आम के पेड़ों पर कोयल गा रही हैं, हवा में हर तरफ ताजे उगे हुए फलों की मीठी खुशबू बिखरी हुई है, पेड़ कटहल से भरे हैं, नारियल का पानी गर्मी को हराने के लिए तैयार है। इतना ही नहीं, तुलसी, गिलोय (टीनोस्पोरा कोर्डिफ़ोलिया), अर्दुषी (वासाका) और घृतकुमारी (एलो वेरा) जैसे औषधीय पौधे एक नई उर्जा का संचार कर रहे हैं, कितना मनोरम दृश्य होगा, जरा सोचिए!
ऐसा लगता है कि यह खेती का कोई विशेष सेटअप है, लेकिन यह कहानी है मुंबई के उपनगरीय इलाके में स्थित एक रेसिडेंशियल सोसाइटी – ‘कंचन नालंदा सीएचएस लिमिटेड’ की, जहाँ जामुन, आम, अशोक, गुलमोहर, सहजन फल्ली(मोरिंगा), नीम, नारियल और कटहल जैसे 41 प्रकार के पेड़-पौधे लगाए गए हैं।
इस सोसाइटी में रहने वाले कमल साबू कहते हैं, “हम हर वर्ष 600 नारियल, 800-900 आम, 30-40 किलो जामुन और कटहल का उत्पादन करते हैं और इसे सोसाइटी के सभी 86 फ्लैटों में बराबर बांटा जाता है। हाल ही में, पेड़ से नारियल तोड़े गए और हर फ्लैट को 5-6 नारियल दिए गए।”
कोरोना महामारी ने आज स्वास्थ्य संबंधी विमर्श को बेहद महत्वपूर्ण बना दिया है और इससे बचाव के तौर पर अपनी प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत रखने के लिए, इस मुम्बई सब-अर्बन सोसाइटी के लोग अपनी मेहनत का भरपूर लाभ उठा रहे हैं।
हालाँकि, एक समय था जब यहाँ खेती के लिए एक छोटा सी जगह थी और मिट्टी की खराब गुणवत्ता की वजह से, यहाँ पेड़-पौधों को तैयार करने में काफी कठिनाई होती थी। लेकिन, घर में निर्मित जैविक खाद के उपयोग के कारण यह संभव हुआ।
इस कड़ी में सोसाइटी की चेयरपर्सन रश्मि ताक कहती हैं, “यह सब 2016 में शुरू हुआ, जब हमने सोसाइटी में सूखे पत्तों को नहीं जलाने का फैसला किया, क्योंकि इससे वायु प्रदूषण हो रहा था। इसके बाद हमने, परिसर में एक बायो-कम्पोस्ट पिट बनाया और इसमें सूखी पत्तियों को जैविक खाद में परिवर्तित किया गया।”
वह आगे कहती हैं, “सोसाइटी के लोगों की मदद से हमने काफी जल्दी गारबेज सेग्रीगेशन सिस्टम को अपना लिया, साल 2017 में हमने इस विधि को अपनाया और मुझे खुशी है कि सभी ने इसका बखूबी पालन किया।”
सोसाइटी में हर फ्लैट को गीले और सूखे कचरे के लिए दो डिब्बे दिए गए हैं। इसे भर जाने के बाद, गीले कचरे को बायो-कम्पोस्ट पिट में डालकर जैविक खाद बना दिया जाता है और यह सब कुछ एक पेशेवर एजेंसी की निगरानी में होता है। आज, यहाँ प्रचुर मात्रा में जैविक खाद है और इसका उपयोग परिसर में सामुदायिक बागवानी के लिए किया जाता है।
सुहास वैद्य, एक वरिष्ठ सदस्य, जिन्होंने बायो-कम्पोस्ट पिट बनाने और सामुदायिक बागवानी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस पहल ने लोगों को एक दूसरे के साथ जुड़ने और खेती के विषय में अपने ज्ञान साझा करने का अवसर प्रदान किया। वे अपने बगीचे में नारियल, आम, अमरूद, पपीते, कटहल, जामुन, केले, नींबू और नींबू जैसे फलों का स्वाद लेते हैं और अब बगीचे में पुदीना, हल्दी, अनार, देशी चुकंदर और टमाटर जैसे चीजों की भी खेती होने लगी है।
कलकत्ता पान शोस्टॉपर है और इसकी लताएँ काफी नाजुक होती हैं, यह अपने स्वाद और पाचन-तंत्र को मजबूत करने के लिए खाया जाता है। सोसाइटी की एक वरिष्ठ सदस्य कहती हैं, “यह गले के संक्रमण को भी ठीक करने में काफी लाभकारी है, बस पत्ती को पानी से साफ करें और चबाएँ… आपकी खाँसी गायब!”
यह सोसाइटी, पपीते के पत्ते और अर्दुषी जैसे औषधीय पौधों के लिए भी काफी लोकप्रिय है, जिसका उपयोग क्रमशः डेंगू बुखार और खाँसी के इलाज में किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इस बगान को सोसाइटी के लोगों द्वारा अपने सीमित ज्ञान और एक माली की मदद से लगाया गया है, और यहाँ बागवानी के लिए किसी कृषि विशेषज्ञ की मदद नहीं ली गई है।
सोसाइटी में रहने वाले एक युवा दर्शन मेहरोत्रा कहते हैं, “हम नालंदा के आधुनिक किसान हैं। मुझे लगता है कि हम अपने बिल्डिंग एरिया में पौधों, पेड़ों और फूलों को लगाकर जगह का सदुपयोग कर रहे हैं। यह हमारे बच्चों को मुम्बई जैसे महानगर में प्रकृति के करीब रखने का एक अच्छा तरीका है, जो बड़े शहरों में काफी मुश्किल है।”
बता दें कि सोसाइटी में लॉकडाउन के दौरान, करी के पत्ते, तुलसी, फूल और नींबू जैसी दैनिक जरूरतों को इसी बगान द्वारा पूरा किया जाता था।
सोसाइटी ने गारबेज सेग्रीगेशन और जैव-खाद के विषय में नगर निगम के साथ कार्यशालाएँ भी आयोजित की हैं, जिसमें शहर के अन्य हाउसिंग सोसाइटियों ने भी हिस्सा लिया। सोसाइटी के इन प्रयासों को ग्रेटर मुंबई नगर निगम (पी साउथ वार्ड) ने 2017 में शून्य-अपशिष्ट अभियान के तहत एक प्रमाण पत्र के साथ सम्मानित भी किया।
सोसाइटी की सचिव अर्चना साबू कहती हैं, “हमारा लक्ष्य पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं की मदद से प्रदूषण की रोकथाम करना है, और हम अपने अनुभवों को दूसरी सोसाइटी के साथ साझा कर काफी खुश हैं।”
फलों से लेकर औषधीय पौधों से भरा यह आवासीय परिसर मुंबई जैसे महानगर के लिए मिसाल है, जो यह बताता है कि हम सभी को प्रकृति के करीब बने रहना चाहिए।
मूल लेख- Shweta Bhanot
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