लाखों की नौकरी छोड़, किया सैनिटरी पैड बनाने का काम, आदिवासी महिलाओं को दिया सम्मानित जीवन

Ranchi Youth

रांची के रहने वाले वन्या वत्सल और गुंजन गौरव ने अपनी नौकरी छोड़, सेनेटरी पैड बनाने का बिजनेस शुरू किया। इसके तहत उनका उद्देश्य वंचित महिलाओं को एक सम्मानित जीवन और रोजगार का बेहतर साधन देना है।

महिलाओं के लिए माहवारी एक स्वाभाविक क्रिया है, लेकिन हमारे समाज में आज भी इसे लेकर शर्म और लज्जा महसूस की जाती है। इसे लेकर सबसे अधिक रूढ़िवादी सोच तो देश के ग्रामीण क्षेत्रों में है।

आलम यह है कि इस प्रक्रिया से गुजरने के लिए, महिलाएं आज भी कपड़े और पत्तियों जैसे चीजों का इस्तेमाल करती हैं। जिससे कई बीमारियों का खतरा बना रखता है।

लेकिन, आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने समाज की इस सोच को बदलने के लिए अपनी अच्छी-खासी नौकरी तक छोड़ दी।

दरअसल यह कहानी है रांची के रहने वाले वन्या वत्सल और गुंजन गौरव की। एक और जहाँ वन्या आईआईएम लखनऊ से 2018 में, मार्केटिंग और फाइनेंस में एमबीए करने के बाद, एक मल्टी नेशनल बैंक में 25 लाख रुपए की नौकरी कर रही थीं। 

तो, दूसरी ओर, गुंजन बेंगलुरु के एक कॉलेज से इंजीनियरिंग करने के बाद, एक ऑटोमोबाइल कंपनी में काम कर रहे थे। लेकिन, समाज के बेहतरी के लिए कुछ करने की चाहत में, दोनों ने अपनी नौकरी छोड़ दी।

इसके बाद, नवंबर 2020 में, उन्होंने अपने वेंचर “इलारिया” की शुरुआत की। इसके तहत, वे पर्यावरण के अनुकूल सेनेटरी पैड बनाने का काम करते हैं।

सेनेटरी पैड ही क्यों

इस कड़ी में वन्या ने द बेटर इंडिया को बताया, “कॉरपोरेट सेक्टर में काम करते हुए, मुझे संतुष्टि नहीं थी। इसलिए मैं अपने जगह पर, अपना काम करना चाहती थी। साथ ही, मेरी इच्छा कुछ ऐसा करने की थी कि जिससे महिलाओं को बढ़ावा देने में मदद मिले।”

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अपने सहयोगियों के साथ वान्या और गुंजन

वह कहती हैं कि आज बिहार-झारखंड में महिलाओं की साक्षरता दर काफी कम है और माहवारी के दिनों में उन्हें कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। 

इस वजह से वह कुछ ऐसा शुरू करना चाहते थे, जिससे उन्हें इन कठिनाइयों से उबारने के साथ-साथ, रोजगार देने में भी मदद मिले।

वह कहती हैं, “आज माहवारी के दौरान महिलाओं के लिए कई बंदिशें होती हैं। वे न तो रसोई में जा सकती हैं और न ही मंदिर में। आलम यह यह है कि आज आप कहीं सेनेटरी पैड खरीदने जाते हैं, तो इसे किसी कागज के टुकड़े में लपेट कर दिया जाता है। मैं इस मानसिकता को बदलना चाहती हूँ।” 

वह कहती हैं कि माहवारी एक स्वाभाविक क्रिया है। यह कोई अभिशाप नहीं हो। यदि महिलाओं को माहवारी न हो, तो वे कभी माँ नहीं बन सकती हैं। ऐसे में, इसे लेकर शर्मिंदगी क्यों!

इसलिए, उन्होंने अपने पैकेजिंग को इस तरीके से रखा है कि आप इसे ड्राइंग रूम में भी रखें, तो यह एक गिफ्ट की तरह लगेगा और आपके मन में कोई संकोच नहीं होगा।

एक और खास बात है कि उनका उत्पाद पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है और उनकी कोशिश प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम से कम करना है।

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यूनिट में काम करती महिलाएँ

इस कड़ी में गुंजन बताते हैं, “आज प्लास्टिक के कारण धरती को काफी नुकसान हो रहा है। इसलिए, हमने बायोडिग्रेडेबल पैड बनाने का फैसला किया। हमारा यह उत्पाद चार से पाँच महीने में मिट्टी के रूप में बदल जाता है। जबकि, प्लास्टिक को इसमें सदियों लग जाते हैं।”

कैसे करते हैं बिजनेस

वन्या बताती हैं कि फिलहाल, वे अपनी इच्छानुसार बने-बनाए पैड को दिल्ली से मंगाते हैं। इसकी पैकेजिंग रांची में की जाती है। फिर, उनके पास जो भी ऑर्डर आते हैं, उसकी डिलीवरी इंडिया पोस्ट से की जाती है। 

अपने इस काम के लिए उन्होंने चार आदिवासी महिलाओं को रोजगार दिया है। ये ऐसी महिलाएं हैं, जो पहले घर-घर जाकर झाड़ू-पोछा का काम करती थीं। आज वे सम्मान की जिंदगी जी रही हैं।

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गिफ्ट जैसी पैकेजिंग है इलारिया के पैड की

इस कड़ी में, रांची की ही रहने वाली सुनीता और रजनी बताती हैं, “हम पहले घर-घर जाकर झाड़ू पोछा लगाते थे। लेकिन, अब हम एक ही जगह काम करते हैं और हमारी आमदनी भी बढ़ी है। जिससे हम अपने परिवार का देखभाल बेहतर तरीके से कर सकते हैं। हमें इस काम को कर पूरी संतुष्टि है।”

क्या होती हैं कठिनाइयाँ

आज इलारिया के पास दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई जैसे कई बड़े शहरों से हर महीने 50 से अधिक ऑर्डर आते हैं। लेकिन, उन्हें अपने उत्पादों को बेचने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

इस कड़ी में गुंजन बताते हैं, “हमारा सेनेटरी पैड बायोडिग्रेडेबल है। इस वजह से थोड़ा महंगा है। लेकिन, लोगों को प्लास्टिक के खतरों को समझना होगा। इससे शरीर को भी नुकसान होता है। हालांकि, हमारी योजना अपना खुद का प्रोडक्शन यूनिट शुरू करने की है। इसके बाद यह काफी सस्ता हो जाएगा।”

बता दें कि इलारिया के सेनेटरी पैड दो तरह हैं – अर्थ और फेदर। एक पैक में 10 पैड होते हैं और इसकी कीमत क्रमशः 110 और 330 रुपए है। इसके साथ ही, वे अपने ग्राहकों को एक बायोडिग्रेडेबल डिस्पोजल बैग भी देते हैं।

धीरे-धीरे बदल रही मानसिकता

गुंजन बताते हैं कि जब उन्होंने इस बिजनेस में अपना कदम आगे बढ़ाने का फैसला किया, तो कई परिचित उनसे बात नहीं करना चाहते थे। 

क्योंकि, उनका मानना था कि वूमेन हाइजीन का मामला है और यह पुरुषों के लिए उपयुक्त नहीं है। लेकिन, धीरे-धीरे उन्हें इसके महत्व का अहसास हुआ और वे इस विषय में खुलकर बात करने लगे।

क्या है भविष्य को योजना

वन्या बताती हैं कि वे अपने सेनेटरी पैड को फिलहाल अपने पोर्टल के जरिए ऑनलाइन बेच रहे हैं। लेकिन, जल्द ही उनका उत्पाद अमेजन पर उपलब्ध होगा।

साथ ही, वह अंत में दृढ़ता से कहती हैं, “हम गाँव-गाँव में अपना प्रोडक्शन यूनिट खोलना चाहते हैं, ताकि महिलाओं को रोजगार का बेहतर साधन मिलने के साथ-साथ, एक सम्मानित जीवन भी मिले।”

वीडियो देखें –


आप इलारिया से फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं।

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संपादन – जी एन झा

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