देश के बड़े शहरो में परफॉरमेंस पोएट्री लोकप्रिय होता जा रहा है, और इसका पूरा श्रेय जाता है राघवेन्द्र मधु को जिन्होंने २१०४ में पोएट्री कल्चर की शुरुआत की।
जब आप कविता के बारे में सोचते है तो आपके दिमाग में क्या आता है? झाँसी की रानी की कहानी सुनाती सुभद्रा कुमारी चौहान या फिर मधुशाला से अपनी प्यास जाहिर करते हुए हरिवंश राय बच्चन? पोएट्री कोचर एक पहल है कविता को लेकर हम भारतियों की सोच को बदलने की।
इसका मकसद कविता से जुडी मान्यताओं को बदल कर इसे प्रदर्शन उन्मुख बनाना है।
पोएट्री कोचर की कामयाबी के पीछे जिस शख्स का हाथ है, वो है राघवेन्द्र मधु !
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सामाजिक स्वास्थ के क्षेत्र में कई वर्षों तक योगदान देने के बाद राघवेन्द्र नौकरी छोड़ कर पूर्णकालिक कवि बन गए।
इसकी शुरुआत दिल्ली में कुछ वर्ष पूर्व हुई जब वे एक कवी सम्मलेन में गए थे। एक छोटा सा बालक अपनी कविता को लोगों को सुनाना चाहता था मगर उसे मौका नही दिया गया। राघवेन्द्र कहते हैं कि उन्हें यह महसूस हुआ कि अपनी कविता हो या किसी और की, उसे साझा करने के लिए जगह की काफी कमी है।
“देखिये आजकल हास्य कलाकारों की स्तिथि और इज्जत किस कदर बढ़ी है, मैं ऐसा ही बदलाव कविता के क्षेत्र में भी देखना चाहता हूँ” – राघवेन्द्र
स्वतंत्र वाद्य हिंदुस्तान में पनप रहा था, तभी राघवेन्द्र ने कुछ मित्रों के साथ कविता समूह खोलने का निर्णय लिया। इसका पहला कार्यक्रम दिल्ली के एक छोटे से रेस्टोरेंट में रखा गया।
अब हर सोमवार, हौज़ खास गाँव में ऐसी कविता प्रदर्शनी लगायी जाती है। और यही नही, २०१४ से यह देश के विभिन्न शहरों जैसे मुंबई, बंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई में भी फ़ैल गया है।
“ इन शहरों में मासिक कार्यक्रम रखे जाते हैं, अब हमारी प्रयास है की इसे छोटे शहरों तक लेकर जाएँ। “ वो कहते हैं।
पोएट्री कोऊचर एक स्वेच्छा से की जानेवाली शुरुआत है, सभी शहरों में रचनात्मक कला के केन्द्रों को ढूंड कर वहां इसे निःशुल्क प्रदर्शित किया जाता है।
सभी यहाँ आकर कविता पाठ कर सकते हैं।
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यहाँ भाषा की कोई बंदिश नही है। राघवेन्द्र उस पाकिस्तानी डॉक्टर याद करते हैं जो उस कार्यक्रम के हिस्सा बने, जिसे सूफी कवी जल्लालुद्दीन रूमी के जन्मदिन के उपलक्ष में रखा गया था। पेशावर के लेडी रीडिंग हॉस्पिटल के डॉक्टर मुहम्मद इरफ़ान ने भी उस इवेंट में अपनी कवितायेँ सुनाई। उन्होंने राघवेन्द्र को रूमी के फ़ारसी रुबायत और ग़ज़ल की किताब भी भेंट की।
“हम फ़ारसी समझ नहीं सकते पर हम भाषा के लिए प्रेम को जरुर समझ सकते हैं”, राघवेन्द्र कहते हैं।
लगभग १०-१५ लोग इन इवेंट्स के लिए नियमित रूप से आते हैं। पर कुछ इवेंट्स में बड़ी भीड़ इकठ्ठी होती है। जैसे कि अमरिकी दूतावास पर होने वाले अमरिकन पोएट्री मंथ में करीब १०० लोग आते हैं।
पोएट्री कोऊचर की सफलता ने दूसरे ऐसे छोटे समूहों को उत्साहित किया है। इस से राघवेन्द्र बहुत खुश हैं।
“कोई कला पर अपना अधिकार कैसे जता सकता है? ये केवल मेरा नहीं है ये सभी के लिए हैं ” वो कहते हैं।
पोएट्री कोऊचर ने प्रख्यात कवियों को आम लोगों के करीब लाया है। अरुंधती सुब्रमनियम और केकी दारूवाला अक्सर यहाँ देखे जाते हैं।
“पोएट्री कोऊचर के साथ मेरी यात्रा उद्देश्यपूर्ण और पूरक रही है। मैं जानता था कि वार्षिक साहित्य त्योहारों और कविता प्रेमियों के बीच की इस दूरी को ख़त्म करना जरुरी है। पोएट्री कोऊचर का विकास बहुत जैविक रहा है और ये काफी समावेशिक रहा है — जो विभिन्न कला के रूपों को साथ ला रहा है। यह कई शहरों के विख्यात फिल्मकारों , चित्रकारों , लेखकों , कथाकारों, डिजाइनरों की भागीदारी का गवाह रहा है – राघवेन्द्र कहते हैं।
इस समूह ने देश के कई हिस्सों में कार्यक्रमों का आयोजन किया है। २०१५ में शादी डॉट कॉम के साथ मिल कर बाल विवाह, दहेज़ और घरेलु हिंसा के लिया जागरूकता फैलाई थी। यह ‘स्टॉप एसिड अटैक ‘अभियान का भी हिस्सा रह चुका है, जिसमे आगरा के शीरोज हैंगआउट पर कविता पाठ का आयोजन किया जाता था। यह कैफ़े एसिड हमले के पीड़ितों द्वारा चलाया जाता है।
एक कार्यक्रम में पोएट्री कोऊचर पर्यावरण के मुद्दों पर कॉलेज के छात्रों को जागरूक करने के लिए एक साथ प्रसिद्ध कवियों को लाया गया था।
आगे बढ़ते हुए पोएट्री कोऊचर प्रदर्शन कविता को हास्य दृश्य के बराबर लाना चाहता है। राघवेन्द्र पोएट्री कोऊचर में एक प्रॉफिट विंग भी शुरू करना चाहते हैं जिस से उभरते कवियों को सहूलियत हो । इसके लिए वो प्रायोजकों और पार्टनरों की तलाश कर रहे हैं।
“कोई सिर्फ कविता के सहारे जिंदा नहीं रह सकता। कवि शिक्षाविद या पत्रकार होते हैं। वो एक वैकल्पिक करियर जरुर रखते हैं। मैं प्रदर्शन कविता को धारणीय बनाना चाहता हूँ ताकि युवा पोएट्री को अपना करियर बना सके” वो कहते हैं।
डेड पोएट सोसाइटी कहती है -“हम कविता पढ़ते या लिखते इसलिए नहीं हैं क्यूंकि वो हमे प्यारी लगती है। बल्कि हम इसलिए कविता पढ़ते या लिखते हैं क्यूंकि हम मानव जाति के सदस्य हैं। और मानव जाति में एक जुनून होता है। और चिकित्सा, कानून , व्यापार ये सब सम्मानित पेशें हैं जो हमारे जीवन के लिए बहुत जरुरी हैं। पर कविता, प्रेम और सुन्दरता ऐसी चीज़ें हैं जिनके लिए हम जीते है।”