इस बात को परखा कि यह कितनी चल सकती है? पूरी तसल्ली के बाद ही इन्होंने यह किट बांटे हैं।

 

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इनकी कोशिश रहती हैं कि बुनियादी सुविधाओं से वंचित क्षेत्रों में रहने वाले उन बच्चों की मदद की जाए, जिनके पास अच्छा बैग और चप्पल नहीं है। 

बच्ची को जींस की चप्पल पहनाती मृणालिनी।

इसके लिए टीम ने स्कूल बैग, चप्पल, ज्योमैट्री बॉक्स को मिलाकर एक किट तैयार की है। यह सभी उत्पाद डेनिम फैब्रिक को अपसाइकिल करके बनाए गए हैं। इसके अलावा टीम सालभर के दौरान बांटे गए किट्स को जाकर देखती है कि उनके उत्पाद कितने उपयोग किए गए। यदि बैग, चप्पल या अन्य कोई उत्पाद फट गए हैं या कुछ और परेशानी है, तब भी कोशिश रहती है कि उन्हें बदल दे। फ़िलहाल इन दोस्तों की मुहिम जोधपुर और उसके आसपास के गांवों और सरकारी स्कूलों तक सीमित है लेकिन इन युवाओं का सपना है कि यह फैलती जाए।

‘सोलक्राफ्ट’ के मेंटर एडवाइजर देवेश राखेचा कहते हैं, ” गाँव के बच्चों के पास पहनने के लिए उनकी साइज की चप्पल तक नहीं है। वे बहुत छोटी या फिर किसी बड़े की चप्पल पहनकर टेढ़े-मेढ़े पथरीले रास्तों से गुजरते हैं। यदि हम इस तरह के बच्चों की कुछ मदद कर पाते हैं, उनकी जिंदगी को संवार पाते हैं, तो यह कितना बेहतर है। हाथ पर हाथ धर के बैठे रहने या कुछ ना करने से तो बेहतर है कुछ करना।”

टीम का लक्ष्य है कि आने वाले 2 साल में एक लाख से ज्यादा बच्चों तक यह किट पहुंचे। एक किट की कीमत ₹399 रुपए है। अभी तक बांटे गए ज्यादातर किट्स के लिए इन दोस्तों ने आपस में ही रुपए जुटाए हैं। लेकिन अब सीएसआर फंड के जरिए यह काम आगे बढ़ने वाला है। आने वाले दिनों में ‛डेनिम कलेक्शन ड्राइव’ शुरू होने जा रही है, ताकि काम में न आ रही जींस/डेनिम आसानी से मिलना शुरू हो जाए। कुछ बड़े कॉर्पोरेट घरानों से सीएसआर फंड को लेकर बातचीत जारी है।

इसी सहयोग के आधार पर एक लाख किट बांटने का उद्देश्य रखा गया है, इसके लिए 10 टन डिस्कार्ट डेनिम जींस को अपसाइकिल किया जाना है।

अपने इसी उद्देश्य से सोलक्राफ्ट की टीम बच्चों की स्कूली जिंदगी से जुड़ी कुछ ऐसी ही परेशानियों को आसान करने की कोशिश कर रही है। कई बार ऐसा हुआ है, बच्चों की आंखें नम हुई हैं, चेहरे पर मुस्कान उभरी है। यही मुस्कान इन दोस्तों को बेहतर, और बेहतर करने के लिए प्रेरित करती है।

एक घटना के बारे में बताते हुए निखिल गहलोत (चीफ इन्नोवेशन ऑफिसर) कहते हैं, ”बासनी की एक स्कूल में हम लोग डिस्ट्रीब्यूशन के लिए गए हुए थे। हमने वहां पर एक बच्चे के आधी कटी हुई चप्पल पहनी देखी, उसके आधे पाँव जमीन पर और आधे चप्पल में थे। उस बच्चे के पास बैग भी नहीं था और वह हाथों में किताबें लेकर स्कूल आया था। हमने बच्चे को सोलक्राफ्ट से बैग और चप्पल दिलवाई। उस दिन वो बच्चा सबसे ज्यादा खुश हुआ। उस लम्हे की एक यादगार फोटो हमारे पास आज भी सुरक्षित है।”

सोलक्राफ्ट में फ़िलहाल बैग, चप्पल और पेंसिल बॉक्स उपलब्ध है लेकिन धीरे-धीरे ट्रैवलिंग किट, चश्मे का कवर, जिम बैग, शू कवर, कार्ड होल्डर, बोतल कवर, पासपोर्ट कवर, लेपटॉप बैग, आईपेड कवर, मैट्रेसेज, एप्रिन सहित कई तरह के उत्पाद बनाए जाने का विचार है। कुर्सियों के कवर बनाने की भी सोची गई है। कॉर्पोरेट गिफ्टिंग के लिए भी कुछ उत्पाद बनाने जा रहे हैं।

किट मिलने पर खुशी मनाते बच्चे।

अगर आप भी ‘सोलक्राफ्ट’ से जुड़ना चाहते हैं तो ‘सोलक्राफ्ट’ की वेबसाइट पर वॉलिंटियर्स फॉर्म और इंटर्नशिप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। आप प्रमोशन में भी मदद कर सकते हैं। किसी स्कूल या कॉलेज में एंबेसडर बनकर वहां से डेनिम कलेक्शन करवाकर भी दे सकते हैं।

आप सोलक्राफ्ट की किसी तरह से मदद करना चाहते हैं या उनसे संपर्क करना चाहते हैं तो उनके फेसबुक , ई-मेल, वेबसाइट  के माध्यम से जुड़ सकते हैं। या फिर इन नंबर 08559840605, 08387951000 पर कॉल भी कर सकते हैं।

संपादन – भगवती लाल तेली

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