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क्या आपने कभी ऐसा बर्तन देखा है, जिसे खाया जा सके? जी हाँ, आप पहले इनमें खाना खाइए और फिर इन्हें भी खा जाइये। भले ही आपको यह अटपटा लगे लेकिन यह सच है। दिल्ली के रहने वाले 36 वर्षीय पुनीत दत्ता अपने स्टार्टअप, 'आटावेयर' के ज़रिए ऐसी ही क्रॉकरी लोगों तक पहुँचा रहे हैं। यह एडिबल क्रॉकरी, सिंगल यूज प्लास्टिक क्रॉकरी का सस्टेनेबल विकल्प है।
'एडिबल क्रॉकरी', जिसे आप एक बार खाने के लिए इस्तेमाल करके, इसे भी खा सकते हैं। अगर आप ना भी खाएं और इसे कहीं पर फेंक दें तब भी यह पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी। जानवरों के लिए यह खाना ही होगा और अगर लैंडफिल में जाए तो भी मिट्टी के लिए पोषक है।
आटावेयर की क्रॉकरी को कई बार लैब में टेस्ट किया गया और फिर गुरुग्राम के एक पब में इसे ट्रायल के लिए दिया गया। हर तरह से इसके उपयोगी होने की पुष्टि होने के बाद ही पुनीत दत्ता ने अपने स्टार्टअप की शुरुआत की।
हरियाणा के फरीदाबाद में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में पले-बढ़े पुनीत हमेशा से ही अपना व्यवसाय करना चाहते थे। लेकिन उनके परिवार में व्यवसाय के बारे में किसी का कोई अनुभव नहीं था।
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पुनीत ने द बेटर इंडिया को बताया, " मुझे हमेशा से कुछ अपना करना था। इसलिए पढ़ाई पूरी होने के बाद 1999 में एक अखबार की एजेंसी ले ली। लेकिन मेरा इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था तो वह काम असफल रहा। इसके बाद मैंने बीपीओ सेक्टर में काम किया। अपना स्टार्टअप शुरू करने से पहले एक ग्लोबल रिक्रूटमेंट कंपनी में काम कर रहा था और वहां अच्छे पद पर था।"
उनकी ज़िंदगी में सब कुछ अच्छा था। अच्छी सम्मानजनक नौकरी, कमाई और परिवार, सब तरह से संपन्न। लेकिन साल 2013 में वृन्दावन की एक यात्रा ने उनके नज़रिए को बिल्कुल ही बदल दिया। बरसों पहले असफलता के बाद व्यवसाय करने का उनका सपना जो कहीं दब गया था, फिर से उनकी आँखों में चमकने लगा। लेकिन इस बार उन्हें व्यवसाय सिर्फ अपने लिए नहीं करना था बल्कि उनका उद्देश्य निज हित से बड़ा है।
वह बताते हैं, "हम यमुना नदी पर बना पुल पार कर रहे थे तो मैंने देखा कि नदी में एक सफेद-सी चीज़ बहकर जा रही है। ऊपर गाड़ी से यह बहुत सुंदर दिख रहा था। लेकिन जब हमने गाड़ी नीचे लगाई और जाकर देखा तो हक़ीकत कुछ और ही थी। दरअसल, वह सफेद चीज़, प्लास्टिक थर्माकॉल की शीट थी।"
इसके बाद, जब वह वृन्दावन पहुंचे तो उन्होंने देखा कि गली-गली में भंडारे चल रहे हैं। उस दिन पुनीत को हर जगह प्लास्टिक क्रॉकरी के ही ढेर दिखे। फिर थोड़ी देर बार, लोग चिल्ला रहे थे कि प्लास्टिक की प्लेट्स खत्म हो गई और कहीं मिल नहीं रही है। इस सबके बीच, पुनीत की नज़र एक साधु पर पड़ी, जिसने पुड़ियाँ ली और उसी पर सब्जी रखकर खाने लगा। उसी पल, उनके दिमाग में यह विचार कौंधा, 'अगर बर्तन ही ऐसे हों जिन्हें खा लिया जाए तो कचरा नहीं होगा।' वापिस लौटकर कई दिनों तक उनके दिमाग में यह बात चलती रही।
आखिरकार, उन्होंने इस बारे में अपनी रिसर्च शुरू कर दी। बहुत से ऐसे एडिबल चीजों के बारे में पढ़ा और समझा, जिन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने आटे के साथ अपनी कोशिश शुरू की और सबसे पहले कटोरी बनाने की पहल की। आटे को कटोरी का आकार देना तो संभव है लेकिन इसमें मजबूती कैसे लाई जाए। इस बारे में उन्होंने काफी रिसर्च की। पुनीत बताते हैं कि एक दिन वह क़ुतुब मीनार घुमने गए थे। वहां उन्होंने देखा कि एक टूरिस्ट गाइड कुछ विदेशी पर्यटकों को इमारतों के बारे में बता रहा था।
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"मैंने उसे कहते हुए सुना कि भारत में बहुत-सी पुरानी इमारतों के निर्माण में गुड़ का भी इस्तेमाल हुआ है। गुड़ से इमारत को मजबूती मिलती है। मैंने भी गुड़ का इस्तेमाल करने की सोची। इसके बाद मैंने अपने सभी ट्रायल्स आटे और गुड़ के साथ किए। सालों की रिसर्च और ट्रायल के बाद, आखिरकार मैं आटे और गुड़ की एडिबल क्रॉकरी बनाने में सफल रहा। मैंने इसके कई सारे लैब टेस्ट किए। "
हर तरह से जांच-पड़ताल करने के बाद, पुनीत दत्ता ने अपना पेटेंट फाइल किया। पेटेंट मिलने के बाद उन्होंने अगस्त, 2019 में अपना स्टार्टअप, 'आटावेयर' शुरू किया। आटावेयर मतलब आटे का बना बर्तन। पुनीत आटे और गुड़ से कप, गिलास, कटोरी, चम्मच, स्ट्रॉ, अलग-अलग आकार की प्लेट्स, पैकेजिंग कंटेनर आदि बना रहे हैं। उनके द्वारा तैयार एक किट में 63 प्रोडक्ट्स हैं। इन प्रोडक्ट्स की खासियत यह है कि ये पूरी तरह से जैविक, प्राकृतिक और खाने योग्य हैं। यदि इस कटलरी को खाया भी न जाए तो भी यह मात्र 30 दिनों में डि-कंपोज़ हो जाती है।
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स्टार्टअप के लॉन्च से अब तक पुनीत लगभग 75, 000 प्रोडक्ट्स बेच चुके हैं। ये सभी प्रोडक्ट्स उन्होंने ज़्यादातर निजी ग्राहकों को बेचे हैं। हालांकि, उनकी कोशिश हॉस्पिटैलिटी सेक्टर, धार्मिक स्थल, मल्टी-नेशनल कंपनियों को टारगेट करने की है। होटल और कैफ़े आदि में सिंगल यूज कटलरी का काफी इस्तेमाल होता है लेकिन अगर प्लास्टिक की जगह एडिबल कटलरी का उपयोग हो तो बहुत सी समस्याओं का निदान हो सकता है।
"मल्टी-नेशनल कंपनियां अपने कर्मचारियों को टी-कॉफ़ी के लिए पेपर कप या बॉन चाइना मग्स मंगवाती हैं। इसकी जगह हमारी कोशिश है कि हम अपने आटावेयर्स को उन तक पहुंचाएं। फिलहाल, हमें ग्राहकों से भी काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है," उन्होंने आगे कहा।
पुनीत दत्ता पर्यावरण और प्रकृति को बचाने के साथ-साथ देश के किसानों के लिए अतिरिक्त आय और महिलाओं के लिए रोज़गार के अवसर प्रदान करना चाहते हैं। उनका मॉडल है कि वे छोटे किसान, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम ज़मीन है, उनसे जुड़ें और सीधा उनकी फसल खरीदें। इससे पुनीत को उनके मन मुताबिक गेहूं और गुड़ बनाने के लिए गन्ना मिलेगा और किसानों को उनकी मेहनत के सही दाम। उन्होंने अपनी फैक्ट्री फरीदाबाद और बहादुरगढ़ में स्थापित की हैं। फिलहाल, उनकी कोशिश ज्यादा से ज्यादा प्रोडक्शन पर है ताकि बाज़ार में बढ़ रही मांग की आपूर्ति कर सकें।
इसके अलावा, उन्होंने देश के 86 शहरों में अपने डिस्ट्रीब्यूटर तैयार करने की योजना बनाई है। उन्होंने कुछ शहरों में सर्वे करवाया। अभी तक, उनकी मार्केटिंग सोशल मीडिया और छोटे-बड़े आयोजनों से हो रही है। लोगों की प्रतिक्रिया उनके प्रोडक्ट्स को लेकर काफी अच्छी है। इसलिए उनका आगे का प्लान अपनी मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन पर है।
पुनीत बताते हैं कि उनके लिए इस स्टार्टअप को शुरू करना बिल्कुल भी आसान नहीं रहा। उन्हें फंडिंग के लिए भी कहीं से कोई मदद नहीं मिली। पुनीत कहते हैं कि उन्हें पता था कि वह सही दिशा में काम कर रहे हैं। अगर वह ये ट्राई ही ना करते तो यहाँ तक पहुँचते ही नहीं। उन्होंने रिस्क लिया क्योंकि उन्हें खुद पर भरोसा था कि अगर वह फेल भी हो गए तो अपने हुनर और ज्ञान से अपने लिए फिर कुछ न कुछ अच्छा कर लेंगे।
आज उनका एक डिस्ट्रीब्यूटर यूके में भी है और भारत के शहरों के अलावा, वह सऊदी, क़तर, दुबई, ऑस्ट्रेलिया, यूएस, श्रीलंका, सिंगापुर जैसे देशों में भी अपने प्रोडक्ट्स भेज चुके हैं। अब पुनीत दत्ता को सिर्फ इस बात का इंतज़ार है कि लॉकडाउन के बाद कब ज़िंदगी सामान्य होगी और वह पूरी तरह से अपने प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग में जुट जाएंगे।
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अगर आप 'आटावेयर' कटलरी के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो उन्हें 9871014728 पर व्हाट्सअप मैसेज कर सकते हैं!
तस्वीर साभार: पुनीत दत्ता
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