क्या आपको पता है कि डेनिम जीन्स की एक जोड़ी बनाने में लगभग 10 हजार लीटर पानी का इस्तेमाल होता है? अगर सही ढंग से रखा जाए तो जीन्स सालों-साल चलती हैं। लेकिन फैशन के इस दौर में हम बहुत जल्दी ही कपड़े को बदल लेते हैं और ऐसे में घर में पुराने कपड़ों का अंबार लग जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस पूरी प्रक्रिया में पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है?
इसे रोकने के लिए और प्रकृति को प्रदूषित होने से बचाने के लिए, हम सब अपना योगदान दे सकते हैं। इसमें आपको बहुत मेहनत भी नहीं करनी है। सिर्फ कुछ छोटे-छोटे कदम उठाने होंगे। सबसे पहले आप अपने जो भी कपड़े रिटायर करना चाहते हैं, उनमें से एकदम सही और अच्छे कपड़ों को अलग करके रखें। इन कपड़ों को किसी जरूरतमंद को दे दें। दूसरा कदम, ऐसे कपड़े, जो एकदम घिस गए हैं और किसी को दिए नहीं जा सकते, उन्हें आप घर की साफ-सफाई के कामों में ले लें।
तीसरा और अहम कदम है ‘अपसायकल।’ अगर आपके पास कुछ ऐसे कपड़े हैं, खासकर जीन्स जिन्हें आप किसी को नहीं दे सकते और न ही कचरे में फेंकना है तो इन कपड़ों को अपसायकल करके आप कुछ नयी चीजें बना सकते हैं। जैसे अक्सर हमारी दादी-नानी करती थीं। अपनी पुरानी साड़ी में से सूट, परदे या गिलाफ बना दिए। आप इन कपड़ों को किसी अपसाइक्लिंग आर्टिस्ट को देकर भी काम करा सकते हैं। आज हम आपको ऐसी ही एक अपसाइक्लिंग आर्टिस्ट से मिलवा रहे हैं, जो पुराने कपड़ों को नया रूप दे रही हैं।
केरल के कन्नूर में रहने वाली, रत्न प्रभा राजकुमार पिछले कई सालों से अपसाइक्लिंग कर रही हैं। वह पुराने और बेकार कपड़ों, खासकर कि डेनिम जीन्स और टेलर की दुकानों में बची कतरन का इस्तेमाल करके 40 से भी ज्यादा तरह के उत्पाद बनाती हैं। अपने इस छोटे से बिज़नेस को उन्होंने नाम दिया है- BlueMadeGreen! ब्लू मतलब जीन्स और ग्रीन मतलब प्रकृति के अनुकूल।
माँ और दादी से सीखा हुनर
प्रभा ने बचपन से ही अपनी माँ और दादी को पुराने कपड़ों को नया रूप देते हुए देखा था। उनकी माँ अपना बुटीक भी चलाती थीं। इसलिए बतौर अकाउंटेंट नौकरी करने वाली प्रभा की हमेशा से इस काम में रूचि रही और इसलिए उन्होंने फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कोर्स भी कर लिया।
उन्होंने कहा, “एक बार मेरी बेटी के स्कूल में इवेंट था, जिसके लिए मैंने अख़बार, कार्डबोर्ड जैसी चीजों का इस्तेमाल करके उसका पूरा कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किया। स्कूल में सभी से बहुत सराहना मिली। उस दिन मैंने सोचा कि हमें ज्यादा से ज्यादा पुरानी चीजों को अपसायकल या रीसायकल करने पर जोर देना चाहिए।”
इसलिए प्रभा कभी अपनी बेटी के लिए तो कभी अपनी बहन या दोस्तों के बच्चों के लिए पुराने कपड़ों से कुछ न कुछ नया बनाती रहती थीं। धीरे- धीरे उनका यह शौक बिज़नेस में बदल गया। पहले वह बेंगलुरु में रहती थीं। लेकिन अब पिछले तीन सालों से वह कन्नूर में हैं और वहीं पर अपना बिज़नेस चला रही हैं। उन्होंने कहा, “मैंने दो लोगों को नियमित तौर पर काम के लिए रखा है। इसके अलावा, जैसे-जैसे मुझे ऑर्डर मिलते हैं, मैं और भी लोगों को काम देती हूं।”
उन्होंने आगे बताया कि वह खुद कहीं से पुराने डेनिम इकट्ठा करके उत्पाद बनाकर बेचने की बजाय अपने ग्राहकों के हिसाब से काम करती हैं। उनके पास कुछ अपने उत्पाद होते हैं लेकिन ज्यादातर वह कस्टमाइज्ड ऑर्डर लेती हैं। इस तरह से लोग उन्हें अपने घर में इकट्ठे किए हुए पुराने डेनिम जीन्स और कुछ अन्य कपड़े (जो डिजाइनिंग में काम आ सकते हैं) भेजते हैं। इसके अलावा, वह अलग-अलग टेलर की दुकानों से कतरन भी इकट्ठा करती हैं ताकि इनसे नए-नए उत्पाद बना सकें।
ऐसे करती हैं काम
अगर कोई प्रभा से पुराने जीन्स से प्रोडक्ट्स बनवाने के लिए संपर्क करते हैं तो वह सबसे पहले उनसे कपड़ों की फोटो मांगती हैं। उन्होंने कहा, “सबसे पहले मैं देखती हूं कि उन जीन्स या कपड़ों से कोई नयी चीज बनेगी या नहीं। साथ ही, अगर मुझे लगता है कि कपड़े किसी के पहनने के काम आ सकते हैं तो मैं लोगों को इन्हें डोनेट करने की सलाह भी देती हूं।”
लेकिन जिनके कपड़े उन्हें ठीक लगते हैं, उन कपड़ों को वह मंगवा लेती हैं। इसके बाद, ग्राहक उन्हें बताते हैं कि वे क्या-क्या चीजें बनवाना चाहते हैं। फिर ग्राहकों की जरूरत और उपलब्ध पुराने कपड़ों के हिसाब से प्रभा चीजें डिज़ाइन करती हैं। इस तरह से वह लोगों के लिए उनके ही पुराने कपड़ों से तरह-तरह के बैग जैसे स्लिंग बैग, शॉपिंग बैग, हैंडबैग, बैकपैक, पाउच, बेडशीट, परदे, मेज का कवर, टेबल लेनिन, बेल्ट, फ्रिज, माइक्रोवेव के कवर, सामान रखने के लिए आर्गेनाइजर, हेडबैंड, स्क्रंची, ईयररिंग आदि बना रही हैं।
“किसी भी उत्पाद में लगने वाली मेहनत और अन्य साधनों जैसे लाइनिन (अस्तर), लैस, चैन, लटकन आदि के आधार पर उत्पाद की कीमत तय की जाती है। बहुत से लोगों को लगता है कि उन्होंने पुराने कपड़े दे दिए तो अब पैसे क्यों देने लेकिन वह हमारी मेहनत को नहीं देखते हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे आप किसी बुटीक को कपड़ा देकर अपने लिए हज़ारों रुपए की ड्रेस तैयार कराते हैं। लेकिन मेरे यहां जब आप पुराने डेनिम या कपड़े देते हैं तो आप न सिर्फ अपने लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी एक अच्छा कदम उठाते हैं,” उन्होंने कहा।
तैयार करती हैं तीन-चार हजार रुपए तक के प्रोडक्ट भी
हर महीने प्रभा लगभग 50 किलो डेनिम जीन्स और कतरन को अपसायकल करके नए-नए प्रोडक्ट बना रही हैं। उन्होंने बताया कि उनके बनाए उत्पादों की कीमत 60 रुपए से शुरू होकर चार हजार रुपए तक जाती है। यह कीमत उत्पाद, इसकी डिज़ाइन, इसमें लगने वाली मेहनत और चीजों पर निर्भर करती है। जैसे अगर हम छोटे हेडबैंड या ईयररिंग बनाएं तो इनकी कीमत कम से कम होगी। लेकिन अगर कोई कस्टमाइज्ड परदे, बैकपैक, बेडशीट बनवाता है तो इनकी कीमत हज़ार रुपए से ज्यादा ही होती है।
अलग-अलग तरह के बैग्स की कीमत 600 रुपए से शुरू होती है। उन्होंने बताया, “ऑर्डर्स कभी भी फिक्स नहीं रहते हैं। किसी महीने ज्यादा ऑर्डर मिलते हैं तो किसी महीने कम। लेकिन दस से ज्यादा ही मिलते हैं। बहुत से बल्क ऑर्डर भी हमें मिल रहे हैं। अगर आप ग्राहकों को क्रिएटिव चीजें दें और मेहनत करें तो इस क्षेत्र में अच्छी कमाई है। हालांकि, कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान बिज़नेस पर काफी ज्यादा असर पड़ा है। कई महीने तक नियमित काम नहीं हुआ और अब कुछ समय पहले से हमने एक बार फिर नयी शुरुआत की है।”
प्रभा को पूरी उम्मीद है कि धीरे-धीरे वह एक बार फिर रफ़्तार पकड़ लेंगी। क्योंकि उनका काम उनके ग्राहकों को बेहद पसंद आता है। उनकी एक ग्राहक स्वाति प्रसाद ने उनसे अपनी पुरानी जीन्स देकर मेजपोश और हैंडबैग बनवाये थे। वह कहती हैं कि प्रभा हमेशा अलग-अलग आइडियाज के लिए तैयार रहती हैं। उन्होंने उनकी जीन्स से खूबसूरत और आकर्षक मेजपोश बनाए और शॉर्ट्स से एक बढ़िया हैंडबैग। वहीं, एक और ग्राहक हरीश्री बताते हैं कि उन्होंने पुराने कपड़ों से बना एक बैग ऑर्डर किया था। जिसे अखबार की पैकेजिंग में उन्हें भेजा गया। अब इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि आपके सामान के साथ-साथ पैकेजिंग भी पर्यावरण के अनुकूल हो।
इसलिए अगर आपके घर में रखे हैं ढेरों पुरानी डेनिम जीन्स या अन्य कोई कपड़े हैं, तो आज ही करें प्रभा से संपर्क। आप उन्हें उनके फेसबुक पेज (https://www.facebook.com/bluemadegreen) के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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