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दशकों से अंधेरे में डूबा था नागालैंड का यह गांव, शिक्षक ने दिखाई 60 परिवारों को रौशनी

Nagaland Village Electrified with solar power
दशकों से अंधेरे में डूबा था #Nagaland का #Shinnyu गांव, शिक्षक ने दिखाई 60 परिवारों को रौशनी

नागालैंड का शिन्न्यु (Shinnyu) गांव (Nagaland Village) भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित है। यहां के लोगों के लिए 16 फरवरी, 2021 का दिन खास तौर पर मायने रखता है। दरअसल इसी तारीख को मोन जिला के इस गांव ( Nagaland Village ) में 44 साल बाद पहली बार बिजली आई और बांस की मशालों को आराम दे दिया गया। 

उस दिन जैसे ही इलेक्ट्रिशयन ने सौर ऊर्जा (Solar Power) से चलने वाले बल्बों को जलाया, कोन्याक नागा (Konyak Naga) समुदाय के 60 परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई। 

किसी ने मोबाइल फोन लेने की इच्छा जताई, तो किसी ने रात में सामाजिक समारोह आयोजित करने की योजना बनाई। बिजली की सुविधा मिलने से पढ़ाई करने वाले बच्चों को भी राहत मिली। खुशी में लोगों की आंखों से आंसू छलक पड़े। उन्होंने इस खास मौके पर मिठाइयां भी बांटी। 

कोन्याक नागा समुदाय के लोग

इस गांव में एक प्राथमिक स्कूल, एक गेस्ट हाउस, एक कम्यूनिटी हॉल और एक चर्च भी है। यह गांव ( Nagaland Village ) 1977 में बसा था और आधिकारिक तौर पर इसे 2002 में मान्यता मिली। जिला मुख्यालय से 12 घंटे की दूरी पर मौजूद यह गांव, देश से सबसे दूरस्थ गांवों में से एक है। यहां से सबसे नजदीकी शहर, टोबू छह घंटे दूर है। 

अच्छी कनेक्टिविटी न होने के कारण, यह गांव ( Nagaland Village ) बाकी दुनिया से कटा हुआ है। यहां अच्छी इंटरनेट की सुविधा तो छोड़िए, सड़कें भी मुश्किल से मिलती हैं।

आखिरकार, एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक जॉन खांगन्यू की सोशल मीडिया पोस्ट ने गांव ( Nagaland Village ) में अंधेरे को हमेशा के लिए मिटा दिया और उन्हें एक नई रौशनी दी। 

33 वर्षीय जॉन की पोस्टिंग गांव ( Nagaland Village ) में छह साल पहले हुई थी। उन्हें यहां तक आने के लिए करीब 12 घंटे पैदल चलना पड़ा। मूल रूप से टोबू के रहने वाले जॉन को अपनी फोन की बैटरी को चार्ज करने के लिए घंटों सफर करना पड़ता था। 

शिन्न्यु गांव में 44 वर्षों के बाद पहुंची रौशनी

वह कहते हैं, “यह देख कर मुझे हैरानी हुई कि यह गांव ( Nagaland Village ) दुनिया से बिल्कुल कटा हुआ है। अंधेरे के कारण बच्चों को अपनी पढ़ाई के लिए गांव से बाहर जाना पड़ता था। महिलाओं को रात में शौचालय जाने में दिक्कत होती थी और उन्हें घर से सभी काम शाम ढलने से पहले करनी पड़ती थी। इसलिए मैंने सोशल मीडिया पर लोगों से मदद की अपील की।”

अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंने बिजली, मोबाइल नेटवर्क, बदहाल सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं की कमी के बारे में लिखा। 

इस पोस्ट को जॉन के एक फेसबुक फ्रेंड ने देखा और उन्होंने 2019 में जॉन को ग्लोबल हिमालयन एक्सपेडिशन (जीएचई) से जुड़ने में मदद की। बता दें कि इस संगठन को दूरदराज के गांवों ( Nagaland Village ) में माइक्रो सोलर ग्रिड (Solar Power Grid) लगा कर, बिजली की पहुंच को आसान बनाने के लिए जाना जाता है।

जीएचई के निर्देशानुसार, जॉन ने गांव ( Nagaland Village ) में बिजली की जरूरतों को लेकर एक सर्वे किया। फिर, संगठन ने सीएसआर के तहत प्रोजेक्ट को जमीन पर उतारने के लिए मोन जिला प्रशासन से हाथ मिलाया। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 23 लाख रुपए थी। 

लाइट फिटिंग करते कारीगर

फिर, अधिकारियों, जीएचई सदस्यों और इंजीनियरों की 10 सदस्यीय टीम करीब 16 घंटे की लंबी यात्रा के बाद, शिन्न्यु गांव ( Nagaland Village ) पहुंची और स्कूल-चर्च जैसे सार्वजनिक स्थानों के अलावा हर घर में माइक्रो सोलर ग्रिड लगाए। 

आज यहां के हर घर में 170 वाट का सोलर पैनल (Solar Power), बैटरी, दो मोबाइल चार्जिंग प्वाइंट, दो ट्यूबलाइट और तीन एलईडी बल्ब लगे हैं, जबकि सोलर स्ट्रीट लाइट्स की संख्या 11 है।

गांव ( Nagaland Village ) में सोलर ग्रिड (Solar Power Grid) लगाने को लेकर ग्रामीण काफी उत्साहित थे और उन्होंने टेक्नीशियनों के रहने-खाने की व्यवस्था की। उन्होंने इसके रखरखाव के लिए हर महीने 100 रुपए जमा करने का फैसला भी किया। सोलर पैनलों की देखभाल और रखरखाव के लिए गांव के तीन लोगों ने ट्रेनिंग भी लिया।

इस तरह, हम समझ सकते हैं कि सोशल मीडिया, अपने दोस्तों और परिवार से आसानी से जोड़ने के अलावा समाज में कितना बड़ा बदलाव ला सकता है। बस जरूरत है इसके सही इस्तेमाल की।

मूल लेख – गोपी करेलिया

संपादन- जी एन झा

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