“परीक्षा में मिले नंबर बच्चों की काबिलियत का प्रमाण नहीं होते।” इस बात से हम सभी वाकिफ़ हैं, लेकिन कितने भारतीय परिवार है, जिनमें इस बात पर अमल किया जाता है? कितने माता-पिता हैं, जो अपने बच्चों को 80-90% से कम नंबर लाते हुए देखना चाहते हैं?
पर सीबीएससी बोर्ड का 10वीं कक्षा का परिणाम घोषित होने के बाद, एक माँ ने जिस तरह से अपने बेटे के 60% अंक प्राप्त करने की सफलता को सोशल मीडिया पर साझा किया, वह काबिल-ए-तारीफ़ है। इस माँ ने न सिर्फ़ अपने बेटे का हौसला बढ़ाकर, उसे भेड़चाल से निकल अपनी एक राह चुनने की प्रेरणा दी है, बल्कि उनकी पोस्ट ऐसे अभिभावकों की भी आँखे खोलती है, जो अपने बच्चों की दूसरों से तुलना कर उनका मनोबल तोड़ते हैं।
दिल्ली की रहने वाली वंदना सुफिया कटोच ने रिजल्ट आने के बाद 6 मई, 2019 को फेसबुक पर अपनी पोस्ट शेयर की। इस पोस्ट में उन्होंने लिखा कि 10वीं क्लास में उनके बेटे के 60% अंक आये हैं और वे अपने बेटे की इस कामयाबी पर बहुत खुश हैं। उन्हें कोई निराशा नही हैं है कि उनके बेटे आमेर के किसी कम नंबर आये हैं क्योंकि उन्होंने आमेर को दिन-रात मेहनत करते हुए देखा है। बहुत से विषयों के साथ उसे परेशानी हुई, कई बार वह निराश भी हो जाता था। लेकिन उसने मेहनत करना नहीं छोड़ा और आख़िरकार, वह पास हो गया।
वंदना की इस पोस्ट पर देशभर के लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी। बहुत से लोगों ने उनकी सराहना करते हुए लिखा कि वे अपने बच्चों को एक बेहतर आज और भविष्य दे रही हैं। कईयों ने उनके इस साहस की तारीफ़ की कि बिना किसी झिझक के उन्होंने अपने बच्चे की मेहनत और प्रतिभा को समझा है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए, वंदना अन्य माता-पिता के लिए सिर्फ़ यही संदेश देती हैं कि हमारे बच्चे जैसे भी हैं खुबसुरत हैं। ये तो हम माता-पिता को फिर से सोचना चाहिए कि हम अपने बच्चों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं। अपने अधूरे ख्वाबों को अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करने वाली हमारी सोच को हमें रोकना होगा। लोगों की यह धारणा, ‘मेरे बच्चे मेरा प्रतिबिंब है और इसलिए अगर वे कुछ गलत करेंगें तो मेरा नाम खराब होगा,’ इसे भी हमें बदलना होगा। ये कुछ एक्स्ट्रा उम्मीदें हैं जो हम खुद पर थोप लेते हैं। अगर हम माता-पिता अपने आप में शांत, खुश और संतुष्ट होंगें, तभी हम अपने बच्चों को उनकी सही प्रतिभाओं के साथ आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं। हमें खुश रखने की ज़िम्मेदारी हम अपने बच्चों पर नहीं थोप सकते हैं। बड़े होने तक उनके पास कुछ ही साल हैं, इसलिए उन्हें उनका बचपन अच्छे से जी लेने दीजिये।
यक़ीनन इस माँ की यह सोच आज के माता-पिता के लिए एक प्रेरणा है और कहीं न कहीं शुरुआत है कि हम अपने बच्चों की काबिलियत को चंद नंबरों से नहीं बल्कि उनकी अच्छाई, इंसानियत और रचनात्मक प्रतिभाओं से आंकें!