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कभी शोषित मुमताज़, महिलाओ के अधिकार के लिए लढकर बनी ‘महाराष्ट्र की बेटी’ !

अपनी माँ को हमेशा उसने पिटते हुये देखा था और अपनी शादी के बाद भी उसे ऐसा पति मिला जिसे बिना पूछे वो घर से बाहर नही जा सकती थी। पर आज मुमताज को “महाराष्ट्र की बेटी” का खिताब देकर सम्मानित किया गया है। महिलाओ की अनेक समस्याओ का वो निवारण करने में जुटी है जिसमे घरेलु हिंसा का समावेश है। महिलाओ के लिये “राईट टू पी” (पेशाब करने का अधिकार) अभियान भी उसने शुरू किया है। मुमताज का ये सफ़र अतुलनीय है।

मुमताज शेख की आंखो में चमक दिखती है जब वो उस अभियान के बारे में बात करती है जो उसके जीवन का लक्ष्य है। मुमताज बड़े ही गर्व से म्युनिसिपल कमिश्नर, मुंबई से कहती है “मुझे  पेशाब करने का अधिकार चाहिये”

महिलाये सुरक्षित होकर पेशाब कर सके इसलिये उसने मुफ्त सार्वजनिक सुविधा की मांग की है।

“ सवाल ये नहीं है कि कौन मुझे शुरू करने देगा बल्कि ये है कि कौन मुझे रोकेगा” – अयन रैंड

 मुंबई शहर में पुरुषो के लिये ३००० पब्लिक टॉयलेट है पर महिलाओ के लिये एक भी नहीं है क्या हम इंसान नहीं है?” वो कहती है जो महिलाये रोज किसी ना किसी काम से बाहर जाती है पर सार्वजनिक सुविधाये ना होने के कारण हमेशा परेशान रहती है, मैं उन्हें वो  सुविधाये दिलाने के लिये लड़ना चाहती हूँ

मुमताज का सफ़र उसके अभियान जैसा ही अनोखा है। मुमताज के पिता उस इलाके के सटे हुये बदमाश और बेहद ही बुरे किस्म के इंसान थे जो उसकी माँ को बेहद बुरी तरह से पिटते थे। वो ये सब परदे की पीछे छुपकर देखती थी और मन ही मन में प्रार्थना करती थी के ये सब एक दिन बंद हो जाये। पर कुछ सालो बाद उसने मुमताज़ को ही पीटना शुरू किया।

इससे छुटकारा पाने के लिये उसकी माँ ने उसे दूर के मामा के पास रहने के लिये भेज दिया। पर उसके मामा बहुत ही गरीब थे। उनके घर में ७ लोग पहले से थे, मुमताज का आना उनके लिये परेशानी ही थी।

मामा से मिले आश्रय के बदले में मुमताज घर का सारा काम करने लगी। पर अक्सर उसे भूखे ही सोना पड़ता।

ख़राब बचपन की वजह से वह जल्दी बड़ी और समझदार हो गयी। उसके मामा ने उसकी शादी अपने समाज के ही एक आदमी से कर दी, पर वह भी उसके पिता की तरह बुरा निकला। वह हमेशा उसे बुरखा पहनने के लिये कहता। मुमताज उसकी इजाज़त के बिना खिड़की से बाहर भी देख नहीं सकती थी। १६ साल की उम्र में उसने एक बच्ची को जन्म दिया। उसे पता था कि उसका पति  उसके बेटी के साथ भी वैसा ही सलूख करेगा।

ये सब रोकने के लिये वो खुद को सक्षम बनाना चाहती थी पर वो परेशान थी कि ये सब कैसे होगा। और एक दिन उसे वह मौका मिला!

CORO (कमिटी ऑफ़ रिसोर्स आर्गेनाईजेशन) नामक एक NGO मुमताज के इलाके में रोज दोपहर मीटिंग लेते थे। घर के मर्द काम के लिये बाहर जाने के बाद संस्था के लोग घर की औरतो से घरेलु हिंसा के बारे में बाते करते थे। मुमताज का पति उसको जाने नहीं देगा ये उसे पता था इसलिये वो चुपके से संस्था के मीटिंग्स में जाती थी। अपने इलाके के झुग्गी झोपड़ियो में होने वाली घरेलु हिंसा को रोकने में वो संस्था की मदत करने लगी।

मुमताज का ये मानना था कि स्वच्छता, हिंसा और निरक्षरता जैसी समस्याओ का निवारण हम खुद कर सकते है।

मुमताज़ कहती है

“इन सब परेशानीयों की शुरुआत हम लोग ही करते है, इसलिये उनका निवारण हमें ही करना है।”

कुछ दिन बाद वो CORO संस्था की सदस्य बन गयी। उसके पति को ये पसंद नहीं था इसलिये वो हमेशा उससे झगडा करता। संस्था में काम करने से मुमताज एक सक्षम महिला बनी थी इसलिये उसने अपने पति से तलाख लेने का फैसला किया। अपने पति से दूर होकर उसने अपनी माँ का दिया हुआ घर भी हासिल किया और उसमे रहने लगी। उस दिन के बाद उसे रोकने वाला कोई नहीं था।

अपने इलाके में उसने महिलाओ के ७५ गट बनाये जिसमे शामिल औरते घरेलु हिंसा और अन्य समस्याओ का निवारण करती थी।

Picture for representation only. Credit: Flickr

इस अभियान में शामिल होने वाली औरते गरीब घर से थी इसलिये बनाये हुये गट की महिलाये उन्हें उनकी परेशानी दूर करने के लिये मदत करती थी। आज मुमताज उसके जैसी औरतो के लिये प्रेरणा बनी है। अंतरराष्ट्रीय संस्था “Leaders Quest” ने मुमताज के इस काम से प्रभावित होकर उसे फेलोशिप के लिये चुना है।CORO संस्था में वो आज एक परमानेंट स्टाफ की हैसियत से नौकरी कर रही है।

शोषित महिलाओ की परेशानी सुलझाते हुये मुमताज ने “राईट टू पी” (पेशाब करने का अधिकार) अभियान शुरू किया, जो आज बहुत ही प्रसिद्ध है। उसने बहुत सारे कार्यक्रमो द्वारा,  निडर होकर, महिलाओ को उनकी प्राथमिक सुविधाये देने के लिये मुंबई कारपोरेशन से निवेदन किया है। २०१३ में सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया जिसमे ये आदेश दिया है कि शहर में हर २० किमी के बाद महिलाओ के लिये शौचालय बनाया जाये। सरकार ने शहर में १४७ शौचालय बनाने लिये ५ करोड़ रुपये खर्च करने की अनुमति दी है।

चेम्बूर, मुंबई में जल्दी ही प्रायोजित तौर पर इस प्रायोजित शौचालय का उद्घाटन होगा। मुमताज का ये अभियान बहुत ही प्रसिद्ध हुआ है जो गरीब महिलाओ के लिये महत्वपूर्ण है इसलिये महाराष्ट्र सरकार ने “महाराष्ट्र की  बेटी” का खिताब देकर उसका सन्मान किया है।

समाज के कुछ लोग पहले मुमताज के इस अभियान के खिलाफ थे पर आज उसके महिलाओ के अधिकार और महिला-पुरुष समान के इस अभियान को प्रोत्साहित कर रहे है। महिलाओ की ये समस्याये सिर्फ मुंबई में नहीं बल्कि पुरे देश और दुनिया में है, इसलिये अगर सब चाहे तो उनका निवारण जागतिक तौर पर कर सकते है। मुमताज ने फैसला किया है कि वो २०१७ के इलेक्शन में अपने इलाके से चुनाव लड़ेगी।

मुमताज का जीवन बहोत ही प्रेरणादायक है जिससे लाखो की संख्या में महिलाये प्रभावित होकर अपनी समस्याओ का निवारण कर रही है।


 

मूल लेख – अशिता सिरोही द्वारा लिखित।

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