नासिक से लगभग 30 किलोमीटर दूर सिन्नार तालुका के पास देशवंडी गाँव कभी सूखा प्रभावित क्षेत्र था। लेकिन पिछले दो सालों से यहाँ पानी की अच्छी सुविधा हो गई है और पूरा गाँव सूखे की समस्या से उबर चुका है। इसका श्रेय जाता है नासिक के एक प्राइवेट कॉलेज के रिटायर्ड प्रोफेसर अशोक सोनवणे को, जिन्होंने रेनवाटर हार्वेस्टिंग के जरिए गाँव की तकदीर ही बदल दी।
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर अशोक सोनवणे 2017 में रिटायर हुए थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने विभिन्न सार्वजनिक मंचों पर लेक्चर दिया और अपने ज्ञान को साझा किया था। वह कहते हैं, “मैं नासिक के KTHM कॉलेज में राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) का कार्यक्रम अधिकारी था। जल संरक्षण के प्रयासों पर मेरे अनुभव के कारण अक्सर मुझे लेक्चर देने के लिए बुलाया जाता था।
जब नहीं हुई थी पर्याप्त बारिश
अशोक कहते हैं, 2018 में देशवंडी में मुझे जल संरक्षण पर लेक्चर देने के लिए बुलाया गया। बस चीजें वहीं से बदलनी शुरू हुईं।
वह बताते हैं, “लेक्चर के बाद गाँव के युवाओं से बातचीत शुरू हुई। बातचीत के दौरान ही उन लोगों ने बताया कि गाँव सूखे की समस्या से जूझ रहा है। सभी युवा इस मसले को लेकर काफी चिंतित दिख रहे थे। छात्र मुझसे यह जानना चाहते थे कि जब गाँव में इतना कम पानी आता है तो ऐसी स्थिति में इस सूखे क्षेत्र में जल संरक्षण कैसे किया जाए।”
वह आगे बताते हैं, “मैंने सुझाव दिया कि यात्रा के दौरान मैं जिन दो पहाड़ियों के आसपास से गुज़रा, वहाँ से इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। मैंने उन्हें यह भी बताया कि बारिश के पानी को जमीन पर कैसे जमा किया जा सकता है।”
ऐसी ही कुछ और चर्चाओं और कई बार उस जगह का दौरा करने के बाद वह लगभग एक दर्जन युवाओं के साथ मिलकर बारिश के पानी को जमा करने के अपने पहले प्रयोग की ओर आगे बढ़े।
अशोक कहते हैं, “ग्राम पंचायत से इजाजत लेने में काफी परेशानी हुई। बहुत समझाने के बाद हमें गाँव के आसपास खाइयों को खोदने के लिए लगभग 32 हेक्टेयर जमीन मिली। लोगों ने अपने फावड़े और अन्य औजार दिए। इस तरह सबके योगदान से काम शुरू हुआ। हमें भीषण गर्मी में खुदाई शुरू करनी पड़ी। दरअसल, मानसून में खुदाई नहीं की जा सकती थी क्योंकि आसपास बहुत से किसान फसलों की खेती करते हैं। इसलिए खुदाई के काम को गर्मियों में ही पूरा करना था।”
पहली सफलता
वह बताते हैं, “पहले मानसून के दौरान 2018 में 500 मिमी बारिश हुई और इस दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी जमा कर लिया गया। हम जमीन में बारिश का पानी जमा करने में सफल रहे। हमारी सफलता देखकर ग्राम पंचायत ने अगले सीज़न के लिए कुछ और हेक्टेयर जमीन हमें दे दी।
अशोक ने दो पहाड़ियों के साथ लगभग 100 हेक्टेयर में नालियों की खुदाई की, जिससे भूजल में काफी वृद्धि हुई।
इस पूरे काम पर लगभग 80,000 रुपये खर्च किए, जिसमें लोगों के दान और योगदान भी शामिल हैं। कभी-कभी अशोक भी अपनी जेब से पैसे दे दिया करते थे, जबकि रोजाना 60 किलोमीटर की दूरी तय करने में उनका ईंधन तो लगता ही था।
नालियों में मिट्टी के कटाव से बचने के लिए टीम ने नालियों के पास घास और कांटेदार झाड़ियाँ भी लगाईं।
लगभग 1,500 लोगों की आबादी वाले गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई। अशोक गर्व से कहते हैं, “पिछले दो मानसून सीजन में गाँव में पानी के टैंकर बुलाने की जरूरत नहीं पड़ी। जिला परिषद ने गाँव को सूखामुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया।”
आगे लंबा है रास्ता
इस काम में योगदान देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण कार्दक कहते हैं, “हमने कुछ लोगों को काम करते हुए देखा और इसमें खुद शामिल होने का फैसला किया। बहुत से गाँववालों को हम पर शक हुआ और कई बार उन्होंने हमारा मज़ाक भी बनाया। लोगों का सहयोग बहुत कम मिला।”
प्रवीण बताते हैं, “गाँव दिसंबर महीने से ही टैंकरों पर निर्भर रहने लगता था। लेकिन अब गाँव में पानी की पर्याप्त सुविधा है। इस कारण स्थिति पहले से बहुत बेहतर हो गई है। बहुत कम लोग अब टैंकरों को बुलाते हैं।”
इतना ही नहीं, गांव में अब ब्रिटिश काल के 32 बैराज भी पुनर्जीवित हो गए हैं। वे वाटर कैनाल का काम करते हैं जिससे पानी का प्रवाह निरंतर बना रहता है।
वहीं, जल संरक्षण की दिशा में अन्य काम किए जा रहे हैं और स्थिति को सुधारने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
अभी आसपास के अन्य सूखाग्रस्त गाँवों को पानी की कमी से मुक्ति दिलाने की योजना पर काम चल रहा है। इससे भूजल स्तर को सुधारने में बेशक काफी मदद मिलेगी।
मूल लेख- HIMANSHU NITNAWARE
संपादन- पार्थ निगम
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