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गरीब छात्रों के लिए 4 दोस्तों ने शुरू की फ्री ऑनलाइन क्लास, 120 बच्चों ने पास की JEE

महाराष्ट्र में परभणी जिला के पूर्णा तालुका के रहने वाले दीपेश रणवीर ने पहली बार अप्रैल 2019 में जेईई (JEE) की परीक्षा दी। उस समय उन्हें कुछ प्रश्नों को समझने में परेशानी हुई। ऐसा नहीं था कि उन्हें साइंस समझ नहीं आती थी, बल्कि अपनी कमजोर अंग्रेजी के चलते, उन्हें यह परेशानी हुई। दीपेश के पिता गाँव के एक स्कूल में शिक्षक हैं, और माँ एक गृहिणी हैं। वह कहते हैं, “जब मुझे पहली बार पता चला कि, पथ प्रदर्शक फाउंडेशन, जेईई जैसी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मुफ्त ऑनलाइन कक्षाएं (Free Online Coaching Class) चलाती है, तो मैंने भी इसके लिए रजिस्टर किया। उनकी कक्षाओं के लिए, मैंने भले ही एंट्रेंस एग्जाम दिया था, फिर भी मुझमें आत्मविश्वास की बहुत कमी थी। मैंने स्कूल के बाद जेईई की परीक्षा दी थी, लेकिन मैं इसमें पास नहीं हो पाया था।” जेईई परीक्षा की तैयारी के लिए दीपेश ने 2019-20 में गैप लिया। 

आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) से पढ़े और पथ प्रदर्शक फाउंडेशन के को-फाउंडर, रोबिन मंडल बताते हैं, “दीपेश, अंग्रेजी का एक वाक्य भी नहीं समझ पाता था, और खुद के प्रति उसका विश्वास बहुत ही कम था। वैचारिक समझ के अलावा, बहुत-सी प्रतियोगी परीक्षाओं में, अंग्रेजी समझने की काफी ज़्यादा ज़रूरत होती है। लेकिन भाषा के साथ उसकी समस्या वास्तविक थी। कोई विश्वास नहीं करेगा लेकिन, अपनी मेहनत और लगन से, दीपेश ने जेईई की परीक्षा पास की, और उसे एनआईटी-रायपुर में दाखिला मिला। अपने गाँव से एनआईटी में दाखिला पाने वाला, वह पहला छात्र है।”

2016 में एक स्थानीय शिक्षक के सहयोग से (जिनके पास स्मार्टफोन था) दीपेश ने उनके यूट्यूब चैनल, ‘ग्रो भारत’ की शुरुआत की। यहाँ उन्होंने मुफ्त ऑनलाइन क्लास लेना शुरू किया। इस यूट्यूब चैनल पर फ़िलहाल उनके 46000 सब्सक्राइबर हैं।

दीपेश बताते हैं, “जब मैंने तैयारी शुरू की, तब मैं प्रश्नों को ठीक से समझ नहीं पाता था, क्योंकि मेरी अंग्रेजी बहुत कमजोर थी। मैंने इस बारे में रोबिन सर से बात की, तब उन्होंने सुझाव दिया कि, मैं पहले उन प्रश्नों पर काम करूँ, जिन्हें समझ पाता हूँ, और बाद में, ऐसे प्रश्नों पर, जो मुझे समझ नहीं आते। बार-बार कोशिश करने से, मैं धीरे-धीरे इन प्रश्नों को समझने लगा कि, क्या पूछा गया है, और धीरे-धीरे इन्हें हल करना आसान हो गया। लगातार अभ्यास, और ‘पथ प्रदर्शक’ के शिक्षकों से मिल रहे प्रोत्साहन से, मैं इन प्रश्नों को काफी अच्छे से समझने लगा था।” 

ज़रूरतमंदों के लिए फ्री ऑनलाइन क्लास:

साल 2019 में, IIT बॉम्बे से ग्रैजुएट, सुमित शर्मा, रोबिन मंडल, डॉ. अविनाश द्विवेदी, और आईआईटी जोधपुर से पढ़े, सौरभ संतोष ने, अनौपचारिक तौर पर ‘पथ प्रदर्शक फाउंडेशन’ की शुरुआत की थी। इन लोगों ने अब इस संस्था को रजिस्टर्ड करवा लिया है। 

इन ऑनलाइन कक्षाओं में, हाई स्कूल पास कर चुके, ऐसे छात्रों को पढ़ाया जाता है, जिनका उद्देश्य IIT, NIT, IISc, मेडिकल कॉलेज और नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) में दाखिला लेना है। ‘पथ प्रदर्शक फाउंडेशन’ के सभी को-फाउंडर्स ने, इन परीक्षाओं को बहुत करीब से देखा है। चाहे, वह खुद एक छात्र के रूप में हो, या कोचिंग कक्षाओं में पढ़ाने वाले शिक्षक के रूप में। पथ प्रदर्शक फाउंडेशन चला रहे चारों शिक्षक, मुंबई में अलग-अलग कोचिंग संस्थानों में, छात्रों को इन प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करते हैं। 

कोंचिंग संस्थानों में पढ़ाने के अलावा, अपने खाली समय में, वे फ्री ऑनलाइन कक्षाएं लेते हैं। एक बैच को वह, सुबह (आठ बजे से साढ़े नौ बजे तक) और दूसरे बैच को शाम (पांच बजे से साढ़े छह बजे तक) में पढ़ाते हैं। सुबह के बैच में, उनके पास 80 छात्र हैं, और शाम के बैच में 100 छात्र हैं। 

Sumit Sharma taking free online class.

अपनी लाइव कक्षाओं के अलावा, वे टेलीग्राम चैनल के माध्यम से भी अपने सभी छात्रों से जुड़े रहते हैं। तैयारी के बारे में पूछने के लिए, वे अपने छात्रों को नियमित कॉल भी करते हैं। उनके ये सभी छात्र, भारत के अलग-अलग राज्यो/क्षेत्रों से हैं। 

सुमित शर्मा बताते हैं, “हम शिक्षक प्रतियोगी परीक्षाओं के चार मुख्य विषयों की तैयारी कराते हैं। मैं छात्रों को, ‘इनऑर्गनिक केमिस्ट्री’ (Inorganic Chemistry) पढ़ाता हूँ, और डॉ. अविनाश, ‘ऑर्गनिक केमिस्ट्री’ (Organic Chemistry) पढ़ाते हैं। रोबिन ‘फिजिक्स’ (Physics) पढ़ाते हैं, और साथ ही, फाउंडेशन के काम को भी देखते हैं। सौरभ, छात्रों को गणित पढ़ाते हैं। वैसे तो, हम एक-दूसरे को 2015 से जानते हैं। लेकिन, औपचारिक तौर पर, हमने 2019 से साथ में काम करना शुरू किया। इस गैर-लाभकारी (नॉन-प्रॉफिट) फाउंडेशन को चलाने के साथ-साथ, हम कोचिंग संस्थानों में भी काम करते हैं।”

पिछले दो सालों में, उनकी फाउंडेशन से, 120 छात्रों का IIT, IISc, NIT, और अन्य संस्थानों में दाखिला हुआ है। 

प्रेरणा और चुनौतियाँ:

उन्होंने सुपर 30 प्रोग्राम में भाग लिया था। सुपर 30, हर साल ऐसे ज़रूरतमंद छात्रों को फ्री कोचिंग देता है, जो पढ़ाई में अच्छे हैं, लेकिन कोचिंग फीस नहीं भर सकते हैं। इस प्रोग्राम में भाग लेने पर, इन चारों दोस्तों को समझ में आया कि, किस तरह से वे कमजोर तबकों से आने वाले छात्रों की मदद कर सकते हैं। इन चारों को-फाउंडर्स में से, तीन, अभी भी सुपर 30 के लिए पढ़ा रहे हैं। 

रोबिन कहते हैं, “दो-तीन साल पहले, मेरे जो छात्र, अंग्रेजी का एक वाक्य भी नहीं बना पाते थे, उनका दाखिला IIT दिल्ली, और IIT बॉम्बे जैसी जगहों पर हुआ है। जब ऐसा होने लगा, तब हमें इस चीज़ का अहसास हुआ। फिर 2019 में, औपचारिक तौर पर, मुफ्त ऑनलाइन कक्षाओं के लिए, हम चारों साथ में आए। हालांकि, हमने 2020 में कोविड-19 महामारी से पहले, कभी इसे गैर-लाभकारी (नॉन-प्रॉफिट) संगठन की तरह रजिस्टर करने के बारे में नहीं सोचा था।”

उनके लगातार प्रयासों के बावजूद, इन मुफ्त ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान, उन्हें बहुत-सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। खासकर, इंटरनेट डाटा की खपत। बहुत बार, इंटरनेट धीमे होने की वजह से, छात्रों को क्लासेज की वीडियो ठीक से नहीं दिख पाती है। 

कैसे वह इन समस्याओं को हल करते हैं?

रोबिन बताते हैं, “जैसा कि, हम सुपर 30 के छात्रों के लिए करते थे, हम कभी-कभी उन्हें 1000 रुपए का जियो सब्सक्रिप्शन देते हैं, जिसमें प्रतिदिन 3 जीबी डाटा मिलता है। अगर आप बिल्कुल ही ऑनलाइन कक्षाओं पर निर्भर हैं, तो आपको हर दिन, लगभग दो-तीन जीबी डाटा चाहिए। सिर्फ रिकॉर्डेड वीडियो लेक्चर भेजना काफी नहीं होता है, हम चाहते हैं कि, ये छात्र अच्छी तरह से हमारे लेक्चर सुन पाएं। उन्हें सिर्फ टैबलेट खरीदकर देना, या फिर तीन जीबी डाटा पैक देना ही काफी नहीं है। जहाँ छात्र रहते हैं, हमें वहाँ भी पढ़ने का एक अच्छा माहौल बनाना होता है। उनको तकनीकी सहायता देने के साथ-साथ, बच्चे के माता-पिता को, और गाँव के सरपंच को, इस प्रक्रिया में शामिल किया जाता है, ताकि वह बच्चे के लिए एक सामान्य शिक्षण केंद्र की सुविधा प्रदान कर सकें।”

सुमित आगे कहते हैं , “जब बच्चे हमारे टेलीग्राम चैनल से जुड़ जाते हैं, और यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर लेते हैं, तो हम उनके साथ नियमित फ़ोन कॉल से भी जुड़ते हैं। यह जानने के लिए कि, वह कक्षाओं में कितना आगे बढ़ रहे हैं। जब हम देखते हैं कि, बच्चे पढ़ाई के प्रति ईमानदार हैं, और लगातार विषयों से जुड़े सवाल पूछ रहे हैं, तो हम उन्हें फ़ोन, या फिर डाटा प्लान देते हैं। खासकर, उन छात्रों को, जो देश के दुर्गम इलाकों में रह रहे हैं। फिलहाल हम इस पहल को बड़े स्तर पर नहीं ले जा पा रहे हैं। अब तक हमने, ग्रामीण महाराष्ट्र के 21 छात्रों को डाटा सब्सक्रिप्शन दिया है, और उनकी प्रोग्रेस चेक करने के लिए, उन्हें नियमित रूप से टेस्ट पेपर भेजते हैं।”

ज़्यादातर छात्र स्मार्टफोन पर ही कक्षाएं करते हैं। रोबिन के मुताबिक, यह तरीका बहुत-सी समस्याएं खड़ी करता है। 

वह कहते हैं, “एक बड़ी स्क्रीन होने के साथ ही, टैबलेट ज्यादा महंगा नहीं होता। हमें बच्चों के सीखने के अनुभव को और बेहतर करने के लिए, ज़्यादा टैबलेट्स की ज़रूरत है। आमतौर पर, ये छात्र ज़्यादा मात्रा में डाटा नहीं खरीद सकते हैं, या फिर उन्हें अपने माता-पिता व भाई-बहनों पर डाटा के लिए निर्भर होना पड़ता है। अक्सर, परिवार में सिर्फ एक ही स्मार्टफ़ोन होता है, जिस पर वह सभी आश्रित रहते हैं। डाटा एक बड़ी समस्या है, इसलिए हम कक्षाएं सुबह तथा शाम में लेते हैं। अगर आपके पास, कम से कम वैल्यू का डाटा पैक भी है, तो यह आधी रात तक खत्म हो जाता है। सुबह के बैच में, वह छात्र होते हैं, जिनके लिए डाटा पैक एक समस्या है। हम सुनिश्चित करते हैं कि, उनके पास हमारी क्लासेज करने के लिए पर्याप्त डाटा पैक हो। इस बीच, दिन के लिए मिला डाटा पैक शाम तक खर्च हो जाता है, और रिचार्ज आधी रात में 12, या एक बजे होता है। इसलिए, कई बार हमारे दूसरे बैच की कक्षाएं, सुबह एक बजे के बाद होती हैं।”

आगे की योजना:

पिछले साल, सभी पाँच राष्ट्रीय सैन्य स्कूलों (RMS) ने ‘पथ प्रदर्शक फाउंडेशन’ से संपर्क किया। राष्ट्रीय सैन्य स्कूलों की स्थापना, 1950 के दशक में, रक्षा कर्मियों (डिफेंस पर्सनेल) के बच्चों की शिक्षा, और देखभाल के लिए की गई थी। 

रोबिन बताते हैं, “हमारे पास पहले से ही रेडी-मेड सेट-अप था और सुमित सर, राष्ट्रीय सैन्य स्कूल, जयपुर के छात्र रह चुके हैं। यह हमारा पहला ऑफिशियल प्रोजेक्ट था। हमें राष्ट्रीय सैन्य स्कूल के छात्रों को, जुलाई 2020 से पूरे साल के लिए, विज्ञान तथा गणित पढ़ाना था। गूगल मीट पर हमने ऑनलाइन कक्षाएं शुरू की, और अभी भी ये कक्षाएं चल रहीं हैं। हम सभी राष्ट्रीय सैन्य स्कूलों के बच्चों को ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं, ताकि हम उनकी ज़रूरतों को पूरा कर सकें। हमारा उद्देश्य, भारत के सभी सरकारी स्कूलों के छात्रों को मुफ्त शिक्षा देना है।” 

साथ ही, उनका उद्देश्य, कमजोर तबके के ज़्यादा से ज़्यादा छात्रों की, भारत के बेहतरीन शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला लेने में मदद करना है। 

 मूल लेख: रिंचेन नोरबू वांगचुक

 संपादन- जी एन झा

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