डिजिटल तकनीकों के मामले में भारत जितना आगे बढ़ रहा है, उतना ही कहीं न कहीं हमारे देश में इन तकनीकों की वजह से एक भेदभाव भी बढ़ रहा है, जिसे हम ‘डिजिटल गैप या फिर डिजिटल डिवाइड’ कहते हैं। आज भी देश के बहुत से भागों तक न तो टेक्नोलॉजी पहुंची है और न ही इंटरनेट। इसके अलावा, कुछ ऐसी जगहें भी हैं, जहां तकनीक और इंटरनेट तो है, लेकिन इनका सही इस्तेमाल कैसे किया जाए यह जानने और सिखाने वाला कोई नहीं है।
अगर यही हाल रहा तो डिजिटल इंडिया का सपना सिर्फ सपना ही रह जाएगा। ऐसा नहीं है कि सरकार की तरफ से इस समस्या के समाधान के लिए प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। पिछले कुछ सालों में सरकारी स्कूल, आंगनवाड़ी शिक्षा केंद्र और अन्य सरकारी संस्थानों को डिजिटल तकनीकों से लैस करने का पूरा प्रयास किया गया है।
मगर परेशानी यह है कि जिन दूरगामी गाँवों में अभी तक बिजली व्यवस्था सही से नहीं पहुँच पाई है, वहां भला कंप्यूटर और इंटरनेट काम करे तो कैसे करें?
ग्रामीण भारत की इन मुश्किलों को समझते हुए, झारखंड में स्थित एडइम्पैक्ट (Edimpact) कंपनी ने एक खास प्रोजेक्ट शुरू किया है- प्रोजेक्ट सूर्य किरण। इस कंपनी के फाउंडर संविल श्रीवास्तव हैं। यह कंपनी नयी तकनीक का इस्तेमाल करके अनोखे लर्निंग प्रोग्राम बनाती है। उनका उद्देश्य है कि शिक्षा हर एक तबके के लोगों तक पहुंचे।
प्रोजेक्ट सूर्य किरण के ज़रिए यह कंपनी भारत के ग्रामीण इलाकों में जाकर सरकारी स्कूलों के छात्र-छात्राओं को डिजिटल तकनीकों से रूबरू करा रही है। इनका लक्ष्य डिजिटल शिक्षा के उद्देश्य को पूरा करना है।
एडइम्पैक्ट कंपनी के सीनियर मैनेजर, सुब्रता मंडल ने द बेटर इंडिया को इस प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि उनके इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य ग्रामीण इलाकों के बच्चों को कंप्यूटर, इंटरनेट और अन्य तकनीकों का सही इस्तेमाल सिखाना है ताकि इनकी मदद से वह अपने आने वाले भविष्य की बेहतर नींव रख सकें।
क्या है प्रोजेक्ट सूर्य किरण:
1 सितंबर 2018 को झारखंड से प्रोजेक्ट सूर्य किरण की शुरुआत की गई और बाद में, यह पूरे भारत में फ़ैल गया। मंडल बताते हैं, “इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत हमने मारुती इको वैन को एक मोबाइल कंप्यूटर लैब में रीडिज़ाइन किया है। इसमें हमने 5 लैपटॉप और एक डेमो कंप्यूटर इंस्टॉल किया गया है। डेमो कंप्यूटर को इंटरनेट से जोड़ा गया है। इस वैन में एक-साथ 6-7 स्टूडेंट्स बैठ सकते हैं।”
सबसे अच्छी बात यह है कि यह वैन सौर ऊर्जा से चलती है। इसकी छत पर सोलर पैनल लगे हैं और इसमें 1KVA का सोलर इनवर्टर भी लगाया गया है। अगर कभी धूप न भी हो, तब भी लगभग 7 घंटे तक पॉवर बैक-अप की मदद से यह कंप्यूटर लैब चल सकती है।
फिलहाल, ऐसी 7 सोलर वैन अलग-अलग इलाकों में काम कर रही है।
इन सोलर वैन कम कंप्यूटर लैब्स को चलाने के लिए ड्राइवर नियुक्त किए गए है और हर एक वैन में बच्चों को पढ़ाने के लिए भी योग्य शिक्षकों को रखा गया है। मंडल कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में डिजिटल गैप की वजह इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ योग्य शिक्षकों की कमी भी है।
“बहुत-से सरकारी स्कूल जहां कंप्यूटर आदि उपलब्ध हैं, वहां सिर्फ इसलिए बच्चे नहीं सीख पाते क्योंकि उन्हें कोई सिखाने वाला नहीं है। हमारे इस प्रोजेक्ट से इन स्कूलों को काफी मदद हुई है क्योंकि अब वे अपने साधनों का अच्छे से इस्तेमाल कर पाएंगे,” उन्होंने आगे कहा।
ज़मीनी स्तर पर काम:
एडइम्पैक्ट की टीम ट्रेनिंग करने के लिए सबसे पहले जिला शिक्षाधिकारी से मीटिंग करती है और जब एक बार सरकारी अधिकारियों से अनुमति मिल जाती है तो उनकी सोलर वैन अलग-अलग इलाकों में ट्रेनिंग के लिए जाती है।
मंडल कहते हैं कि उनके एक्सपर्ट्स की टीम ने 3 चरणों में बच्चों के लिए ट्रेनिंग को डिज़ाइन किया है- सबसे पहले उन्हें कंप्यूटर की मूलभूत जानकारी दी जाती है। उन्हें कंप्यूटर चलाना और उसके बाद अलग-अलग सॉफ्टवेयर जैसे कि एमएसऑफिस आदि के बारे में सिखाया जाता है। इसके बाद इंटरनेट ब्राउज़िंग की ट्रेनिंग दी जाती है।
बच्चों को एमएस वर्ड, एक्सेल शीट आदि के साथ-साथ यह भी बताया जाता है कि ईमेल कैसे लिखें और कैसे दूसरों को भेजें। सोशल मीडिया के बारे में उन्हें जागरूक किया जाता है। साथ ही, उन्हें ऑनलाइन ट्रांजैक्शन करना भी सिखाया जाता है।
सुब्रता मंडल बताते हैं कि मात्र 2 सालों में उनका प्रोजेक्ट झारखंड, बिहार, मेघालय और कर्नाटक तक पहुँच गया है। उनके इस एक अभियान से अब तक 4 हज़ार से ज्यादा बच्चों को फायदा मिला है।
प्रोजेक्ट का प्रभाव:
जिन सरकारी स्कूलों तक प्रोजेक्ट सूर्य किरण पहुंचा है, इनमें पढ़ने वाले ज़्यादातर बच्चे अपने घर की वह पहली पीढ़ी हैं जो शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उनके लिए कंप्यूटर और इंटरनेट सिखाना किसी सपने से कम नहीं है। प्रोजेक्ट सूर्य किरण को पहले दिन से ही बच्चों और स्कूल-प्रशासन से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।
“हम स्कूलों से सीधा संपर्क करने से पहले उस इलाके के शिक्षा अधिकारी या फिर किसी सामाजिक संगठन को अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताते हैं। क्योंकि इन लोगों को अच्छे से पता होता है कि किस स्कूल को इस प्रोजेक्ट की ज्यादा ज़रूरत है। वही लोग हमें स्कूलों से जोड़ते हैं।”
प्रोजेक्ट सूर्य किरण एक सीएसआर प्रोजेक्ट है और इसलिए स्कूलों या फिर छात्रों से इस ट्रेनिंग के बदले एक पैसा भी नहीं लिया जाता।
मंडल अंत में कहते हैं कि एडइम्पैक्ट का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि हमारे देश में कोई भी अशिक्षित न रहे। आज के जमाने में शिक्षित होने का मतलब सिर्फ स्कूल जाने या फिर डिग्री लेने से नहीं है। आप तकनीक का इस्तेमाल करते हुए अपने रोज़मर्रा के काम कर पा रहे हैं तो आप शिक्षित हैं। वह प्रोजेक्ट सूर्य किरण के ज़रिए देश के कोने-कोने तक शिक्षा की किरणें पहुँचाना चाहते हैं और यह अभी सिर्फ एक शुरुआत है।
संपादन- अर्चना गुप्ता