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स्वयं सहायता समूह से जुडी परहिया जनजाती की महिलाओं का जीवन बना खुशहाल !

सतबरवा की परहिया जनजाती की महिलाओं की जिंदगी में आ रहा है बदलाव! १० रुपये की साप्ताहिक बचत से महिलाओं के जीवन में खुशहाली लौटी है। आईए आपको ले चलते है सतबरवा के रब्दा गांव जहां इस आदिम जनजाती के करीब १५० लोग रहते है और बदहाली से खुशहाली की ओर आगे बढ़ रहे है।

झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी, राज्य की ग्रामीण गरीब महिलाओं को  आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह में जोड़कर उन्हें अपने बलबूते पर गरीबी से बाहर निकालने के लिए प्रयासरत है। स्वयं सहायता समूह में जुड़ी ये महिलाएं छोटे छोटे कर्ज लेकर अपनी आजीविका के साधन को दुरूस्त कर रही है और महाजनों से किनारा कर रही है।

रांची से डालटनगंज मुख्य पथ पर स्थित सतबरवा प्रखण्ड से करीब ८ किमी की दूरी पर, कच्चे रास्ते और घने जंगलों के बीच से पार करते आज हमारी टीम पहुंची है रब्दा पंचायत के रब्दा गांव के फुलवरिया टोला में। फुलवरिया टोला के अंतर्गत आदिम जनजाती के करीब ३५ परिवार इस टोला में रहते है। सभी ३५ परिवार परहिया आदिम जनजाती के है।

परहिया जनजाती, पहाड़िया जनजाती से अलग है। परहिया जनजाती के लोगों की स्थिति बहुत खराब है, वे  बेहद गरीब हैं। इनके परिवार की आर्थिक हालत का अंदाजा आप बच्चों की तस्वीर से लगा सकते हैं। आजीविका मिशन के तहत रब्दा गांव में आदिम जनजाती की अती गरीब महिलाओं का दो स्वयं सहायता समूह है। जिनमे से एक है, ‘गणेश आजीविका स्वयं सहायता समूह’।

परहिया टोला के गणेश आजीविका स्वयं सहायता समूह की महिला सदस्यों से टी.बी.आई की टीम ने मुलाकात की।

पहरिया जनजाती की महिलायें बन रही है सक्षम

इस स्वयं सहायता समूह में कुल १२ सदस्य है और सभी परहिया जनजाति के है।रब्दा गांव में  स्वयं सहायता समूह बनाने का काम  आजीविका मिशन के तहत २०१४  में शुरू हुआ है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन , ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार का फ्लैगशीप कार्यक्रम है , जिसे झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी पूरे झारखंड में कार्यान्वित कर रही है। इस मिशन का मानना है कि गरीबों में अदम्य इच्छाशक्ति होती है, बस जरुरत है तो उनका क्षमता वर्धन करने की ताकी वो अपने बलबूते पर गरीबी से बाहर आ सके। इसी कड़ी में अनूठे तरीके से महिलाओं को स्वयं सहायता समूह में जोड़कर उनको वित्तिय सहायता देकर आजीविका के साधनों से जोड़ा जा रहा है। वैसी महिलाएं जो स्वयं कभी बहुत गरीब थी और स्वयं सहायता समूह से लंबे समय तक जुड़कर आज  अपने बल पर गरीबी को मात दे चुकी है, वही महिलाओं सीआरपी दीदी (कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन) के रूप में दूसरे गांव की महिलाओं को अपनी कहानी बताकर  समूह से जुड़ने और गरीबी मिटाने के लिए प्रेरित करती है। झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी ने इस आदिवासी बहुल गांव में परहिया जनजाती के खस्ताहाल को देखते हुए मिशन मोड में काम शुरु किया और हालात कैसे बदला वो गांव की महिलाएं बयां करती है।

हमारे पहुंचने पर समूह की सभी महिलाओं ने गोलाकार में बैठकर हमारा अभिवादन किया । हमारी टीम ने फिर समूह की दीदी लोगों से बात करनी शुरू की। इस आदिम जनजाती के महिला समूह की एक सदस्य ने हमें बताया कि –

“जब आजीविका मिशन से सीआरपी दीदी लोग समूह बनाने आई तो हम बहुत डरे हुए थे, हमलोग तो समूह में जुड़ने के लिए मना कर दिये थे और इसी वजह से सिर्फ ७ परहिया दीदी ही समूह से जुड़ीं और वहीं से गणेश आजीविका महिला स्वयं सहायता समूह की शुरुवात हुई। इस समूह की ज्यादातर सदस्या आजीविका के रुप में बांस के पंखे, झाड़ू और टोकरी बनाने का काम करती है।”

 

रब्दा गांव की एक महिला, सुषमा देवी ने हमें बताया कि, “समूह बनने से पहले परहिया जनजाति के परिवार की स्थिति बहुत दयनीय थी, सब महिलाएं खेतीहर मजदूरी का काम करने तीन महीने के लिए बिहार चली जाती थी, बाकी के ९ महीने जैसे तैसे जिंदगी काटती थी।”

सुषमा ने बताया कि,

“ज्यादातर परहिया जनजाती के परिवार महाजन के जाल में कर्ज लेकर फंसे हुए थे । समूह बनने के बाद इनकी स्थिति में बहुत सुधार हुआ है और सबसे खुशी की बात ये है कि आज की तारीख में समूह की सभी दीदी, महाजन के जाल से बाहर निकल चूकी हैं और समूह ने इन्हे नई जिंदगी दी है।”

गणेश आजीविका स्वयं सहायता समूह की सदस्य सुनीता देवी बताती है कि, “जब कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन दीदी (सीआरपी दीदी) लोग समूह बनाकर वापस गई, हमलोग समूह की बैठक ठीक से करने लगें तो फिर और ५ दीदी आकर समूह से जुड़ी।”

सुनीता देवी के मुताबिक समूह से जुड़कर सभी महिलाओं का जीवन आसान हो गया है, समूह से लोन लेकर अब वे अपनी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा कर रहे है।

संस्था की मदद से बच्चे अब स्कूल जाने लगे है

सुनीता मुस्कुराती है, फिर बोलती हैं कि, “आज समूह की वजह से हमारा बच्चा स्कूल में पढ़ रहा है और हमें मजदूरी करने बाहर नहीं जाना पड़ रहा है।” सुनीता समूह से पैसे लेकर बकरी पालन भी कर रही है।

बातचीत के दौरान एक बुजुर्ग सदस्या, मानती देवी ने बताया कि समूह की वजह से ही आज वे जिंदा है। अगर तबियत खराब रहने के दौरान उन्हे समूह से दस हजार रुपये कर्ज नही मिला होता तो वह जिंदा नहीं बच पाती । मानती देवी की बात को बीच में रोकते हुए लीलीवती देवी ने बताया कि समूह ने मुझे महाजन का कर्ज चुकता करने लायक बनाया वरना मैं तो जिंदगी भर मजदूरी करते रहती। समूह हमारे लिए भगवान जैसा है।

परहिया जनजाती की महिला कालो देवी की आंखों में गरीबी से बाहर निकलने की चमक साफ दिखाई दे रही थी। कालो देवी चहरे पर मुस्कान लिए अपने जीवन में हो रहे बदलाव को बयान करती है कि –

“आज समूह से कर्ज लेकर मैं झाड़ू, टोकरी और पंखा बनाने का काम कर रही है, समूह से कर्ज लेकर  दो बकरी खरीदी थी वो अब पांच हो गई है।”

परहिया आदिम जनजाति के इस स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अती गरीब हालत में थी, लेकिन समूह में जुड़ने के बाद हालात बदल रहे हैं। महिलाओं के सपनों को पंख मिला है।

कालो देवी ने संस्था से क़र्ज़ लेकर अब टोकरी बनाने का काम शुरू कर दिया है

वहीं समूह से कर्ज लेकर महिलाएं बकरी पालन, मुर्गी पालन जैसे कार्यों में रुचि दिखा रहे है। इस समूह के सभी सदस्य बांस के उत्पाद बनाने के अलावा समूह से जुड़कर बचत करना भी सीख चुकी है।

बदलाव की बयार का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि सारी महिलाएं पढ़ी लिखी नहीं होने के बावजूद भी अब साईन करना सीख चूकी है और अपने बच्चों को पढ़ा रही हैं।

परहिया जनजाति के लोग झारखण्ड राज्य के लिए विरासत हैं और स्वयं सहायता समूह से जुड़कर एक ओर जहां इस आदिम जनजाती की महिलाओं के हालात में बदलाव हो रहा है वहीं महिलाएं स्वयं सहायता समूह से लोन लेकर महाजन के चंगुल से आजाद हो रही है।

इस संस्था के बारे में अधिक जानकारी के लिए  www.jslps.org पर जाएं।

 

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