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शाकाहारी चिकन नगेट: न बर्ड फ्लू की चिंता, न स्वाद से समझौता

Mumbai Entrepreneur

पिछले साल नवंबर में, सोहिल वजीर ने अपनी पत्नी अकांक्षा अरोड़ा के साथ, खाने का एक छोटा सा प्रयोग किया। उन्होंने अकांक्षा के सामने ‘चिकन नगेट’ (Chicken Nugget) की दो प्लेटें रखीं। 

एक प्लेट में इंटरनेशनल ब्रांड का उत्पाद था, तो दूसरे में प्लांट-बेस्ड। उन्होंने अकांक्षा को दोनों प्लेटों में रखें ‘चिकन नगेट’ को चखने के लिए कहा, और पूछा कि असली ‘चिकन नगेट’ कौन-सा है।

ब्लू ट्राइब फूड’ के सेल्स और मार्केटिंग मैनेजर सोहिल वजीर कहते हैं, “शुरू में उन्हें लगा कि प्लांट बेस्ड नगेट असली थे। लेकिन, अंत में वह अंतर न पहचान सकीं।”

अकांक्षा ही नहीं बल्कि आज सैकड़ों ऐसे ग्राहक हैं, जो स्वाद और आकार से ‘वेज नगेट’ में कोई अंतर नहीं बता पाते हैं।

‘ब्लू ट्राइब फूड’ की शुरुआत नवंबर 2020 में हुई। इसके द्वारा फिलहाल, असली स्वाद के साथ ‘प्लांट बेस्ड चिकन नगेट’ को पेश किया जा रहा है। इसमें ‘फ्रोजन स्नैक्स’ को कुछ एक पल ही तलने की जरूरत होती है, जो पर्यावरण के अनुकूल है। कंपनी द्वारा जल्द ही ‘प्लांट बेस्ड चिकन कीमा’ भी पेश किया जाएगा।

कंपनी के संस्थापक और मैनेजिंग डायरेक्टर संदीप सिंह कहते हैं कि, उनके इस खास उत्पाद का उद्देश्य, ग्राहकों को एक ‘गिल्ट-फ्री स्नैक्स’ उपलब्ध कराना है, जो पर्यावरण के लिए कम नुकसानदेह है।

संदीप सिंह आगे कहते हैं, “आज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि, हर किसी को लगता है कि पर्यावरण से संबंधित चुनौतियाँ, किसी दूसरे की जिम्मेदारी है। मैं अपने जीवन के कई वर्षों तक, एक ‘फ्लेक्सिटेरियन’ (मूल रूप से शाकाहारी, लेकिन कभी-कभी माँस-मछली खाने वाला) था। मुझे अहसास था कि, पशुपालन से पर्यावरण और मानव जीवन पर कितना नकारात्मक असर होता है।”

संदीप बताते हैं कि, उनकी कोशिश खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (फूड सप्लाई चेन) में माँसाहार के स्थान पर शाकाहार को बढ़ावा देने की है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर कल मिल सके।

वह कहते हैं, “माँसाहार का सेवन नैतिक रूप से गलत होने के साथ-साथ, कई और कारणों से भी नुकसानदेह है। आज पशुपालन तथा मुर्गीपालन के लिए क्रमशः चारागाह और पोल्ट्री फार्म बनाये जा रहे हैं, जिससे बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटा जा रहा है। साथ ही, इससे लोगों को कई घातक पशु जनित (‘ज़ूनोटिक’ रोग) रोगों का भी सामना करना पड़ रहा है।”

वह कहते हैं कि, ‘एनिमल-बेस्ड मीट’ की तुलना में ‘प्लांट बेस्ड मीट’ के उत्पादन में, प्रति किलो आठ गुना कम जमीन की जरूरत होती है। वहीं, पानी की जरूरत 20 गुना तक कम हो जाती है।

‘फार्मास्युटिकल’ सेक्टर में पहले काम कर चुके संदीप कहते हैं, “फूड साइंस में रिसर्च और खोजों से हमें ‘प्लांट बेस्ड मीट’ की शुरुआत करने में काफी मदद मिली। इन्हें प्राकृतिक स्त्रोतों से तैयार किया जाता है, जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ, पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।”

उत्पाद को सफल बनाने के लिए, विशेषज्ञों ने कुछ मूल सवालों के जवाब ढूंढ़ने का प्रयास किया। जैसे: ऐसा क्या ख़ास है जो, चिकन को ‘चिकन’ बनाता है? बुनियादी स्तर पर चिकन प्रोटीन की क्या विशेषताएं हैं? इसी के तहत उन्होंने ‘प्लांट बेस्ड मीट’ को विकसित किया।

जीरो एंटीबायोटिक्स और कोलेस्ट्रॉल

‘ब्लू ट्राइब फूड’ की सह-संस्थापक निक्की अरोड़ा सिंह कहती हैं कि, पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव के अलावा, उनके उत्पाद के कई स्वास्थ्य संबंधी लाभ भी हैं।

वह कहती हैं, “हमारे नगेट में कोई भी ‘स्टेरॉयड’ और ‘एंटीबायोटिक्स’ नहीं होते हैं, जो फार्म में पशुओं को आमतौर पर दिए जाते हैं। आज बर्ड फ्लू, स्पैनिश फ्लू, स्वाईन फ्लू और यहाँ तक कि करोना जैसे पशु जनित रोगों के लिए भी, इन्हें जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।”

वह आगे बताती हैं, “हमारे उत्पादों में कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है। यह केवल माँस और डेयरी उत्पादों में ही होता हैं। ‘प्लांट बेस्ड मीट’ में कोई कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है।”

क्या है उनका टारगेट मार्केट

निक्की बताती हैं, “हम ऐसे ग्राहकों को टारगेट कर रहे हैं, जो माँसाहार पसंद करते हैं, लेकिन अपने और पर्यावरण की बेहतरी के लिए, एक विकल्प की तलाश में हैं। भारत में 60 फीसदी से अधिक लोग माँस खाते हैं। ऐसे में, यहाँ ‘प्लांट बेस्ड मीट’ को लेकर अपार संभावनाएं हैं।”

वह आगे बताती हैं कि, “कंपनी ने जुलाई 2020 में मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु में 20 से 45 वर्ष के बीच के ग्राहकों के साथ एक छोटा सर्वेक्षण किया था। जिसमें करीब 62% माँस खाने वाले लोगों ने कहा कि, वे ‘प्लांट बेस्ड मीट’ को आजमाने की कोशिश करेंगे। वहीँ लगभग सभी ने माना कि, माँस खाते वक्त, उसका स्वाद उनके निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।”

आप ‘ब्लू ट्राइब फूड’ उत्पादों को उनके वेबसाइट पर जाकर ऑर्डर कर सकते हैं। उनकी सुविधा फिलहाल मुंबई, दिल्ली, पुणे, बेंगलुरु और हैदराबाद में उपलब्ध है।

संपादन- जी एन झा

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