कनेडियन –भारतीय कलाकार बलजीत सिंह अपनी चित्र श्रंखला ‘पराया धन’ से दहेज़ प्रथा के खिलाफ आवाज़ उठा रही है।
भारत को सदैव एक भावी महाशक्ति माना गया है। यहाँ के महानगर गगनचुम्बी इमारतों और महत्वकांक्षी सपनो से भरे पड़े हैं। यहाँ की औरतें धारणाओं को ध्वस्त कर के सफलता की नयी इबारतें लिख रही हैं।
जहाँ एक ओर देश प्रगति के पथ पर अग्रसर है, वही दूसरी ओर दहेज़ एक दीमक की तरह समाज की नींव को खोखला करता जा रहा है।
आंकड़े बताते है कि हमारे देश में हर घंटे एक महिला दहेज़ की बली चढ़ जाती है। २०१२ और २०१४ के बीच देश में दहेज़ के कारण २४,७७१ मौतें हुई और कुल ३.४८ लाख दहेज़ उत्पीड़न के मामले दर्ज हुए। ये आंकड़े सबूत है कि कानूनन अवैध होने के बावजूद दहेज एक व्यापक घटना बनी हुई हैं। और इस गंभीर विषय के बारे में केवल दबी जुबान में ही चर्चा की जाती हैं।
इसी चुप्पी को तोड़ने के लिए कनेडियन-भारतीय कलाकार बलजीत सिंह कुछ करना चाहती थी। इसलिए वे अपनी चित्र श्रंखला ‘पराया धन’ से दहेज़ प्रथा के खिलाफ आवाज़ उठा रही है, जो इस बात पर आधारित है कि एक महिला की कीमत को उसकी दहेज़ की राशि के साथ जोड़ा जाता है।
बलजीत बताती हैं, “पराया धन दहेज के मुद्दे से लड़ने के लिए है, जो हमेशा परंपरा की आड़ में छुप जाता है। मैं चाहती हूँ कि बच्चे अपने माँ बाप से खुलकर बात करें कि आखिर क्यूँ उन्होंने उपहार देने के नाम पर इस दहेज़ की परंपरा को जिंदा रखा है।
“अपने इसी सन्देश को लोगों तक पहूँचाने के लिए मैंने लड़कियों की तस्वीरो को फोटोशोप किया जिसमे मैंने ये दिखाया कि किस तरह बचपन से लेकर शादी तक वो अपने कंधे पर एक बोझ उठाये रखती है और उसकी कीमत सिर्फ उतनी ही होती है जितना उसकी शादी में दहेज़ दिया जाता है।”
“इसश्रृंखला की प्रेरणा ने मेरे पूरे जीवन का निर्माण किया है। समाचारों में, फिल्मों में और परिवार में यही देखते हुए बड़ी हुई। मेरे चचेरे भाई और उसके मंगेतर की सगाई सिर्फ इस लिए टूट गयी क्यूंकि मेरे भाई में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो अपनी माँ के खिलाफ जा सके, जिन्हें और तोहफे चाहिए थे।
“ये मसला उस से भी बड़ा है जितना हम सोचते हैं और चाहे हम अपने आप को जितना भी मॉडर्न और खुली सोच का कह लें, हमारी कुछ बातें और कुछ कदम ऐसे हैं जिन्हें हम न चाहते हुए भी पीछे नहीं छोड पाते,” बलजीत कहती हैं।
“लड़कियों को अक्सर कहा जाता है कि वो चार दिन की मेहमान हैं, कभी ये उनके लिए कहा जाता है तो कभी उनके आसपास की दूसरी लड़कियों को।”
बलजीत ने पराया धन के लिए २०१५ में काम करना शुरू किया था। “२०१५ के अंत में मेरे एक मित्र ने मुझे संपर्क किया। वे ‘Whose World Is This?’ नामक प्रदर्शनी की मेजबानी कर रहे थे। यह प्रदर्शनी सामाजिक मुद्दों पर थी, जिसका आयोजन नेटिव चिल्ड्रेन एट सोल कलेक्टिव कर रही थी। मुझे लगा जैसे यह इस श्रृंखला की शुरुआत करने के लिए एक अच्छा अवसर था। “
“मैं चाहती हूँ लड़कियां अपने माँ बाप से सवाल करें कि क्यों हम आज भी शादियों में रिश्तेदारों को २० डॉलर के कपडे उपहार में देते हैं? क्यों हम लड़की के परिवार से कार और संपत्ति मांगते हैं? मैं चाहती हूँ कि लडकियां इन बातों पर नाराज़ हो …सवाल उठाये!”
“इस श्रृंखला का लोगों ने स्वागत किया है। मैं नही चाहती कि लोग इन तस्वीरो पर एक लाइक दे कर अपना फ़ोन बंद कर दे बल्कि सोचने पर मजबूर हों और वास्तविकता को समझे”, बलजीत जोर देकर कहती है।
“शादी के दिन सिर्फ वचनों और आशीर्वादों का आदान प्रदान होना चाहिए, पैसो या गहनों का नहीं। “
हम बलजीत की बातों से बिलकुल सहमत है। क्या आप भी है ?
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